जायज है मोहन भागवत की चिंता

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)
हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने जनसंख्या बढ़ोतरी की दर में गिरावट (प्रजनन दर) पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि जब किसी समाज की जनसंख्या वृद्धि दर 2.1 से नीचे गिर जाती है, तो वह समाज धीरे-धीरे नष्ट हो जाता है। भागवत ने यह बयान एक कार्यक्रम के दौरान दिया, जिसमें उन्होंने जनसंख्या नीति को लेकर अपनी चिंता जाहिर की। भागवत ने कहा, आधुनिक जनसंख्या विज्ञान कहता है कि जब किसी समाज की जनसंख्या (प्रजनन दर) 2.1 से नीचे चली जाती है, तो वह समाज दुनिया से नष्ट हो जाता है। वह समाज तब भी नष्ट हो जाता है जब कोई संकट नहीं होता है। इस तरह से कई भाषाएं और समाज नष्ट हो गए हैं। जनसंख्या 2.1 से नीचे नहीं जानी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि 2.1 की जनसंख्या वृद्धि दर बनाए रखने के लिए समाज को दो से अधिक बच्चों की आवश्यकता है, इस तरह उन्होंने तीन बच्चों की जरूरत पर जोर दिया। जनसंख्या विज्ञान भी यही कहता है। संख्या महत्वपूर्ण है क्योंकि समाज का बने रहना जरूरी है।
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने देश के बहुमय समाज को उस कड़वे सत्य से परिचित कराने का प्रयास किया है जिसका हिन्दू समाज अपनी उदासीनता के कारण सामना नहीं करना चाहता। मोहन भागवत ने 2021 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे रिपोर्ट को सम्मुख रख अपनी चिंता प्रकट की है लेकिन धरातल का सत्य है कि 1901 से 2001 के जनसंख्या आंकड़ों पर ध्यान दें तो बहुत बड़ा बदलाव देखने को मिलता है। इतिहास में जाए तो अफगानिस्तान तक भारत था और वहां हिन्दू राजाओं का ही राज था। 1947 मैं जनसंख्या में आए बदलाव के कारण ही भारत का विभाजन हुआ था।
आपको बता दें कि भारत की एकता व अखंडता तथा सनातन धर्म को बनाए रखना है तो हिन्दू परिवारों को 2 या 3 बच्चों को अवश्य जन्म देना होगा। विश्व पर नजर दौड़ाएं तो आप को संघ प्रमुख भागवत की चेतावनी व चिंता का कारण समझ आ जाएगा। विश्व के जिस क्षेत्र में ईसाई या मुस्लिम जनसंख्या बहुमत में आई है, वहां की संस्कृति ही बदल गई। वहां का मूल संस्कृति और इतिहास सब कुछ लुप्त हो गया।
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने जिस समस्या को लेकर चिंता प्रकट की है अतीत में उसी को पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने विभिन्न ढंग से कहा है मुसलमान भारत पर राजनीतिक श्रेष्ठता स्थापित करने के विचार को लेकर चलते हैं। अतः यह न धार्मिक समस्या है और न सामाजिक, यह तो सीधी राजनीतिक समस्या है। भारत में इस्लाम मौलवी या फकीरों के प्रचार के द्वारा नहीं आया, अपितु यह आक्रमणकारियों के द्वारा आया। सूफी फकीरों ने एक सोची समझी साजिश के तहत धर्मभीरू अंधविश्वासी आमजन को कनवर्जन के लिए नरम रुख दिखाया ताकि जोर-जबरदस्ती के साथ ही लचीला रुख दर्शा कर भी हिन्दू समाज को इस्लाम में कन्वर्ट किया जा सके। हिन्दुस्तान में ये आक्रान्ता लोग अपने आपको देश का मालिक समझने लगे। जो व्यक्ति हिन्दुस्तान में कनवर्जन कर मुसलमान बना, वह भी अपने आपको आक्रान्ताओं से जोड़कर देखने लगा और यहां की प्रत्येक विरासत से घृणा करने लगा। बाबर भारत में आक्रान्ता बतौर आया। यहां का एक बड़ा वर्ग खुद को देश की मूल सांस्कृतिक व धार्मिक विरासत से अलग कर उसके प्रति नफरत करने लगा। इसका परिणाम मुसलमान के अन्तः करण में आज तक है। इस कारण यदि हम उसे कहें कि इस भूमि को