बीएल संतोष ने दिया यूपी में गुरुमंत्र

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को लोकसभा चुनाव-2024 में सिर्फ 33 सांसद मिल पाये, जबकि 2019 के लेाकसभा चुनाव मंे पार्टी को यूपी मंे 62 सांसद मिले थे। इस बार मिशन-80 पर भाजपा काम कर रही थी। जाहिर है कि चुनाव नतीजों से पार्टी को बड़ा झटका लगा है लेकिन केन्द्र से लेकर प्रदेश स्तर तक के नेतृत्व ने पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बनाए रखने का प्रयास किया है। भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक आगामी 14 जुलाई को होने वाली है। इससे पहले ही प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र सिंह चैधरी और प्रदेश महामंत्री (संगठन) धर्मपाल सिंह ने पार्टी की पराजय का कारण जानने का प्रयास किया। केन्द्रीय नेतृत्व इतने भर से संतुष्ट नहीं है। इसीलिए पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बीएल संतोष गत 6 जुलाई को लखनऊ पहुंचे थे। बताया जाता है कि बीएल संतोष ने सीधे-सीधे कहा कि हमें अभिमान से बचना होगा। राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष ने यूपी मंे होने वाले विधानसभा चुनाव में जीत की रणनीति तय की है। उन्होंने यह जानने का प्रयास किया कि भाजपा से दलित और ओबीसी मतदाता क्यों दूर हो गये? ध्यान रहे कि बीएल संतोष का प्रभाव इतना है कि उनके इशारे पर मुख्यमंत्री तक बदल दिये जाते हैं।
भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष ने लखनऊ प्रवास के दूसरे दिन पार्टी मुख्यालय में एससी मोर्चा के पदाधिकारियों के साथ बैठक में लोस चुनाव में हार के कारणों की पड़ताल की। लोकसभा चुनाव में भाजपा को इस बार 33 सीटों पर ही जीत मिल सकी है, जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 62 सीटों पर जीत दर्ज की थी। अबकी बार पार्टी ने सहयोगी दलों के साथ मिलकर सभी सीटों पर जीत का लक्ष्य रखा, लेकिन परिणाम उम्मीदों से विपरीत आए। प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र सिंह चैधरी ने हार के कारणों की सही जानकारी जुटाने के लिए टास्क फोर्स की 40 टीमों का गठन किया था। एक टीम को दो लोकसभा सीटों की रिपोर्ट तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। टास्क फोर्स की टीमों ने बीते माह ही अपनी रिपोर्ट पार्टी को सौंप दी थी। प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र सिंह चैधरी व प्रदेश महामंत्री (संगठन) धर्मपाल सिंह ने भी कई सीटों पर हार के कारणों की जाॅच पड़ताल की थी।
बीएल संतोष ने भाजपा नेताओं से कहा कि अहंकार से दूरी बना कर रखें। सभी को पद नहीं दिए जा सकते हैं, लेकिन समर्पित होकर चलने से समय आने पर पार्टी आगे आने का मौका भी देती है। उन्होंने कहा कि निराश न हों, बल्कि अपनी कमियों से सीख लेकर आगे बढ़ें। दो दिनों में अलग-अलग हुई पांच बैठकों में यह मुद्दा भी उठाया गया कि स्थानीय स्तर पर नेताओं व कार्यकर्ताओं की अधिकारी सुनवाई नहीं कर रहे हैं। इसकी वजह से नेताओं व कार्यकर्ताओं में निराशा फैल गई और वह चुनाव में प्रचार के लिए निकले ही नहीं।दो दिन के प्रवास में उन्होंने लखनऊ में 14 जुलाई को होने वाली प्रदेश कार्यसमिति की बैठक की तैयारियों की भी समीक्षा की। इस बैठक में राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी शामिल होंगे। बैठक में पार्टी द्वारा चलाए जाने वाले आगामी अभियानों की रूपरेखा तय की जाएगी। इनमें पौधारोपण के साथ-साथ सदस्यता अभियान भी शामिल है।मोर्चा पदाधिकारियों ने कहा कि उम्मीदवारों व कार्यकर्ताओं में समन्वय की कमी हार का बड़ा कारण रहा। इसके अलावा विपक्ष के संविधान बदलने के दुष्प्रचार को लेकर दलितों को जागरूक नहीं किया जा सका। उम्मीदवारों को टिकट देने से पहले स्थानीय नेताओं की राय को तवज्जो नहीं दी गई, जिसके चलते कार्यकर्ता नाराज हो गए और प्रचार से दूरी बना ली। बैठक में दलितों में नए सिरे से पैठ बनाने के निर्देश दिए गए। साथ ही इस बात पर भी जोर दिया गया कि सरकार व संगठन में वंचितों की भागीदारी बढ़ाई जाए।
