राजनीतिलेखक की कलम

मायावती ने फिर संभाली कमान

 

लोकसभा चुनाव-2024 मंे निराशाजनक प्रदर्शन के बाद बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की नेता मायावती ने पार्टी को चुस्त-दुरुस्त करने का प्रयास युद्ध स्तर पर शुरू किया है। उन्हांेने एक बार फिर पार्टी की कमान अपने हाथों मंे रखी है। गत 27 अगस्त को लखनऊ मंे पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई थी। इस बैठक मंे एक बार फिर से मायावती को बसपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया है। इसी बैठक में बसपा सुप्रीमों ने कहा कि पार्टी हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड जम्मू-कश्मीर और दिल्ली के विधानसभा चुनाव पूरे दमखम से लड़ेगी। फिलहाल जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। बसपा राष्ट्रीय स्तर पर अच्छी पकड़ बनाने का पूरा प्रयास करेगी। पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में युवा नेता आकाश आनद को बड़ी जिम्मेदारी सौंपते हुए दिल्ली, मध्य प्रदेश और हरियाणा का प्रभार सौंपा गया है। मायावती ने कई सहसंयोजक (कोआर्डिनेटर) हटा दिये हैं और कुछ को नई जिम्मेदारी सौंपी गयी है।

जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में दमखम के साथ चुनाव लड़ रही बहुजन समाज पार्टी ने तीन और राज्यों में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ाने का फैसला कर लिया है। बसपा झारखंड, महाराष्ट्र और दिल्ली के विधानसभा चुनाव में भी मजबूती के साथ उतरेगी। पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में इस संदर्भ में बसपा चीफ मायावती ने निर्देश जारी किया। बसपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक 27 अगस्त को लखनऊ में हुई। इस बैठक में मायावती को बसपा का 6वीं बार राष्ट्रीय अध्यक्ष भी चुना गया। बैठक में संक्षिप्त संबोधन के दौरान बसपा चीफ ने कहा कि हरियाणा, महाराष्ट्र झारखण्ड जम्मू-कश्मीर व दिल्ली विधानसभा के चुनाव पूरी तैयारी व दमदारी के साथ बी.एस.पी. को लड़ना है। बसपा जम्मू-कश्मीर और हरियाणा के चुनाव मैदान में है। महाराष्ट्र, दिल्ली और झारखंड में उसके उतरने से कांग्रेस और बीजेपी की मुश्किल बढ़ सकती है। इसके अलावा मायावती ने कहा, करोड़ों दलितों और बहुजनों के हित में बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर द्वारा बनाए गए संविधान में जनहित और जनकल्याण के वास्तविक उद्देश्य को साकार करने के लिए सत्ता की मास्टर चाबी हासिल करने के लिए अथक संघर्ष किया जाएगा। उन्होंने कहा कि दलित-बहुजनों को अपनी शक्ति पर निर्भर रहना सीखना होगा अन्यथा वे ठगे जाते रहेंगे और लाचारी एवं गुलामी का जीवन जीने को मजबूर होंगे। बसपा अपना जनाधार बढ़ाने की पूरी कोशिश में लगी हुई है। बसपा न सिर्फ खुद को राष्ट्रीय फलक पर स्थापित रखना चाहती है बल्कि वह राज्यों में भी अच्छी पकड़ बनाने की प्लानिंग में है। इसके अलावा बसपा की मीटिंग में आकाश आनंद को कई राज्यों की जिम्मेदारी दी गई है। आकाश को दिल्ली, मध्य प्रदेश हरियाणा की जिम्मेदारी भी दी गई है। कई को-ऑर्डिनेटर्स को हटाया भी गया है। कुछ को-ऑर्डिनेटर्स को एक जगह से दूसरी जगह जिम्मेदारी दी गई है। बैठक में यूपी और देशभर के तमाम वरिष्ठ पदाधिकारी मौजूद थे।

