लेखक की कलम

बसपा को लेकर मायावती की नयी रणनीति

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
पिछले कुछ चुनावों में अप्रत्याशित हार की वजह से हाशिये पर पहुंची बहुजन समाज पार्टी को फिर से पुनर्जीवित करने के लिए बसपा सुप्रीमो मायावती ने नयी रणनीति बनाई हैं। मायावती ने बसपा के खोये जनाधार की वापसी, अखिलेश यादव के पीडीए फॉर्मूले की काट और चंद्रशेखर आजाद की बढ़ती लोकप्रियता को थामने के लिए कांशीराम के बामसेफ को पुनर्गठित करने की कवायद शुरू कर दी है। मायावती एक बार फिर उत्तर प्रदेश के हर जिले में बामसेफ को एक्टिव करने जा रही हैं। लखनऊ में 19 सितंबर को हुई अहम बैठक में मायावती ने यह फैसला लिया है। दरअसल यूपी में ओवैसी और दलित नेता चंद्रशेखर आजाद का नया मोर्चा सपा-बसपा की टेंशन बढ़ा सकता है। ऐसे में किसी मजबूत कैडर से ही राजनीतिक मैदान में मुकाबला किया जा सकता है। बामसेफ लगभग उसी तरह का संगठन है जैसे भाजपा को राश्ट्रीय स्वयं सेवक संघ हर प्रकार से मदद पहुंचाता है। बसपा के नये नायक आकाश आनंद जैसे युवा बामसेफ को नयी धार दे सकते हैं।
लखनऊ में संगठन को मजबूत करने के लिए बसपा की हुई महत्वपूर्ण बैठक में मायावती ने ऐलान किया कि प्रदेश के हर जिले में बामसेफ का पुनर्गठन किया जाएगा। इसके लिए हर जिले में एक उपाध्यक्ष के साथ 10 उपाध्यक्षों की तैनाती की जाएगी। इतना ही नहीं विधानसभा स्तर पर एक संयोजक की तैनाती की जाएगी। दरअसल, मायावती आगामी उपचुनाव में इस प्रयोग को लागू कर परिणाम देखना चाहती हैं। अगर परिणाम सुखद रहे तो 2027 तक बामसेफ को मजबूती प्रदान की जाएगी। इतना ही नहीं कांशीराम की जन्मतिथि 8 अक्टूबर को मायावती लखनऊ में बड़ा कार्यक्रम कर इसका सार्वजनिक ऐलान भी कर सकती हैं।
दरअसल, जानकारों का मानना है कि मायावती बामसेफ को एक्टिव कर समाजवादी पार्टी के पीडीए वाली राजनीति को कुंद करना चाहती हैं तो वहीं दलित युवाओं में चंद्रशेखर आजाद की बढ़ती लोकप्रियता को भी थामना चाहती हैं। क्योंकि बसपा को उत्तर प्रदेश की सत्ता तक पहुंचाने में बामसेफ यानी बैकवर्ड एंड माइनॉरिटी कम्युनिटीज एंप्लाई फेडरेशन का बड़ा हाथ रहा है। इसकी स्थापना कांशीराम ने 1971 में की थी। हालांकि बसपा के गठन के बाद उन्होंने खुद को बामसेफ से अलग कर लिया था लेकिन मायावती के राष्ट्रिय अध्यक्ष बनने के बाद बामसेफ कमजोर पड़ता गया। बामसेफ ठीक उसी तरह से बसपा के लिए काम करता है जैसे बीजेपी के लिए आरएसएस काम करता है। इसके सदस्य दलित, अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्ग के शिक्षित कर्मचारी व अधिकारी होते हैं जो समाज को जाति व्यवस्था और उत्पीड़न के खिलाफ एकजुट करने का काम करते हैं। एक समय में बसपा की मजबूती के पीछे बामसेफ का ही हाथ था। अब एक बार फिर से मायावती बामसेफ के जरिए बसपा को संजीवनी देना चाह रही हैं।
उत्तर प्रदेश विधानसभा उपचुनाव में एनडीए और इंडिया गठबंधन के बीच तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट ने प्रदेश का सियासी माहौल दिलचस्प बना दिया है। चंद्रशेखर आजाद और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी आगामी विधानसभा उपचुनाव में मतदाताओं के सामने एक नया विकल्प देने जा रही है। आजाद समाज पार्टी और एआईएमआईएम के बीच गठबंधन की बात चल रही है। अगर यह गठबंधन धरातल पर उतरता है तो उपचुनाव में समीकरण लोकसभा चुनाव से अलग होने वाले हैं। ओवैसी-चंद्रशेखर का यदि तीसरा मोर्चा राज्य में पनपता है तो सपा-बसपा की टेंशन बढ़ना तय है। बीजेपी और कांग्रेस के लिए भी यह गठबंधन मुश्किलें पैदा कर सकता है। दरअसल, चंद्रशेखर आजाद और ओवैसी दलित-मुस्लिम को साधने की जुगत लेकर मैदान में उतरने वाले है और इस मोर्चे की