बीएल संतोष ने मीडिया व सोशल मीडिया विभाग के पदाधिकारियों के साथ भी बैठक की और निर्देश दिए कि विभिन्न मुद्दों पर पूरी तैयारी के साथ लोगों के बीच जाएं। विपक्ष के दुष्प्रचार का मजबूती और तथ्यों के साथ जवाब दें, जिससे लोगों के सामने सच्चाई आ सके। राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) ने लखनऊ में दो बैठकें करके हार के कारणों की समीक्षा की थी। प्रदेश महामंत्रियों व क्षेत्रीय अध्यक्षों के साथ हुई बैठक में भी यही मुद्दे उठे थे कि टिकट वितरण में लापरवाही के अलावा कार्यकर्ताओं की नाराजगी तथा विपक्ष का दुष्प्रचार हार का बड़ा कारण रहे हैं। बैठक में प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र सिंह चैधरी व प्रदेश महामंत्री (संगठन) धर्मपाल सिंह सहित अन्य नेता मौजूद थे। भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष ने प्रदेश महामंत्रियों व क्षेत्रीय
अध्यक्षों के साथ बैठक कर उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में जीत की रणनीति तय की। पार्टी के प्रदेश मुख्यालय में हुई बैठक में उन्होंने लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन की भी समीक्षा की। इसके बाद हुई कोर कमेटी की बैठक में उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ उप चुनाव की तैयारियों पर मंथन किया।
बीएल संतोष का कद बहुत बड़ा है। कर्नाटक में 2019 में जब तत्कालीन मुख्यमंत्री और लिंगायत समुदाय के बड़े नेता बीएस येदियुरप्पा नया मंत्रिमंडल बना रहे थे तो उसमें तीन नए डिप्टी सीएम शामिल किए गए। ये भाजपा की ओर से एक बड़ा दांव था क्योंकि इसमें दक्षिण के इस राज्य में जातीय समीकरण तैयार किया गया था। इन नेताओं में गोविंद करजोल (दलित), लक्ष्मण सावदी (लिंगायत) और अश्वत नारायण (वोकालिंगा) समुदाय से सामिल थे। तीनों ही जातियां कर्नाटक में अहम हैं और किसी भी चुनाव को इनके बिना नहीं जीता सकता था। दरअसल तीन-तीन डिप्टी सीएम बनाने के पीछे राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष की ही भूमिका थी। हालांकि इसका फायदा उस समय बीजेपी को नहीं मिला लेकिन यह एक ऐसा समीकरण था जो कर्नाटक की राजनीति के लिए अब तक सबसे बड़ा दांव साबित होने वाला था। इसके साथ ही बीएल संतोष राज्य में बीएस येदियुरप्पा से इतर बीजेपी के लिए एक नया नेतृत्व भी खड़ा करना चाहते थे।
चुनाव में टिकट देने से पार्टी के लिए रणनीति तैयार करने तक बीएल संतोष का ही नाम गूंजता है। अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि जिनको बीजेपी का टिकट मिला या नहीं मिला वो सभी बीएल संतोष का ही नाम लेते हैं। कर्नाटक के उडीपी जिले के श्रीवल्ली ब्राह्मण परिवार में जन्मे 56 साल के बीएल संतोष पेशे से इंजीनियर हैं। बीएल संतोष बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे। साल 1993 में वो संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बन गए। संघ में रहने के दौरान उन्होंने उडीपी, शिवमोगा, मैसूर जैसे जिलों में जमीनी स्तर पर काम किया। बीएल संतोष पेशे से इंजीनियर हैं इसलिए उन्हें आंकड़ों का पूरा ध्यान रहता है। साल 2006 में बीएल संतोष को कर्नाटक बीजेपी में महासचिव की भूमिका दी गई इसी दौरान कर्नाटक में बीजेपी की सरकार भी बनी। बीजेपी को सबसे बड़ी ताकत आरएसएस से मिलती है। बीजेपी ने अब तक दो प्रधानमंत्री बनाए हैं और दोनों ही संघ के पूर्णकालिक प्रचारक रहे हैं। संघ और बीजेपी के बीच संवाद और पुल का काम करने की जिम्मेदारी राष्ट्रीय महासचिव की होती है। इसके साथ ही चुनाव में टिकट वितरण के लेकर रणनीति बनाने की भी जिम्मेदारी राष्ट्रीय महासचिव की होती है। (हिफी)
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)