नीतीश ही 2025 में रहेंगे दूल्हा

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
बिहार के एक चर्चित नेता उपेंद्र कुशवाहा ने कुछ दिनों पहले कहा था कि नीतीश कुमार फिर पलटी मारेंगे। इसके पीछे कारण यह बताया जा रहा था कि भाजपा बिहार में अपना मुख्यमंत्री चाहती है। इसीलिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन एनडीए ने राज्यों में अभी छेड़छाड़ से परहेज किया है। बिहार को लेकर तरह-तरह की बातें की जा रही थीं इसलिए अगले वर्ष प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में एनडीए नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही मैदान में उतरेगा। मुख्यमंत्री आवास में एनडीए के प्रदेश नेताओं की महत्वपूर्ण बैठक में एनडीए नेताओं ने इस निर्णय पर सहमति जताई है । अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए एनडीए ने 225 सीटों का लक्ष्य तय किया है। मुख्यमंत्री ने एनडीए की एकजुटता पर जोर देते हुए कहा कि हर हाल में नीचे के स्तर तक संगठन को मजबूत करना है। एनडीए की बैठक में यह स्लोगन गूंजा – 2025 फिर से नीतीश। इसका प्रभाव विधानसभा की चार सीटों पर हो रहे उपचुनाव पर भी पड़ेगा ।सभी दल अपने सर्वोत्तम साधनों का उपयोग कर रहे हैं। इसबार प्रशांत किशोर पीके की जनसुराज पार्टी भी मैदान में है। उपचुनाव के परिणाम कई राजनीतिक दलों की मान्यताओं के बारे में जनता की राय जाहिर करेंगे। पीके का मानना है कि परिणाम से राजनीति में परिवारवाद की स्वीकार्यता और जातियों की राजनीतिक दलों के प्रति प्रतिबद्धता की परख होगी। अगर परिणाम इन दोनों से अलग होता है तो यह संदेश भी निकलेगा कि छोटे हिस्से में ही सही लोग परिवर्तन के आकांक्षी हैं।जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर का दावा है कि राज्य के लोग एनडीए और महागठबंधन से अलग किसी तीसरे विकल्प की खोज में हैं। अब तक की स्थिति यह है कि सभी सीटों पर जन सुराज के उम्मीदवार अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश में हैं। चार में से किसी एक सीट पर भी जन सुराज को सफलता मिलती है तो यह उसकी बड़ी उपलब्धि होगी।
भाकपा माले और जन सुराज पार्टी को छोड़ दें तो बिहार में सभी दलों ने परिवारवाद की राजनीति को प्रश्रय दिया है। संबंधित विधानसभा क्षेत्र के विधायक रहे नेता पुत्रों को उम्मीदवार बनाया गया है। भाजपा ने रामगढ़ में अपने पुराने कार्यकर्ता अशोक कुमार सिंह को टिकट दिया है और तरारी में पूर्व विधायक सुनील पांडेय के पुत्र विशाल प्रशांत को उम्मीदवार बनाया है। तरारी से भाकपा माले के उम्मीदवार राजू यादव विशुद्ध कार्यकर्ता हैं। राजनीति उन्हें विरासत में नहीं मिली है। रामगढ़ के राजद उम्मीदवार अजित सिंह और इसी दल से बेलागंज के उम्मीदवार विश्वनाथ कुमार सिंह और बेलागंज की हम उम्मीदवार दीपा मांझी विरासत की राजनीति के प्रतिनिधि हैं।इसी श्रेणी में बेलागंज की जदयू उम्मीदवार मनोरमा देवी को भी रखा जा सकता है। वह अपने पति बिंदी यादव की राजनीतिक विरासत को बढ़ा रही हैं। हालांकि, बिंदी यादव को कभी विधानसभा चुनाव में सफलता नहीं मिली, जबकि मनोरमा विधान परिषद की सदस्य रह चुकी हैं। दिलचस्प यह है कि आम चुनाव में राजद पर परिवारवाद का आरोप लगाने वाला एनडीए उपचुनाव में इसकी चर्चा नहीं कर रहा है।मान लिया गया है कि यादव और मुसलमान राजद के लिए प्रतिबद्ध हैं। दक्षिण बिहार के लोकसभा चुनाव परिणाम ने राजद और खासकर महागठबंधन के खेमें में कुशवाहा और वैश्य वोटरों को भी जोड़ दिया था। संयोग से ये सभी उपचुनाव विधायकों के सांसद बनने के कारण हो रहे हैं। परिणाम यह भी बताएगा कि लोकसभा चुनाव के समय बना जातीय समीकरण अब भी कायम है और यह 2025 के विधानसभा चुनाव में भी महागठबंधन के पक्ष में बना रह सकता है।
गत 29 अक्टूबर को एनडीए की महत्वपूर्ण बैठक हुई। बैठक की
