लेखक की कलम

कश्मीर में अलगाववाद का कमजोर होना

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
आतंकवद और अलगाववाद से जूझ रहे जम्मू-कश्मीर को निश्चित रूप से संविधान के अनुच्छेद-370 के निष्प्रभावी होने के बाद राहत मिली है। इसी के चलते वहां विधानसभा के चुनाव कराये गये हैं। भाजपा को भले ही वहां सरकार बनाने का अवसर नहीं मिला लेकिन नेशनल कांफ्रेंस की उमर अब्दुल्ला सरकार अलगाववाद और आतंकवाद को हतोत्साहित कर रही है। आतंकवादी घटनाएं होने पर मुख्यमंत्री तुरन्त उसकी निंदा करते हैं। सरकार का यह रवैया पूर्ववर्ती मुफ्ती मोहम्मद सईद और महबूबा मुफ्ती की सरकार से जुदा है जो बात-बात पर पाकिस्तान से वार्ता का राग अलापती थी। बहरहाल, इन दिनों पाकिस्तान के अंदर बलूचिस्तान के लिए स्वाधीनता की मांग करने वालों ने जिस तरह सक्रियता दिखाई है, उससे भी जम्मू-कश्मीर के अलगाववादियों को सबक मिला है। वे समझ रहे हैं कि पाकिस्तान के प्रति जो हसीन सपने उनको दिखाये गये हैं, वे निराधार हैं। पाकिस्तान अपने ही देश के बलूचों को डरा-धमका कर रख रहा है तो कश्मीर के अलगाववादियों के साथ अच्छा व्यवहार कैसे करेगा। हमारे केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने गत 25 मार्च को राज्यसभा में जब बताया कि अलगाववादी संगठन हुर्रियत कांफ्रेंस के दो घटक जेके पीपुल्स मूवमेंट और डेमोक्रेटिक पॉलिटिकल मूवमेंट ने अलगाववाद से किनारा करने की घोषणा की है, तो उस पर सहज ही विश्वास किया जा सकता है। वहां अलगाववाद कमजोर पड़ा है तो इसमंे मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और उपराज्यपाल मनोज सिन्हा का भी बड़ा योगदान है। केन्द्र सरकार को इस अवसर का फायदा उठाना चाहिए। जम्मू-कश्मीर वर्तमान में केन्द्र शासित राज्य है और उपराज्यपाल मनोज सिन्हा केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह के निर्देश पर ही काम करेंगे, इसलिए अमित शाह को फिर एक बड़ी जिम्मेदारी निभानी होगी।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गत 25 मार्च को कहा कि हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के दो घटकों-जेके पीपुल्स मूवमेंट और डेमोक्रेटिक पॉलिटिकल मूवमेंट- ने अलगाववाद से सभी संबंध तोड़ने की घोषणा की है। इस कदम का स्वागत करते हुए शाह ने कहा कि मोदी सरकार की एकीकरण नीतियों ने जम्मू-कश्मीर से अलगाववाद को खत्म कर दिया है। उन्होंने कहा कि अलगाववाद अब कश्मीर में इतिहास बनकर रह गया है। एक्स पर अपनी पोस्ट में अमित शाह ने लिखा, मोदी सरकार की एकीकरण नीतियों ने जम्मू-कश्मीर से अलगाववाद को खत्म कर दिया है। हुर्रियत से जुड़े दो संगठनों ने अलगाववाद से सभी संबंध तोड़ने की घोषणा की है। मैं भारत की एकता को मजबूत करने की दिशा में इस कदम का स्वागत करता हूं और ऐसे सभी समूहों से आग्रह करता हूं कि वे आगे आएं और अलगाववाद को हमेशा के लिए खत्म कर दें।उन्होंने कहा कि यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विकसित, शांतिपूर्ण और एकीकृत भारत के निर्माण के दृष्टिकोण की बड़ी जीत है। अलगाववादी गठबंधन हुर्रियत कॉन्फ्रेंस की स्थापना का मकसद राजनीतिक जरिए से कश्मीर के अलगाव के लक्ष्य को हासिल करना है। इसकी स्थापना 9 मार्च 1993 को की गई थी। भारतीय अधिकारियों का मानना है कि हुर्रियत कॉन्फ्रेंस जम्मू-कश्मीर में सक्रिय चरमपंथी संगठनों का प्रतिनिधित्व करती है।ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फ्रेंस की स्थापना 31 जुलाई 1993 को हुई थी। गत 27 दिसंबर 1992 को, 19 वर्षीय मीरवाइज उमर फारूक, जिन्होंने जम्मू-कश्मीर अवामी एक्शन कमेटी (जेएंडकेएएसी) के अध्यक्ष के रूप में पदभार संभाला था और अपने पिता मीरवाइज फारूक की हत्या के बाद कश्मीर के प्रमुख पुजारी बन गए थे, ने मीरवाइज मंजिल में धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक संगठनों की एक बैठक बुलाई, जिसके बाद अगले वर्ष गठन हुआ। एपीएचसी कार्यकारी परिषद में सात कार्यकारी दलों के सात सदस्य थे। जमात-ए-इस्लामी के सैयद अली शाह गिलानी, अवामी एक्शन कमेटी के मीरवाइज उमर फारूक, पीपुल्स लीग के शेख अब्दुल अजीज, इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन के मौलवी मोहम्मद अब्बास अंसारी, मुस्लिम कॉन्फ्रेंस के प्रोफेसर अब्दुल गनी भट, जेकेएलएफ के यासीन मलिक और पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अब्दुल गनी लोन। ये सभी अलगाव के समर्थक थे।
