आतिशी की खड़ाऊँ सरकार

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
भरत बनकर राज सिंहासन पर खड़ाऊं रख सरकार चलाना आसान नहीं है। मदनलाल खुराना उमा भारती और अभी हाल में झारखंड के चंपई सोरेन का किस्सा राजनीति में उदाहरण बने हैं। तमिलनाडु में पेन्नीर सेल्वम ने जरूर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर जयललिता की चरण पादुका रखकर सरकार चलायी थी। उस दौरान कैबिनेट की बैठक में भी जयललिता की तस्वीर रखी जाती थी। अब दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं आतिशी ने मुख्यमंत्री की कुर्सी खाली छोड़कर यही संदेश दिया है कि वह भरत की तरह अरविंद केजरीवाल के खड़ाऊं रखकर पांच महीने तक सरकार चलाएंगी। ध्यान रहे कि फरवरी 2025 में दिल्ली विधानसभा के चुनाव होने हैं। नेताओं की विश्वसनीयता इससे भी परखी जाती है। आतिशी इसमें कितना सफल रहती हैं यह तो भविष्य ही बताएगा।
दिल्ली की नई मुख्यमंत्री के रूप में आतिशी ने 21 सितंबर को शपथ ली। दिल्ली के उप-राज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने राजनिवास में आतिशी को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। आतिशी के अगुवाई वाली दिल्ली सरकार में आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता गोपाल राय, मुकेश अहलावत, इमरान हुसैन, सौरभ भारद्वाज, कैलाश गहलोत ने मंत्री पद की शपथ ली है। शपथग्रहण के कुछ ही घंटों बाद दिल्ली सरकार के मंत्रियों को विभागों का बंटवारा भी कर दिया गया। दिल्ली की सीएम आतिशी के पास शिक्षा, वित्त, ऊर्जा, जल, सहित पहले से मौजूद सभी 13 विभाग रहेंगे। इसी तरह से सौरभ भारद्वाज के पास स्वास्थ्य, शहरी विकास और समाज कल्याण सहित आठ विभागों की जिम्मेदारी होगी। वहीं, गोपाल राय के पास पर्यावरण सहित तीन विभाग, कैलाश गहलोत के पास ट्रांसपोर्ट, महिला बाल विकास सहित चार विभाग, इमरान हुसैन के पास फूड सप्लाई और चुनाव विभाग, जबकि मुकेश अहलावत दिल्ली के एस/एसटी मंत्री बनाए गए हैं, जिनके पास श्रम सहित सहित चार और विभागों का जिम्मा होगा। इस बीच, दिल्ली के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ग्रहण के बाद आतिशी ने जनता से अगले चुनाव में एक बार फिर अरविंद केजरीवाल को चुनने की अपील की है। उन्होंने कहा, “अगर अरविंद केजरीवाल को नहीं चुना गया, तो भाजपा दिल्ली की जनता का हाल बुरा कर देगी, ना उन्हें मुफ्त बिजली मिलेगी और ना ही मुफ्त पानी। अरविंद केजरीवाल मेरे बड़े भाई हैं, गुरु हैं। उन्होंने मुझे आज इतना बड़ा मौका दिया, इसके लिए उन्हें बहुत-बहुत धन्यवाद, लेकिन यह मेरे लिए और हम सबके लिए एक बहुत भावुक क्षण है।” उन्होंने कहा, “अरविंद केजरीवाल ने बीते 10 सालों में दिल्ली के आम लोगों के दर्द को अपना समझा है। दिल्ली की जनता के लिए उन्होंने मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, महिलाओं के लिए बसों में मुफ्त यात्रा, महिला सुरक्षा के लिए बसों में मार्शल की तैनाती करना जैसे बहुत महत्वपूर्ण काम किए हैं। अरविंद केजरीवाल को पीएमएलए कोर्ट में जमानत मिलना आसान नहीं था। उन्हें जमानत देकर सुप्रीम कोर्ट ने बहुत बड़ा उदाहरण दिया है।”
उन्होंने पद सँभालने के बाद वीडियो सन्देश में खुद को भरत बताते हुए राम की खडाऊं रखकर शासन करने वाले भरत का जिक्र किया और पास में एक खाली कुर्सी रखते हुए कहा कि मुख्यमंत्री की ये कुर्सी अरविंद केजरीवाल का इंतजार करेगी, आतिशी के वीडियो बाहर आते ही सोशल मीडिया पर मनमोहन सिंह ट्रेंड होने लगा।
आतिशी ने मुख्यमंत्री बनते ही अपने कार्यालय में पहला जो काम किया उससे एक बाद फिर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नाम की चर्चा सोशल मीडिया पर शुरू हो गई। कहा जाता है कि मनमोहन सिंह जब भारत के प्रधानमंत्री थे तब पावर सोनिया गांधी के हाथ में थी, भाजपा और अन्य विपक्षी दल मनमोहन सिंह को डमी या फिर रबर स्टाम्प सीएम कहते थे, सोशल मीडिया पर बहुत से ऐसे वीडियो और फोटो मौजूद हैं जहाँ भारत में आने वाले दूसरे देशों के राष्ट्र प्रमुख तक पहले सोनिया गांधी से मिलते थे और उनके पास मनमोहन सिंह खड़े होते थे और यही विपक्ष को मनमोहन सिंह हमला करने का मौका देते थे।
