अध्यात्म

दक्षिण भारत में कुमारी मंदिर समेत कई शक्तिपीठ

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
आमतौर पर उत्तर भारत में कश्मीर से लेकर हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड देवी देवताओं के ही प्रदेश कहे जाते हैं लेकिन पूर्वी व दक्षिण भारत में भी कुमारी मंदिर समेत कई शक्तिपीठ हैं। कुमारी मंदिर कन्या कुमारी के पास है। दक्षिण भारत और पूर्वी भारत के शक्तिपीठों का यहां हम संछेप में परिचय कराएंगे।
पूर्वी भारत के पश्चिम बंगाल में फुल्लारा देवी शक्तिपीठ है। पश्चिम बंगाल के अट्टहास में माता सती के होंठ गिरे थे। यहां माता फुल्लारा देवी कहलाती हैं। इसीप्रकार यहीं नंदीपुर शक्तिपीठ भी है। पश्चिम बंगाल के नंदीपुर में माता सती का हार गिरा था। यहां मां नंदनी की पूजा की जाती है। इसी प्रदेश में युगाधा शक्तिपीठों। माना जाता है कि वर्धमान जिले के ही क्षीरग्राम में माता के दायें हाथ का अंगूठा गिरा। इस स्थान पर माता का शक्तिपीठ बन गया, जहां उन्हें देवी जुगाड्या के नाम से पुकारा जाता है। यहां के कलिका देवी शक्तिपीठ की भी बहुत मान्यता है। शक्तिपीठों की मान्यताओं के मुताबिक, कालीघाट में माता के दाएं पैर की अंगूठा गिरा था। वे मां कालिका के नाम से यहां जानी जाती हैं। पौराणिक आख्यानों के अनुसार कांची देवगर्भ शक्तिपीठ में लोगों की मनोकमना पूरी होती है। पश्चिम बंगाल के कांची में देवी की अस्थि गिरी थीं। यहां माता देवगर्भ रूप में स्थापित हैं।
अब बात करें दक्षिण भारत में स्थित शक्तिपीठों की, तो तमिल नाडु में माता की पीठ गिरी थी। इस स्थान पर माता का कन्याश्रम, भद्रकाली मंदिर और कुमारी मंदिर स्थित है। उन्हें श्रवणी नाम से पुकारा जाता है। यहां शुचि शक्तिपीठों है। तमिलनाडु में कन्याकुमारी के पास शुचि तीर्थम शिव मंदिर स्थित है। यहां भी माता का शक्तिपीठ है, जहां उनकी ऊपरी दाढ़ गिरी थी। माता को यहां नारायणी नाम मिला है। विमला देवी शक्तिपीठ उड़ीसा में हम। यहां के उत्कल में देवी की नाभि गिरी थी। यहां माता विमला नाम से जानी जाती हैं। सर्वशैल रामहेंद्री शक्तिपीठआंध्र प्रदेश में है। यहां दो शक्तिपीठ हैं। एक सर्वशैल रामहेंद्री शक्तिपीठ, जहां माता के गाल गिरे थे। इस स्थान पर भक्त माता के राकिनी और विश्वेश्वरी स्वरूप की पूजा करते हैं। दूसरी है श्रीशैलम शक्तिपीठ। यह शक्तिपीठ कुर्नूर जिले में स्थापित है। श्रीशैलम शक्तिपीठ में माता सती के दाएं पैर की पायल गिरी थी। यहां माता श्री सुंदरी के नाम मसे विख्यात हैं। कर्नाट शक्तिपीठ कर्नाटक में है। मान्यता है कि यहां देवी सती के दोनों कान गिरे थे। इस स्थान पर माता का जय दुर्गा स्वरूप पूज्यनीय है।
देवी कामाख्या शक्तिपीठ के बारे में सभी जानते हैं। असम का काला जादू इसी मंदिर के नाम से दुनिया भर में मशहूर हुआ। प्रसिद्ध शक्तिपीठों में गुवाहाटी के नीलांतल पर्वत पर स्थित कामाख्या जी कह मंदिर है। कामाख्या में माता की योनि गिरी थी। यहां माता के कामाख्या स्वरूप की पूजा होती है। मां भद्रकाली देवीकूप मंदिर हरियाणा के कुरुक्षेत्र में है। यहां माता का दायां टखना गिरा था। यहां मां भद्रकाली के स्वरूप की पूजा होती है। भारत के बंटवारे के बाद