अब, कुछ कार्यकारी दलों का नेतृत्व समय के साथ बदल गया है जैसे पीपुल्स लीग के मुख्तार अहमद वाजा, इत्तेहाद-उल- मुस्लिमीन के मसरूर अब्बास अंसारी और पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के बिलाल गनी लोन, जिसका नाम बदलकर जेके पीपुल्स इंडिपेंडेंट मूवमेंट कर दिया गया है। हुर्रियत के अनुसार, जम्मू और कश्मीर एक विवादित क्षेत्र है और इस पर भारत का नियंत्रण उचित नहीं है। यह पाकिस्तान के इस दावे का समर्थन करता है कि कश्मीर विभाजन का अधूरा एजेंडा है और इसे जम्मू और कश्मीर के लोगों की आकांक्षाओं के अनुसार हल किया जाना चाहिए। एपीएचसी खुद को कश्मीरी लोगों का एकमात्र प्रतिनिधि मानता है। संगठन की प्राथमिक भूमिका जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियानों की छवि पेश करना और भारतीय सुरक्षा बलों के खिलाफ जनमत को संगठित करना है।
हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के भीतर आंतरिक मतभेद 7 सितंबर 2003 को औपचारिक विभाजन में परिणत हुए, जिसमें इसके 26 घटकों में से कम से कम 12 ने तत्कालीन अध्यक्ष मौलाना मोहम्मद अब्बास अंसारी को हटा दिया और उनकी जगह मसरत आलम को अंतरिम प्रमुख बना दिया। कथित तौर पर असंतुष्टों ने कट्टरपंथी और पाकिस्तान समर्थक जमात-ए-इस्लामी (जेईआई) के नेता सैयद अली शाह गिलानी के निवास पर मुलाकात की और अंसारी को पद से हटाने और एपीएचसी के सर्वोच्च निर्णय लेने वाले मंच, सात सदस्यीय कार्यकारी समिति को निलंबित करने का फैसला किया। हुर्रियत संविधान की समीक्षा करने और कार्यकारी समिति द्वारा लिये गए निरंकुश निर्णयों को पलटने के लिए संशोधनों का सुझाव देने के लिए पांच सदस्यीय समिति का गठन किया गया था। इसके बाद गिलानी ने हुर्रियत का अपना गुट ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस (जी) बनाया और 2003 में इसका नेतृत्व संभाला। बाद में उन्हें इसका आजीवन अध्यक्ष नियुक्त किया गया। इसमें 24 पार्टियाँ शामिल हैं। जमात-ए-इस्लामी से 2004 में मतभेदों के कारण उन्होंने तहरीक-ए-हुर्रियत नाम से अपनी पार्टी की स्थापना की। उन्हें अक्टूबर 2004 में पार्टी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
2014 में हुर्रियत कांफ्रेंस फिर से विभाजित हो गई। मीरवाइज उमर फारूक के नेतृत्व वाली उदारवादी हुर्रियत कांफ्रेंस को चार वरिष्ठ नेताओं द्वारा समूह के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों के खिलाफ विद्रोह का झंडा बुलंद करने के बाद विभाजन का सामना करना पड़ा। डेमोक्रेटिक फ्रीडम पार्टी के अध्यक्ष शब्बीर अहमद शाह, नेशनल फ्रंट के अध्यक्ष नईम अहमद खान, महाज-ए-आजादी के प्रमुख मोहम्मद आजम इंकलाबी और इस्लामिक पॉलिटिकल पार्टी के मोहम्मद यूसुफ नकाश ने मीरवाइज के खिलाफ हथियार उठा लिये थे, जब उन्होंने पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में संयोजक मोहम्मद यूसुफ नसीम को एक पत्र भेजकर उनसे उन नेताओं की खातिरदारी न करने को कहा था, जो अकेले समूह छोड़कर चले गए हैं। नेता शब्बीर शाह और उनके सहयोगी नईम खान शिया नेता आगा हसन के साथ सैयद अली गिलानी के नेतृत्व वाली हुर्रियत कांफ्रेंस (जी) में शामिल हो गये।
बहरहाल, इस केन्द्र शासित राज्य मंे प्रदेश सरकार और केन्द्र सरकार के प्रयास से विकास हो रहा है, जिससे अलगाववादियों का भ्रम टूट रहा है। हम यह नहीं समझते कि वहां अलगाववाद पूरी तरह समाप्त हो गया लेकिन
उसको समाप्त करने का यह बेहतर समय है। (हिफी)

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