लेखक की कलमसम-सामयिक

भेद राजनीति के पकवान

 

राजनीति के चार अंग बताये गये हैं-साम, दाम, दण्ड और भेद। इन चारेां का सम्यक रूप से जो प्रयोग कर लेता है वही सफल राजा माना जाता है। इस प्रकार की राजनीति युगों-युगों से की जा रही है। त्रेतायुग में जब भगवान् राम ने अंगद को दूत बनाकर रावण के पास भेजा था, तब रावण ने भेदनीति का उपयोग किया था क्योंकि उसे पता था कि बालि बहुत पराक्रमी राजा था और उसका पुत्र भी बहुत पराक्रमी होगा। इसलिए रावण ने अंगद को अपने पाले में करने का प्रयास किया था लेकिन अंगद उसके बहकाने में नहीं आया। इसी प्रकार की भेद नीति द्वापर युग मंे महाभारत में योगेश्वर कृष्ण ने अपनायी थी। उस समय के बाद से भेदनीति के पकवान पकते रहे हैं। अभी हाल में (12 जुलाई) मोदी सरकार ने जो अधिसूचना जारी की है, वो भी भेदनीति का एक पकवान है। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 25 जून को संविधान हत्या दिवस घोषित किया। इस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी मुहर लगा दी है। दरअसल सत्तारूढ़ भाजपा किसी भी तरह से विपक्ष को बांटना चाहती है। विपक्षी दलों के एक होने से 2024 के लोकसभा चुनाव में बहुमत लायक सांसद नहीं मिल पाये। अब एनडीए के घटक दलों विशेष रूप से टीडीपी और जद (यू) के समर्थन से ही भाजपा सरकार चला रही है। इसलिए भविष्य को सुरक्षित बनाने के लिए भाजपा को विपक्षी दलों के गठबंधन को तोड़ना है। इसके लिए आपातकाल का पकवान सबसे अच्छा माना जा रहा है। आपातकाल 25 जून 1975 को कांग्रस की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने लागू किया था और कांग्रेस के साथ आज जितने भी विपक्षी दल हैं वे सभी आपातकाल का विरोध करने वाले हैं। इसलिये मोदी सरकार ने 25 जून को संविधान हत्या दिवस घोषित किया है, ताकि कांग्रेस को छोड़कर कोई दूसरा दल इसका विरोध न कर सके। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक सिर्फ कांग्रेस ही विरोध कर रही थी । ऐसा नहीं है कि सिर्फ भाजपा ही आज भेद नीति का पकवान सामने लायी है, विपक्षी दलों की तरफ से भी इस तरह के प्रयास हुए हैं। लोकसभा चुनाव के बीच आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने पीएम नरेन्द्र मोदी के 17 सितंबर 25 को 75 साल पूरे होने के बीच भेद खड़ा करने का प्रयास किया था। नीतीश कुमार और भाजपा के कटु रिश्तों की बार-बार याद दिलाना भी भेदनीति का ही एक प्रयास था। बहरहाल भारत सरकार ने 25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाने की अधिसूचना जारी कर दी है।
25 जून 1975 को तत्कालीन राष्ट्रपति डा. फखरुद्दीन अली अहमद ने प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी के कहने पर आपातकाल की घोषणा कर दी थी। इससे पूर्व 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने श्रीमती इंदिरा गांधी को रायबरेली मंे चुनाव के दौरान गड़बड़ी करने का दोषी पाया और 6 साल के लिए उन्हें पद से बेदखल कर दिया था। कांग्रेस में इससे हड़कम्प मच गया। मामला सुप्रीम कोर्ट ले जाया गया लेकिन 24 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट से भी श्रीमती इन्दिरा गांधी को राहत नहीं मिली थी। इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति को सलाह दी और 25 जून को आपात काल लग गया। इसके बाद इसे 6-6 महीने की अवधि के साथ 1977 तक बढ़ाया गया। आपातकाल का विरोध उस समय विपक्षी दलों ने ही नहीं कांग्रेस के कुछ नेताओं ने भी किया था। पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर भी उन्हीं में थे। मौजूदा समय के सपा, बसपा, राजद, झामुमो जैसे सभी दलों ने जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में देश व्यापी विरोध-प्रदर्शन किया था। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी 2021 में आपात काल पर कांग्रेस का पक्ष रखते हुए इस फैसले को एक भूल बताया था। उन्होंने कहा था कि मैं मानता हूँ कि वो एक भूल थी, पूरी तरह से गलत फैसला था और मेरी दादी इन्दिरा गांधी ने भी ऐसा ही कहा था लेकिन तब कांग्रेस ने भारत के संस्थानिक ढांचे पर कब्जा करने की कोशिश नहीं की थी। उन्होंने कहा था दरअसल, कांग्रेस की विचारधारा हमें ऐसा करने की अनुमति भी नहीं देती है। बहरहाल वही भूल आज कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी मुसीबत बनी है।
