रजत-जयंती पर धामी देंगे यूसीसी का तोहफा

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
राष्ट्रपति की ओर से उत्तराखंड के समान नागरिकता संहिता कानून (यूनिफॉर्म सिविल कोड ला यूसीसी) विधेयक को मंजूरी दे गई है। इसी साल उत्तराखंड के स्थापना दिवस अर्थात 9 नवंबर से पहले यह राज्य में लागू हो जाएगा। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बार एसोसिएशन के नए चैम्बरों के भवन के शिलान्यास के बाद यह घोषणा की थी। गत 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर धामी ने इसे दोहराया है। इस प्रकार पुष्कर सिंह धामी राज्य के 25वें स्थापना दिवस अर्थात रजत जयंती पर जनता को एक नायाब तोहफा देने वाले हैं।
आजादी के बाद पहले जनसंघ और अब बीजेपी के मुख्य तीन एजेंडा रहे हैं। इनमें पहला जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 को हटाना था। दूसरा, अयोध्या में राममंदिर का निर्माण कराना और तीसरा पूरे देश में समान नागरिक संहिता लागू कराना है। पहले दो एजेंडे पर काम खत्म हो चुका है। अब बारी यूनिफॉर्म सिविल कोड की है। उत्तराखंड की बीजेपी सरकार ने समान नागरिक संहिता से संबंधित बिल 06 फरवरी को पेश किया और अगले दिन ही ये पास होकर अब कानून बन चुका है। हालांकि केंद्र भी इस पर काम कर रहा है। देश के 22वें विधि आयोग ने पिछले साल 14 जून को यूसीसी पर सार्वजनिक और धार्मिक संगठनों के विभिन्न पक्षों से 30 दिन के भीतर अपनी राय देने को कहा था। कहा जा सकता है कि ये मुद्दा अब फिर देशभर में चर्चा में आने वाला है, क्योंकि बीजेपी शासित कई राज्य इसे लागू कर सकते हैं।
यूनिफॉर्म सिविल कोड का मतलब है कि हर धर्म, जाति, संप्रदाय, वर्ग के लिए पूरे देश में एक ही नियम। दूसरे शब्दों में कहें तो समान नागरिक संहिता का मतलब है कि पूरे देश के लिए एक समान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने के नियम एक ही होंगे। संविधान के अनुच्छेद-44 में सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू करने की बात कही गई है। अनुच्छेद-44 संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में शामिल है। इस अनुच्छेद का उद्देश्य संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य’ के सिद्धांत का पालन करना है। बता दें कि भारत में सभी नागरिकों के लिए एक समान ‘आपराधिक संहिता’ है, लेकिन समान नागरिक कानून नहीं है। समान नागरिक कानून का जिक्र 1835 में ब्रिटिश सरकार की एक रिपोर्ट में भी किया गया था। इसमें कहा गया था कि अपराधों, सबूतों और ठेके जैसे मुद्दों पर समान कानून लागू करने की जरूरत है। इस रिपोर्ट में हिंदू-मुसलमानों के धार्मिक कानूनों से छेड़छाड़ की बात नहीं की गई है।
हालांकि, 1941 में हिंदू कानून पर संहिता बनाने के लिए बीएन राव समिति का गठन किया गया। राव समिति की सिफारिश पर 1956 में हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और सिखों के उत्तराधिकार मामलों को सुलझाने के लिए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम विधेयक को अपनाया गया। हालांकि, मुस्लिम, ईसाई और पारसियों के लिए अलग कानून रखे गए थे। भारतीय संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव आंबेडकर ने कहा था कि हमारे पास पूरे देश में एक समान और पूर्ण आपराधिक संहिता है। ये दंड संहिता और आपराधिक प्रक्रिया संहिता में शामिल है। साथ ही हमारे पास संपत्ति के हस्तांतरण का कानून है, जो संपत्ति और उससे जुड़े मामलों से संबंधित है। ये पूरे देश में समान रूप से लागू है। इसके अलावा नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट हैं। उन्घ्होंने संविधान सभा में कहा कि मैं ऐसे कई कानूनों का हवाला दे सकता हूं, जिनसे साबित होगा कि देश में व्यावहारिक रूप से समान नागरिक संहिता है। इनके मूल तत्व समान हैं और पूरे देश में लागू हैं। डॉ. आंबेडकर ने कहा कि सिविल कानून विवाह और उत्तराधिकार कानून का उल्लंघन करने में सक्षम नहीं हैं। अभी समान नागरिक संहिता का हाल यह है कि भारतीय अनुबंध अधिनियम-1872, नागरिक प्रक्रिया संहिता, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम-1882, भागीदारी अधिनियम- 1932, साक्ष्य अधिनियम-1872 में सभी नागरिकों के लिए समान नियम लागू हैं। वहीं, धार्मिक मामलों में सभी के लिए कानून अलग हैं। इनमें बहुत ज्यादा अंतर है।
