सम-सामयिक

हिन्दुत्व को ‘सपु्रीम’ कवच

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
कुछ महीने पहले की बात है जब संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा करते हुए नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने हिन्दुओं को लेकर विवादास्पद बयान दिया था। हालांकि बाद में उन्होंने अपनी बात को स्पष्ट करते हुए कहा था कि वे हिन्दुओं को हिंसक नहीं बता रहे थे। अब इसी तरह का मामला डा. एसएन कुंद्रा ने सुप्रीम कोर्ट में उठाया। उन्हांेने हिन्दुत्व शब्द का विरोध किया और कहा कि हिन्दुत्व शब्द की जगह भारतीय संविधानित्व शब्द का प्रयोग होना चाहिए। दरअसल डा. कुंद्रा ने हिन्दुत्व को कट्टर वाद से जोड़ने का नया प्रसास किया है। वह कहते हैं कि हिन्दुत्व एक विशेष धर्म के कट्टर पंथियों का मार्गदर्शन करता है जबकि हमारा संविधान धर्मनिरपेक्ष है। इसलिए इस शब्द का प्रयोग बदल दिया जाए। मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) जस्टिस डीवाई चन्द्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने डा. कुंद्रा के आरोप को आधारहीन मानते हुए उनकी याचिका पर विचार करने से ही इनकार कर दिया। सीजेआई ने कहा कि यह पूरी तरह से न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है। हिन्दुत्व शब्द के खिलाफ लगभग तीन दशक से अदालत के दरवाजे खटखटाए जा रहे हैं लेकिन आरोपियों को कोई सफलता नहीं मिल पायी। अब डा0 कुंद्रा के मामले को लेकर हिन्दुत्व को एक बार फिर सुप्रीम कवच मिला है।
हिंदुत्व शब्द पर एक बार फिर आपत्ति जताई गई, इसे एक विशेष धर्म के साथ जोड़कर दिखाने की कोशिश की गई, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस आपत्ति पर तवज्जो नहीं दी और ‘हिंदुत्व’ शब्द की जगह ‘भारतीय संविधानित्व शब्द करने के अनुरोध वाली जनहित याचिका खारिज कर दी। एक 65 वर्षीय डॉक्टर की जनहित याचिका को सिरे से खारिज करते हुए हिंदुत्व को कट्टरवाद के साथ जोड़ने के एक नए प्रयास को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता डॉक्टर साहब का दावा था कि हिंदुत्व शब्द धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने के लिए हानिकारक है। हिंदुत्व शब्द पर आपत्ति जताते हुए याचिकाकर्ता डॉ. एसएन कुंद्रा एक अलग तर्क के साथ आए, उन्होंने कहा, हिंदुत्व शब्द एक विशेष धर्म के कट्टरपंथियों और हमारे धर्मनिरपेक्ष संविधान को एक धार्मिक संविधान (मनुस्मृति) में बदलने पर आमादा लोगों द्वारा इसके दुरुपयोग की बहुत गुंजाइश छोड़ता है। भारत में समरूप बहुमत और सांस्कृतिक आधिपत्य को बढ़ावा देने के लिए हिंदुत्व की आड़ में एक विशेष धर्म के कट्टरपंथियों द्वारा लगातार प्रयास किए जाते हैं। हिंदुत्व को राष्ट्रवाद और नागरिकता का प्रतीक बनाने का भी प्रयास किया जाता है। हिंदुत्व शब्द का दुरुपयोग करके राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को बहुत नुकसान पहुंचाया जा रहा है। एक विशेष धर्म को बढ़ावा देने, प्रचार करने वाली सभी गतिविधियां, धर्म को मानने वालों द्वारा की जाती हैं। शीर्ष संवैधानिक पद के लोग मीडिया, कानूनी पर्यवेक्षकों की आंखों में धूल झोंकने के लिए हिंदुत्व शब्द का उपयोग कर रहे हैं।
मामले की सुनवाई के दौरान सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, हम ऐसी याचिकाओं पर विचार नहीं करेंगे। यह पूरी तरह प्रक्रिया का दुरुपयोग है। श्रीमान, हम इस पर विचार नहीं करेंगे। ध्यान रहे कि साल 1994 के बाद से सुप्रीम कोर्ट में हिंदुत्व शब्द के खिलाफ यह तीसरी चुनौती थी। सबसे पहले शीर्ष अदालत ने इस्माइल फारूकी फैसले में कहा था, आमतौर पर, हिंदुत्व को जीवन जीने का एक तरीका या मन की स्थिति के रूप में समझा जाता है और इसकी तुलना धार्मिक हिंदू कट्टरवाद के रूप में नहीं की जानी चाहिए या समझा जाना चाहिए। