विश्व बैंक की रिपोर्ट से उम्मीदें

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)
¨ 2011-12 में 34.45 करोड़ थे अत्यधिक गरीब।
¨ 2023-24 में इनकी संख्या रह गयी 7.52 करोड़।
¨ विश्व बैंक ने जारी किये हैं आंकड़े।
हर मुद्दे पर विपक्षी नेता बेशक सरकार की कितनी ही आलोचना करें लेकिन सरकार और देश के लिए एक काफी अच्छी खबर है कि देश काफी तेजी से गरीबी के अभिशाप से मुक्ति की दिशा की ओर बढ़ रहा है। यह दावा सरकार नहीं विश्व बैंक कर रहा है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार भारत में पिछले 11 वर्षों में 26.9 करोड़ लोग अत्यधिक गरीबी से बाहर निकले हैं, जो निःसंदेह एक बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है। चरम गरीबी दर 2011-12 के 27.1 फीसदी से गिरकर 2022-23 में 5.3 प्रतिशत पर पहुंच गई। विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, 2011-12 में देश में 34.45 करोड़ लोग चरम गरीबी में जीवनयापन कर रहे थे, जो 2022-23 में घटकर 7.52 करोड़ रह गए है। सबसे बड़ी बात यह है कि दुनिया भर में चरम गरीबों की संख्या में वृद्धि हो रही है, इसके विपरीत भारत में गरीबी का दायरा काफी तेजी से घट रहा है। विश्व बैंक के अनुसार पूरी दुनिया में चरम गरीबी की संख्या में 12.5 करोड़ की वृद्धि हुई है, मगर भारत इस मामले में एक सकारात्मक अपवाद सावित हुआ है।
हाल ही में जारी रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार भारत में 2011-12 के दौरान कुल 344.47 मिलियन (34 करोड़ 44 लाख 70 हजार) लोग अत्यधिक गरीबी में रह रहे थे, जो कि 2022-23 के दौरान घटकर लगभग 75.24 मिलियन (7 करोड़ 52 लाख 40 हजार) लोग रह गए हैं। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश पांच राज्यों में 2011-12 के दौरान भारत के 65 प्रतिशत अत्यंत गरीब लोग रहते थे। वहीं, इन राज्यों ने 2022-23 तक अत्यधिक गरीबी में होने वाली कुल गिरावट में दो-तिहाई योगदान दिया है। विश्व बैंक का आकलन 3.00 डॉलर प्रतिदिन की अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा (2021 की कीमतों का उपयोग कर) पर आधारित है, जो कि ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में व्यापक कमी दर्शाता है। विश्व बैंक के अनुमानों के अनुसार, 2.15 डॉलर प्रतिदिन की खपत पर (2017 की कीमतों पर आधारित पिछली गरीबी रेखा) अत्यधिक गरीबी में रहने वाले भारतीयों की हिस्सेदारी 2.3 प्रतिशत है, जो 2011-12 में दर्ज 16.2 प्रतिशत से काफी कम है। नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, 2022 में 2.15 डॉलर प्रतिदिन की गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या 33.66 मिलियन दर्ज की गई है, जो 2011 में 205.93 मिलियन दर्ज की गई थी। आंकड़ों से यह भी पता चला कि यह तीव्र गिरावट समान रूप से देखी गई, जिसमें ग्रामीण क्षेत्र में अत्यधिक गरीबी 18.4 प्रतिशत से घटकर 2.8 प्रतिशत हो गई और शहरी क्षेत्र में अत्यधिक गरीबी पिछले 11 वर्षों में 10.7 प्रतिशत से घटकर 1.1 प्रतिशत हो गई।
आपको बता दें कि विश्व बैंक रिपोर्ट के अनुसार भारत ने बहुआयामी गरीबी को कम करने में भी शानदार प्रगति की है। आंकड़ों के अनुसार, बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) 2005-06 में