भारत जैसे विविधता वाले देश में इसको लागू करना इतना आसान भी नहीं है। देश का संविधान सभी को अपने-अपने धर्म के मुताबिक जीने की पूरी आजादी देता है। संविधान के अनुच्छेद-25 में कहा गया है कि कोई भी अपने हिसाब से धर्म मानने और उसके प्रचार की स्वतंत्रता रखता है। भारत का सामाजिक ढांचा विविधता से भरा हुआ है। हालात ये हैं कि एक ही घर के सदस्य अलग-अलग रीति-रिवाजों को मानते हैं। अगर आबादी के आधार पर देखें तो देश में हिंदू बहुसंख्यक हैं लेकिन, अलग राज्यों के हिंदुओं में ही धार्मिक मान्यताएं और रीति-रिवाजों में काफी अंतर देखने को मिल जाएगा। इसी तरह मुसलमानों में शिया, सुन्नी, वहावी, अहमदिया समाज में रीति रिवाज और नियम अलग हैं। ईसाइयों के भी अलग धार्मिक कानून हैं। वहीं, किसी समुदाय में पुरुष कई शादी कर सकते हैं। कहीं विवाहित महिला को पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं मिल सकता तो कहीं बेटियों को भी संपत्ति में बराबर का अधिकार दिया गया है। समान नागरिक संहिता लागू होते ही ये सभी नियम खत्म हो जाएंगे। हालांकि, संविधान में नगालैंड, मेघालय और मिजोरम के स्थानीय रीति-रिवाजों को मान्यता व सुरक्षा देने की बात कही गई है।
यूसीसी को लेकर राजनीतिक दलों का रुख भी अलग है। केंद्र में सत्तारूढ़ दल बीजेपी ने लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 के घोषणापत्र में समान नागरिक कानून बनाने का वादा किया था वहीं, शिवसेना नेता संजय राउत ने अगस्त 2019 में यूसीसी पर कहा था कि मोदी सरकार राजग में शिवसेना के उठाए मुद्दों को आगे बढ़ा रही है। ये देश हित का फैसला है। शिवसेना ने भाजपा को छोड़ कर जब कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन करके सरकार बनायी तब वहीं, इसका विरोध कर रहे हैं। एमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने अक्टूबर 2016 में कहा था कि यूसीसी सिर्फ मुसलमानों से जुड़ा मुद्दा नहीं है। पूर्वोत्तर के कुछ इलाकों के लोग भी इसका विरोध करेंगे। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का मानना है कि ये मुसलमानों पर हिंदू धर्म थोपने जैसा है। अगर इसे लागू कर दिया जाए तो मुसलमानों को तीन शादियों का अधिकार नहीं रहेगा। शरीयत के हिसाब से जायदाद का बंटवारा नहीं होगा।
ध्यान रहे कि शीर्ष अदालत अर्थात सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तलाक से जुड़े 1985 के चर्चित शाह बानो मामले में कहा था कि अनुच्छेद 44 एक ‘मृत पत्र’ जैसा हो गया है। साथ ही कोर्ट ने देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की जरूरत पर जोर दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि समान नागरिक संहिता विरोधी विचारधाराओं वाले कानून के प्रति असमान वफादारी को हटाकर राष्ट्रीय एकीकरण में मदद करेगी। बहुविवाह से जुड़े सरला मुद्गल बनाम भारत संघ मामले में शीर्ष अदालत ने कहा था कि पं. जवाहर लाल नेहरू ने 1954 में संसद में समान नागरिक संहिता के बजाय हिंदू कोड बिल पेश किया था। इस दौरान उन्होंने बचाव करते हुए कहा था कि यूसीसी को आगे बढ़ाने की कोशिश करने का यह सही समय नहीं है।
समान नागरिक संहिता के मामले में गोवा अपवाद है। गोवा में यूसीसी पहले से ही लागू है। बता दें कि संविधान में गोवा को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया है। वहीं, गोवा को पुर्तगाली सिविल कोड लागू करने का अधिकार भी मिला हुआ है। राज्य में सभी धर्म और जातियों के लिए फैमिली लॉ लागू है। इसके मुताबिक, सभी धर्म, जाति, संप्रदाय और वर्ग से जुड़े लोगों के लिए शादी, तलाक, उत्तराधिकार के कानून समान हैं। (हिफी)