अमेरिका के चुनाव पर अब है नजर

इस साल अब तक दुनिया के 67 देश जिनकी कुल आबादी 3।4 बिलियन है वहां राष्ट्रीय स्तर के चुनाव, आसान भाषा में समझें तो लोकसभा चुनाव हो चुके हैं। साल के खत्म
होने से पहले अलग-अलग देशों में कुल 440 मिलियन लोग अभी और चुनाव में भाग लेंगे। अमेरिका के चुनाव पर पूरी दुनिया की नजर है। एक तरफ पूर्व प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप हैं तो दूसरी तरफ कमला हैरिस, दोनों के बीच मुकाबला काफी टफ लग रहा है। दुनिया भर के देशों को लोकतंत्र का पाठ पढ़ाने वाले और उसके लिए जंग तक लड़ने वाले अमेरिका का लोकतंत्र कितना मजबूत है इसकी परीक्षा इस बार होनी है। मध्य पूर्वी देशों में चल रहे युद्ध के कारण अमेरिकी चुनाव का महत्व बढ़ गया है। पूरी दुनिया इस बात को लेकर सोच में पड़ी है कि खुद को दुनिया का बॉस कहने वाली अमेरिका का अगला प्रेसिडेंट कैसे इजराइल-हमास जंग को रोकेगा और दुनिया में शांति स्थापित करेगा।
अमेरिकन थिंक टैंक फ्रीडम हाउस के मुताबिक इस साल दुनियाभर में वोट करने वाले हर तीन व्यक्ति में से एक ऐसे देश में रहता है जहां पिछले पांच सालों में निष्पक्षता से चुनाव कराने के स्तर में भारी गिरावट आई है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या चुनाव में वोटर्स को प्रभावित किया जा रहा है। दुनिया भर के चुनावी एक्सपर्ट इस बात को लेकर चिंता जताते हैं कि आज मिसइनफॉर्मेशन या फेक न्यूज के साथ ही वोटरों को प्रभावित या भ्रमित करने के लिए इस्तेमाल हो रहा है, लेकिन कैविन कैसिस जमोरा ने द इकोनॉमिस्ट से बात करते हुए बताया कि ऐसा नहीं है। वो इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस के साथ काम करते हैं। ये संगठन दुनिया भर में लोकतांत्रिक संस्थाओं और प्रक्रियाओं को मजबूत करने के लिए काम करती है। कैविन कैसिस जमोरा ने कहा, आप देखेंगे कि ताइवान में इस साल चुनाव हुए और लोगों ने चीन के डराने धमकाने के बाद भी विलियम लाई ते को राष्ट्रपति चुना। वहीं 20 अक्टूबर को यूरोप के देश माल्दोवा में राष्ट्रपति चुनाव है। इस बीच उसे लगातार रूस से धमकियां मिल रही हैं लेकिन वहां चुनाव हो रहे हैं। तो ऐसा कहना कि वोटर्स को प्रभावित किया जा रहा है पूरी तरह से सही नहीं है।
जनता के हाथ में वोटिंग पावर है वो जिसे चाहे सत्ता की कुर्सी पर बिठा दे और जिसे चाहे उतार दे। ऐसा ही इस साल कई लोकतांत्रिक देशों में देखने को मिला। उदाहरण के लिए ब्रिटेन का चुनाव लेते हैं। विपक्ष की लेबर पार्टी 1997 के बाद सबसे ज्यादा सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनीं।