लेखक की कलमसम-सामयिक

हैवानियत के खिलाफ कड़ा प्रतिरोध करो!

 

बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने नाबालिग के यौन उत्पीड़न के संबंध में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने माना है कि अगर कोई लड़का नाबालिग लड़की से प्यार का इजहार करने के लिए लगातार उसका पीछा करता है, तो यह पॉक्सो कानून के तहत यौन उत्पीड़न के बराबर होगा। दरअसल अमरावती की एक अदालत ने 4 फरवरी 2021 को एक युवक को नाबालिग लड़की का पीछा करने पर दोषी ठहराते हुए एक साल के कारावास की सजा सुनाई थी। इस सजा के खिलाफ आरोपी ने हाई कोर्ट में अपील की थी। अपीलकर्ता ने दावा किया था कि उसे झूठे केस में फंसाया गया है, क्योंकि पीड़िता किसी और लड़के के साथ संबंध में थी। हाईकोर्ट की नागपुर बेंच में इस अपील पर सुनवाई करते हुए जस्टिस सानप ने तथ्यों के मद्देनजर कहा कि पीड़िता के बयान से स्पष्ट है कि अपीलकर्ता की उसमें कोई रुचि नहीं थी। बावजूद इसके अपीलकर्ता वार-बार उसका पीछा कर रहा था। वह उससे बात कर प्रेम संबंध बनाना चाहता था। वह इस उम्मीद में बार-बार उसका पीछा कर रहा था कि एक दिन वह उसके प्रेम को स्वीकार कर लेगी, जबकि पीड़िता की अपीलकर्ता में कोई दिलचस्पी नहीं थी।
आपको बता दें कि राजधानी दिल्ली में पिछले कुछ वर्षों में ऐसे कई मामले हुए हैं जिनमें एकतरफा कथित प्यार के चलते और टार्गेट की जा रही लड़की द्वारा कोई रिस्पांस नहीं देने पर लड़की को चाकुओं से गोद कर मार डाला या तेजाब फेंक कर उस पर हमला किया गया। कई दशक पहले डर फिल्म आई थी जिसका बहुचर्चित गीत है तू हां कर या ना कर, तू है मेरी किरण। इस गीत में मधुरता के अलावा सब कुछ बेहद डरावना है, क्योंकि लड़की की मर्जी को यहां पुरुष के अहम तले कुचला जा रहा है और लड़की जब नाबालिग हो तो यह मामला और संगीन हो जाता है। इस वक्त जब देश में यौन उत्पीड़न और महिला सुरक्षा को लेकर नए सिरे से बहस खड़ी हो चुकी है, उसमें नागपुर बेंच का यह फैसला काफी मायने रखता है। अमरावती की जिस घटना पर आरोपी को सजा सुनाई गई, वैसी घटनाएं इस देश में हर रोज घटित हो रही हैं। लाखों लड़कियां छेड़खानी को किसी भयावह श्राप की तरह सहती हैं और अक्सर इस पर शिकायत नहीं करती, क्योंकि इसमें भी या तो उन्हीं की गलती तलाशी जाती है या फिर उनके पढ़ाई और करियर पर रोक लगा दी ती है। बहुत से मामले तो ऐसे भी हुए हैं, जब लड़की की शिकायत पर परिजन उसका साथ देने आगे आए, तो उनके साथ हिंसक व्यवहार होता है। छेड़खानी या यौन शोषण के मामले में लड़की अगर निचली जाति की हुई तब उसके लिए कानून के दरवाजे पर पहुंचना और कठिन हो जाता है। छेड़खानी के मामलों को नजरंदाज करना या उन पर किसी कड़ी सजा का प्रावधान न होना ही आगे जाकर बड़ी घटनाओं का रास्ता खोलता है। देश इस वक्त ऐसे कई मामलों पर फिर से समाज को उद्वेलित होता देख रहा है। कोलकाता मामले में तो अब सुप्रीम कोर्ट ही स्वतः संज्ञान लेकर सुनवाई कर रहा है। जिसमें सभी संबंधित पक्षों से कई तरह के सवाल हो रहे हैं। डॉक्टरों के सामने अपनी सुरक्षा का सवाल भी खड़ा हो गया है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने डॉक्टरों से काम पर लौटने को कहा, साथ ही एक नेशनल टास्क फोर्स बनाने की बात कही, जो डॉक्टरों, जूनियर डॉक्टरों, सहायकों, नर्सों समेत सभी हितधारकों की बात सुनेगा। कोलकाता मामले में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की पोल खुल चुकी है। खुद मुख्य न्यायाधीश डी वाइ चंद्रचूड़ ने कहा कि वे एक परिजन की बीमारी के दौरान सरकारी अस्पताल की फर्श पर सोए हैं और उन्होंने देखा है कि डॉक्टरों को 36-36 घंटे काम करना पड़ता है।