लेखक की कलमसम-सामयिक

विधेयक पर सिद्ध रमैया की फजीहत

 

दक्षिण भारत का सियासी नजरिया उत्तर भारत से अलग रहा है। इसलिए कर्नाटक में कांग्रेस की सिद्ध रमैया सरकार जिस राज्य रोजगार विधेयक को लायी है उससे जनता को लाभ कम, विवाद ज्यादा खड़े होंगे। ऐसी आशंका पहले से ही थी। निजी उद्यमों पर जितनी कम पाबंदी होगी, कारोबार उतना ही ज्यादा फैलेगा और जब कारोबार बढ़ेगा तो युवाओं को उससे रोजगार भी मिलेगा। सिद्ध रमैया की सरकार ने राज्य के मूल निवासियों को नौकरी देने का प्रयास किया है, यह तो अच्छा है लेकिन निजी उद्योग वाले इसका इतना विरोध करने लगे कि सरकार को पीछे हटना पड़ा। राज्य ने निजी उद्योगों मंे सी और डी श्रेणी के पदों के लिए 100 फीसद कनडिया (कन्नड़ भाषी) लोगों की भर्ती करने को अनिवार्य बनाने के लिए विधेयक का मसौदा मंजूर किया था। इसे राज्य रोजगार विधेयक का नाम दिया गया था। देश के अन्य राज्यों की तरह कर्नाटक में भी युवा बेरोजगार हैं। सन् 2023 के विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी ने वादा किया था कि ग्रेजुएट बेरोजगारों को 2 साल  तक हर महीने तीन हजार रूपये बेरोजगारी भत्ता दिया जाएगा। राहुल गांधी ने राज्य में 2 सौ यूनिट मुफ्त बिजली देने का भी वादा किया था। उस समय ढाई लाख सरकारी पद  खाली पड़े थे। राहुल गांधी ने 10 लाख प्राइवेट रोजगार देने का भी वादा किया था। इसलिए सिद्ध रमैया सरकार राज्य रोजगार विधेयक लायी थी लेकिन उद्योग जगत की आपत्तियों के बाद सिद्धारमैया को कदम पीछे करने पड़े हैं।

कर्नाटक सरकार के मंत्रिमंडल ने राज्य में निजी कंपनियों में समूह-सी और डी के पदों के लिए कर्नाटकवासियों को शत प्रतिशत आरक्षण देने के प्रावधान वाले एक विधेयक के मसौदे को मंजूरी दी थी। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि मंत्रिमंडल की बैठक में यह फैसला लिया गया है। कर्नाटक के इस विधेयक को राज्य रोजगार विधेयक का नाम दिया गया। सीएम सिद्धारमैया ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर इसे लेकर एक पोस्ट भी किया। मंत्रिमंडल की हुई बैठक में राज्य के सभी निजी उद्योगों में ‘सी और डी’ श्रेणी के पदों के लिए 100 प्रतिशत कन्नडिगा (कन्नड़भाषी) लोगों की भर्ती अनिवार्य करने वाले विधेयक के मसौदे को मंजूरी दे दी गई। विधानसभा में इस प्रस्ताव के पारित होने के बाद उद्योगों, कारखानों और अन्य प्रतिष्ठान में स्थानीय लोगों को आरक्षण देना अनिवार्य हो जाता। प्रस्तावित विधेयक के अनुसार जिन नौकरियों में मैनेजर या प्रबंधन जैसे पद हैं, उनपर 50 फीसदी और गैर-मैनेजमेंट वाली नौकरियां में 75 फीसदी पद कन्नड़ भाषी के लिए रिजर्व हो जाएगा, जबकि ग्रुप सी और ग्रुप डी की नौकरियों में 100 फीसदी लोकल लोगों को नौकरी मिलेगी। इस मसौदे में यह भी प्रावधान किया गया है कि राज्य के प्रतिष्ठानों में नौकरी करने वाले कन्नड़ प्रोफिएंसी टेस्ट पास करना अनिवार्य होगा। साथ ये भी कहा गया है कि अगर किसी भी संस्थान का मैनेजमेंट कानून के प्रावधानों का उल्लंघन किया तो उन्हें 10 हजार से 25 हजार रुपये का जुर्माना देना पड़ सकता है।

