भाजपा ने हरियाणा में रचा इतिहास

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
हरियाणा में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों का 8 अक्टूबर को ऐलान हो गया है। मतगणना की शुरुआत से चुनाव के अंतिम नतीजे तक ऐसा उलटफेर हुआ कि सभी भौंचक रह गये। नतीजों के रुझान में कांग्रेस 60 सीटों तक पहुंच गई थी लेकिन अंत में 37 सीटों पर सिमट गयी। बहरहाल बीते दस साल से हरियाणा की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला हुआ है। राज्य की 90 सदस्यीय विधानसभा की ज्यादातर सीटों पर भाजपा और कांग्रेस कैंडिडेट आमने-सामने रहे हैं। एग्जिट पोल और चुनावी पंडितों की भविष्यवाणियों को झुठलाते हुए बीजेपी राज्य में पूर्ण बहुमत हासिल करने में सफल रही है। भाजपा को 48 सीटों पर सफलता मिली है जबकि सरकार बनाने के लिए 46 विधायकों की जरूरत होती है। पिछली बार भाजपा को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। उसने निर्दलीयों और जननायक जनता पार्टी जेजेपी की मदद से सरकार बनायी थी। इसबार जेजेपी को एक भी सीट नहीं मिल पायी है । दुश्यंत चौटाला और अभय चौटाला जैसे दिग्गज नेता चुनाव में पराजित हो गये हैं। ओमप्रकाश चौटाला की इंडियन नेशनल लोकदल इनेलो और बसपा ने गठबंधन कर चुनाव लड़ा था। इस गठबंधन को तीन विधायक मिले हैं। हरियाणा में यह पहला अवसर है जब कोई पार्टी लगातार तीसरी बार सरकार बना रही है।
ऐसे में सवाल उठ रहा है कि बीजेपी ने बाजी को अपने पक्ष में कैसे किया। हरियाणा के चुनाव में छत्तीस जातियों की बात हमेशा होती है। छत्तीस जातियां मिलकर ही हरियाणा की सामाजिक संरचना बनाती हैं। चुनाव में भी सभी पार्टियां जातिगत समीकरणों पर भरोसा करती रही हैं। इस चुनाव की बात करें तो कांग्रेस मुख्य रूप से जाटों पर निर्भर दिखी, जो आबादी का करीब 22 फीसदी हिस्सा है। इसकी वजह किसान आंदोलन के बाद जाटों की भाजपा से नाराजगी भी रही। वहीं करीब 21 फीसदी दलित और अल्पसंख्यक वोटों (मुस्लिम और सिख) पर कांग्रेस की निगाह रही।कांग्रेस जहां जाट-दलित समीकरण बनाती दिखी तो दूसरी ओर भाजपा ने गैर-जाटों, मुख्य रूप से अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को एकजुट करने पर ध्यान केंद्रित किया। हरियाणा में ओबीसी की आबादी करीब 35
फीसदी है। भाजपा ने अपने परंपरागत सवर्ण वोट के साथ गैर जाट वोटों
को साधा। साथ ही कई अभियान चलाकर अनुसूचित जाति तक भी पहुंचने की कोशिश की और कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया। इसने भाजपा को सीधा फायदा पहुंचाया और हरियाणा में हैट्रिक लगाकर भाजपा ने इतिहास रच दिया। हरियाणा में पहली बार किसी दल ने लगातार तीसरी बार सरकार बनायी है।
हरियाणा में अगर कांग्रेस के अलावा दूसरे दलों की बात की जाए तो इनेलो-बसपा गठबंधन और जेजेपी-असपा गठबंधन भी मुकाबले में था। दोनों ही गठबंधन बहुत बड़ा फर्क पैदा करने में नाकाम रहे लेकिन ये भी दिलचस्प बात है कि ये दोनों ही गठबंधन दलित और जाटों के भरोसे थे। जेजेपी और इनेलो जाटों पर तो असपा और बसपा दलितों पर निर्भर पार्टियां हैं। ऐसे में करीबी मुकाबलों वाली सीटों पर ये गठबंधन भाजपा के बजाय कांग्रेस के लिए ही नुकसानदेह साबित हुए। इससे कहीं न कहीं भाजपा को फायदा हुआ और कांग्रेस को नुकसान हुआ।