भजनलाल ने बरकरार रखी शान

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
राजस्थान मंे नवम्बर 2023 मंे विधानसभा के चुनाव हुए थे। भाजपा ने कांग्रेस को पछाड़ कर 200 सदस्यीय विधानसभा मंे 115 सीटें जीती थीं। कांग्रेस को सिर्फ 70 सीटें मिल पायी थीं। भाजपा नेतृत्व ने राजस्थान को भजनलाल शर्मा के हवाले किया था। उनकी मदद के लिए दो उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी और प्रेमचन्द बैरवा को तैनात किया गया था। इस टीम ने 2024 के लोकसभा चुनाव मंे भी भाजपा की शान को बरकरार रखते हुए 25 में से 14 सांसद भाजपा की झोली मंे डाले थे। इस विजय अभियान को जारी रखते हुए भजनलाल शर्मा ने पिछले महीने सम्पन्न हुए 7 विधानसभा सीटों के उपचुनाव मंे से 5 पर भाजपा को विजयश्री दिलाई है। राजस्थान मंे भजनलाल शर्मा ने भाजपा सरकार का अच्छा प्रभाव छोड़ा है। पिछले अक्टूबर महीने मंे मुख्यमंत्री ने गृह विभाग की समीक्षा बैठक मंे बताया था कि पुलिस विभाग की सजगता के कारण राज्य में अपराधों का ग्राफ पिछले वर्ष की तुलना में तेजी से गिरा है। उन्हांने बताया था कि महिलाओं के खिलाफ अत्याचारों मंे 8.5 प्रतिशत और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के खिलाफ अपराधों मंे 13.96 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गयी है। इन सभी का प्रभाव उपचुनावों के नतीजों पर भी पड़ा है। हालांकि यहां कांग्रेस को इंडिया गठबंधन के सहयोगियों से भी कोई लाभ नहीं मिला। उपचुनाव में सीधा मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही था। कांग्रेस को सिर्फ एक सीट मिली है। एक सीट (चौरासी) भारत आदिवासी पार्टी (बाप) के खाते में गयी है।
हालांकि दौसा विधानसभा उपचुनाव में हारे भजनलाल सरकार के कैबिनेट मंत्री किरोड़ीलाल मीणा के भाई जगमोहन ने अब अपनी पीड़ा जाहिर की है। मीणा ने कहा कि हार के क्या कारण रहे इसकी समीक्षा की जा रही है। हार के अनेक कारण होते हैं। उन्होंने कहा कि अति आत्मविश्वास भी हार का एक बड़ा कारण था। मीणा ने खुद का उदाहरण देते हुए कि कहा कि मेरे जैसे व्यक्ति के लिए इस कुटिल राजनीति में सफल होना बड़ा मुश्किल रहता है। जगमोहन बोले इस उपचुनाव में हमारे खिलाफ नफरत और ईर्ष्या का वोट डाला गया। इसमें न जाने क्या-क्या छिपा था। इनसे कैसे पार पाते।
पूर्वी राजस्थान का नेताओं ने माहौल बिगाड़ कर रख दिया है। यहां पैसा और दारू बांटी जाती है। जनता को ऐसे नेताओं को सबक सिखाना चाहिए। जगमोहन बोले उनके भाई डॉ. किरोड़ीलाल भी हार की समीक्षा कर रहे हैं। अपने हो या पराए डॉक्टर साहब सबके नामों का खुलासा करेंगे। जगमोहन मीणा दौसा सीट से बीजेपी के उम्मीदवार थे। वे करीब 2300 वोटों से कांग्रेस प्रत्याशी डीसी बैरवा से चुनाव हार गए। उनकी यह हार इसलिए ज्यादा चर्चा में रही थी क्योंकि वे इलाके के कद्दावर नेता किरोड़ीलाल मीणा भाई थे।
राजस्थान में विधानसभा की 7 सीटों के लिए मतदान 13 नवंबर को हुआ। खींवसर, झुंझुनू, सलूंबर, देवली-उनिया और रामगढ़ का विधानसभा उपचुनाव बीजेपी जीत गई। वहीं, दौसा में कांग्रेस ने जीत हासिल की है। दौसा सीट से बीजेपी उम्मीदवार जगमोहन मीणा थे और कांग्रेस ने डीसी बैरवा को मैदान में उतारा था। साथ ही चौरासी से बाप को बढ़त मिली है। उपचुनाव में 64 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ, जिसमें सबसे अधिक मतदान रामगढ़ में 71.45 प्रतिशत हुआ। सबसे कम दौसा में (55.63 प्रतिशत) मतदान हुआ। कुल 69 प्रत्याशियों किस्मत का फैसला हो गया है। इस दंगल में भाजपा, कांग्रेस, आरएलपी और बीएपी के साथ कुछ अन्य दलों के प्रत्याशी और निर्दलीय उम्मीदवार भी अपना भाग्य आजमा रहे थे। हॉट सीट खींवसर और दौसा के नतीजों पर सबकी नजर थी।
