नीति आयोग में बिहार, सुखद आसार

यह दूर की कौड़ी हो सकती है लेकिन नरेन्द्र मोदी-3 सरकार ने नीति आयोग का पुनर्गठन कर बिहार के तीन केन्द्रीय मंत्रियों को सदस्य बनाया है, जिसके कुछ खास मायने हो सकते हैं। कुछ लोग तो कहने लगे हैं कि बिहार को अब विशेष राज्य का दर्जा मिल जाएगा। दर्जा न मिले तो विशेष पैकेज तो मिलेगा ही। नीतीश कुमार बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की मांग यूपीए सरकार के समय से कर रहे हैं लेकिन दो दशक बीतने के बाद भी उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हो पायी। सच्चाई यह भी है कि नीतीश कुमार इसके लिए पर्याप्त दबाव भी नहीं बना पाये। इस बार लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा को सिर्फ 240 सांसद मिल पाये और सरकार बनाने के लिए 273 सांसद चाहिए। नीतीश कुमार के 12 सांसद काफी महत्व रखते हैं। बिहार से मोदी सरकार को 18 सांसद समर्थन दे रहे हैं। इसलिए केन्द्र सरकार पर बिहार का दबाव स्वाभाविक है। चन्द्रबाबू नायडू भी 16 सांसदों के साथ सरकार को समर्थन दे रहे हैं लेकिन बिहार के 18 सांसद भारी पड़़ते हैं। नीति आयोग में बिहार का वर्चस्व राज्य के लिए सुखद अवसर माना जा रहा है।
केंद्र सरकार ने नीति आयोग का पुनर्गठन किया है जिसमें बिहार से तीन केंद्रीय मंत्रियों को सदस्य बनाया है। केंद्र का यह फैसला बिहार के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। खास तौर पर यह निर्णय तब इसलिए भी खास हो जाता है जब केंद्र की सरकार से लगातार बिहार को विशेष राज्य का दर्जा से लेकर विशेष पैकेज की मांग की जा रही है। बिहार के तीन मंत्रियों को इस आयोग में शामिल किये जाने को लेकर नेता से लेकर अर्थशास्त्री तक आशान्वित हैं। बिहार में भाजपा 12, जदयू 12, लोजपा (राम) 5, राजद 4, कांग्रेस 3, भाकपा (माले) 2, हम, 1 और निर्दलीय 1 सांसद हैं। इस प्रकार बिहार से 18 सांसदों का समर्थन मिल रहा है।
केंद्र सरकार ने नीति आयोग (नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया कमिशन) का गठन 1 जनवरी 2015 को किया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नीति आयोग के अध्यक्ष हैं। बीते वर्षों में नीति आयोग ने देश की योजनाओं और अर्थनीति से जुड़े कई अहम निर्णय लिये हैं। एक बार फिर नीति आयोग को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ी पहल करते हुए इस बार एनडीए के सहयोगियों को भी इसमें भरपूर जगह दी है। ऐसे तो इसमें विभिन्न राज्यों और दलों के सदस्य बनाए गए हैं, लेकिन बिहार के लिहाज जो सबसे महत्वपूर्ण है- वह है तीन केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान, ललन सिंह, जीतन राम मांझी का इस आयोग में शामिल किया जाना। बिहार के तीन केंद्रीय मंत्रियों को नीति आयोग के सदस्य बनाए जाने को बिहार के वरिष्ठ मंत्री अशोक चैधरी ने बिहार के लिए बेहद महत्वपूर्ण बताया है। अशोक चैधरी ने कहा कि बिहार की एनडीए सरकार के मुखिया नीतीश कुमार केंद्र की सरकार से लगातार बिहार को विशेष राज्य के दर्जे की मांग कर रहे हैं, ताकि बिहार तेज गति से विकास कर सके। अशोक चैधरी ने कहा कि नीतीश लगातार बिहार को विकसित कर रहे हैं, बावजूद इसके बिहार तेज गति से विकास नहीं कर पा रहा है, ऐसे में अगर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा या विशेष पैकेज मिलता है, तो बिहार बहुत जल्द विकसित राज्य बनने की ओर अग्रसर हो जाएगा। अशोक चैधरी कहते हैं कि अब जब केंद्र और बिहार में एनडीए की सरकार है और नीति आयोग का पुनर्गठन करते हुए इसमें बिहार के तीन वरिष्ठ नेताओं और अनुभवी नेताओं को सदस्य बनाया गया है, तब बिहार की मांग को मजबूती से उठाया जाएगा। उम्मीद है बिहार को इसका फायदा भी मिलेगा। दरअसल, नीति आयोग ने पहले ये रिपोर्ट दी कि किसी भी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा दिया जाता है और उसके लिए जो मापदंड तय किया जाता है, जिससे राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा दिया जा सके, उन मापदंडों के आधार पर बिहार खरा नहीं उतरता है। इस वजह से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है।