भारत माता कहे तो वह मानता नहीं। इसे माता न मानने के कारण ही पाकिस्तान बना। हमने कहा राम और कृष्ण अपने पूर्वज हैं, परन्तु वह इन्हें अपना पूर्वज न मानकर अलग से दूसरे पूर्वजों को मानता है। इसलिए यह कहना पड़ता है कि यहां का मुसलमान राष्ट्रीय नहीं। हिन्दुस्तान विरोधी जो-जो चीजें होंगी, वह उनको ही अपनाता है। हमने भारत को मां कहा, परन्तु वह इसे दारूल हरब कहता है। हम गाय की पूजा करते हैं, परन्तु वह उसको काटता है। भारत में वह बकरीद कहकर त्यौहार मानता है। बकर का अर्थ अरबी में गाय होता है अर्थात् जो गाय हमारे लिए पूजनीय है, वह इस त्यौहार पर बलि दी जाती है। यह हमारी श्रद्धा के विरुद्ध है।
देश में लगातार बहुसंख्यक वर्ग की जनसंख्या दर में गिरावट और एक खास अल्पसंख्यक समुदाय की जनसंख्या वृद्धि दर में भारी बढ़ोत्तरी हो रही है। यह भारत की डैमोग्राफी के लिए खतरनाक हो सकता है। हाल ही में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत का कहना है कि जनसंख्या वृद्धि दर 2.1 फीसद से नीचे नहीं होनी चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने ये बात भी कह दी कि इसके लिए जरूरी है कि 2 की बजाय 3 बच्चे पैदा करें। यह संख्या इसलिए जरूरी है, ताकि समाज जिंदा रहे। मोहन भागवत ने रविवार को नागपुर में कठाले कुल सम्मेलन में एक सभा में बोलते हुए कहा, कुटुंब समाज का हिस्सा है और हर परिवार एक इकाई है। हालांकि जनसंख्या वृद्धि को देखते हुए सालों से ‘बच्चे 2 ही अच्छे’ का नारा सरकार की तरफ से लगाया जाता रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर एक ‘आर्दश हिंदू परिवार’ को कितने बच्चे पैदा करने चाहिए?
प्रसिद्ध कथा वाचक देवकीनंदन ठाकुर ने जबलपुर में एक कथा के दौरान कहा कि ‘हिंदुओं को 5-5 बच्चे पैदा करने चाहिए।’ वहीं कुछ धर्म गुरु महिलाओं को कम से कम 4-4 बच्चे पैदा करने की बात कह चुके हैं। ज्योतिर्मठ शंकराचार्य स्वामिश्री अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने इस सवाल के जवाब में कहा, ‘हमारे यहां ‘बहु पुत्रवति भव’ ये आशीर्वाद हमेशा से दिया जाता है। ‘बहु’ का मतलब होता है बहुवचन। आपकी हिंदी में एक वचन और बहुवचन होते हैं। यानी 2 भी हो तो वो बहुवचन हो जाता है। लेकिन संस्कृति में एक वचन, द्विवचन और बहुवचन होते हैं। यानी तीन होने पर ही उसे बहुवचन कहा जाता है। इसका अर्थ है कि तीन तो होने ही चाहिए। बहु पुत्रवति में ‘बहु’ शब्द इसी बात को दर्शाता है।’ शंकराचार्य सोशल मीडिया पर डाले गए अपने इस वीडियो में आगे कहते हैं, ‘हमारे यहां पहले नियोजन (प्लानिंग) नहीं किया जाता था। ये माना जाता था कि सहज में जब गर्भ धारण हो जाए तो संतान को जन्म लेने का अधिकार देना चाहिए। अब ऐसी परिस्थिति हो रही है कि गर्भधारण तो हो रहा है, लेकिन उसकी भ्रूण हत्या की जा रही है। शास्त्रों में भ्रूण हत्या को मनुष्य की हत्या के समान ही माना गया है। सबसे पहले तो सनातनी दंपत्ति को भ्रूण हत्या नहीं करनी चाहिए।’ वह आगे कहते हैं, ‘अगर धार्मिक दृष्टिकोण से देखें तो जितने भी पुत्र या पुत्रियां हों, वह सब स्वागत के योग्य होते हैं।’
हालांकि, मोहन भागवत के इस बयान पर विपक्ष ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता फखरुल हसन चांद ने कहा कि मोहन भागवत पिछले कुछ समय से जब कुछ बोलते है तो वह बीजेपी को असहज कर देता है।पिछली बार भी जब मोहन भागवत ने कहा था कि हर मस्जिद में मंदिर क्यों ढूंढना तब भी बीजेपी वाले जो केवल मंदिर मस्जिद की राजनीति करते हैं उनके पास कोई जवाब नहीं था। (हिफी)