अब एक बार फिर दिल्ली में यही सब हो रहा है। मुख्यमंत्री आतिशी ने पदभार ग्रहण करने के बाद 24 सितंबर को कैबिनेट मंत्रियों और सभी
विभागाध्यक्षों के साथ बैठक भी की। इस बैठक में उन्होंने अपने चार महीने के एजेंडे के बारे में विस्तार से बताया और कहा कि उनकी प्राथमिकता जनता के काम हैं और इसमें किसी भी तरह की कोताही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
पंजाबी राजपूत समुदाय से आने वाली आतिशी दिल्ली की नई मुख्यमंत्री होंगी। आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया है। आतिशी अपनी समुदाय की पहली सदस्य है, जो इस कुर्सी तक पहुंची हैं, उन्होंने साफ कर दिया कि जनता के काम उनकी प्राथमिकता है और इसमें वह किसी तरह की कोताही बर्दाश्त नहीं करेंगी।
आतिशी की खड़ाऊँ सरकार की आलोचना भले हो रही है लेकिन यह काम भी आसान नहीं है। इसी दिल्ली में भाजपा के कड़क नेता मदनलाल खुराना को कटु अनुभव हो चुका है। अपने निधन से कुछ पहले दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना सक्रिय राजनीति से दूर थे, लेकिन एक समय ऐसा भी था जब उनकी मर्जी के बिना दिल्ली भाजपा में एक पत्ता तक नहीं हिलता था। दिल्ली भाजपा में उनकी गिनती कद्दावर नेताओं में होती थी। यही वजह थी कि वह 1993 से लेकर 1996 तक दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे थे। इसके बाद जब भाजपा केंद्र में सत्ता में आई तो साल 2004 में वह राजस्थान के राज्यपाल भी बने। हालांकि वाजपेयी सरकार के जाने के बाद उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया था। कभी टीचर भी रहे मदनलाल खुराना के दिल्ली में विकास के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। खुराना उस दिन संसद में थे बीजेपी की दो दिन की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में हिस्सा लेने के लिये। ये बैठक संसद की एनेक्सी में हो रही थी तभी उन्हें फौरन 28 अकबर रोड जाने को कहा गया। ये दिल्ली के पुलिस कमिश्नर और बाद में कांग्रेसी नेता बने निखिल कुमार का घर था। यहां मौजूद थे पीके दवे. दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर। खुराना को दवे को अपना इस्तीफा सौंपने को कहा गया। वजह, सीबीआई का कोर्ट में बयान, जिसमें एजेंसी ने कहा कि हम जल्द मदनलाल खुराना के खिलाफ जैन हवाला मामले में चार्जशीट पेश करने जा रहे हैं।
इस मुश्किल में भी एक तबका था पार्टी का जो खुराना का सपोर्ट कर रहा था। इसे लीड कर रहे थे मुरली मनोहर जोशी। उन्होंने कहा कि इस्तीफा देकर हम नरसिम्हा राव के जाल में फंस चुके हैं। मगर जोशी के पहले ही आडवाणी और बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष यशवंत सिन्हा अपने अपने पदों से इस्तीफा दे चुके थे। ऐसे में 22 फरवरी को आडवाणी की सलाह पर, जिसे 10 बरस बाद खुराना अपनी सबसे बड़ी भूल बताने वाले थे, खुराना ने इस्तीफा दे दिया। उनकी जगह उनकी पसंद के हर्षवर्धन के बजाय विधायक दल के बहुमत के आधार पर धुर विरोधी साहिब सिंह वर्मा सीएम बन गए। उधर 1997 के आखिर तक एक-एक कर जैन हवाला मामले के केस कोर्ट में औंधे मुंह गिरने लगे। खुराना भी बरी हो गए। उन्हें लगा कि एक बार फिर दिल्ली के सीएम का ताज सिर सजेगा। खुराना खेमे के विधायकों ने साहिब सिंह और संगठन पर दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया। मगर लालकृष्ण आडवाणी इसके लिए राजी नहीं हुए। फिर आ गए मार्च, 1998 में लोकसभा चुनाव। खुराना को दिल्ली सदर से चुनाव लड़ने को कहा गया। वह जीते तो अटल कैबिनेट में मिनिस्टर बनाए गए लेकिन नजर अब भी दिल्ली पर थी। राज्य में चुनाव से लगभग 50 दिन पहले आखिर साहिब सिंह वर्मा का इस्तीफा हुआ मगर उन्होंने जाने से पहले शर्त रख दी, खुराना नहीं आने चाहिए। ऐसे में सुषमा स्वराज कंप्रोमाइज कैंडिडेट हो गईं। मदनलाल खुराना को सीएम की कुर्सी नहीं मिल सकी। (हिफी)