गजब की साहसी नेता थीं इंदिरा गांधी

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
आज सिक्किम हमारे देश का एक अंग है जिसका श्रेय भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को दिया जाना चाहिए। पाकिस्तान के दो टुकड़े हो गये। यह करिश्मा भी इंदिरा गांधी ने ही किया था और अमेरिका के राष्ट्रपति निक्सन का गुरूर भी उन्होंने ही तोड़ा था। आपरेशन ब्लूस्टार न किया होता तो आज हमारा पंजाब भी हमसे अलग हो गया होता। हालांकि इसी फैसले के चलते उनकी जान चली गयी। अपने सख्त फैसलों और राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को हर हाल में हराने के कारण ही श्रीमती इंदिरा गांधी को ‘आयरन लेडी’ भी कहा जाता था। आज राजनीति के ओछेपन ने इंदिरा गांधी की महिमा को कम करने का कुत्सित प्रयास भले ही किया लेकिन यह देश उन्हें आसानी से नहीं भूल पाएगा। आगामी 31 अक्टूबर को इंदिरा गांधी का बलिदान दिवस मनाया जाएगा। देश उनको कृतज्ञता से नमन करेगा।
श्रीमती इंदिरा गांधी को आयरन लेडी क्यों कहा जाता है इसकी एक झलक तब भी देखने को मिली थी, जब अमेरिका के राष्ट्रपति निक्सन ने उनका अपमान किया और उन्होंने उसका एक नहीं दो-दो बार बदला लिया। दरअसल, पाकिस्तान के साथ 1971 में हुए भारत के युद्ध से पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अमेरिका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन से मिलने गई थीं। वह चाहती थीं
कि पूर्वी पाकिस्तानियों पर सेना के अत्याचार को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा
बनाया जाए लेकिन, तब पाकिस्तान के पक्ष में खड़े रहने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति ने इंदिरा गांधी को मिलने के लिए 45 मिनट इंतजार कराकर अपमान किया।
रिचर्ड निक्सन ने पहले इंतजार कराया, फिर मुलाकात के दौरान इंदिरा गांधी के साथ बदतमीजी से पेश आए। इंदिरा गांधी अपना ये अपमान भूलीं नहीं। उन्होंने बदला लेने तक इस अपमान को याद रखा। दरअसल, उस समय पाकिस्तानी सेना के अत्याचार के कारण पूर्वी पाकिस्तान के लोग सीमा पार कर भारत में शरण ले रहे थे। इससे भारत पर बेवजह बोझ बढ़ रहा था। इंदिरा गांधी ने पाकिस्तानी सेना की करतूत दुनिया के सामने लाने की हरसंभव कोशिश की। उस समय रिचर्ड निक्सन ने इंदिरा गांधी की हर बात को नजरअंदाज किया। निक्सन ने अमरीका के विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर से कहा था कि इंदिरा गांधी भारत में घुसने वाले बांग्लादेशी शरणार्थियों को गोली क्यों नहीं मरवा देती हैं।
अमेरिका 1971 में ‘या तो आप हमारे साथ हैं या हमारे खिलाफ हैं’ की नीति पर काम करता था। इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद और सोवियत संघ के साथ बढ़ती भारत की नजदीकियों से अमेरिका काफी नाराज था। निक्सन इंदिरा गांधी के मुकाबले पाकिस्तान के राष्ट्रपति आगा मुहम्मद याह्या खान को ज्यादा पसंद करते थे। इसलिए 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में अमेरिका ने पाकिस्तान का साथ दिया था। बावजूद इसके पाकिस्तानी सेना घुटनों पर आ गई। युद्ध खत्म होने और बांग्लादेश बनने के कुछ समय बाद निक्सन के कार्यकाल के समय के टेप सार्वजनिक हुए तो पता चला कि वह इंदिरा गांधी के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल करते थे।
