राजनीतिलेखक की कलम

अखिलेश के ‘पीडीए’ पर सवाल

 

 

उत्तर प्रदेश मंे सत्तारूढ़ दलों की राजनीति के साथ ही विपक्ष की राजनीति में भी हलचल मची है। भाजपा के अंदर शीत युद्ध को फिलहाल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह कहकर टाल दिया है कि सरकार और संगठन मंे समन्वय बनाया जाए। दूसरी तरफ मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के अंदर तूफान की आशंका दिखाई पड़ने लगी है। अखिलेश यादव ने जिस पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) के चलते 37 सांसद जुटाये, उसी पर सवाल उठाया जाने लगा है। इस मामले को सबसे पहले भाजपा के नेता और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने उठाया। दरअसल अब तक विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव स्वयं थे लेकिन सांसद बनने के बाद उन्हांेने विधानसभा की सदस्यता छोड़ दी है। उनकी जगह माता प्रसाद पांडेय को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया है। नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर शिवपाल सिंह यादव भी बैठना चाहते थे। इससे पीडीए का सिद्धांत भी कायम रहता लेकिन विधानसभा में जब चाचा के बगल मंे माता प्रसाद पांडेय बैठे तो शिवपाल सिंह की भाव भंगिमा किसी से छिपी नहीं रही। यूपी में विधानसभा का सत्र प्रारम्भ हो चुका है और योगी आदित्यनाथ की सरकार लगभग एक दर्जन अध्यादेश पारित कराने वाली है। ऐसे में माता प्रसाद पांडेय को नेता प्रतिपक्ष की दमदार भूमिका निभानी है। इससे अखिलेश यादव की रणनीति की भी परीक्षा होनी है जो लेाकसभा चुनाव में काफी सफल साबित हो चुकी है। अखिलेश अब यादव और परिवारवाद से दूरी बनाने की नीति पर चल रहे हैं।

समाजवादी पार्टी ने माता प्रसाद पाण्डेय को यूपी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाने का ऐलान किया है। नेता प्रतिपक्ष के लिए रविवार को कई नामों पर मंथन किया जा रहा था, लेकिन अब पार्टी ने नेता प्रतिपक्ष के नाम का ऐलान कर दिया है। इसके अलावा पार्टी ने यूपी विधानसभा के सदस्य महबूब अली को अधिष्ठाता मण्डल, कमाल अख्तर को मुख्य सचेतक और राकेश कुमार उर्फ आरके वर्मा को उप सचेतक की कमान सौंपी है। पार्टी की ओर से यह निर्णय अखिलेश यादव की अध्यक्षता में हुई बैठक में लिया गया। समाजवादी पार्टी के विधायकों की बैठक में कई नामों को लेकर चर्चा हुई थी। इसके बाद तमाम विधायकों ने आखिरी फैसला अखिलेश यादव पर छोड़ दिया था। नेता प्रतिपक्ष के लिए शिवपाल सिंह यादव, इंद्रजीत सरोज, राम अचल राजभर के नाम के कयास लगाए जा रहे थे लेकिन, अखिलेश यादव ने तमाम कयासों पर विराम लगाते हुए नेता प्रतिपक्ष के लिए पूर्व विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पाण्डेय के नाम का ऐलान किया। माता प्रसाद पाण्डेय सिद्धार्थनगर के इटवा सीट से विधायक हैं। उन्हें मुलायम सिंह यादव का काफी करीबी माना जाता था। इससे पहले वह यूपी विधानसभा के अध्यक्ष रह चुके हैं। नेता प्रतिपक्ष का पद इससे पहले अखिलेश यादव के पास था, लेकिन कन्नौज लोकसभा सीट से चुनाव जीतने के बाद वह दिल्ली की राजनीति कर रहे हैं। इसी को देखते हुए उन्होंने विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ दिया था। अटकलें लगाई जा रही थी कि अखिलेश यादव अपने चाचा शिवपाल यादव को नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी दे सकते थे।

यूपी विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने समाजवादी पार्टी के नेता माता प्रसाद पांडे का स्वागत किया, जिन्हें सदन में नेता प्रतिपक्ष के रूप में नियुक्त किया गया है। वह विधानसभा में अखिलेश की कुर्सी पर बैठे थे। इस दौरान उनके साथ शिवपाल यादव बैठे हुए थे। इस दौरान उनके चेहरे के भाव देखने लायक थे। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने नेता प्रतिपक्ष को लेकर बड़ा दांव खेला है। इसे ब्रह्मण वोटों की राजनीति से भी जोड़कर देखा जा रहा है। दरअसल, नेता प्रतिपक्ष की दौड़ में अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव समेत कई नेता जैसे इंद्रजीत सरोज, रामअचल राजभर और तूफानी सरोज भी शामिल थे, लेकिन अखिलेश ने ये जिम्मेदारी माता प्रसाद पांडे को सौंपी है। इससे शिवपाल को कुछ बुरा जरूर लगा होगा। हालांकि, माता प्रसाद का कद भी यूपी की राजनीति में कम नहीं है। उन्हें प्रदेश की राजनीति में एक प्रभावशाली नेता माना जाता है। वह यूपी विधानसभा के स्पीकर भी रह चुके हैं।

लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने पीडीए फॉर्मूला अपनाया था। पीडीए का मतलब पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक है। उन्होंने टिकट बंटवारे में भी इस फॉर्मूले का बखूबी ध्यान रखा। इस फॉर्मूले के जरिए वह सपा की यादव समुदाय की पार्टी होने की छवि तोड़ना चाहते थे। उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में शानदार जीत मिलने के बाद समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव अपने जनाधार को और विस्तार देने में जुटे हैं। इस दिशा में उन्होंने एक और मास्टर स्ट्रॉक लगाया। उन्होंने विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर वरिष्ठ समाजवादी नेता माता प्रसाद पांडेय को बैठाने का निर्णय लिया। विधानसभा सत्र की कार्यवाही शुरू होने से एक दिन पूर्व अखिलेश यादव ने विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना को भेजे एक पत्र में माता प्रसाद पांडेय को नेता प्रतिपक्ष बनाये जाने का अनुरोध किया। ब्राह्मण समाज से आने वाले पांडेय उत्तर प्रदेश विधानसभा के दो बार अध्यक्ष रह चुके हैं और सातवीं बार विधायक हैं। पांडेय पहली बार 1980 में फिर 1985 और 1989 में विधायक बने। इसके बाद 2002, 2007 और 2012 में पांडेय लगातार चुनाव जीतने में कामयाब रहे। अखिलेश यादव माता प्रसाद को नेता प्रतिपक्ष बनाकर एक तीर से कई निशान साध रहे हैं। इस वक्त यूपी में भाजपा के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ राजपूत समुदाय से आते हैं। राज्य में अगड़ी जातियों में राजपूत और ब्राह्मण दोनों समुदाय राजनीतिक रूप से बेहद प्रभावी रहा है। आबादी में भी इनकी संख्या अच्छी है। आमतौर पर ये दोनों प्रभावी जातियां एक साथ सहज नहीं रहती हैं। ऐसे में मीडिया में बार-बार ऐसी खबरें आती भी हैं कि योगी से ब्राह्मण समुदाय खुश नहीं है। भाजपा नेतृत्व भी राज्य में ब्राह्मण समुदाय के प्रभाव और महत्व को समझता है। ऐसे में उसने राज्य में उपमुख्यमंत्री पद की एक कुर्सी ब्राह्मण नेता ब्रजेश पाठक को दे रखी है लेकिन, ऐसी रिपोर्ट है कि ब्रजेश पाठक के भी सीएम योगी के साथ बहुत अच्छे रिश्ते नहीं हैं। ऐसे में कहीं न कहीं ब्राह्मण समुदाय की इस नाराजगी को कुछ हद तक अपने पक्ष में करने के लिए अखिलेश यादव ने माता प्रसाद पांडेय को यह अहम पद दिया है।

इसके साथ ही अखिलेश यादव ने विधानसभा में महबूब अली-अधिष्ठाता मंडल, कमाल अख्तर-मुख्य सचेतक और राकेश कुमार उर्फ आर के वर्मा-उप सचेतक नियुक्त किया है। हालांकि साल 2017 में पराजित हो गये लेकिन 2022 में वह फिर इटवा से विधायक निर्वाचित हुए। पांडेय 1990-1991 के बीच मुलायम सिंह यादव की कैबिनेट में चिकित्सा और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री रहे। 2002-2004 के बीच मुलायम की सरकार में उन्हें फिर से मंत्री बनाया गया और उन्हें श्रम एवं रोजगार मंत्रालय का प्रभार दिया गया। पांडेय पहली बार 2004-2007 के बीच उप्र विधानसभा के अध्यक्ष बने और 2012-17 के बीच फिर से इस पद पर रहे। अधिष्ठाता मंडल बनाये गये महबूब अली-अमरोहा, मुख्य सचेतक कमाल अख्तर-मुरादाबाद जिले के कांठ और सचेतक आरके वर्मा प्रतापगढ़ जिले के रानीगंज विधानसभा क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के विधायक हैं। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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