2025 तक अंतरिक्ष में भारतीय

धरती पर तिरंगा लहराकर अब अंतरिक्ष में भी हमारे कदम तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। चंद्रयान और आदित्य मिशन की सफलता के बाद इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गनाइजेशन (इसरो) के प्रमुख एस सोमनाथ का प्रयास है कि 2025 अर्थात् अगले साल तक भारत का गगन यात्री अंतरिक्ष मंे विचरण करे। इसके लिए नेशनल एयरो नाटिक्स एण्ड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) और इसरो मिलकर काम कर रहे हैं। गगन यात्री मिशन की घोषणा भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने की है। भारत से दो यात्री अंतरिक्ष मंे जाएंगे। यह निश्चित रूप से बहुत ही गौरव का अवसर होगा। अंतरिक्ष मंे जाने का यह मिशन अमेरिका की एक कंपनी एससीएम पूरा करेगी लेकिन शीघ्र ही भारत का गगनयान यात्रियों को अंतरिक्ष की सैर कराएगा। उल्लेखनीय है कि 1984 मंे भारत के राकेश शर्मा अंतरिक्ष मंे गये थे। अब अगले साल दूसरी सफलता मिलने वाली है। एस. सोमनाथ इस दिशा में तेजी से प्रयास कर रहे हैं। सोमनाथ माने हुए भारतीय एयरो स्पेस इंजीनियर और राकेट टेक्नोलाजिस्ट हैं। उनकी क्षमताओं को देखते हुए ही उन्हंे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन का अध्यक्ष बनाया गया। उनसे पहले के. सिवन इसरो के अध्यक्ष हुआ करते थे और श्रीधर सोमनाथ ने अंतरिक्ष के क्षेत्र मंे भारत को नई ऊंचाई मंगल यान की सफलता के साथ दी। इसके बाद चंद्रयान-3 का लैण्डर सफलता पूर्वक चंद्रमा की सतह पर उतरा और फिर आदित्य मिशन सूर्य का अध्ययन कर रहा है।
अंतरिक्ष में भारत लगातार नए इतिहास रच रहा है। चंद्रयान और आदित्य मिशन की सफलता के बाद अब इसरो का अगला मिशन है गगनयात्री। भारत 2025 तक अपना गगनयात्री यानि एस्ट्रोनॉट, इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन भेजने की तैयारी कर रहा है। ये इसरो और नासा का संयुक्त मिशन होगा। इसके तहत एक भारतीय गगनयात्री इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन की यात्रा करने पहुंचेगा। इसरो चीफ डॉक्टर एस. सोमनाथ का कहना है कि चंद्रमा पर मौजूद शिव शक्ति पॉइंट से भारत चांद की धरती के कुछ नमूने भी लेकर आएगा।
एस. सोमनाथ ने बताया, गगनयात्री मिशन, इसरो और नासा का साझा अभियान है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति ने इसकी घोषणा की थी। इसके बाद दोनों देशों की स्पेस एजेंसियों ने इस पर काम शुरू किया। अमेरिकी कंपनी एससीएम द्वारा ये पूरा मिशन चलाया जा रहा है। ये एससीएम का चैथा मिशन है। इस मिशन में भारत के एस्ट्रोनॉट को एक सीट मिलेगी। भारत के एस्ट्रोनॉट के लिए इस मिशन में एक सीट पक्की हुई है। इसके लिए हमारी तैयारियां चल रही हैं। इसरो चीफ ने बताया, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने त्रिवेंद्रम में जिन 4 भारतीय एस्ट्रोनॉट्स से देश को रूबरू कराया था, उनमें से 2 का सेलेक्शन किया गया है। इन दोनों को अमेरिका में मिशन की ट्रैनिंग के लिए भेजा जाएगा। यहां 3 महीने की ट्रैनिंग होगी। इन दोनों में से एक एस्ट्रोनॉट गगनयात्री मिशन के तहत अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पर भारत की ओर ले जाएगा। इसके अलावा अन्य दो एस्ट्रोनॉट्स को भी अमेरिका भेजा जाएगा। ये ग्राउंड बेस्ड मिशन और दूसरी चीजों की ट्रैनिंग लेने जाएंगे। भारत ही ये निर्णय लेगा कि कौन एस्ट्रोनॉट अंतरिक्ष स्पेस स्टेशन में जाएगा। इससे पहले जैसे हुआ था कि राकेश शर्मा, रवीश मल्होत्रा को मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस ने सेलेक्ट किया था कि कौन एस्ट्रोनॉट भारत की ओर से अंतरिक्ष में जाएगा। वैसे ही इस बार भी भारत ही तय करेगा कि कौन एस्ट्रोनॉट अंतरिक्ष