लेखक की कलम

विपक्षी एकता के नये समीकरण

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
राजनीति में एकता और बिखराव के समीकरण बनते और बिगड़ते रहते हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव के समय आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के अलग-अलग चुनाव लड़ने पर विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया के घटक अलग-अलग खेमे में खड़े दिखाई पड़े थे। उस समय कांग्रेस को एक तरह से किनारे कर दिया गया था लेकिन पश्चिम बंगाल मंे शिक्षकों और गैर शिक्षकों की भर्ती को लेकर सुप्रीम कोर्ट के नतीजे के बाद नये समीकरण बनते दिख रहे हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान के साथ विरोध किया है और शिक्षकों की भर्ती रद्द करने के पीछे भाजपा और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की साजिश बताया। इस मामले मंे कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ममता बनर्जी के साथ खड़े हैं। ममता बनर्जी कांग्रेस को हटाकर विपक्षी गठबंधन की नेता बनने की सहमति भी जता चुकी थीं लेकिन अब राहुल गांधी उनके समर्थन मंे खुलकर खड़े हो गये हैं। विपक्षी दलों के अन्य नेता अभी इस मामले पर खुलकर नहीं बोले। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस ने माकपा के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव भी लड़ा था लेकिन अब राहुल गांधी अपने उस साथी को छोड़कर ममता बनर्जी के साथ खड़े हो गये हैं। उधर, शिक्षकों और गैर शिक्षकों की भर्ती पर सीबीआई जांच की मांग को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज करके ममता बनर्जी सरकार को राहत दी है। सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को कलकत्ता हाईकोर्ट ने उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से स्कूल सेवा आयोग (एसएससी) भर्ती प्रक्रिया में शिक्षकों और गैर शिक्षक कर्मियों के लिए 6861 अतिरिक्त पद सृजित करने के फैसले की सीबीआई जांच का आदेश दिया गया था।
कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी एक बार फिर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के समर्थन में खड़े हुए हैं। उन्होंने शिक्षक भर्ती प्रक्रिया को रद्द करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हजारों शिक्षकों की नौकरी बचाने के लिए बड़ा कदम उठाया है। राहुल गांधी ने 8 अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को एक पत्र लिखकर इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की है। इस पत्र में उन्होंने उन शिक्षकों के लिए न्याय की गुहार लगाई है। राहुल का कहना है कि इन लोगों ने निष्पक्ष तरीके से चयन प्रक्रिया पास की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उनकी नौकरी छिन गई। राहुल गांधी ने अपने आधिकारिक एक्स हैंडल पर इसकी जानकारी देते हुए लिखा, ‘मैंने भारत की माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी को पत्र लिखकर पश्चिम बंगाल में हजारों योग्य स्कूल शिक्षकों के मामले में उनकी दयालु हस्तक्षेप की मांग की है, जिन्होंने न्यायपालिका द्वारा शिक्षक भर्ती प्रक्रिया रद्द करने के बाद अपनी नौकरी खो दी है। मैंने उनसे आग्रह किया है कि सरकार को निर्देश दें कि जो उम्मीदवार निष्पक्ष तरीके से चुने गए थे, उन्हें अपनी नौकरी पर बने रहने की अनुमति दी जाए।’ राहुल गांधी का यह कदम पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के उस बयान के बाद आया है, जिसमें उन्होंने कहा था, ‘हम उन लोगों के साथ खड़े हैं जिन्होंने अपनी नौकरी खो दी है।’ राहुल गांधी ने इस मामले में ममता बनर्जी का समर्थन करते हुए राष्ट्रपति से हस्तक्षेप की मांग की है। राहुल गांधी ने अपने पत्र में राष्ट्रपति से आग्रह किया है कि वह सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दें कि जिन उम्मीदवारों ने निष्पक्ष तरीके से चयन प्रक्रिया पास की थी, उनकी नौकरी बरकरार रहे। यह मांग सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एक नया सियासी मोड़ ला सकती है, क्योंकि यह मामला न केवल शिक्षकों की आजीविका से जुड़ा है, बल्कि पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ टीएमसी और विपक्षी दलों के बीच तनाव को भी बढ़ा सकता है।
