मेडिकल से मदरसों तक बदलाव

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
उत्तर प्रदेश में डॉक्टरी की पढ़ाई करने वाले छात्रों के लिए बड़ी खबर आ रही है। प्रदेश की योगी सरकार की पहल पर प्रदेश के पांच स्वशासी राज्य चिकित्सा महाविद्यालयों में एमबीबीएस की पढ़ाई को मंजूरी मिल गई है। इन मेडिकल कॉलेजों को 100-100 सीटें की अनुमति मिली है। वहीं दो मेडिकल कॉलेजों में 50-50 सीटों की बढ़ोतरी की गई है। दूसरी तरफ मदरसों को लेकर भी बड़ा बदलाव हो रहा है। मदरसों को सिर्फ मजहब की शिक्षा तक सीमित किये जाने की खबरों ने योगी आदित्यनाथ सरकार को चिंता में डाल दिया था। सरकार ने मदरसों की शिक्षा को लेकर नियमों में कड़ाई की है। धार्मिक शिक्षा देने वाले संस्थानों को एक सिलेबस के दायरे में लाने का निर्णय लिया गया है।
उत्तर प्रदेश में मेडिकल शिक्षा को विस्तार देने के तहत गोंडा, कौशांबी, चंदौली, लखीमपुर खीरी और औरैया मेडिकल कॉलेज को 100-100 सीट पर प्रवेश के लिए मंजूरी मिली है जबकि कानपुर देहात, ललितपुर मेडिकल कॉलेज की 50-50 सीट बढ़ाई गई है। इस तरह कुल 600 नई एमबीबीएस की सीटों का सृजन किया गया है। वहीं मौजूदा शैक्षणिक सत्र में अब तक 1872 सीटों को मंजूरी मिल चुकी है। इसको लेकर उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने बताया कि सरकार स्वास्थ्य के क्षेत्र में काफी काम कर रही है। जिला चिकित्सालयों को मेडिकल कॉलेजों के रूप में अपग्रेड किया जा रहा है। प्रदेश में नए मेडिकल कॉलेज भी बनाए गए हैं। उन्होंने बताया कि मंगलवार को जिन जिलों में एमबीबीएस की 100 सीटें दी गई हैं, उनमें गोंडा, कौशाम्भी, चंदौली, खीरी, औरैया शामिल हैं। वहीं, ललितपुर एवं कानपुर देहात में पूर्व में स्थापित 50 सीटों को बढ़ा कर अब 100 कर दिया गया है। यानि कुल 600 सीटें की बढ़ोतरी की गई है।
उपमुख्यमंत्री ने बताया कि वर्तमान शैक्षणिक सत्र 2024-25 में एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए अब तक 12 मेडिकल कॉलेजों को 1200 नई सीटें मिली हैं। इसके साथ ही पीपीपी मोड पर स्थापित अजय सांगल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस शामली और केएमसी मेडिकल कॉलेज महाराजगंज को 150-150 व श्री सिद्धि विनायक मेडिकल कॉलेज संभल को 50 सीटें इस शैक्षणिक सत्र में मिल चुकी हैं। प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री व उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने बताया कि राजकीय मेडिकल कॉलेज गोरखपुर में वर्तमान शैक्षणिक सत्र के लिए 50 एमबीबीएस सीटों के लिए एलओपी (लेटर ऑफ प्रोटेक्शन) निर्गित की गई है। निजी क्षेत्र में स्थापित जीएस मेडिकल कॉलेज हापुड़ में 100 एमबीबीएस सीटों को बढ़ा कर 250 कर दिया गया है। राजकीय मेडिकल कॉलेज आगरा को 72 और मेरठ को 50 नई एमबीबीएस सीटों को अनुमति दी गई है। अब आगरा में एमबीबीएस की कुल सीटें 200 और मेरठ में कुल 150 सीटें हो गई हैं।
प्रदेश के 7 मेडिकल कॉलेजों को पहले ही मंजूरी मिल चुकी है। इसी साल 31 जुलाई को बिजनौर, कुशीनगर, बुलंदशहर, पीलीभीत और सुल्तानपुर को 100-100 एमबीबीएस सीटों की मंजूरी मिली थी जबकि कानपुर देहात और ललितपुर को 50-50 एमबीबीएस सीट की मंजूरी मिली थी। बताया जा रहा है कि 13 स्वशासी राज्य चिकित्सा महाविद्यालयों जैसे बुलन्दशहर, औरैया, सोनभद्र, ललितपुर, चन्दौली, सुलतानपुर, गोण्डा, लखीमपुर खीरी, कुशीनगर, कानपुर देहात, कौशाम्बी, बिजनौर और पीलीभीत द्वारा शैक्षणिक सत्र 2024-25 में 100 एमबीबीएस छात्रों के प्रवेश की एनएमसी नई दिल्ली से एलओपी के लिए आवेदन पिछले साल सितम्बर में किया गया था।
योगी सरकार ने मदरसों की गुणवत्ता पर जोर दिया है इससे प्रदेश में मदरसों की मुश्किलें भी बढ़ रही हैं क्योंकि सरकार ने मदरसों की शिक्षा को लेकर नियमों में कड़ाई की है। धार्मिक शिक्षा देने वाले संस्थानों को एक सिलेबस के दायरे में लाने का निर्णय लिया गया है। साथ ही, मदरसा संस्थानों में पढ़ाई करने वाले छात्रों से लेकर पढ़ाने वाले मौलवी तक पर नजर है। हर मदरसा को उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड से मान्यता लेना अनिवार्य किया गया है। बिना मान्यता वाले मदरसों पर कार्रवाई की तैयारी है। इन स्थितियों ने मदरसा संचालकों को अगलरास्ता अख्तियार करने को मजबूर कर दिया है। प्रदेश के 513 मदरसों ने जिस प्रकार से मान्यता को सरेंडर करने का निर्णय लिया है और बोर्ड की ओर से इसको मंजूरी दी गई है, वह स्थिति को साफ कर रहा है।