हरियाणा में बहुमत के लिए 46 सीटों की जरूरत है और बीजेपी ने 48 सीटों पर सफलता प्राप्त कर ली । हरियाणा में 2019 के चुनाव में 10 सीटें जीतने वाली जेजेपी इस बार जीरो पर सिमट गई है। वहीं हरियाणा के दो पड़ोसी राज्यों में सरकार बनाने वाली आम आदमी पार्टी भी हरियाणा में कोई सीट नहीं जीत सकी है। हरियाणा में भाजपा और कांग्रेस के बाद तीन सीटों पर निर्दलीय काबिज हो गये हैं। बसपा और इनेलो को भी तीन विधायक मिले हैं। ऐसा माना जा सकता है कि कांग्रेस को जिस तरह से भाजपा सरकार के खिलाफ जनता के गुस्से का फीडबैक मिला उसे लेकर वो बहुत ओवर कॉन्फिडेंस में थी। यही ओवर कॉन्फिडेंस उसे दलित मतदाताओं से दूर ले गया। दलित नेता कुमारी सैलजा भले ही राहुल गांधी के मनाने पर चुनाव प्रचार करने लगती थीं लेकिन उनकी नाराजगी दलित मतदाताओं तक पहुंच ही गयी होगी। बसपा और आम आदमी पार्टी आप ने बाकी कसर पूरी कर दी। यही कारण रहा कि कांग्रेस रुझान में शिखर पर पहुंचने के बावजूद नीचे ढुलक गयी।
भारतीय जनता पार्टी ने हरियाणा में कांग्रेस की उम्मीदों को तोड़ते हुए और 10 साल की कथित सत्ता विरोधी लहर को बेअसर करते हुए शानदार जीत हासिल की और सत्ता की ‘हैट्रिक’ लगाई। हरियाणा विधानसभा चुनाव से महज छह महीने पहले मनोहर लाल खट्टर को अप्रत्याशित रूप से हटाकर मुख्यमंत्री बनाए गए 54 वर्षीय नायब सिंह सैनी के अब अपने पद पर बने रहने की संभावना है। इसकी साल जून में लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद हरियाणा में भाजपा और कांग्रेस के बीच हुई पहली बड़ी सीधी लड़ाई में सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा ने 90 में से 48 सीट पर जीत दर्ज की जबकि 2019 में उसे 41 सीट मिली थीं। भाजपा लोकसभा चुनाव में मिले झटके से भी उबरती नजर आई क्योंकि 2019 में उसने सभी 10 सीट पर जीत दर्ज की थी जो 2024 के चुनाव में घटकर पांच रह गई थीं।
हरियाणा विधानसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस को ‘इंडिया’ गठबंधन के अपने सहयोगी दलों से महाराष्ट्र, झारखंड और दिल्ली में अगले दौर के विधानसभा चुनाव से पहले अपनी चुनावी रणनीति पर पुनर्विचार करने के लिए कुछ सलाह मिली। आम आदमी पार्टी (आप) संयोजक अरविंद केजरीवाल ने कहा कि चुनाव परिणामों का सबसे बड़ा सबक यह है कि चुनाव में कभी भी अति आत्मविश्वासी नहीं होना चाहिए। ध्यान रहे कि कांग्रेस की हरियाणा इकाई के प्रमुख, विधानसभा अध्यक्ष और पूर्व उपमुख्यमंत्री उन प्रमुख नेताओं में शामिल हैं जो हरियाणा विधानसभा चुनाव में अपनी सीट पर हार गए। इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के नेता अभय सिंह चौटाला और भाजपा के भव्य बिश्नोई भी हारने वालों में शामिल हैं।
हरियाणा विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की जीत पर पार्टी के राज्य मुख्यालय में कार्यकर्ताओं ने जीत का जश्न मनाते हुए आतिशबाजी की और एक दूसरे को मिठाई खिलाई। पार्टी मुख्यालय पर हुए विजयोत्सव में पार्टी के पदाधिकारी सहित अन्य प्रमुख नेता व बड़ी संख्या में पार्टी कार्यकर्ता शामिल हुए। भाजपा ने हरियाणा विधानसभा चुनाव के इतिहास में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया और 48 सीटों पर जीत दर्ज की। इससे पहले, भाजपा ने 2014 विधानसभा चुनाव में 47 सीटें जीतकर पहली बार अपने बूते हरियाणा में सरकार बनाई थी। वहीं 2019 विधानसभा चुनाव में पार्टी को 40 सीटों पर ही सफलता मिली थी। (हिफी)