जूनियर डॉक्टरों का हर तरह से शोषण होता है, यह बात भी शीर्ष अदालत के संज्ञान में आई है। कोलकाता मामले में पीड़िता के परिजनों को ये इंतजार है कि इंसाफ कब मिलेगा। लेकिन इस बीच महाराष्ट्र में ठाणे के बदलापुर में एक स्कूल में दो बच्चियों से यौन शोषण की घटना पर फिर से सियासत तेज हो गई है। इस बीच तमिलनाडु के एक स्कूल में सातवीं से नवीं कक्षा में पढ़ने वाली नौ छात्राओं के बाद एक्स्ट्रा क्लास के नाम पर स्कूल में रोक कर यौन शोषण करना और उत्तराखंड के रूद्रपुर जिले में एक मदरसे में उर्दू का ट्यूशन लेने आने वाली पांच नाबालिग छात्राओं के साथ मौलवी द्वारा छेड़छाड़ व दरिंदगी की वारदातों से पता चलता है कि यह बीमारी कितना भयावह स्तर पर पहुंच चुकी है।
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि महिलाओं की सुरक्षा के साथ-साथ उनका सशक्तीकरण राष्ट्र की सर्वोच्च प्राथमिकता है। उत्तर महाराष्ट्र के जलगांव में ‘लखपति दीदी’ रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि महिलाओं के खिलाफ अत्याचार एक अक्षम्य पाप है और दोषी एवं उसका साथ देने वालों को बख्शा नहीं जाना चाहिए। प्रधानमंत्री ने कहा कि सार्वजनिक संस्थाओं को जवाबदेह बनाया जाना चाहिए, उनकी ओर से किसी भी तरह की लापरवाही अस्वीकार्य है। मोदी ने कहा, सरकारें बदल सकती हैं, लेकिन समाज और सरकार के रूप में हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी महिलाओं के जीवन और सम्मान की रक्षा करना है। प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि महिलाओं पर अत्याचार करने वालों को कड़ी से कड़ी सजा देने के लिए सरकार लगातार कानूनों को सख्त बना रही है।
स्पष्ट है कि सभी सरकारों, नागरिकों और राजनीतिक दलों को गंभीर मंथन करना होगा कि समाज में महिलाओं को सुरक्षित माहौल देने के लिए क्या कदम उठाए जाएं। न्याय हर नागरिक का अधिकार है, उसे पुलिस और प्रशासन की मर्जी का मोहताज नहीं बनाया जा सकता लेकिन अदालत में तैनात न्याय के देवताओं की कार्यप्रणाली की समीक्षा करनी होगी ताकि अपराधियों को सख्त दंड से दंडित किया जा सके यह विडंबना है कि इस सिस्टम में निठारी कांड (उत्तर प्रदेश नोएडा) जिसमें दर्जनों मासूम नाबालिग बच्चियों को बहला फुसला कर एक कोठी में बुलाकर दरिंदगी कर बर्बरता से कत्ल कर टुकड़े कर नाले में फेंक दिया जाता था। उच्च न्यायालय ने इस बेहद संगीन मामले के दोनों आरोपित को जिन्हें जिला अदालत ने फांसी और उम्र कैद की सजा सुनाई थी, फैसला पलट कर बरी कर दिया। सत्रह साल पैरवी और गवाही के बाद शिकार बनी बच्चियों के गरीब अशिक्षित परिवार सिर पटक कर रह गए। काश अदालत दोबारा पूरी शुचिता के साथ मामले की सुनवाई कर न्याय करती लेकिन अदालतों के पास न समय है वर्कलोड के कारण तमाम संवेदनाएं भी खत्म हो चुकी है। मानना होगा कि अभियोजन की कुछ गलतियां रही होगी लेकिन ऐसे बड़े संगीन मामलों में अभियुक्तों का छूट जाना समूची न्याय व्यवस्था से भरोसा खत्म करता है वहीं अपराधियों के हौसले बुलंद करता है। (हिफी)

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)

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