कुछ शक्तिपीठ दूसरे देशों में चली गयी हैं। ऐसी ही शक्तिपीठ चट्टल भवानी शक्तिपीठ है। पहले पूर्वी पाकिस्तान और अब बांग्लादेश के चिट्टागौंग जिले में चंद्रनाथ पर्वत पर चट्टल भवानी शक्तिपीठ है। यहां माता सती की दायीं भुजा गिरी थी। इसी प्रकार सुगंधा शक्तिपीठ भी बांग्लादेश के शिकारपुर से 20 किमी दूर स्थित है। माना जाता है कि यहां माता की नासिका गिरी थी। इस शक्तिपीठ में माता को सुगंधा कहा जाता है। इस शक्तिपीठ का एक अन्य नाम उग्रतारा शक्तिपीठ है।
जयंती शक्तिपीठ भी बांग्लादेश के सिलहट जिले में जयंतिया परगना में हम। यहां माता की बाईं जांघ गिरी थी। यहां माता देवी जयंती नाम से स्थापित हैं। श्रीशैल महालक्ष्मी शक्तिपीठ भी बांग्लादेश के सिलहट जिले में हम। यहां माता सती का गला गिरा था। इस शक्तिपीठ में महालक्ष्मी स्वरूप की पूजा होती है। यशोरेश्वरी माता शक्तिपीठ बांग्लादेश के खुलना जिले में यशोर नाम की जगह स्थित है। मान्यता है कि यहां मां सती की बाईं हथेली गिरी थी।
हमारे पड़ोसी देश श्रीलंका नेपाल पाकिस्तान और तिब्बत में भी आदिशक्ति मां की शक्तिपीठ स्थित है। श्रद्धावानों की मनोकामना पूरी करने वाली इन्द्राक्षी शक्तिपीठ श्रीलंका के मनोका स्थित नल्लूर में है। देवी की उपासना विदेश में भी होती है। श्रीलंका के लोगों का विश्वास है कि यहां देवी की पायल गिरी थी। इस शक्तिपीठ को इन्द्राक्षी कहा जाता है। इसी प्रकार गुहेश्वरी शक्तिपीठ नेपाल में है। यहां के विश्व विख्यात पशुपतिनाथ मंदिर से कुछ दूरी पर बागमती नदी के किनारे यह शक्तिपीठ है। यहां मां सती के दोनों घुटने गिरे थे। यहां शक्ति के महामाया या महाशिरा रूप की पूजा होती है। आद्या शक्तिपीठ भी नेपाल में स्थापित है । गंडक नदी के पास आद्या शक्तिपीठ है। मान्यता है कि इस स्थान पर माता सती का बायां गाल गिरा था। यहां माता के गंडकी चंड़ी स्वरूप की पूजा होती है। दंतकाली शक्तिपीठ भी नेपाल के बिजयापुर गांव में है। माना
जाता है कि यहां माता सती के दांत गिरे थे। इस कारण इस शक्तिपीठ को दन्तकाली शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है।
मनसा शक्तिपीठ तिब्बत में मानसरोवर नदी के पास स्थित है । यहां माता सती की दाईं हथेली गिरी थी। यहां उन्हें माता दाक्षायनी कहा जाता है। माता यहां एक शिला के रूप में स्थापित हैं। मिथिला शक्तिपीठ भारत और नेपाल की सीमा पर है। यहां माता सती का बायां कंधा गिरा था। यहां माता को देवी उमा कहा जाता है। अंतिम शक्तिपीठ हिंगुला शक्तिपीठ है जो पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थापित है। देवी हिंगुला शक्तिपीठ में नवरात्र में श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए यहां बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। इस शक्तिपीठ में माता को हिंगलाज देवी के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि यहां माता सती का सिर गिरा था। इस प्रकार माता सती के अंग और आभूषण जहां जहां गिरे वहां शक्तिपीठ हैं। इससे प्राचीन भारत के भूगोल का भी संकेत मिलता है कि कितने विस्तृत भूखंड में आर्यावर्त का भरतखंड हुआ करता था। (हिफी)

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