सरकार की सख्ती का नतीजा है कि 513 मदरसों की ओर से बोर्ड को पत्र भेजकर मान्यता सरेंडर करने के लिए अनुरोध किया गया है। यूपी मदरसा बोर्ड की ओर से भी जारी बयान इसकी तस्दीक करते हैं। बोर्ड की बैठक में निर्णय लिया गया कि इस प्रस्ताव को बैठक में अनुमोदित करके आगे की कार्यवाही के लिए परिषद के रजिस्ट्रार को अधिकृत कर दिया गया है। परिषद के सदस्य कमर अली बताते हैं कि प्रदेश के 513 मदरसों ने परिषद से खुद को मिली मान्यता सरेंडर करने की अर्जी दी थी, जिस पर गत दिनों हुई बैठक में फैसला लिया गया। इस संबंध में बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. इफ्तिखार अहमद जावेद का कहना है कि 513 मदरसों ने खुद मान्यता सरेंडर करने का पत्र लिखा है। बोर्ड
अध्यक्ष का कहना है कि दूसरे बोर्डों से मान्यता लेकर मदरसे को स्कूल के रूप में खोलना चाहते हैं। अध्यक्ष ने माना है कि अभी लोगों को मदरसा चलाने में दुश्वारियां भी आ रही हैं। उन्होंने कहा कि मदरसों में परीक्षा की तैयारी चल रही थी और उस समय सरकार ने जांच शुरू करा दी। परीक्षा तैयारियों में इससे बाधा उत्पन्न हुई। इन्हीं वजहों ने मान्यता सरेंडर को संस्थानों को प्रेरित किया है।
इस प्रकार उत्तर प्रदेश के 513 मदरसों की मान्यता जल्द खत्म होगी। इनमें अधिकतर मदरसों के प्रबंधन ने मदरसा शिक्षा बोर्ड को मान्यता सरेंडर करने के लिए पत्र लिखा है। यह प्रकरण मदरसा बोर्ड की बैठक में रजिस्ट्रार में रखा गया । बोर्ड ने पहले इन मामलों की समीक्षा करने और फिर नियमावली के तहत आगे की कार्यवाही के लिए रजिस्ट्रार आरपी सिंह को अधिकृत किया।
बैठक में नए मदरसों को मान्यता देने का मामला भी उठा। तय किया गया कि नए मदरसों को मान्यता बेसिक और
माध्यमिक शिक्षा विभाग की तरह ऑनलाइन प्रस्ताव लेकर दी जाए। इसके लिए मदरसा पोर्टल में जरूरी अपडेट किए जाने पर सहमति बनी। तय किया गया है मदरसा बोर्ड 2018 से पहले के सभी छात्रों की मार्कशीटों को चरणबद्ध तरीके से अपनी वेबसाइट पर अपलोड करेगा। पिछले साल की तर्ज कर इस शैक्षणिक सत्र में भी मदरसों की परीक्षाएं फरवरी 2025 के पहले हफ्ते में करवाए जाने की सहमति बैठक में बनी। बैठक में बोर्ड उपाध्यक्ष जे. रीभा, सदस्य कमर अली, डॉ. इमरान अहमद, असद हुसैन मौजूद रहे।बोर्ड की ओर से जारी एक बयान के मुताबिक, प्रदेश के विभिन्न जिलों से लगभग 513 मदरसों ने परिषद से मान्यता वापस लेने की अर्जी दी है। इससे संबंधित प्रस्ताव को बैठक में अनुमोदित करके आगे की कार्यवाही के लिए परिषद के रजिस्ट्रार को अधिकृत किया गया है। बैठक में मौजूद रहे मदरसा शिक्षा परिषद के सदस्य कमर अली ने बताया कि प्रदेश के 513 मदरसों ने परिषद से खुद को मिली मान्यता के समर्पण की अर्जी दी थी, जिस पर बैठक में फैसला लिया गया। उन्होंने बताया कि इन मदरसों ने विभिन्न कारणों से मान्यता वापस लेने की अर्जी दी है जिनमें सबसे अहम कारण मदरसा शिक्षा परिषद से मान्यता के नवीनीकरण की जटिल प्रक्रिया है। पूर्व में जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी के स्तर से ही मदरसों की मान्यता और उसका नवीनीकरण हो जाता था, लेकिन अब यह अधिकार रजिस्ट्रार को दे दिया गया है।
कमर अली ने कहा कि मदरसों को एक निश्चित अवधि में अपनी मान्यता का नवीनीकरण करना होता है जो अब एक जटिल प्रक्रिया है। चूंकि मदरसों को अपने यहां बच्चों को पढ़ाना है। इसलिए उनमें से अनेक मदरसों ने बेसिक शिक्षा परिषद से मान्यता ले ली है जो जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी से ही मिल जाती है। यूपी में करीब 25 हजार मदरसे हैं। उनमें से लगभग 16 हजार 500 मदरसे राज्य मदरसा शिक्षा परिषद से मान्यता प्राप्त हैं। इनमें से 560 मदरसों को राज्य सरकार से अनुदान मिलता है जबकि करीब 8500 मदरसे गैर मान्यता प्राप्त हैं। मदरसा शिक्षा परिषद द्वारा जारी बयान के मुताबिक, बैठक में मदरसों की मान्यता से संबंधित प्रक्रिया को ऑनलाइन करने के लिए एक प्रस्ताव भी पारित किया गया। (हिफी)