लेखक की कलम

कितना उचित है बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीमकोर्ट का फैसला?

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)
अपराधियों के गिरोह और सरपरस्त सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से राहत महसूस कर सकते हैं। दरअसल कुछ वर्षों से देश में बुलडोजर एक्शन की बड़ी चर्चा है। शीर्ष अदालत ने राज्य सरकारों द्वारा किए जा रहे बुलडोजर एक्शन को लगाम देने के लिए कड़ा फैसला किया है। गत 7 वर्षों में 1935 आरोपियों की सम्पत्तियों पर बुलडोजर एक्शन हुआ है। इसमें उत्तर प्रदेश सबसे आगे, मध्य प्रदेश दूसरे और हरियाणा तीसरे स्थान पर है।
आपको बता दें कि देश में किसी आरोपी की सम्पत्ति रातो-रात जमींदोज करने का अभी कोई कानून नहीं बना, फिर भी इसी वर्ष 3 राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में विभिन्न आरोपों में संलिप्त आरोपियों की इमारतें जमींदोज कर दी गईं। इनके विरुद्ध दायर याचिकाओं पर सुप्रीमकोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान 13 नवम्बर को न्यायमूर्ति बी. आर. गवई तथा न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन ने अपने फैसले में ‘बुलडोजर एक्शन’ की प्रवृत्ति पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसकी तुलना अराजकता की स्थिति से की। उन्होंने कहा, अधिकारी किसी व्यक्ति के मकान को केवल इस आधार पर नहीं गिरा सकते कि उस पर किसी अपराध का आरोप है। कारण बताओ नोटिस दिए बिना किसी भी संपत्ति को ध्वस्त न किया जाए तथा प्रभावितों को उत्तर देने के लिए 15 दिन का समय भी दिया जाना चाहिए।
न्यायालय ने कहा कि राज्य या अधिकारी द्वारा नियमों के विरुद्ध आरोपी या दोषी के विरुद्ध ‘बुलडोजर एक्शन’ नहीं किया जा सकता। किसी भी मामले में आरोपी होने या दोषी ठहराए जाने पर भी अपराध की सजा घर तोड़ना नहीं है। यह कानून का उल्लंघन है। सरकारी शक्तियों का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए और ऐसा करने पर संबंधित व्यक्ति को मुआवजा दिया जाना चाहिए। यदि आरोपी एक है तो पूरे परिवार को सजा क्यों दी जाए ! अधिकारियों को इस तरह के मनमाने तरीके से काम करने के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। प्रशासन जज की तरह काम नहीं कर सकता। घर प्रत्येक व्यक्ति का सपना होता है और वह चाहता है कि उसका आश्रय कभी न छिने। यदि राज्य इसे
ध्वस्त करता है तो इसे अन्यायपूर्ण माना जाएगा।
यदि घर गिराने का आदेश पारित किया जाता है तो इसके विरुद्ध अपील करने के लिए समय दिया जाना चाहिए। जीवन का अधिकार एक मौलिक अधिकार है और आश्रय का अधिकार इसका एक पहलू है। यदि कानूनों के विरुद्ध जाकर कोई कार्रवाई की जाती है तो अधिकारों की रक्षा करने का काम अदालत का ही है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि हर हालत में ‘बुलडोजर एक्शन’ की प्रक्रिया नोडल अधिकारी के जरिए होगी। हर जिले का डी.एम. अपने क्षेत्राधिकार में किसी भी निर्माण को गिराने को लेकर एक नोडल अधिकारी को नियुक्त करेगा। नोडल अधिकारी 15 दिन पहले विधिवत तरीके से रजिस्टर्ड डाक द्वारा प्रभावित पार्टी को नोटिस भेजेगा। इसे निर्माण स्थल पर भी चिपकाना व ‘डिजीटल पोर्टल’ पर डालना अनिवार्य होगा। नोडल अधिकारी इस पूरी प्रक्रिया को यकीनी बनाएगा कि संबंधित लोगों को नोटिस समय पर मिले और इस नोटिस का जवाब भी सही समय पर मिल जाए। इसके लिए 3 महीने के भीतर ‘पोर्टल’ तैयार किया जाए। माननीय जजों का कहना है कि कारण बताओ नोटिस जारी किए बिना घर/सम्पत्ति गिराने की कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती और इसकी वीडियो रिकार्डिंग भी की जाएगी। हम कह सकते हैं कि बुलडोजर एक्शन के दुष्परिणामों को देखते हुए यह देर से आया फैसला है जिससे अनेक घर टूटने से बच सकते हैं,
