अध्यात्म

पूर्वजों की आत्मा को मिलती है तृप्ति

(आर.एस. द्विवेदी-हिफी फीचर)
पितृपक्ष पितरों को समर्पित है। इस दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है। पंचांग के अनुसार पितृपक्ष की शुरुआत भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से होती है और अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर इसका समापन होता है। पितृपक्ष यानी श्राद्ध का हिंदू धर्म में विशेष महत्व होता है। पितृपक्ष के दौरान पूर्वजों को श्रद्धापूर्वक याद करके उनका श्राद्ध कर्म किया जाता है। पितृपक्ष में पितरों को तर्पण देने और श्राद्ध कर्म करने से उनको मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दौरान न केवल पितरों की मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाता है, बल्कि उनके प्रति अपना सम्मान प्रकट करने के लिए भी किया जाता है। पूर्वजों को श्रद्धापूर्वक याद करके उनका श्राद्ध कर्म किया जाता है। पितृपक्ष में पितरों को तर्पण देने और श्राद्ध कर्म करने से उनको मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दौरान न केवल पितरों की मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाता है, बल्कि उनके प्रति अपना सम्मान प्रकट करने के लिए भी किया जाता है। पितृपक्ष में श्रद्धा पूर्वक अपने पूर्वजों को जल देने का विधान है।
श्राद्ध का अर्थ श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों को प्रसन्न करने से है। सनातन मान्यता के अनुसार जो परिजन अपना देह त्यागकर चले गए हैं, उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए सच्ची श्रद्धा के साथ जो तर्पण किया जाता है, उसे श्राद्ध कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के देवता यमराज श्राद्ध पक्ष में जीव को मुक्त कर देते हैं, ताकि वे स्वजनों के यहां जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें। जिस किसी के परिजन चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित हों, बच्चा हो या बुजुर्ग, स्त्री हो या पुरुष उनकी मृत्यु हो चुकी है उन्हें पितर कहा जाता है। पितृपक्ष में मृत्युलोक से पितर पृथ्वी पर आते है और अपने परिवार के लोगों को आशीर्वाद देते हैं। पितृपक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए उनको तर्पण किया जाता है। पितरों के प्रसन्न होने पर घर पर सुख शान्ति आती है।
पितृपक्ष में हर साल पितरों के निमित्त पिंडदान, तर्पण और हवन आदि किया जाता है। सभी लोग अपने-अपने पूर्वजों की मृत्यु तिथि के अनुसारए उनका श्राद्ध करते हैं। माना जाता है कि जो लोग पितृपक्ष में पितरों का तर्पण नहीं करते उन्हेंक पितृदोष लगता है। श्राद्ध करने से उनकी आत्मों को तृप्ति और शांति मिलती है। वे आप पर प्रसन्न होकर पूरे परिवार को आशीर्वाद देते हैं। हर साल लोग अपने पितरों की आत्मार की शांति के लिए गया जाकर पिंडदान करते हैं। पितृ पक्ष में मृत व्यक्ति की जो तिथि होती है, उसी दिन श्राद्ध किया जाता है। श्राद्ध केवल पिता ही नहीं बल्कि अपने पूर्वजों का भी किया जाता है। जब कोई आपका अपना शरीर छोड़कर चला जाता है तब उसके सारे क्रियाकर्म करना जरूरी होता है, क्योंकि ये क्रियाकर्म ही उक्त आत्मा को आत्मिक बल देते हैं और वह इससे संतुष्ट होती है। प्रत्येक आत्मा को भोजन, पानी और मन की शांति की जरूरत होती है और उसकी यह पूर्ति सिर्फ उसके परिजन ही कर सकते हैं। परिजनों से ही वह आशा करती है। श्राद्ध में पितरों को आशा रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिण्ड दान तथा तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे। इसी आशा के साथ वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं। यही कारण है कि हिंदू धर्म शास्त्रों में प्रत्येक हिंदू गृहस्थ को पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य रूप से करने के लिए कहा गया है। अन्य कई कार्य भी श्रद्धापूर्वक किए जाते हैं। लेकिन यहां श्राद्ध का तात्पर्य पितृ पक्ष (अश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से अमावस्या तक) में पितरों के निमित्त किए जाने वाले तर्पण और पिंडदान से है।
पितृ पक्ष में घर-परिवार के मृत पूर्वजों को श्रद्धा से याद किया जाता है, इसे ही श्राद्ध कहा जाता है। पिंडदान करने का मतलब ये है कि हम पितरों के लिए भोजन दान कर रहे हैं। तर्पण करने का अर्थ यह है कि हम जल का दान कर रहे हैं। इस तरह पितृ पक्ष में इन तीनों कामों का महत्व है। पितृ पक्ष में किसी गौशाला में गायों के लिए हरी घास और उनकी देखभाल के लिए धन का दान करना चाहिए। किसी तालाब में मछलियों को आटे की गोलियां बनाकर खिलाएं। घर के आसपास कुत्तों को भी रोटी खिलानी चाहिए। इनके साथ ही कौओं के लिए भी घर की छत पर भोजन रखना चाहिए। जरूरतमंद लोगों को भोजन खिलाएं। किसी मंदिर में पूजन सामग्री भेंट करें। इन दिनों भागवत गीता का पाठ करना चाहिए।
पितृपक्ष के दौरान हमारे पितर धरती पर आकर हमें आशीर्वाद देते हैं। पितृ पक्ष में पितरों का श्राद्ध करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। हमारे पितृ पशु पक्षियों के माध्यम से हमारे निकट आते हैं और गाय, कुत्ता, कौवा और चींटी के माध्यम से पितृ आहार ग्रहण करते हैं। श्राद्ध के समय पितरों के लिए भी आहार का एक अंश निकाला जाता है, तभी श्राद्ध कर्म पूरा होता है। श्राद्ध करते समय पितरों को अर्पित करने वाले भोजन के पांच अंश निकाले जाते हैं गाय, कुत्ता, चींटी, कौवा और देवताओं के लिए। कुत्ता जल तत्त्व का प्रतीक है, चींटी अग्नि तत्व का, कौवा वायु तत्व का, गाय पृथ्वी तत्व का और देवता आकाश तत्व का प्रतीक हैं। इस प्रकार इन पांचों को आहार देकर हम पंच तत्वों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं। केवल गाय में ही एक साथ पांच तत्व पाए जाते हैं। इसलिए पितृ पक्ष में गाय की सेवा विशेष फलदाई होती है।
पितृपक्ष के दौरान प्रतिदिन पितरों के लिए तर्पण करना चाहिए। तर्पण के लिए आपको कुश, अक्षत, जौ और काला तिल का उपयोग करना
चाहिए। तर्पण करने के बाद पितरों से प्रार्थना करें और गलतियों के लिए क्षमा मांगें। (हिफी)

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