इस कानून के बनने के बाद कर्नाटक में हर छोटी-बड़ी नौकरियों में आरक्षण का फायदा लेने के लिए पहले कन्नड़ भाषा में टेस्ट देना होगा। कर्नाटक के श्रम मंत्री संतोष लाड ने बताया कि कन्नड़ भाषियों को नौकरी मिलनी चाहिए लेकिन उद्योगों के हितों की भी रक्षा की जाएगी। पिछले 9 साल से कांग्रेस को जिस तरह की जीत की दरकार थी, कर्नाटक से उसे वैसे ही नतीजे हासिल हुए हैं। कर्नाटक की जनता ने जिस तरह से कांग्रेस पर जमकर प्यार लुटाया है, वो अस्तित्व की लड़ाई से जूझ रही कांग्रेस के लिए एक तरह से संजीवनी है। कर्नाटक में 1985 के बाद से ही सरकार बदलने की परंपरा रही है। यहां की जनता ने भी इस परंपरा को तब से बरकरार रखा है। हालांकि 1999 में कांग्रेस की सरकार थी और फिर 2004 में त्रिशंकु जनादेश और बीजेपी के सबसे बड़ी पार्टी बनने के बावजूद कांग्रेस जेडीएस के साथ मिलकर सरकार बनाते हुए सत्ता बरकरार रखने में कामयाब रही थी। इस बार भी कर्नाटक के लोगों ने बदलने की परंपरा के मुताबिक ही जनादेश दिया है।

चुनाव नतीजों से कर्नाटक में अपने दम पर पहली बार बहुमत हासिल करने के बीजेपी के मंसूबों पर पानी फिर गया है। कर्नाटक में कांग्रेस की जीत कितनी बड़ी है। आंकड़ों की बात करें तो 224 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को बहुमत से काफी ज्यादा 135 सीटों पर जीत मिली है। वहीं बीजेपी को महज 66 सीटों से ही संतोष करना पड़ा है। क्षेत्रीय दल जेडीएस के खाते में सिर्फ 19 सीटें ही आई। पिछली बार यानी 2018 विधानसभा चुनाव की तुलना में कांग्रेस को 55 सीटों का लाभ हुआ है। वहीं बीजेपी को 38 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है और जेडीएस को 18 सीटों का नुकसान हुआ है। 1989 के बाद कर्नाटक में कांग्रेस की ये सबसे बड़ी जीत है। लिंगायत बहुल 69 में से 44 सीटें कांग्रेस और 21 सीटें बीजेपी के खाते में गई, जबकि वोक्कालिगा बहुल 51 में 27 सीटों पर कांग्रेस और 12 सीटों पर जेडीएस जबकि 10 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली। अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 15 में 14 सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली है और एक सीट जेडीएस के खाते में गई। वहीं अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 36 में से 20 से ज्यादा पर कांग्रेस को जीत मिली है। मुस्लिम बहुल ज्यादातर सीटें भी कांग्रेस के खाते में ही गई। इस प्रकार जनता के फैसले का कांग्रेस को सम्मान भी करना चाहिए। सरकार के रोजगार विधेयक से निजी क्षेत्र के बड़े उद्यमियों ने नाराजगी जतायी है।

कर्नाटक सरकार ने स्नातक पास युवाओं को 3,000 रुपये तथा डिप्लोमा धारकों को 1,500 रुपये का मासिक बेरोजगारी भत्ता देते हुए कांग्रेस की पांचवीं गारंटी की शुरुआत की थी। मुख्यमंत्री सिद्दरमैया ने ‘युवा निधि’ योजना की सांकेतिक रूप से शुरुआत करते हुए छह लाभार्थियों को चेक सौंपे। यह योजना उन स्नातक और डिप्लोमा धारक युवाओं के लिए है जो अकादमिक वर्ष 2022-23 में पास हुए और शिक्षा पूरी करने के 180 दिन बाद भी बेरोजगार थे।

बेरोजगारी भत्ता केवल दो साल के लिए दिया जाएगा और लाभार्थी को नौकरी मिलने के तुरंत बाद यह खत्म हो जाएगा। जिन युवाओं ने उच्च शिक्षा के लिए पंजीकरण कराया है और जो आगे पढ़ाई करना चाहते हैं, वे इस योजना के पात्र नहीं हैं। राज्य सरकार ने मौजूदा वित्त वर्ष में इस योजना के लिए 250 करोड़ रुपये की मंजूरी दी थी। उसका अनुमान है कि अगले साल सरकारी खजाने पर इसका 1,200 करोड़ रुपये का खर्च आएगा और 2026 के बाद से हर साल 1,500 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। कांग्रेस सरकार चार गारंटी की शुरुआत पहले ही कर चुकी है जिसमें सरकारी बसों में कर्नाटक की महिलाओं को निःशुल्क यात्रा कराने वाली ‘शक्ति’, बीपीएल परिवारों को 10 किलो चावल देने वाली ‘अन्न भाग्य’, 200 यूनिट तक की निःशुल्क बिजली देने वाली ‘गृह ज्योति’ और एपीएल/बीपीएल राशन कार्ड धारक परिवारों की महिला मुखिया को हर महीने 2,000 रुपये देने वाली ‘गृह लक्ष्मी ’शामिल हैं। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button