अतः इस पर सख्ती से अमल होना चाहिए लेकिन अपराधियों मंे भय पैदा करना भी जरूरी है ताकि दूसरे उसी तरह का अपराध करने से पहले सौ बार सोचें।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अपराधियों को दंड देना अदालत का काम है वहीं सवाल यह भी है कि क्या अदालतें अपना काम समयबद्ध और प्रभावी ढंग से कर रहीं हैं। ऐसे हालात में जब देश की अदालतों में पांच करोड़ मुकदमें विचाराधीन (पैंडिग) पड़े हैं। हजारों न्यायिक व न्यायालय कर्मियों के पद खाली है। पैंडिग मुकदमों की तादाद साल दर साल बढ़ती जा रही है तब अपराधियों पर कानून और अदालत का कोई भय नहीं रह जाता है। पेशेवर अपराधी समाज में आतंक मचा कर अपनी दबंगई और गुंडई का समानांतर साम्राज्य स्थापित कर लेते हैं और उनके परिवार व समर्थन में सैकड़ों हजारों लोग उन्हें संरक्षण देने व उनके खिलाफ गवाही देने वाले लोगों को धमकाने मारने लूटने का काम करते हैं। बाहुबली धनबली दबंग और राजनीति में भी दखल रखने वाले माफिया पेशेवर अपराधी दशकों तक भी किसी मामले में सजा नहीं पाते हैं और येन-केन प्रकारेण जमानत पर रिहा हो जाते हैं तो ऐसे अपराधियों पर नकेल डालने के लिए उनके द्वारा अवैध तरीके से इकट्ठा की गयी संपत्तियों पर बुलडोजर एक्शन बहुत कारगर कदम साबित हुआ। योगी सरकार के इस कदम से यूपी जैसे राज्य में जहां अराजकता और माफिया राज कायम हो चुका था, योगी सरकार के बुलडोजर ने अपराधियों के दिल में कानून का खौफ कायम किया और कानून व्यवस्था का राज स्थापित किया। बेशक शीर्ष अदालत को बुलडोजर एक्शन में खामियां नजर आई हों लेकिन उपलब्ध कानून और अदालतों के अस्तित्व के बावजूद अपराधियों और माफियाओं पर कानून का भय बनाने में अदालत क्यो प्रभावी नहीं हैं, इस पर भी विचार किया जाना चाहिए? बुलडोजर एक्शन की जरूरत क्यों हुई? यदि अदालत सही ढंग से प्रभावी काम करतीं तो देश में अपराधियों का तंत्र सक्रिय ही नहीं होता। जरूरत है कि अदालत अपनी कार्यप्रणाली पर भी समीक्षा करे ताकि सरकारों को इस तरह के एक्शन प्लान बनाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। अब बुलडोजर एक्शन का भय खत्म होगा तो एनकाउंटर ही विकल्प बचेगा क्योंकि सरकार को अदालत के सुस्त कार्यप्रणाली से कानून व्यवस्था का खौफ बनाने में मदद नहीं मिलती है इसलिए विकल्प विकसित होते है। शीर्ष अदालत को विचार करना चाहिए कि संगीन अपराध करने वाले अपराधियों को शीघ्र सजा क्यों नहीं मिल पाती है? कैसे अपराधियों के गिरोह करोड़ों अरबों की अकूत संपत्ति जमा कर लेते हैं? अदालत तारीख पर तारीख की प्रक्रिया से बाहर क्यों नहीं आ पाई रहीं हैं? जब बत्तीस साल बाद अजमेर सैक्स कांड का फैसला दिया जाता है और जब निठारी कांड के दर्जनों गरीब बच्चियों युवतियों के आरोपी हत्यारों को सतरह साल की अदालती कवायद के बाद बरी कर दिया जाता है तो इस देश की न्यायिक व्यवस्था के प्रति आम आदमी का भरोसा टूट जाता है। क्या शीर्ष अदालत अपने अदालती तंत्र को सुधारने के लिए भी कुछ करेगी? (हिफी)

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