उपचुनाव में भी ममता अजेय

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
ममता बनर्जी की पश्चिम बंगाल की जनता पर पकड़ मजबूत है, यह बात नदिया जिले की कालीगंज विधानसभा सीट के उपचुनाव ने भी साबित कर दी है। तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख और पश्चिम बंगाल की लगातार तीन बार से मुख्यमंत्री चुनी जाने वाली ममता बनर्जी ने न सिर्फ भाजपा को पटकनी दी है बल्कि कांग्रेस और वामपंथी दलों को भी उनकी औकात बता दी है। यह बात भी समझ में नहीं आती कि विपक्षी दलों के महागठबंधन को मजबूत करने का दम भरने वाली कां्रगेस पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को स्वीकार क्यों नहीं रही है। लोकसभा और विधानसभा के चुनाव होते तब कहा जा सकता था कि कांग्रेस अपना जनाधार बचाने का प्रयास कर रही है लेकिन यह तो एक विधानसभा सीट पर उपचुनाव था, जहां हार और जीत से कांगे्रस और वामपंथी दलों को कुछ भी मिलने वाला नहीं था लेकिन कांग्रेस और वामपंथी दल उपचुनाव में उतरे। इस प्रकार ममता बनर्जी के साथ भाजपा की लड़ाई में ये दोनों दल भी अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा का साथ दे रहे थे। कांग्रेस के राष्ट्रीय
अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को यह तथ्य गंभीरता से समझना होगा। राहुल गांधी भी पार्टी संगठन को मजबूत करने का जो अभियान चला रहे हैं, उसकी सफलता भी विपक्षी दलों की एकता पर निर्भर करती है। ममता बनर्जी पर हिन्दू विरोधी होने का आरोप लगाया गया। मुर्शिदाबाद जैसे दंगों पर कोर्ट ने भी सरकार को कठघरे मंे खड़ा किया लेकिन राज्य की जनता ममता बनर्जी पर ही विश्वास करती है। कालीगंज विधानसभा सीट के उपचुनाव में टीएमसी ने नसीरुद्दीन की बेटी अलीफा अहमद को मैदान मंे उतारा था। अलीफा ने भाजपा के आशीष घोष को 51 हजार से अधिक वोटों से पराजित किया है।
पश्चिम बंगाल के नदिया जिले की कालीगंज विधानसभा सीट टीएमसी ने जीत ली है। टीएमसी ने यह सीट 50 हजार से भी ज्यादा मतों के अंतर से जीती है। टीएमसी विधायक नसीरुद्दीन अहमद की मौत के बाद इस सीट पर उपचुनाव हुए थे। टीएमसी ने नसीरुद्दीन की 38 वर्षीय बेटी अलीफा अहमद को उम्मीदवार बनाया, जबकि भारतीय जनता पार्टी ने आशीष घोष और कांग्रेस ने माकपा समर्थित काबिल उद्दीन शेख को मैदान में उतारा। अलीफा ने बीजेपी के आशीष घोष को 51,334 वोटों के अंतर से हराया, जिससे टीएमसी ने इस सीट पर अपनी पकड़ बरकरार रखी। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सीएम ममता बनर्जी का जादू अभी भी बंगाल में कायम है? या मुस्लिम बहुल सीट होने से टीएमसी कैंडिडेट की जीत हुई है?