53.8 प्रतिशत से घटकर 2019-21 तक 16.4 प्रतिशत हो गया और 2022-23 में और अधिक घटकर 15.5 प्रतिशत हो गया। पांच सबसे अधिक आबादी वाले राज्यों में 54 प्रतिशत अत्यंत गरीब लोग रहते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में अत्यधिक गरीबी 18.4 प्रतिशत से घटकर 2.8 प्रतिशत हो गई है। शहरी क्षेत्रों में यह 10.7 प्रतिशत से घटकर 1.1 प्रतिशत हो गई है, जिससे ग्रामीण शहरी अंतर 7.7 प्रतिशत से घटकर 1.7 प्रतिशत रह गया है। यह 16 प्रतिशत की वार्षिक गिरावट है। इसके अलावा, भारत ने बहुआयामी गरीबी को कम करने में भी शानदार प्रगति की है। बहुआयामी गरीबी सूचकांक 2005-06 में 53.8 प्रतिशत से घटकर 2019-21 तक 16.4 प्रतिशत हो गया और 2022-23 में और अधिक घटकर 15.5 प्रतिशत हो गया है। निःसंदेह केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार की बड़ी उपलब्धि है। साफ है कि पिछले 11 सालों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की एनडीए सरकार ने लोगों को गरीबी से उबारने के महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, जिसका फायदा दिख रहा है। दरअसल सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने पूववर्ती कांग्रेस की योजनाओं को जारी रखते हुए कई अन्य योजनाओं की शुरूआत की है, जिसका लाभ गरीबों को मिल रहा है। आवास योजना से लोगों को घर मिले, उज्ज्वला योजना से स्वच्छ रसोई गैस कनेक्शन, जन धन योजना से बैंक खाते और आयुष्मान भारत से मुफ्त इलाज की सुविधा दी गई। इसके अलावा डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी), डिजिटल सर्विसेज और ग्रामीण विकास से जुड़े कामों ने
भी गरीबों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाया है।
गौरतलब बात यह है कि गरीबों के कल्याण के लिए जो योजनाएं लागू की गयी हैं उसे पारदर्शी बनाया गया है। उससे वास्तविक गरीबों को समुचित लाभ मिलने लगा है। गरीबों के बैंक खाते खोले गए हैं, जिसमें सीधे राशि आ जाती है। इसलिए अब सरकारी मदद में बिचैलिए सेंध नहीं लगा पा रहे हैं। नतीजतन गरीबों के जीवन स्तर में लगातार सुधार परिलक्षित हो रहा है। सरकार वास्तविक गरीबों के हितों का संरक्षण जरूर कर रही है लेकिन उनके हक पर डाका डालने वाले फर्जी गरीबों के खिलाफ उतनी तेजी से अभियान नहीं चला रही है जैसा अपेक्षित है। इसके अलावा भारत की अर्थव्यवस्था ने इस दौरान तेजी से विकास किया है, जिससे रोजगार के अवसर बढ़े हैं। विश्व बैंक के अनुसार, यह विकास न केवल शहरी क्षेत्रों में, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी देखा गया है। विश्व बैंक ने भी इस बात को माना है कि मुफ्त और रियायती खाद्यान्न वितरण से गरीबी में कमी आई है और ग्रामीण व शहरी गरीबी का अंतर कम हुआ है। हालांकि अर्थव्यवस्था के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की वास्तविक जीडीपी वित्त वर्ष 2025 तक कोरोना के पहले के स्तर से लगभग 5 प्रतिशत कम है। विश्व बैंक ने यह भी कहा है कि यदि वर्तमान वैश्विक अनिश्चितताओं का व्यवस्थित ढंग से समाधान कर लिया जाता है तो 2027-28 तक भारत का विकास धीरे-धीरे अपनी संभावित स्थिति में पहुंच जाएगा। हालांकि भारतीय आर्थिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण नकारात्मक जोखिम विद्यमान हैं और इसका कारण वैश्विक स्तर पर नीतिगत बदलाव जारी रहना है। रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर तनाव बढ़ने से भारत के निर्यात की मांग कम होगी और निवेश में सुधार में और देरी होगी। साफ है कि भारत के समक्ष चुनौतियां बरकरार हैं। खुशी की बात है कि गरीबी घटी है, लेकिन अभी भी सात करोड़ से ज्यादा लोग अत्यधिक गरीबी के नीचे जीवनयापन कर रहे हैं। इसलिए भारत को अपनी संवेदनशील आबादी की जरूरतों को हल करने के लिए और बेहतर व्यवस्था की आवश्यकता है। देश में समतापूर्ण और संतुलित विकास पर ध्यान देना होगा। हालांकि इन चुनौतियों के बाद बावजूद भारत ने अत्यधिक गरीबी को कम करने में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर हासिल किया है, जो आने वाले वर्षों में यह उम्मीद जगाता है कि भारत जल्द ही गरीबी के दलदल से बाहर निकल आयेगा बशर्ते जनसंख्या नियंत्रण पर पर्याप्त ध्यान रखना होगा। क्योंकि यही एक बड़ी वजह है जो सारी योजनाओं को विफल करने मे बड़ी भूमिका निभा रही है और सरकारी स्तर से जुटाए गए तमाम संसाधन कम पड़ जाते हैं। (हिफी)