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने रमेश यशवंत प्रभु मामले में अपने दिसंबर 1995 के मामले में फैसला सुनाया था- हिंदू, हिंदुत्व और हिंदू धर्म शब्दों का कोई सटीक अर्थ नहीं बताया जा सकता है और अमूर्त में कोई भी अर्थ इसे संकीर्ण सीमा तक सीमित नहीं कर सकता है। संक्षेप में हिंदुत्व या हिंदू धर्म शब्द का अर्थ संकीर्ण कट्टरपंथी हिंदू धार्मिक कट्टरता के साथ समझा जा सकता है। अदालत ने कहा था कि हिंदुत्व या हिंदू धर्म शब्दों का अर्थ अन्य धार्मिक आस्थाओं के प्रति शत्रुता या असहिष्णुता या सांप्रदायिकता को दर्शाने के लिए नहीं लगाया जा सकता है।
साल 2016 में सुप्रीम कोर्ट की 7-न्यायाधीशों की पीठ ने ‘हिंदुत्व; को जीवन शैली के रूप में परिभाषित करने वाले 1995 के फैसले पर पुनर्विचार करने से इनकार कर दिया था, तब ‘हिंदुत्व’ शब्द को फिर से परिभाषित करने और चुनावों में इसके उपयोग पर प्रतिबंध लगाने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की याचिका को खारिज कर दिया।
इसी साल लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर जारी बहस में हिस्सा लिया। इस दौरान उन्होंने जोरदार भाषण दिया। हालांकि उनके भाषण के एक अंश ने लोकसभा में हंगामा कर दिया। उन्होंने हिंदुओं को लेकर कुछ ऐसा कह दिया, जिसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह तक को हस्तक्षेप करना पड़ा। सत्ता पक्ष ने नेता विपक्ष को हिंदू विरोधी बताते हुए माफी मांगने की अपील की। राहुल गांधी ने अपने भाषण की शुरुआत में सदन में भगवान शिव का चित्र दिखाया। उन्होंने कहा कि हम सब भगवान शिव की शरण में थे। इसी से हमें ऐसे लोगों से लड़ने में मदद मिली। राहुल ने कहा कि शिवजी ने जहर पी लिया था और वो नीलकंठ हो गए थे,वहीं से हमने सीखा और कई जहर पिए। राहुल दरअसल अपने ऊपर हुए राजनीतिक हमलों का जिक्र कर रहे थे। उन्होंने अपनी संसद सदस्यता छीने जाने का भी जिक्र किया।
सच्चाई यह है इन दिनों ‘हिंदुइज्म बनाम हिंदुत्व’ पर एक नई बहस खड़ी करने का प्रयास किया जा रहा है। मूलतः इस बहस को हवा देने का काम ‘हिंदुत्व’ के विरोधी कर रहे हैं। उन्होंने ही ‘सॉफ्ट बनाम हार्ड हिंदुत्व’ पर बहस को भी इस विमर्श के हिस्से के तौर पर खड़ा किया है। ‘हिंदुत्व’ के विरोधी इसे एक आक्रामक और विभाजनकारी राजनीतिक विचारधारा के रूप में परिभाषित करते हैं जबकि अंग्रेजी के शब्द ‘हिंदुइज्म’ को वह इसके मुकाबले कहीं अधिक नरम व स्वीकार्य मानते हैं।
इस बहस में एक खास किस्म की शब्दावली का इस्तेमाल हो रहा है। बिना अर्थ जाने शब्दों के प्रयोग से अकसर झूठी अवधारणाएं खड़ी हो जाती हैं। इन शब्दों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कई प्रमुख पदाधिकारियों ने समय-समय पर परिभाषित किया है और हिंदुत्व के समर्थक इन्हीं परिभाषाओं के संदर्भ में इन शब्दों का उपयोग करते हैं जबकि ऐसा लगता है कि हिंदुत्व के विरोधियों में से अधिकतर इन शब्दों के अर्थ जाने बिना ही इनका उपयोग आरोप-प्रत्यारोप के लिए करते हैं। हिंदुत्व भारतीय जीवन शैली की अभिव्यक्ति है जो ‘सनातन धर्म’ पर आधारित है। हिंदुत्व भारत के सनातन सभ्यतागत मूल्यों में निहित एक सांस्कृतिक प्रवाह है और इसका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है। ‘रिलीजन’ अंग्रेजी का शब्द है एक विशिष्ट पूजा पद्धति से जुड़ा मत है लेकिन धर्म कहीं अधिक व्यापक है, धर्म का अर्थ है शाश्वत मूल्यों पर आधारित जीवन जीने का ऐसा तरीका जिससे हर मनुष्य अपने भीतर के देवत्व को प्राप्त कर सके। व्यक्तिगत तौर पर अपनी आध्यात्मिक यात्रा के लिए प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छानुसार कोई भी मत या संप्रदाय चुन सकता है, लेकिन वह भारतीय संस्कृति में निहित जिन भारतीय मूल्यों का पालन करता है, वही हिंदुत्व है। (हिफी)

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