अध्यक्षता भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने की, जबकि संचालन जदयू प्रदेश अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा ने किया। बैठक में विषय प्रवेश जदयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा ने कराया। हम के संतोष सुमन व लोजपा के प्रदेश अध्यक्ष राजू तिवारी ने अपने दल का प्रतिनिधत्व किया। बता दें कि नीतीश कुमार के एक तरफ उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी तो दूसरी तरफ जदयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा बैठे थे।मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस मौके पर कहा कि राष्ट्रीय व प्रदेश स्तर पर एनडीए की जो एकता है वह जमीनी स्तर पर भी दिखना जरूरी है। एकजुटता ही हमारी पूंजी है। अपने संबोधन में मुख्यमंत्री ने राजद के 15 वर्षों के शासनकाल में बिहार की स्थिति और उसके बाद अपने कार्यकाल में हुए कार्यों की चर्चा की।उन्होंने कहा कि 2005 के पहले बिहार में क्या स्थिति थी, यह नयी पीढ़ी को नहीं मालूम है। इस बारे में नयी पीढ़ी को बताना जरूरी है। उनकी सरकार ने हर क्षेत्र में काम किया है। शिक्षा व स्वास्थ्य के साथ-साथ आधारभूत संरचना के क्षेत्र में हुए कार्यों की उन्होंने चर्चा की। सात निश्चय-2 के तहत युवाओं को मिले रोजगार पर भी बात की।
राजद पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि पहले दंगा-फसाद होता रहता था। एनडीए की सरकार जब आयी तो इसे नियंत्रित किया। भागलपुर दंगा पीड़ितों का नाम लिए बगैर उन्होंने कहा कि हमने दंगा पीड़ितों को न्याय दिलाया। पीड़ितों के लिए पेंशन की व्यवस्था करायी। बिहार में उनकी सरकार में विधि-व्यवस्था की स्थिति ठीक हुई। पहले शाम होते ही लोग घरों में कैद हो जाते थे पर अब ऐसी स्थिति नहीं है। केंद्र सरकार से मिल रहे सहयोग की भी मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन में चर्चा की। उन्होंने कहा कि केंद्र से मिल रहे सहयोग के लिए वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह व भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के प्रति आभार प्रकट करते हैं। बैठक में केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह, गिरिराज सिंह, नित्यानंद राय, रामनाथ ठाकुर, रालोमो नेता उपेंद्र कुशवाहा, जदयू के वरिष्ठ नेता बशिष्ठ नारायण सिंह, मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव, विजय चौधरी व रेणु देवी ने भी अपने विचार रखे।
अब समझ में आ रहा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार यूं ही नहीं 2010 के विधानसभा चुनाव परिणाम का अपना ही रिकार्ड तोड़ने की इच्छा को बार-बार दोहरा रहे हैं। उस चुनाव में एनडीए को 243 में से 206 (जदयू 115 और भाजपा 91) सीटें मिली थीं। बाद में अन्य दलों के छिटपुट विधायक भी एनडीए के सहयोगी बने। मंडल के दौर में राज्य में किसी गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री को पहली बार ऐसी सफलता मिली थी। इससे पहले 1995 के विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद की तत्कालीन पार्टी जनता दल की 167 सीटों पर जीत हुई थी। उस समय बिहार विधानसभा के सदस्यों की संख्या 324 होती थी। बाद के चुनावों में लालू प्रसाद भी उस परिणाम को नहीं दोहरा पाए।
2010 का चुनाव परिणाम नीतीश कुमार के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि उसमें उन्हें 2005-10 के बीच के सुशासन का इनाम मिला था। अब 2025 के विधानसभा चुनाव में 225 सीटों पर जीत के लक्ष्य में राजद को पुरानी स्थिति में लौटाने का संकल्प भी है।
ध्यान रहे कि 2010 के विधानसभा चुनाव के ठीक साल भर पहले 2009 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को राज्य की 40 में से 32 सीटों पर सफलता मिली थी। उस चुनाव के नायक सिर्फ नीतीश कुमार थे। (हिफी)