लेखक की कलम

भाजपा-अद्रमुक संगमम् फिर

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
दक्षिण भारत मंे भाजपा अपने पैर जमाने का प्रयास लगातार कर रही है। इस क्रम में कर्नाटक और आंध्र प्रदेश मंे पार्टी को सफलता भी मिली लेकिन तमिलनाडु मंे उसके पैर नहीं जम पा रहे हैं। भाजपा ने स्वर्गीय जयललिता की पार्टी अन्नाद्रमुक के साथ समझौता किया था लेकिन वहां की जनता ने एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली द्रमुक को सत्ता सौंपी। द्रमुक के साथ कांग्रेस का गठबंधन है। कांग्रेस को लोकसभा चुनाव मंे भी इसका राजनीतिक लाभ मिला है। अब अगले साल वहां विधानसभा के चुनाव होने हैं। तमिलनाडु की जनता बारी-बारी से द्रमुक और अन्नाद्रमुक को सत्ता सौंपती रही है। इस परम्परा को देखें तब इस बार जयललिता की पार्टी अन्नाद्रमुक को सत्ता मिलनी चाहिए। भाजपा का अद्रमुक से समझौता लोकसभा चुनाव 2024 से पहले टूट गया था। भाजपा वहां एआई एडीएमके और तमिल मनीला कांग्रेस के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ेगी। गत दिनों केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह से अन्नाद्रमुक नेता और पूर्व मुख्यमंत्री ई. पलानी स्वामी की मुलाकात हुई थी। इससे पहले तमिल मनीला कांग्रेस (टीएमसी) के नेता जीके वासन ने भी अमित शाह से मुलाकात की थी। भाजपा और अन्नाद्रमुक ने पिछला विधानसभा चुनाव गठबंधन करके ही लड़ा था लेकिन लोकसभा चुनाव-2024 मंे दोनों अलग हो गये। इसका नुकसान भी दोनों को हुआ है। इसलिए अब अन्नाद्रमुक भी भाजपा से समझौता करने को इच्छुक है। तमिलनाडु की 234 सीटों पर चुनाव हुए थे। द्रमुक ने अकेले दम पर 133 सीटें हासिल की थीं। डीएमके के साथ गठबंधन मंे कांग्रेस ने भी 18 विधायक प्राप्त किये थे। तमिलनाडु मंे 10 सालों तक सत्ता पर काबिज रही अन्नाद्रमुक हैट्रिक नहीं लगा सकी हालांकि भाजपा से उसने समझौता किया था। अन्नाद्रमुक को सिर्फ 66 सीटें मिल पायीं और भाजपा ने भी 4 सीटों पर सफलता पाई थी। इस बार 2026 मंे भाजपा अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद कर रही है। परिसीमन को लेकर द्रमुक से विरोध है तथा भाषा का विवाद भी है।
तमिलनाडु में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए अद्रमुक और बीजेपी ने गठबंधन के लिए औपचारिक बातचीत शुरू कर दी है। ईपीएस के नाम से मशहूर एआईएडीएमके नेता एडप्पादी के पलानीस्वामी ने 25 मार्च को दिल्ली में केंद्रीय गृहमंत्री और वरिष्ठ बीजेपी नेता अमित शाह से मुलाकात की। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए दोनों दलों की यह पहली औपचारिक बातचीत थी। इस मुलाकात से पहले दोनों दलों के नेताओं ने कई हफ्ते तक अनौपचारिक बातचीत की।गठबंधन की औपचारिक घोषणा से पहले दोनों दलों में दो-तीन राउंड की और बातचीत होने की संभावना है। पलानीस्वामी एआईएडीएमके के उन नेताओं में शामिल रहे हैं, जो बीजेपी के साथ गठबंधन के पक्ष में नहीं थे लेकिन राजनीतिक मजबूरियों की वजह से उन्होंने अपना मन बदल दिया है। इससे पहले एआईएडीएमके ने बीजेपी से तब समझौता किया था, जब उसकी सबसे बड़ी नेता जे जयललिता का निधन हो गया था और पार्टी दो टुकड़ों में बंट गई थी। उस समय एआईएडीएमके सरकार के कई फैसलों पर बीजेपी का प्रभाव नजर आया था। साल 2019 के लोकसभा और 2021 के विधानसभा चुनाव में डीएमके को मिली भारी जीत के बाद पलानीस्वामी ने बीजेपी से दूरी बना ली। सितंबर 2023 में यह गठबंधन टूट गया था।
पिछले साल अर्थात् 2024 में हुए लोकसभा चुनाव में एमके स्टालिन की डीएमके और उनके साथी दलों ने शानदार प्रदर्शन किया। डीएमके ने उपचुनावों और नगर निकाय चुनावों में भी शानदार जीत दर्ज की। इससे डीएमके नेता एमके स्टालिन दक्षिण में बीजेपी विरोधी विपक्ष के चेहरे के रूप में स्थापित हो गए। इसने पलानीस्वामी को अपना मन बदलने के लिए मजबूर किया। एआईएडीएमके चाहती है कि बीजेपी के साथ गठबंधन की निगरानी के लिए एक हाई पावर कमेटी का गठन हो। यह कमेटी तमिलनाडु बीजेपी अध्यक्ष के अन्नामलाई से ऊपर होगी। दरअसल इससे एआईएडीएमके यह संदेश देना चाहती है कि वह सीधे बीजेपी हाई कमान से बात कर रहा है। दरअसल दोनों दलों का गठबंधन टूटने की वजह अन्नामलाई का एआईएडीएमके नेताओं पर जुबानी हमलों को माना जाता है। लगातार हमलों को 2023 में गठबंधन टूटने के प्रमुख कारणों में से एक माना जाता है। बीते साल हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी के साथ गठबंधन से पहले एआईएडीएमके अन्नामलाई को हटाने की मांग कर रही थी लेकिन बीजेपी ने इस मांग को अनसुना कर दिया था। इस वजह से गठबंधन नहीं हो पाया था।