बसपा सुप्रीमो मायावती साल 2003 के बाद से लगातार पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनी जाती रहीं हैं और इस बार भी उन्हें ही राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया।  आकाश आनंद को बसपा का युवा कैडर पसंद करता है। लोकसभा चुनाव में उनके आक्रामक भाषणों ने भी काफी सुर्खियां बटोरी थीं, लेकिन इस दौरान वो जोश में होश खोते भी दिखाई दिए। उन्होंने बीजेपी को लेकर ऐसा बयान दिया जिसके बाद विवाद हो गया था। मायावती ने उन्हें सभी जिम्मेदारियों से हटा दिया था। हालांकि चुनाव के बाद पार्टी नेताओं की मांग पर उन्हें फिर से उत्तराधिकारी बनाया गया। मायावती कह चुकी है कि आकाश आनंद अभी परिपक्व नहीं हुए हैं। मायावती ने  एक पोस्ट के जरिए भी दावा किया था कि वो फिलहाल राजनीति से संन्यास लेने के मूड में नहीं है और सक्रिय राजनीति में अपनी भूमिका निभाती रहेंगी। राजनीतिक जानकारों की मानें तो आकाश आनंद को उत्तराधिकारी बनाने के बावजूद बसपा के लिए मायावती ही सबसे मजबूत अध्यक्ष साबित हो सकती है। इसके पीछे कई वजह मानी जाती है।

भले ही बसपा इन दिनों अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही हो लेकिन मायावती की स्वीकार्यता कम नहीं है। आज भी वो दलितों की सबसे बड़ी नेता कही जातीं हैं। यही नहीं दलितों को भी उन पर पूरा भरोसा है। दूसरे दलों के नेता भी उनका सम्मान करते हैं। यही नहीं जब दूसरे दलों से गठबंधन की बात होती है तो भी बड़े से बड़े दल आगे बढ़कर उनसे ही बात करते हैं। उधर, नगीना से सांसद आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद भी पिछले कुछ समय में बसपा के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर उभरे हैं। कई राज्यों में वो बसपा के विकल्प के तौर पर उभरने की कोशिश कर रहे हैं। बावजूद इसके चंद्रशेखर आजाद कभी मायावती के खिलाफ कोई बयान नहीं देते। यही नहीं वो अक्सर मायावती को दलितों की सबसे बड़ी नेता बताते हैं लेकिन अगर आकाश आनंद उन पर हमला करने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। चंद्रशेखर उन्हें चांदी की चम्मच लेकर आने वाले नेता भी बोल चुके हैं। ऐसे में आकाश आनंद के लिए चंद्रशेखर का मुकाबला करना आसान नहीं होगा।

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने कमर कस ली है। पार्टियां न सिर्फ उत्तर प्रदेश में बल्कि अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी अपनी तकदीर आजमाने में जुट गईं हैं। भले ही इन सभी के रास्ते अलग हों लेकिन मंजिल एक ही है। खुद की सियासी ताकत बढ़ाना और उसी के रास्ते उत्तर प्रदेश में अपनी स्थिति को और मजबूत करना। समाजवादी पार्टी के सांसदों ने बीते महीने महाराष्ट्र का दौरा किया था। संकेत मिल रहे हैं कि सपा चीफ अखिलेश यादव महाराष्ट्र की सियासी जमीन पर सपा की जड़ें और मजबूत करने की जुगत में हैं। इतना ही नहीं सपा ने हरियाणा और झारखंड के चुनावों में अपने प्रत्याशी उतारने के संकेत दिए हैं। समाजवादी पार्टी के विधायक रविदास मेहरोत्रा ने बीते दिनों यहां तक कहा था कि कांग्रेस हमें उन राज्यों में सीट बंटवारे में शामिल नहीं कर रही है जहां चुनाव प्रस्तावित हैं। इसी तरह बहुजन समाज पार्टी ने हरियाणा में इनेलो के साथ अलायंस किया है। हरियाणा में बसपा अब तक पांच बार अलायंस कर चुकी है। चुनाव में जब उसे उचित परिणाम नहीं मिलते तो वह अलायंस भूल जाती है या यूं कहे कि उसे आगे बढ़ाने पर जोर नहीं देती और गठबंधन खुद ब खुद टूट जाता है। जम्मू और कश्मीर में बहुजन समाज पार्टी अकेले चुनाव लड़ेगी। बसपा ने साल 1996 के विधानसभा चुनाव में आखिरी बार सबसे ज्यादा 4 सीटें जीती थी। इसके बाद साल 2002 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 1 सीट पर अपना परचम लहराया था। इस प्रकार बसपा यूपी के बाहर दमखम दिखाएगी। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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