राजनीतिलेखक की कलम

वोट की राजनीति का शिकार आरक्षण

 

हमारे देश के संविधान निर्माताओं ने आरक्षण की व्यवस्था समाज के दबे कुचले लोगों को समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए की थी। इस दिशा  में प्रगति भी हो रही थी लेकिन इसे जादू की छड़ी से दूर नहीं किया जा सकता था। इसी का फायदा राजनीति करने वालों ने उठाया। मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू करने वाले राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह से  लेकर आजतक आरक्षण वोट की राजनीति का शिकार हो रहा है। अभी कुछ दिनों पहले ही देश की सबसे बड़ी अदालत अर्थात सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और जनजाति में आरक्षण पाने वाले लोगों की क्रीमीलेयर तलाशने का सुझाव दिया तब आरक्षण को लेकर वोट की राजनीति करने वालों में खलबली मच गयी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के सुझाव का समर्थन करने वाले भी आगे आये हैं। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा केन्द्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने  इसी बात पर बिहार के ही नेता और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान से प्रतिवाद किया है। दोनों ही अनुसूचित जाति के नेता हैं  जिसमें क्रीमीलेयर की बात कही जा रही है। बहरहाल  अब एनडीए की केन्द्र सरकार ने ही सुप्रीम कोर्ट के सुझाव पर अमल करने से  इनकार कर दिया है तो  आगे बहस करना ही व्यर्थ है। सुप्रीम कोर्ट सुझाव ही दे सकता था। अमल केन्द्र सरकार को करना  है और उसकी मजबूरियां भी किसी से छिपी नहीं हैं। इस बार उसे सिर्फ 240 सांसद मिल पाये हैं जबकि  सरकार बनाने के लिए 273 सांसदों की जरूरत थी।

बिहार के  दलित नेता और हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा हम के संस्थापक एवं केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने 10 अगस्त को कहा कि क्रीमी लेयर नहीं होना चाहिए मगर जिसकी जितनी संख्या है, उस आधार पर आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए। क्रीमी लेयर और कोटे में कोटा दो अलग बातें हैं। हम भी मंत्रिमंडल में थे। हमारी भी बात हुई है।

मांझी ने कहा कि प्रधानमंत्री का निर्देश है क्रीमी लेयर नहीं होना चाहिए, यह सही बात है। हालांकि पहले  वह क्रीमीलेयर बनाने का समर्थन कर रहे  थे। अब कहते हैं कि अनुसूचित जाति (एससी) में जो लोग हैं, उसमें ओबीसी की तरह क्रीमी लेयर नहीं होना चाहिए, लेकिन समाज में कुछ ऐसे लोग हैं जो आजादी के इतने साल बाद भी हाशिए पर हैं, उनके लिए तो व्यवस्था होनी चाहिए। मांझी ने कहा कि एससी में बिहार में 21 जातियां हैं। इनमें से चार विकसित जातियां हैं, जिसे डी-फोर कहते हैं। आज के समय में जज, कलेक्टर, चीफ इंजीनियर, डॉक्टर, बैंकिंग या रेलवे में इन्हीं चार जातियों की 90 प्रतिशत भागीदारी है। इसके अलावा जो भुइयां, नट, मेहतर जैसी बाकी जातियां हैं, उनको आज तक आरक्षण का लाभ नहीं मिला है। हमने कैबिनेट में भी कहा है कि इनके लिए अलग से व्यवस्था होनी चाहिए। सच में अब आरक्षण के यही अधिकारी हैं।

आरक्षण के अंदर आरक्षण के मुद्दे पर अब एनडीए में रार छिड़ती नजर आ रही है। केंद्र की एनडीए सरकार में सहयोगी पार्टी के नेता और केंद्रीय मंत्री ने कोर्ट के फैसले को सही बताते हुए कहा है कि स्वार्थ के लिए कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाया जा रहा है। इतना ही नहीं केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने यह भी कह दिया है कि 76 साल से चार जातियों ने ही एससी आरक्षण का लाभ लिया है। दरअसल अभी हाल ही में देश की सबसे बड़ी अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) को मिले आरक्षण में सब कैटेगरी बनाने के पक्ष में अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। अदालत के फैसले के बाद कई लोगों ने इसपर अपनी राय रखी थी। केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने अदालत के फैसले पर सहमति नहीं जताई थी और कोर्ट के समक्ष पुनर्विचार याचिका दायर करने की बात कही थी।

हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के नेता और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने कोर्ट के द्वारा दिए गए फैसले पर अपनी बात रखी और कोटा के अंदर कोटा के फैसले को जायज ठहराया। पत्रकारों से बातचीत में जीतन राम मांझी ने कहा, सात जजों ने नोट दिया है उसमें से एक जज ने सिर्फ वैसा कहा है। सवाल यह है कि हम लोग तो हर तरह से सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का समर्थन करते हैं। वो अच्छा है। बिहार में खासकर नीतीश कुमार ने साल 2011-12 में ही यह व्यवस्था कर दी थी कि अनुसूचित जातियों में दलित और महादलित होंगे। तो उस वर्गीकरण को भी कुछ लोगों ने कोर्ट में चुनौती दी थी जिसे कोर्ट ने अमान्य कर दिया था। उसी चीज को सुप्रीम कोर्ट ने फिर कहा है। बिहार सरकार ने नीतीश कुमार के नेतृत्व में अनुसूचित जाति या जो कम पिछड़े लोग है उनके लिए जो आरक्षण की व्यवस्था की है वो स्वागत योग्य है। अगर सिर्फ एक पीढ़ी की बात है तो अदालत का यह कोई जनरल फैसला नहीं है बल्कि सिर्फ एक जज की मान्यता है। इसके बाद जब पत्रकारों ने जीतन राम मांझी से पूछा कि चिराग पासवान ने इसी फैसले का विरोध किया है? तब इस पर मांझी ने कहा, यह लोगों का अपना-अपना विचार है। बाबा भीम राव अंबेडकर ने भी जब आरक्षण की बात की थी तब उन्होंने कहा था कि हर दस साल पर इसकी समीक्षा होनी चाहिए। उन्होंने समीक्षा की बात कही थी पुनर्विचार की बात नहीं कही थी। पुनर्विचार और समीक्षा में फर्क होता है। समीक्षा इसलिए ताकि यह पता चल सके कि दस साल में हमने क्या खोया और क्या पाया। लेकिन आज आजादी के 76 साल हो गए हैं, क्या एक बार समीक्षा हुई है? हमने बाबा भीमराव अंबेडकर की कही बातों पर अमल नहीं किया लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने किया। अदालत ने कहा कि जो लाभ लेकर आगे बढ़ गए हैं उनको मत दबाइए लेकिन जो अभी भी पीछे हैं उनको तो आगे बढ़ाइए। इसलिए यदि कोई सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती देने की बात करता है तो मैं कहता हूं कि वो अपने स्वार्थ के लिए किया है, समाज के लिए नहीं किया है।श्केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने सवाल उठाते हुए कहा कि भुइयां, मुसहर, डोम, मेहतर जो हमारे पिछड़ी जाति के हैं उस जाति के कितने आईएएस और आईपीएस अफसर हैं? कितने चीफ इंजीनियर हैं? जो चार जातियां आज क्षोभ व्यक्त कर रही हैं उनका तो सब है। इसका क्या मतलब है कि वो ही लेते रहें आरक्षण, 76 वर्ष तो लिया उन्होंने।

मोदी सरकार के मंत्री ने कहा, यह कहां की बात है कि जो आदमी बढ़ गया है वो बढ़ते रहे और जो आदमी पीछे है उसका केयर नहीं किया जाए। इसीलिए हम हर हालत में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत करते हैं। यह जजमेंट 10 साल पहले आना चाहिए था। अंबेडकर साहब की मान्यता है कि साक्षरता मानदंड है सबसे नीचे होने का। शिड्यूल कास्ट की साक्षरता दर 30 फीसदी है। उसमें भुइयां, डोम, मेहतर, नट इन सब का साक्षरता दर 15 फीसदी से नीचे है। इसलिए जिसका 30 प्रतिशत है साक्षरता दर उसको सुविधा मिलनी चाहिए लेकिन जिसकी साक्षरता 7 या 8 फीसदी है उसको तो पुश करना ही चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर असहमति जताते हुए इससे पहले केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने कहा था, हम इस बात को लेकर स्पष्ट हैं कि अनुसूचित जाति का आधार छुआछूत है। इसका आर्थिक या शैक्षणिक आधार नहीं है। ऐसे में कोटा के अंदर क्रीमी लेयर का प्रावधान नहीं हो सकता है। चिराग पासवान ने कहा था कि आज भी दलित युवक का उदाहरण दिया जाता है, जिसे घोड़ी चढ़ने से रोका जाता है। ऐसे कई बड़े नाम हैं, जो ऊंचे पदों पर हैं लेकिन उनके मंदिर जाने के बाद मंदिर को धोया भी जाता है। इसलिए आज भी छुआछूत के आधार पर भेदभाव व्याप्त है। इसके बाद चिराग पासवान ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करने की बात कही थी।

बहरहाल आरक्षण पर केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव का कहना है कि बाबा साहब के बनाए गए संविधान के लिए एनडीए सरकार प्रतिबद्ध है। एससी-एसटी आरक्षण में कोई बदलाव नहीं होगा। क्रीमी लेयर का प्रावधान  नहीं है। कैबिनेट बैठक में सुप्रीम कोर्ट  के सुझाव पर चर्चा हुई, जिसके बाद फैसला लिया गया है। सरकार ने साफ-साफ लफ्जों में बता दिया है कि आरक्षण में क्रीमी लेयर पर आई सुप्रीम कोर्ट की सिफारिश को लागू नहीं किया जाएगा। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

 

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