भारत-पाकिस्तान युद्ध से पहले नवंबर 1971 में जब इंदिरा गांधी निक्सन से मिलने गईं तो उन्हें कड़ी चेतावनी दी जाने वाली थी। रिचर्ड निक्सन ने चेतावनी दी कि अगर भारत ने पूर्वी पाकिस्तान में सैन्य कार्रवाई की हिम्मत की तो नतीजे अच्छे नहीं होंगे। भारत को पछताना होगा। इंदिरा गांधी ने निक्सन की चेतावनी पर ऐसा हावभाव बनाए रखा, जैसे उन पर इसका कोई असर ही नहीं हुआ हो। वह किसी भी चुनौती की तैयारी पहले से कर लेती थीं। अमेरिका दौरे से पहले सितंबर में वह सोवियत संघ गई थीं। भारत को सैन्य आपूर्ति के साथ मास्को के राजनीतिक समर्थन की सख्त जरूरत थी, जिसे उन्होंने अमेरिका जाने से पहले ही हासिल कर लिया था। इंदिरा गांधी ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए काफी संयम बरता और सही मौके का इंतजार किया। पहली बार उन्होंने अमेरिका से अपने अपमान का बदला तब लिया, जब बांग्लादेश बनने के बाद उनकी अमेरिका के साथ बैठक हुई। इस बैठक में इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान का जिक्र तक नहीं किया। यहां तक कि उन्होंने अमेरिकी विदेश नीति के बारे में रिचर्ड निक्सन से बेहद तीखे सवाल पूछे। इंदिरा गांधी ने रिचर्ड निक्सन से ऐसे बात की, जैसे एक प्रोफेसर पढ़ाई में कमजोर छात्र से बात करता है। निक्सन को जवाब देते नहीं बना। इंदिरा गांधी के सम्मान में निक्सन ने एक भोज का आयोजन भी किया। मेज पर वह रिचर्ड निक्सन के बगल में ही बैठी हुई थीं। भोज में शामिल सारे मेहमान इंदिरा को देख रहे थे, लेकिन वह आंखें बंद कर बैठी रहीं। बाद में जब उनकी टीम की एक सदस्य ने उनसे इस बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि मेरे सिर में बहुत तेज दर्द हो रहा था इसलिए मैंने आंखें बंद कर ली थीं। हालांकि, सब जानते थे कि ये निक्सन के अपमान का दूसरी बार जवाब था।
पंडित जवाहर लाल नेहरु की पुत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी का जन्म 19 नवम्बर 1917 को एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। उन्होंने इकोले नौवेल्ले, बेक्स (स्विट्जरलैंड), इकोले इंटरनेशनेल, जिनेवा, पूना और बंबई में स्थित प्यूपिल्स ओन स्कूल, बैडमिंटन स्कूल, ब्रिस्टल, विश्व भारती, शांति निकेतन और समरविले कॉलेज, ऑक्सफोर्ड जैसे प्रमुख संस्थानों से शिक्षा प्राप्त की। उन्हें विश्व भर के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों द्वारा डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया था। प्रभावशाली शैक्षिक पृष्ठभूमि के कारण उन्हें कोलंबिया विश्वविद्यालय द्वारा विशेष योग्यता प्रमाण दिया गया। श्रीमती इंदिरा गांधी शुरू से ही स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहीं। बचपन में उन्होंने ‘बाल चरखा संघ’ की स्थापना की और असहयोग आंदोलन के दौरान कांग्रेस पार्टी की सहायता के लिए 1930 में बच्चों के सहयोग से ‘वानर सेना’ का निर्माण किया। सितम्बर 1942 में उन्हें जेल में डाल दिया गया। 1947 में इन्होंने गाँधी जी के मार्गदर्शन में दिल्ली के दंगा प्रभावित क्षेत्रों में कार्य किया। उन्होंने 26 मार्च 1942 को फिरोज गाँधी से विवाह किया। उनके दो पुत्र थे। 1955 में श्रीमती इंदिरा गाँधी कांग्रेस कार्य समिति और केंद्रीय चुनाव समिति की सदस्य बनी।1958 में उन्हें कांग्रेस के केंद्रीय संसदीय बोर्ड के सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया। वे एआईसीसी के राष्ट्रीय एकता परिषद की उपाध्यक्ष और 1956 में अखिल भारतीय युवा कांग्रेस और एआईसीसी महिला विभाग की अध्यक्ष बनीं।वे वर्ष 1959 से 1960 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं। जनवरी 1978 में उन्होंने फिर से यह पद ग्रहण किया। वह 1966-1964 तक सूचना और प्रसारण मंत्री रहीं। इसके बाद जनवरी 1966 से मार्च 1977 तक वह भारत की प्रधानमंत्री रहीं। साथ-ही-साथ उन्हें सितम्बर 1967 से मार्च 1977 तक के लिए परमाणु ऊर्जा मंत्री बनाया गया।उन्होंने 5 सितंबर 1967 से 14 फरवरी 1969 तक विदेश मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार संभाला। श्रीमती गांधी ने जून 1970 से नवंबर 1973 तक गृह मंत्रालय और जून 1972 से मार्च 1977 तक अंतरिक्ष मामले मंत्रालय का प्रभार संभाला। जनवरी 1980 से वह योजना आयोग की अध्यक्ष रहीं। 14 जनवरी 1980 में वे फिर से प्रधानमंत्री बनीं। (हिफी)