सम-सामयिक

यूपी में आदमखोर भेड़ियों का आतंक

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)
इन दिनों यूपी के कई जिलों में आदमखोर हो चुके भेड़ियों ने यहाँ के वासिंदों का जीना मुहाल कर दिया है। आलम यह है कि देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में लोगों की जुबान पर आदमखोर भेड़ियों का खौफ है हर गांव में भेड़ियों के खूनी हमले की कहानी चर्चा में हैं। लोगों में शेर चीते गुलदार का नहीं आदमखोर भेड़ियों की दहशत फैली हुई है। दरअसल इस भेड़िए या इनके समूह ने इस कदर आतंक मचाया है कि लोगों की रातों की नींद-चैन सब कुछ गायब हो गया है। इन आदमखोर भेड़ियों को पकड़ने के लिए प्रशासन ने वन विभाग की टीमें तैनात भी कर दी हैं और अब कर चार भेड़ियों को पकड़ लिया गया है। माना जा रहा था कि अब भेड़िये हमले नही करेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ भेड़ियों के हमले की वारदातों में कमी नहीं आई है।
उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के कई गांव भेड़ियों के हमलों से दहशत में हैं। मार्च से अब तक भेड़ियों के हमले से नौ बच्चों समेत दस लोगों की मौत हो चुकी है। चार भेड़िये पकड़े जा चुके हैं और बाकी दो को पकड़ने की कोशिश जारी है।
भेड़ियों का आतंक यूपी के एक जिले से दूसरे जिले में फैलता जा रहा है। बहराइच और सीतापुर के बाद बाराबंकी में भेड़िए का आतंक देखने को मिल रहा है। बाराबंकी में भेड़िए के हमले से दहशत का माहौल है। यहां बकरी चराने गई एक बच्ची और एक युवक पर भेड़िए ने हमला कर दिया। हमले में बच्ची गंभीर रूप से घायल हो गई।
बहराइच में आदमखोर भेड़ियों का आतंक थमने का नाम नहीं ले रहा। स्थिति इतनी भयावह हो चुकी है कि हर कोई दहशत में जी रहा है। शाम ढलते ही हर व्यक्ति पर हमला होने का डर बना रहता है। बहराइच जिले के करीब 35 गांवों के लोग बीते कई महीनों से दहशत में हैं। मार्च से अब तक अलग-अलग गांवों के दस लोगों की भेड़ियों के हमले से मौत हो चुकी है। इनमें नौ बच्चे और एक महिला शामिल है। हालिया हमलों से जुड़ा शुरुआती मामला 17 जुलाई को सामने आया, जब सिकंदरपुर गांव में एक साल का बच्चा भेड़िए के हमले में मारा गया। कुछ मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, 31 अगस्त की रात हरदी इलाके में भी एक जानवर ने छह साल के एक बच्चे और 55 वर्षीय व्यक्ति पर हमला किया। बच्चे की हालत गंभीर बताई जा रही है। लोगों का दावा है कि हमला करने वाला जीव भेड़िया था।
ग्रामीणों में दहशत का माहौल बन रहा है उनका कहना है कि अमावस की रात को भेड़िये और भी खतरनाक हो जाते हैं और ऐसा ही कुछ हुआ 2 सितंबर की रात को 12 बजे जब सोमवती अमावस्या की रात एक मासूम पर हमला किया गया तो बच्ची ने चीख-पुकार मचाई, जिससे भेड़िया उसे छोड़कर भाग गया और उसकी जान बच गई।
आदमखोर भेड़िए अपनी तेज सूंघने की क्षमता के जरिए इंसानों की गंध पहचानकर शिकार की जगह ढूंढ लेते हैं। वे खासतौर पर छोटे बच्चों को अपना शिकार बनाते हैं, ऐसे में इन 35 गांवों के लोग डर के साये में जी रहे हैं। लोग समूह में निकलने के लिए मजबूत है ताकि उन पर हमला न हो जाए खेत खलिहान में अकेले काम करने में भय बना है और अपने छोटे बच्चों को छिपा कर रख रहे हैं।
यूं तो भेड़ियों के हमलों की घटनाएं मार्च से ही हो रही हैं, लेकिन बीते डेढ़ महीने से यह दहशत और बढ़ गई है। सबसे अधिक हमले इसी अवधि में हुए हैं। 36 से भी अधिक लोगों को भेड़ियों ने घायल किया है। डर के कारण ग्रामीण लाठी- डंडे और पटाखे जलाकर पहरेदारी कर रहे हैं।