स्पेस स्टेशन में जाएगा। एस. सोमनाथ ने बताया, अमेरिका में ज्यादातर अंतरिक्ष मिशन प्राइवेट एजेंसियों के जरिए ही अंजाम दिये जाते हैं। नासा भी इन एजेंसियों के जरिए लोगों को अंतरिक्ष स्पेस स्टेशन में भेजता है। इसके लिए इन एजेंसियों को भुगतान किया जाता है। हम भी इस मिशन के लिए एजेंसी को भुगतान कर रहे हैं। हम आखिर, गगनयात्री मिशन के तहत भारतीय एस्ट्रोनॉट को किसी एजेंसी के माध्यम से क्यों भेज रहे हैं, जबकि हमारा गगनयान कुछ दिनों पर जाने वाला है? इसरो चीफ बताते हैं, अभी तक हमारे अंदर वो क्षमता नहीं है। गगनयान मिशन तैयार हो रहा है, लेकिन अभी तक हुआ नहीं है। हमने अभी तक किसी गगनयात्री को भेजा नहीं है। ऐसे समय में ये अत्यंत जरूरी था। गगनयात्री मिशन में जो एस्ट्रोनॉट अंतरिक्ष में जा रहे हैं, उनके अनुभवों का हमें काफी फायदा होगा। एस. सोमनाथ ने बताया, यह एक साइंटिफिक मिशन ही होगा। इसलिए इसकी ट्रैनिंग भी बेहद महत्वपूर्ण है। इस मिशन के दौरान 5 साइंटिफिक एक्सपेरिमेंट भी किये जाएंगे। इसरो और अमेरिका के एक्सपेरिमेंट में ये एस्ट्रोनॉट भाग लेंगे। इससे हमें अनुभव होगा कि वहां कैसे एक्सपेरिमेंट करने हैं। जीरो ग्रेविटी में कैसे काम करना है? कैसे विपरीत स्थितियों से निपटना है। ये सभी जानकारी हमें गगनयात्री मिशन से मिलेंगी, जिनका लाभ हमें गगनयान प्रोजेक्ट के दौरान होगा।
23 अगस्त 2023 शाम 06 बजकर 04 मिनट पूरे देश में जश्न का माहौल था। हो भी क्यों न भारत ने चांद फतह कर लिया था। इसरो का मून मिशन चंद्रयान 3 सुरक्षित तरीके से चंदमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतर चुका था। देश के इतिहास में यह गौरव का क्षण था। चंद्रयान 3 मिशन की सफलता के पीछे किशन चन्द्रयान में इसके प्रोजेक्ट डायरेक्टर पी वीरामुथुवल और उनकी टीम ने दिन-रात एक कर दिया था। यह पूरा ऑपरेशन जिनकी निगरानी में चल रहा था, वह थे इसरो के मुखिया एस. सोमनाथ। केरल के अलापुझा जिले में साल 1963 में जन्में सोमनाथ का पूरा नाम श्रीधर परिकर सोमनाथ है। उनकी शुरुआती पढ़ाई-लिखाई स्थानीय शिक्षण संस्थानों से हुई। इसके बाद सोमनाथ ने केरल के कोल्लम स्थित टीकेएम कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में प्रवेश लिया। यहां से उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की।
वैज्ञानिक और इसरो के मुखिया एस सोमनाथ एक नहीं, बल्कि कई विषयों के एक्सपर्ट हैं। वह लॉन्च व्हीकल डिजाइनिंग जानते हैं, उन्होंने लॉन्च व्हीकल सिस्टम इंजीनियरिंग, स्ट्रक्चरल डिजाइन, स्ट्रक्चरल डायनेमिक्स, मैकेनिज्म डिजाइन और पायरोटेक्निक में विशेषज्ञता हासिल की है। डॉ. सोमनाथ इसरो से पहले विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र और तरण प्रणोदन प्रणाली केंद्र के डायरेक्टर भी रहे हैं। इसरो के ज्यादातर मिशन में इस्तेमाल हुए रॉकेट में तकनीक को शामिल करने का काम इन्हीं दोनों संस्थानों ने किया है।
चंद्रयान-3 के बाद डॉ. एस सोमनाथ के हाथों में दो बड़े मिशन की कमान आयी है। इसमें आदित्य-एल1 और गगनयान शामिल है। एस सोमनाथ उज्जैन में महर्षि पाणिनी संस्कृत और वैदिक यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में शामिल हुए थे। इस दौरान अपने संबोधन में सोमनाथ ने कहा कि उस समय के वैज्ञानिकों द्वारा संस्कृत भाषा का इस्तेमाल किया जाता था और इसके कोई लिखित दस्तावेज नहीं थे। लोग सुनकर इसे सीखते थे, जिसकी वजह से यह भाषा आज तक बची हुई है। सोमनाथ ने कहा कि अंतरिक्ष विज्ञान, चिकित्सा, भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान आदि संस्कृत भाषा में लिखे गए थे लेकिन अभी तक इस पर ज्यादा रिसर्च नहीं हुई है। (हिफी)
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)