झुंझुनूं विधानसभा उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी राजेंद्र भांबू 42,599 वोटों से जीत गए हैं। झुंझुनूं में कांग्रेस सांसद बृजेंद्र ओला के बेटे अमित ओला और खींवसर में सांसद हनुमान बेनीवाल की पत्नी कनिका बेनीवाल की हार हुई। नागौर के खींवसर में भाजपा के रेवंतराम डांगा 2285 सीटों से आगे चल रहे हैं। हनुमान बेनीवाल की पत्नी कनिका बेनीवाल को भाजपा के रेवंतराम डांगा ने 13 हजार से ज्यादा वोटों से हराया है। दौसा में मंत्री किरोड़ीलाल मीणा के भाई जगमोहन मीणा को हार का सामना करना पड़ा। सलूंबर में बीजेपी की शांता अमृत लाल मीणा ने 1285 वोटों के अंतर से चुनाव जीता। दूसरे नंबर पर रहे जितेश कुमार कटारा को 83,143 वोट आए।
चौरासी विधानसभा उपचुनाव में भारत आदिवासी पार्टी के अनिल कटारा ने बड़ी जीत दर्ज की है। अनिल कटारा 24370 वोटों से जीत गए हैं। इस प्रकार राजस्थान विधानसभा उपचुनाव में 7 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव ने बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया है। पार्टी ने 7 में से 5 सीटें अपने नाम की हैं।
उपचुनाव के बाद राजस्थान विधानसभा में बीजेपी विधायकों की संख्या बढ़कर 119 हो गई है। उपचुनाव में बीजेपी पांच सीटें जीत गई है। इनमें सलूंबर, खींवसर, झुंझुनूं, देवली-उनियारा और रामगढ़ सीट शामिल है। झुंझुनूं में बीजेपी की जीत इस मायने में भी अहम है, क्योंकि बीजेपी यहां दशकों से चुनाव नहीं जीती थी। बीजेपी ने अखिरी बार 2003 में यह सीट जीती थी। इसके बाद से यह सीट कांग्रेस के टिकट पर बृजेंद्र ओला जीतते रहे। इसलिए यह यह सीट कांग्रेस और ओला परिवार का गढ़ मानी जाती थी। अब बीजेपी के राजेंद्र भांबू ने बृजेंद्र ओला के पुत्र व कांग्रेस प्रत्याशी अमित ओला को 42,828 वोटों के बड़े अंतर से चुनाव हरा दिया है। खास बात यह है कि 2023 के विधानसभा चुनावों में भी राजेंद्र भांबू ने यहां बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा था और उस चुनाव में भांबू को कुल 42,407 वोट मिले थे। यानी भांबू को 2023 में जितने वोट मिले थे, उससे ज्यादा वोटों के अंतर से उन्होंने उपचुनाव में जीत दर्ज की है। हालांकि, उनकी जीत में निर्दलीय राजेंद्र गुढ़ा का भी बड़ा रोल रहा है। राजेंद्र गुढ़ा ने कांग्रेस के वोट काटने का काम किया। झुंझुनूं विधानसभा सीट पर इस बार भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार राजेन्द्र भांबू का पलड़ा भारी रहा है। भाजपा और कांग्रेस के बीच झुंझुनूं विधानसभा सीट को लेकर खींचातानी चल रही है थी। दोनों ही पार्टियों के बीच कड़ी टक्कर देखने के आसर थे लेकिन इस सीट पर शुरू में निर्दलीय प्रत्याशी और उसके बाद लगातार कांग्रेस बढ़त बनाती रही। बीजेपी से राजेन्द्र भांबू कांग्रेस से अमित ओला और निर्दलीय उम्मीदवार राजेन्द्र गुढ़ा के बीच त्रिकोणीय मुकाबला होने की सभी संभावनाएं भी फेल हो गए। पिछले कई चुनावों में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला रहा है। वहीं, निर्दलीय उम्मीदवार राजेन्द्र गुढ़ा ने भी इस सीट पर जीत का परचम लहराने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी, जो मुकाबले को और भी रोचक बना रहे थे, पर अंत में त्रिकोणीय मुकाबला तो बना नहीं पर कांग्रेस को भारी नुकसान पहुंचा।
सबसे रोचक मुकाबला सलूंबर सीट पर देखने को मिला। यहां 21 राउंड तक बीएपी आगे चल रही थी लेकिन आखिरी राउंड में बाजी पलट गई
और बीजेपी की शांता अमृतलाल
मीणा 1,285 वोटों के अंतर से चुनाव जीत गई। (हिफी)