भारत सरकार ने 25 जून को संविधन हत्या दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की है। केंद्र सरकार की ओर से जारी की गई गजट अधिसूचना में कहा गया है, जबकि, 25 जून, 1975 को आपातकाल की घोषणा की गई थी, तत्पश्चात उस समय की सरकार द्वारा सत्ता का घोर दुरुपयोग किया गया और भारत के लोगों पर ज्यादतियां और अत्याचार किए गए, और जबकि भारत के लोगों को भारत के संविधान और भारत के लोकतंत्र पर दृढ़ विश्वास है। इसलिए, भारत सरकार ने आपातकाल की अवधि के दौरान सत्ता के घोर दुरुपयोग का सामना और संघर्ष करने वाले सभी लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए 25 जून को संविधान हत्या दिवस घोषित किया है और भारत के लोगों को, भविष्य में, किसी भी तरह से सत्ता के घोर दुरुपयोग का समर्थन नहीं करने के लिए पुनः प्रतिबद्ध किया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर गजट पत्र जारी करते हुए लिखा, 25 जून, 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने अपनी तानाशाही मानसिकता को दर्शाते हुए देश में आपातकाल लगाकर भारतीय लोकतंत्र की आत्मा का गला घोंट दिया था। लाखों लोगों को बिना किसी वजह के जेल में डाल दिया गया और मीडिया की आवाज को दबा दिया गया। भारत सरकार ने हर साल 25 जून को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाने का निर्णय किया है। उन्होंने लिखा, यह दिन उन सभी लोगों के विराट योगदान का स्मरण कराएगा, जिन्होंने 1975 के आपातकाल के अमानवीय दर्द को झेला था। उन्होंने लिखा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार द्वारा लिये गए इस निर्णय का उद्देश्य उन लाखों लोगों के संघर्ष का सम्मान करना है, जिन्होंने तानाशाही सरकार की असंख्य यातनाओं और उत्पीड़न का सामना करने के बावजूद लोकतंत्र को पुनर्जीवित करने के लिए संघर्ष किया।
अमित शाह ने लिखा, संविधान हत्या दिवस हर भारतीय के अंदर लोकतंत्र की रक्षा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की अमर ज्योति को जीवित रखने का काम करेगा, ताकि कांग्रेस जैसी कोई भी तानाशाही मानसिकता भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति न कर पाए। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने केंद्र सरकार के इस फैसले पर पार्टी की ओर से प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने एक्स पर लिखा, नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री एक बार फिर हिपोक्रेसी से भरा एक हेडलाइन बनाने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन भारत के लोगों से 4 जून, 2024 – जिसे इतिहास में मोदी मुक्ति दिवस के नाम से जाना जाएगा – को मिली निर्णायक व्यक्तिगत, राजनीतिक और नैतिक हार से पहले उन्होंने दस सालों तक अघोषित आपातकाल लगा रखा था। यह वही नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने भारत के संविधान और उसके सिद्धांतों, मूल्यों एवं संस्थानों पर सुनियोजित ढंग से हमला किया है। यह वही नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री हैं जिनके वैचारिक परिवार ने नवंबर 1949 में भारत के संविधान को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि यह मनुस्मृति से प्रेरित नहीं था। यह वही नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री हैं जिनके लिए डेमोक्रेसी का मतलब केवल डेमो-कुर्सी है। बहरहाल गत 12 जुलाई को की गई भारत सरकार की घोषणा अहम है क्योंकि भारतीय जनता पार्टी लोकसभा चुनावों से बाद से ही इमरजेंसी को लेकर कांग्रेस को घेरती रही है। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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