नजर सामान्य व ओबीसी वोटों पर भी होगी।
आजाद समाज पार्टी के प्रदेश
अध्यक्ष सुनील चित्तौढ़ के मुताबिक पार्टी एआईएमआईएम के साथ गठबंधन कर सकती है। इसके लिए दोनों दलों के शीर्ष नेतृत्व की पहले राउंड की वार्ता हो चुकी है। अब प्रदेश स्तर के पदाधिकारियों की मीटिंग में सीटवार मंथन होगा। सब कुछ सही रहा तो दोनों दल मिलकर उपचुनाव की 10 सीटों पर प्रत्याशी उतारेंगे। वहीं इस नए मोर्चे को लेकर राजनीतिक कयासों का बाजार गर्म हो गया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि चंद्रशेखर आजाद और ओवैसी के बीच गठबंधन फाइनल होता है तो उपचुनाव में सबसे ज्यादा प्रभाव सपा और बसपा पर पड़ेगा। वहीं कांग्रेस को यदि सपा का सहारा न मिला तो उसकी स्थिति पूर्व के चुनावों वाली होने के आसार हैं।
यूपी उपचुनाव में नेशनल कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद की सभाओं की मांग हो रही है। हरियाणा में बसपा के चुनावी प्रचार का कलेवर उन्होंने बदल दिया है ।बसपा के नेशनल कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद की प्रदेश की 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में प्रचार के लिए डिमांड हो रही है। पार्टी कार्यकर्ता हरियाणा चुनाव में आकाश के तेवर और प्रचार के उनके अंदाज को देखकर उत्साहित हैं और उन्हें यूपी के उपचुनावों में प्रचार की कमान सौंपने की मांग कर रहे हैं। फिलहाल पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल ने चुनाव प्रचार की कमान संभाल रखी है। पार्टी सूत्रों की मानें तो बसपा विधानसभा में अपनी उपस्थिति बढ़ाने के लिए उपचुनाव में पूरा दम लगा रही है। पार्टी ने सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी तय कर दिए हैं, जिनका उपचुनाव की तारीख की घोषणा के बाद औपचारिक रूप से एलान कर दिया जाएगा। पार्टी में मायावती के बाद दूसरे नंबर के नेता बनते जा रहे आकाश आनंद को हरियाणा चुनाव की कमान सौंपना सही फैसला साबित हो रहा है। वहां उन्होंने इंडियन नेशनल लोकदल के साथ गठबंधन को सफलतापूर्वक अमली जामा पहनाया और अपने प्रचार से सुर्खियों में भी बने हैं। चुनाव प्रचार के लिए उन्होंने पहली बार रथ भी तैयार कराया है। इससे उनकी यूपी में उपचुनाव से पहले वापसी हो सकती है। बता दें, लोकसभा चुनाव के बाद बसपा सुप्रीमो ने आकाश आनंद को नेशनल कोआर्डिनेटर के पद से हटा दिया था। चुनाव नतीजे आने के बाद उनकी पार्टी में वापसी तो हुई, लेकिन यूपी और उत्तराखंड की जिम्मेदारी नहीं दी गई। लोकसभा चुनाव के दौरान मायावती के बाद आकाश आनंद की जनसभाओं की सबसे ज्यादा मांग रही। हालांकि, सीतापुर में एक भड़काऊ भाषण देने पर उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज हो गया था जिसके बाद मायावती ने नाराजगी जताते हुए उनसे सारी जिम्मेदारी वापस ले ली थी।
बसपा सुप्रीमो मायावती ने केंद्रीय कैबिनेट के श्एक देश-एक चुनावश् के मंजूर किए गए प्रस्ताव का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि इस व्यवस्था के तहत देश में लोकसभा, विधानसभा व स्थानीय निकाय का चुनाव एक साथ कराने वाले प्रस्ताव पर बसपा का स्टैंड सकारात्मक है, लेकिन इसका उद्देश्य देश व जनहित होना जरूरी है। बसपा ने ये बयान पार्टी की लखनऊ में आयोजित बैठक के बाद जारी किया।बसपा ने बृहस्पतिवार को पार्टी के जनाधार को बढ़ाने और उपचुनाव की समीक्षा करने सहित कई मुद्दों पर चर्चा के लिए लखनऊ में बैठक बुलाई जिसमें पार्टी की राज्य इकाई के छोटे-बड़े सभी पदाधिकारी व जिलाध्यक्ष शामिल हुए। (हिफी)

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