पश्चिम बंगाल शिक्षक भर्ती मामले में ममता सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को कलकत्ता हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से स्कूल सेवा आयोग (एसएससी) भर्ती प्रक्रिया में शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों के लिए 6,861 अतिरिक्त पद सृजित करने के फैसले की सीबीआई जांच का आदेश दिया गया था। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि अदालतों को कैबिनेट की ओर से लिये गए फैसलों की जांच का निर्देश देने से रोक है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को ‘गलत’ भी बताया। हाालंकि, सीजेआई संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की बेंच ने स्पष्ट किया कि पश्चिम बंगाल के सरकारी और सहायता प्राप्त विद्यालयों में 25,753 शिक्षकों और कर्मचारियों की नियुक्ति से संबंधित अन्य पहलुओं की जांच जारी रहेगी।
इस प्रकार अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले पश्चिम बंगाल की सियासत एक बार फिर 2016 के शिक्षक भर्ती घोटाले (एसएससी घोटाला) को लेकर गरमा गई है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने ममता बनर्जी सरकार को तगड़ा झटका दिया है, और 26,000 शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नौकरियां रद्द कर दी हैं। इस फैसले के बाद राज्य में राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने फैसले से प्रभावित शिक्षकों से मुलाकात की और इस घोटाले से लगे दाग को धोने की कोशिश की, लेकिन विपक्षी दल भाजपा ने इसे मुद्दा बनाकर सरकार पर हमला तेज कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने ममता सरकार पर लगे दाग को फिर से उजागर कर दिया है। ममता इसे धोने की कोशिश में हैं, लेकिन भाजपा इसे 2026 के विधानसभा चुनाव में बड़ा हथियार बनाने की तैयारी में है। शिक्षक भर्ती घोटाले ने न केवल ममता की छवि को नुकसान पहुंचाया है, बल्कि लाखों परिवारों को अनिश्चितता में डाल दिया है। भाजपा का कहना है कि वे इस मुद्दे को तब तक नहीं छोड़ेंगे, जब तक ममता सरकार जवाबदेह नहीं ठहराई जाती। दूसरी ओर, प्रभावित शिक्षकों का आक्रोश और सड़क पर बढ़ता विरोध ममता के लिए नई चुनौती बन रहा है। ममता बनर्जी ने शिक्षकों से कहा, ‘मैं कोर्ट का फैसला व्यक्तिगत तौर पर स्वीकार नहीं करती। अगर ऐसा कहने की वजह से मुझे जेल जाना पड़े, तो मैं तैयार हूं।’ ममता ने दावा किया कि उनके पास प्लान बी, प्लान सी और प्लान डी तैयार हैं, और वे किसी भी हाल में योग्य शिक्षकों की नौकरी नहीं जाने देंगी। सीएम ने सुप्रीम कोर्ट से ‘क्लैरिफिकेशन’ मांगने की बात कही। ममता ने शिक्षकों से अपील की कि अगर कोर्ट काम करने से रोकता है, तो वे ‘वॉलंटरी’ तौर पर पढ़ाना जारी रखें। हालांकि, इस बयान पर शिक्षकों और विपक्ष ने तीखी प्रतिक्रिया दी। पुलिस से हाथापाई भी हुई और एक शिक्षक को मंच पर रोते हुए भी देखा गया।
भाजपा के नेता और विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने ममता पर निशाना साधते हुए कहा, यह मुख्यमंत्री की बैठक नहीं, बल्कि टीएमसी की राजनीतिक सभा थी। सिर्फ 7,000 लोगों को अंदर जाने दिया गया, जिनके पास टीएमसी दफ्तर से जारी पास थे। अगर वे वास्तव में मुख्यमंत्री के तौर पर बैठक करतीं, तो 26,000 लोगों को बुलातीं। शुभेंदु ने प्रभावित शिक्षकों से मुलाकात की और विधानसभा में भाजपा विधायकों के साथ विरोध प्रदर्शन भी किया। केंद्रीय मंत्री और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजुमदार ने कहा, ‘लोगों को चाहिए कि वे टीएमसी नेताओं से अपने पैसे वापस मांगें। अगर वे न दें, तो उन्हें रस्सी से बांधकर कालीघाट खींच लाएं। सरकार खुद वॉलंटरी हो गई है, और अब शिक्षकों से मुफ्त काम करवाना चाहती है। भाजपा ने इस मुद्दे को सड़क पर भी उतारा। दूसरी ओर, यह सवाल अनसुलझा है कि 26,000 प्रभावित लोगों में से योग्य और अयोग्य की पहचान कैसे होगी। ममता ने कोर्ट से इसकी सूची मांगने की बात कही, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रक्रिया जटिल होगी। (हिफी)

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