कालीगंज सीट पर टीएमसी की जीत मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण है। कालीगंज में 19 जून को 60.32 फीसद मतदान हुआ। खास बात यह है कि 2021 की तुलना में मतदान कम था। कम मतदान के बावजूद टीएमसी की जीत ने साबित किया कि ममता का जनाधार अल्पसंख्यक और ग्रामीण वोटरों के बीच अभी भी मजबूत है। अलीफा को नसीरुद्दीन की विरासत और ममता की लोकप्रिय योजनाओं जैसे लक्ष्मी भंडार और स्वास्थ साथी का लाभ मिला। प्रचार के दौरान ममता ने स्थानीय विकास और सामाजिक कल्याण पर जोर दिया, जिसने मतदाताओं को आकर्षित किया। बीजेपी के लिए यह हार एक बड़ा झटका है। गत 2024 के लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में 42 में से केवल 12 सीटें जीतने के बाद, बीजेपी को कालीगंज में उम्मीद थी कि वह टीएमसी के गढ़ में सेंध लगा सकती है। आशीष घोष ने बुनियादी ढांचे और भ्रष्टाचार के मुद्दों को उठाया, लेकिन वह कमाल नहीं कर पाए। बीजेपी अगर यह चुनाव जीतती तो साल 2026 के लिए टॉनिक का काम करता लेकिन अब बीजेपी की हार हुई है। ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले उसके लिए चिंता का विषय हो सकता है। दूसरी ओर कांग्रेस-माकपा गठबंधन भी इस उपचुनाव में प्रभाव नहीं छोड़ सका। काबिल उद्दीन शेख की हार ने गठबंधन की कमजोर स्थिति को उजागर किया, जो टीएमसी और बीजेपी के बीच त्रिकोणीय मुकाबले में पिछड़ गया। यह परिणाम 2026 के चुनावों में विपक्षी एकता की चुनौतियों को दर्शाता है। ममता के लिए यह जीत 2024 के उपचुनावों में छह सीटों पर क्लीन स्वीप और लोकसभा में 29 सीटों की सफलता को दर्शाता है।
कुल मिलाकर बंगाल में अभी भी ममता का जादू लोगों के दिलोदिमाग पर सिर चढ़कर बोल रहा है। टीएमसी की क्षेत्रीय ताकत और ममता की रणनीतिक कुशलता आने वाले चुनाव में भी इसी तरह बरकरार रहती है तो यह बीजेपी के लिए खतरे की घंटी है। हालांकि, कम मतदान और स्थानीय मुद्दों जैसे टूटी सड़कों पर असंतोष, भविष्य में चुनौतियां पेश कर सकते हैं। फिर भी, कालीगंज की जीत ने ममता को 2026 से पहले मनोवैज्ञानिक बढ़त दी है, जबकि बीजेपी को अपनी रणनीति पर एक बार फिर से विचार करने लिए मजबूर कर दिया है।
4 राज्यों की 5 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में से 2 सीटों पर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार को जीत मिली है। वहीं कांग्रेस, बीजेपी, और टीएमसी को एक-एक सीट पर जीत मिली है। गुजरात के कडी सीट से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार राजेंद्र चावड़ा चुनाव जीत गए हैं। वहीं विसावदर सीट से आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार गोपाल इटालिया चुनाव जीत गए हैं। केरल के नीलांबुर सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार ने माकपा के उम्मीदवार को हरा कर एक बार फिर सीट बरकरार रखी है। चुनाव आयोग के मुताबिक, 19 जून को केरल की नीलांबुर सीट पर उपचुनाव में 75.27 प्रतिशत वोट पड़े थे। पश्चिम बंगाल की कालीगंज सीट पर 73.36 प्रतिशत मतदाताओं ने वोट डाले थे। गुजरात की विसावदर सीट पर 56.89 प्रतिशत और कडी सीट पर 57.91 प्रतिशत मतदान हुआ था। पंजाब की लुधियाना पश्चिम सीट पर 51.33 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गय था। गुजरात की कडी सीट विधायक करसन सोलंकी के निधन के बाद खाली हुई, जबकि विसावदर में आप विधायक भूपेंद्र भयानी ने इस्तीफा दिया था। केरल की नीलांबुर विधानसभा सीट विधायक पीवी अनवर के इस्तीफे के बाद खाली हुई। पंजाब की लुधियाना पश्चिम सीट से विधायक गुरप्रीत बस्सी गोगी का निधन हुआ था, जिससे उपचुनाव की स्थिति बनी। इसी तरह कालीगंज सीट विधायक नसरुद्दीन अहमद के निधन के बाद खाली हुई थी। सभी 5 विधानसभा सीटों पर उपचुनावों को लेकर 26 मई को अधिसूचना जारी हुई थी। इसके बाद 2 जून तक नॉमिनेशन दाखिल करने की प्रक्रिया चली। उम्मीदवारों के लिए नाम वापस लेने की आखिरी तारीख 5 जून थी। इन उपचुनावों से चुनाव आयोग ने नई पहल शुरू की। पहली बार मतदाताओं के लिए मोबाइल डिपॉजिट सुविधा की शुरुआत की गई। (हिफी)