नीति आयोग की इस रिपोर्ट के बाद बिहार के तमाम राजनीतिक दलों ने सवाल उठाते हुए मांग उठाई थी कि मापदंडों में बदलाव किया जाए, ताकि बिहार जैसे पिछड़े राज्य को विशेष राज्य का दर्जा दिया जा सके और बिहार का तेज गति से विकास हो सके। हालांकि, केंद्र सरकार अब तक इस मुद्दे को लेकर स्पष्ट राय रखती आई है कि वर्तमान नियमों के अनुसार, बिहार को विशेष राज्य का दर्जा संभव नहीं है। बिहार के जाने माने अर्थ शास्त्री नवल किशोर चैधरी नीति आयोग के पुनर्गठन होने और बिहार के तीन वरिष्ठ नेताओं को उसका सदस्य बनाए जाने को महत्वपूर्ण बताते हैं। नीति आयोग के पुनर्गठन होने से ये उम्मीद तो बढ़ती है कि बिहार जैसे राज्यों के लिए जो मापदंड तय किए गए हैं उसमें बदलाव कर बिहार के विकास के लिए विशेष राज्य का दर्जा या विशेष पैकेज की मदद बिहार को दी जा सके। ये माकूल समय है जब केंद्र और बिहार में एनडीए की सरकार है और केंद्र में जदयू की धमक भी है। अब तीन तीन सदस्य भी बिहार से बने है जो मजबूती से मांग उठा सकते हैं।
नीति आयोग भारत सरकार का प्रमुख नीति से संबंधित थिंक टैंक है, जो निदेशात्मक और नीतिगत इनपुट प्रदान करता है। नीति आयोग भारत सरकार के लिए कार्यनीतिक और दीर्घकालिक नीतियों और कार्यक्रमों को तैयार करते हुए, केंद्र और राज्यों तथा संघ राज्य क्षेत्रों को उपयुक्त तकनीकी सलाह भी प्रदान करता है।इसकी स्थापना 2015 में एनडीए सरकार द्वारा योजना आयोग की जगह लेने के लिए की गई थी, जो शीर्ष-डाउन मॉडल का पालन करता था । नीति आयोग परिषद में सभी राज्यों के मुख्यमंत्री , दिल्ली और पुडुचेरी के मुख्यमंत्री , सभी केंद्र शासित प्रदेशों के उपराज्यपाल और प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक उपाध्यक्ष शामिल हैं। इसके अलावा, प्रमुख विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों से अस्थायी सदस्यों का चयन किया जाता है। इन सदस्यों में एक मुख्य कार्यकारी अधिकारी, चार पदेन सदस्य और तीन अंशकालिक सदस्य शामिल हैं।29 मई 2014 को, स्वतंत्र मूल्यांकन कार्यालय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक मूल्यांकन रिपोर्ट सौंपी जिसमें योजना आयोग को नियंत्रण आयोग से बदलने की सिफारिश की गई थी। 13 अगस्त 2014 को, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने योजना आयोग (भारत) को समाप्त कर दिया और इसे भारत की राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) के एक कमजोर संस्करण से बदल दिया, जिसे यूपीए सरकार द्वारा स्थापित किया गया था। 1 जनवरी 2015 को, योजना आयोग को नवगठित नीति आयोग (भारत को बदलने के लिए राष्ट्रीय संस्थान) से बदलने के लिए एक कैबिनेट प्रस्ताव पारित किया गया था। भारत की केंद्र सरकार ने 1 जनवरी 2015 को नीति आयोग के गठन की घोषणा की। नीति आयोग की पहली बैठक 8 फरवरी 2015 को नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई थी। उस समय वित्त मंत्री ने नीति आयोग के निर्माण की आवश्यकता पर टिप्पणी की और कहा 65 वर्षीय योजना आयोग एक निरर्थक संगठन बन गया था। यह एक नियंत्रित अर्थव्यवस्था संरचना में प्रासंगिक था, लेकिन अब नहीं। भारत एक विविधतापूर्ण देश है और इसके राज्य अपनी ताकत और कमजोरियों के साथ आर्थिक विकास के विभिन्न चरणों में हैं। बिहार के लिए इसी के तहत गुंजाइश निकाली जा सकती है। (हिफी)
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)