राजनीति

ममता का एंटी रेप बिल

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
अपराध रोकने का यह भी एक तरीका है कि लोगों मंे इस बात का भय पैदा किया जाए ताकि वे गलत काम न करें। महिलाओं के प्रति अपराध ने हमारे देश मंे भी मानवता को शर्मसार कर दिया है। दिल्ली में हुए निर्भया कांड के बाद युवतियों, बच्चियों और महिलाओं के साथ दुष्कर्म के अपराधियों को कड़ी सजा देने के प्रावधान भी किये गये हैं लेकिन अपराधियों में भय नहीं पैदा हुआ है। आये दिन इस तरह की अति शर्मनाक वारदातें सुनने को मिलती रहती हैं। पश्चिम बंगाल के कोलकाता मंे डाक्टर बेटी के साथ जिस प्रकार अमानुषिकता की गयी, उसने देश भर को आंदोलित कर दिया। इस वारदात को लेकर राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू तक को मार्मिक टिप्पणी करनी पड़ी है। अब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी एक कठोर कानून बनाने जा रही हैं। गत 3 सितम्बर को मुख्यमंत्री ने विधानसभा में यह बिल पेश किया है। सरकार ने इस बिल को अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक-2024 नाम दिया है। इस बिल को पारित कराने के लिए सरकार ने दो दिन का विशेष सत्र बुलाया। इस बिल में महिलाओं और बच्चों संग अपराध को लेकर कई ऐसे नियमों का प्रावधान है जिससे इस तरह की घटनाओं पर लगाम लगाई जा सके। सबसे खास बात यह है कि रेप और हत्या करने वाले अपराधी के लिए फांसी की सजा का प्रावधान है। ममता बनर्जी सरकार के पास सदन मंे पर्याप्त विधायक हैं। इसलिए बिल को पारित होने में कोई कठिनाई नहंी होनी चाहिए। यह अपने उद्देश्य मंे कितना सफल होता है, यह देखना महत्वपूर्ण होगा।
पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में ट्रेनी डॉक्टर के साथ रेप और हत्या की घटना के बाद पश्चिम बंगाल सरकार एंटी रेप बिल लाने जा रही है। विधानसभा के स्पेशल सत्र के पहले दिन यानी 3 सितम्बर को एंटी रेप बिल सदन में पेश किया गया। सरकार ने इस बिल को अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक 2024 नाम दिया है। इस बिल को पास करवाने के लिए विधानसभा का दो दिन का स्पेशल सत्र बुलाया गया। कोलकाता में डॉक्टर बेटी के लिए इंसाफ की मांग के बीच हो रहे उग्र प्रदर्शनों के बाद सीएम ममता बनर्जी ने एंटी रेप बिल लाने का ऐलान किया था। विधानसभा में पेश इस बिल में महिलाओं और बच्चों संग क्राइम को लेकर कई नियमों का प्रावधान हैं, जिससे इस तरह की घटनाओं पर लगाम कसी जा सके। इस बिल के भीतर रेप और हत्या करने वाले आपराधी के लिए फांसी की सजा का प्रावधान।
बिल की प्रमुख बातें इस प्रकार हैं- चार्जशीट दायर करने के 36 दिनों के भीतर सजा-ए-मौत का प्रावधान। मामले की 21 दिन में जांच पूरी करनी होगी। अपराधी की मदद करने पर 5 साल की कैद की सजा का प्रावधान है। हर जिले में स्पेशल अपराजिता टास्क फोर्स बनाए जाने का प्रावधान है। रेप, एसिड, अटैक और छेड़छाड़ जैसे मामलों में ये टास्क फोर्स त्वरित एक्शन लेगी। रेप के साथ ही एसिड अटैक भी उतना ही गंभीर है। इसके लिए आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान किया गया है। बिल में कहा गया है कि पीड़िता की पहचान उजागर करने वालों के खिलाफ 3 से 5 साल की सजा दी जा सकती है। विधेयक में रेप की जांच और सुनवाई में तेजी लाने के लिए कुछ प्रावधानों में संशोधन भी किया गया है।
विधानसभा में पेश एंटी रेप बिल के अनुसार सभी यौन अपराधों और एसिड अटैक की सुनवाई 30 दिनों में पूरी करनी होगी। अपराजिता विधेयक को पारित होने के लिए राज्यपाल, राष्ट्रपति की मंजूरी की जरूरत होगी। विधानसभा में अपराजिता बिल पारित होने के बाद इसे हस्ताक्षर के लिए राज्यपाल के पास भेजा जाएगा। इसके बाद इसे राष्ट्रपति से मंजूरी मिलना जरूरी है। ध्यान रहे 294 सदस्यीय राज्य विधानसभा में तृणमूल कांग्रेस को 223 विधायकों का समर्थन है, इसीलिए इस बिल का पारित होना मुश्किल नहीं है। हालांकि बीजेपी विधायकों ने यह संकेत नहीं दिया था कि वह बिल का समर्थन करेंगे या वोटिंग के दौरान अनुपस्थित रहेंगे। इस विधेयक को राज्यपाल और राष्ट्रपति दोनों की मंजूरी की जरूरत होगी। ऐसे कई उदाहरण हैं, जिससे पता चलता है कि यह कितना मुश्किल हो सकता है। साल 2019 के आंध्र प्रदेश दिशा विधेयक और 2020 के महाराष्ट्र शक्ति विधेयक में सभी रेप और गैंगरेप के मामलों के लिए सिर्फ एक ही सजा यानी कि मौत का प्रावधान था। दोनों को राज्य विधानसभाओं में सर्वसम्मति से पारित किया गया था, लेकिन आज तक किसी को भी राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिली है। इससे पता चलता है कि इसका कानून बनना कितना मुश्किल भरा हो सकता है।
विधेयक में 2012 के पोक्सो अधिनियम के कुछ हिस्सों में संशोधन करने और पीड़िता की उम्र चाहे जो हो, कई तरह के यौन उत्पीड़न के मामलों में मौत की सजा का प्रावधान है।
आज महिलाएँ एक तरफ सफलता के नए-नए आयाम गढ़ रही हैं तो वहीं दूसरी तरफ कई महिलाएँ जघन्य हिंसा और अपराध का शिकार हो रही हैं। उनको पीटा जाता है, उनका अपहरण किया जाता है, उनके साथ बलात्कार किया जाता है, उनको जला दिया जाता है या उनकी हत्या कर दी जाती है। क्या हम कभी ये सोचते हैं कि आखिर वे कौन-सी महिलाएँ हैं जिनके साथ हिंसा होती है या उनके साथ हिंसा करने वाले लोग कौन है? हिंसा का मूल कारण क्या है और इसे खत्म कैसे किया जाए?
जाहिर सी बात है, हम में से अधिकांश लोग कभी भी इन प्रश्नों पर विचार नहीं करते हैं। इसके विपरीत हम जब भी किसी महिला के साथ हिंसा की खबर देखते या सुनते हैं तो उस हिंसा के खिलाफ आवाज उठाने की बजाय अपने घर की महिलाओं, बहनों और बेटियों पर तरह-तरह के प्रतिबंध लगा देते हैं, जो स्वयं एक प्रकार की हिंसा ही है। इन्हीं सब कारणों के चलते संयुक्त राष्ट्र द्वारा हर साल 25 नवंबर को अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस मनाया जाता है। इस दिवस का उद्देश्य दुनिया भर में महिलाओं के साथ हो रही हिंसा के प्रति लोगों को जागरुक करना है। महिलाओं के विरुद्ध हिंसा में आपराधिक हिंसा जैसे- बलात्कार, अपहरण, हत्या और घरेलू हिंसा जैसे- दहेज संबंधी हिंसा, पत्नी को पीटना, लैंगिक दुर्व्यवहार, विधवा और वृद्ध महिलाओं का उत्पीड़न।
सामाजिक हिंसा जैसे पत्नी, पुत्रवधू को मादा भ्रूण की हत्या के लिये
बाध्य करना, महिलाओं से छेड़-छाड़, संपत्ति में महिलाओं को हिस्सा देने से इंकार करना, दहेज के लिये सताना, साइबर उत्पीड़न आदि। (हिफी)

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