तमिलनाडु में कुछ ऐसे मामले चल रहे हैं जिन पर अन्ना द्रमुक का भाजपा से मतभेद हो सकता है। इनमंे एक मामला लोकसभा क्षेत्रों के परिसीमन का है और दूसरा नयी शिक्षा नीति के तहत त्रिभाषा फार्मूले को लागू करने का। राज्य मंे अभी दो भाषाओं- तमिल और अंग्रेजी को ही माध्यम माना जा रहा है।
द्रमुक अध्यक्ष और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने लोकसभा परिसीमन मुद्दे पर राजनीतिक और कानूनी कार्य योजना तैयार करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का समर्थन किया। उन्होंने निष्पक्ष परिसीमन की वकालत करते हुए कहा कि लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व को मजबूत करने के उद्देश्य से उठाए गए कदमों में कोई समस्या नहीं है। लोकसभा परिसीमन के मुद्दे पर संयुक्त कार्रवाई समिति की पहली बैठक को संबोधित करते हुए स्टालिन ने कहा कि अगली जनगणना के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों का आगामी या भविष्य में होने वाला जनसंख्या आधारित परिसीमन कुछ राज्यों को बहुत अधिक प्रभावित करेगा। बैठक में केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी के अलावा कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डी के शिवकुमार और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के वरिष्ठ नेता के टी रामाराव शामिल हुए। स्टालिन ने कहा कि जिन राज्यों ने विभिन्न सामाजिक पहलों और प्रगतिशील कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से जनसंख्या को नियंत्रित किया है, वे इस कवायद के कारण संसदीय प्रतिनिधित्व में काफी कमी महसूस करेंगे। मुख्यमंत्री स्टालिन ने कहा कि इस बात को सबसे पहले समझते हुए उन्होंने इसी पांच मार्च को तमिलनाडु के सभी दलों की एक बैठक बुलाई।
स्टालिन ने आगे कहा, ‘‘मैंने यह स्पष्ट कर दिया है कि यदि मौजूदा जनसंख्या के आधार पर मौजूदा 543 सीटों को घटाया जाता है, तो तमिलनाडु को आठ सीटों का नुकसान होगा। यदि संसद में सीटों की कुल संख्या बढ़ाई जाती है, तो वर्तमान प्रतिनिधित्व के अनुसार वास्तविक वृद्धि की तुलना में तमिलनाडु को 12 सीटों का नुकसान होगा। मैंने कहा कि यह हमारे राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर सीधा प्रहार होगा।
द्रमुक अध्यक्ष ने कहा कि अगले दिन, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कोयंबटूर में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि तमिलनाडु और अन्य दक्षिणी राज्य आनुपातिक आधार पर संसदीय सीटें नहीं खोएंगे और यह अस्पष्ट एवं भ्रामक था। स्टालिन के अनुसार, प्रधानमंत्री ने निम्नलिखित टिप्पणी की थी कांग्रेस पार्टी कह रही है कि जाति जनगणना कराई जानी चाहिए और समुदायों को जनसंख्या के आधार पर प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए। अगला कदम परिसीमन है। यदि संसद निर्वाचन क्षेत्रों को वर्तमान जनसंख्या के आधार पर बदल दिया जाता है जैसा कि कांग्रेस पार्टी कह रही है, तो दक्षिणी राज्य 100 सीटें खो देंगे। क्या दक्षिण भारत के लोग इसे स्वीकार करेंगे।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने कहा कि मोदी की इस टिप्पणी के आधार पर,
यह समझा जा सकता है कि प्रधानमंत्री ने खुद स्वीकार किया है कि परिसीमन से निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या कम हो जाएगी। इसी प्रकार त्रिभाषा फार्मूले पेर भी द्रमुक विरोध कर रही है और अन्ना द्रमुक को भी उसका समर्थन करना पड़ रहा है। (हिफी)

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