आदमखोर भेड़ियों को पकड़ने की कार्रवाई को ‘ऑपरेशन भेड़िया’ नाम दिया गया है। वन विभाग के अनुसार, बहराइच में घाघरा नदी के किनारे बसे इलाकों में अब तक छह आदमखोर भेड़िए नजर आ चुके हैं। थर्मल इमेजिंग वाले ड्रोन कैमरों से भेड़ियों को खोजा जा रहा है। खेतों में गन्ने के पत्तों की ओट में या घनी जगहों पर वन्यजीवों को देखना मुश्किल होता है। कैमरों के लिए भी उन्हें देख पाना मुश्किल होता है। ऐसी स्थिति में इंफ्रारेड कैमरों से जानवरों के मौजूद होने की पहचान की जाती है। थर्मल इमेजिंग का ड्रोन कैमरा इसी तकनीक पर काम करता है।
तकनीक के इस्तेमाल के अलावा इस ऑपरेशन में वन विभाग की 25 टीमें शामिल हैं। वन विभाग के अलावा राजस्व विभाग, पीएसी की दो कंपनियां, कई थानों के पुलिसकर्मी, होमगार्ड और प्रांतीय रक्षा दल के सदस्य भी ऑपरेशन में शामिल हैं। इनके अलावा बाराबंकी, बहराइच और कतर्निया घाट नेशनल पार्क के डीएफओ भी रेस्क्यू ऑपरेशन में लगे हुए हैं। भेड़ियों को पकड़ना थोड़ा मुश्किल होता है क्योंकि उनका झुंड एक साथ एक जगह पर मिल जाए ऐसा जरूरी नहीं होता। भेड़ियों को पकड़ने के लिए तेंदुआ और बाघ के रेस्क्यू ऑपरेशन की तकनीक नहीं अपनाई जा सकती। भेड़िया काफी चालाक होता है और पिंजरे में जल्दी नहीं आता।
भेड़ियों को पकड़ने की कार्रवाई का नेतृत्व कर रहे बहराइच के डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर अजीत सिंह ने डीडब्ल्यू को बताया कि वन विभाग के प्रशिक्षित कर्मचारियों के साथ घेरा बनाया जाता है। घेरा जितना छोटा होता है, भेड़िए को पकड़ना उतना आसान होता है। इसके अलावा हवा का बहाव जिस ओर होता है, उसकी विपरीत दिशा में घेरा बनाया जाता है ताकि भेड़िए तक हमारी गंध न पहुंचे। इंसानी गंध मिलते ही भेड़िये उस जगह से दूर चले जाते हैं और उन्हें पकड़ना मुश्किल हो जाता है। उन्हें पीछे से जाल के जरिए पकड़ना पड़ता है। हालांकि, बाघ के लिए भी जाल बिछाया जाता है पर वह भारी होता है। ऐसे में भेड़ियों को पकड़ने के लिए हल्के जाल का इस्तेमाल किया जाता है, ताकि उन्हें लगे कि वह इसपर आसानी से चल सकते हैं और इसी के जरिए उन्हें पकड़ना आसान हो जाता है। इसके बाद जाल से एक ऐसा रास्ता बनाया जाता है, जो पिंजरे तक जाता हो। पकड़े गए भेड़ियों में से एक नर और मादा को लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान और एक अन्य नर भेड़िये को गोरखपुर चिड़ियाघर भेजा गया है। इसके अलावा एक अन्य भेड़िए की दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो चुकी है। डीएफओ अजीत सिंह बताते हैं, भेड़ियों को पिंजरे में बंदकर और फिर पिंजरे को ढककर ले जाना पड़ता है, ताकि वह आसपास के वातावरण को देखकर डरे नहीं। लेकिन भेड़िए दिल से भयभीत और कमजोर होते हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार बहराइच से पहले उत्तर प्रदेश में भेड़ियों का ऐसा ही हमला तीन दशक पहले भी हुआ था। तब टारगेट एरिया था प्रतापगढ़, सुल्तानपुर और जौनपुर। उस समय भी रहस्यमयी तरीके से बच्चे गांवों में मर रहे थे। तीन जिलों में 30 बच्चे मारे गए थे। यूपी के तीन जिलों प्रतापगढ़, सुल्तानपुर और जौनपुर में साल 1996 के मार्च से अक्तूबर महीने तक भेड़िये का आतंक था। तीनों जिलों में 30 बच्चों की मौत हुई थी। हर तीसरे दिन भेड़िया हमला करता था। हर पांचवें दिन एक बच्चे की मौत हो रही थी। हत्यारा भेड़िया इतना बेफिक्र हो गया था कि वो गांव के बीच से बच्चों को उठा ले जा रहा था। ये हमले तब हो रहे थे, जब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस नहीं था। सोशल मीडिया नहीं था। इस मामले में वन्य जीवन वैज्ञानिकों वाईवी झाला और दिनेश शर्मा ने लंबी जांच के बाद अपने शोध पत्र में बताया कि ये हमला एक भेड़िया कर रहा है। पूरा समूह नहीं था। उन दिनों वैज्ञानिकों ने पुष्ट किया कि ये हमला भेड़ियों के समूह का नहीं बल्कि एक भेड़िये का है। हो सकता है कि वो अल्फा मेल हो। यानी भेड़ियों के समूह का सरदार। भेड़ियों का बहराइच में लगभग ऐसा ही हमला हो रहा है लेकिन यहां कई भेड़ियों का मामला लग रहा है। (हिफी)

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