लेखक की कलम

तेजस्वी के लिए मतदाता सूची बड़ा मुद्दा

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
चुनाव के समय सत्तापक्ष और विपक्ष के लिए मुद्दे बहुत महत्व रखते हैं। बिहार मंे तीन महीने बाद ही विधानसभा के चुनाव होने हैं। अभी एक ताजा मुद्दा सामने आया है। चुनाव आयोग ने राज्य में मतदाता सूचियों के पुनर्मूल्यांकन का निर्णय लिया है। विपक्षी दलों के गठबंधन- इंडिया गठबंधन के लगभग एक दर्जन नेताओं ने 2 जुलाई को चुनाव आयोग से मुलाकात कर विरोध दर्ज कराया है। मतदाता सूचियों के स्पेशल इंटेसिव रिवीजन (एसआईआर) को लेकर तेजस्वी यादव के नेतृत्व मंे विपक्षी दल एकजुट भी हैं। अब तक राज्य मंे जातीय जनगणना का मुद्दा जोरदार तरीके से उछाला जा रहा था। भाजपा की केन्द्र सरकार ने जनगणना के साथ जातीय जनगणना की घोषणा करके यह मुद्दा विपक्षी दलों से छीन लिया था। हालांकि राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस के नेता इस मामले मंे अपनी राजनीतिक जीत बताते हैं लेकिन आम जनता तक कोई खास संदेश नहीं गया था। इसीलिए राजद के नेता और राज्य के पूर्व डिप्टी सीएम रहे तेजस्वी यादव ने वक्फ कानून का मुद्दा उठाया था। वह जनसभाओं मंे खुलेआम घोषणा करने लगे कि उनकी सरकार बनी तो वक्फ कानून को फाड़कर फेंक दिया जाएगा। इस पर भाजपा-राजद के बीच वाक्युद्ध चल ही रहा था कि एसआईआर का मामला आ गया है। बिहार मंे मतदाता सूचियों के स्पेशल इंटेसिव रिवीजन के मुद्दे पर कांगे्रस सांसद अभिषेक मनु सिंघवी का कहना है कि जांच के समय सामान्य रूप से आधार कार्ड और राशन कार्ड मांगा जाता है लेकिन एसआईआर मंे
चुनाव आयोग जन्म प्रमाण पत्र मांग रहा है। एक महीने में इस प्रकार का दस्तावेज पेश करना मुमकिन नहीं है। इसी प्रकार राजद नेता मनोज झा कहते हैं कि चुनाव आयोग के साथ मुलाकात सौहार्दपूर्ण नहीं रही। हमने आयोग को तेजस्वी यादव का पत्र भी सौंपा। अफसोस है कि चुनाव आयोग को गरीबों और पिछड़ों की चिंता नहीं है। मनोज झा ने आरोप लगाया कि एसआईआर करोड़ों लोगों को उनके वोट के अधिकार से वंचित कर देगी। बहरहाल, अब विपक्षी दलों को इस मुद्दे ने एकजुट किया है।
गत 24 जून को निर्वाचन आयोग ने एसआईआर का आदेश जारी किया था। यह 26 जुलाई 2025 तक कम्पलीट करना है। तेजस्वी यादव कहते हैं कि पीएम मोदी ने निर्वाचन आयोग को समस्त मतदाता सूची निरस्त कर केवल 25 दिन मंे नयी सूची बनाने का निर्देश दिया है। जरा सोचिए कोसी नदी के किनारे बसे खोखनाहा गांव का बाढ़ की वजह से भूगोल बदलता रहता है। प्रियंका इसी गांव में रहती हैं। उनके पति पंजाब में मजदूरी करते हैं। घर पर दो बच्चे, उनके बूढ़े सास-ससुर और मवेशी हैं। प्रियंका एसआईआर में लगने वाले दस्तावेजों के बारे में कहती हैं, सारा कागज (डॉक्यूमेंट्स) तो पिछली बाढ़ में बह गया। सरकार अब कौन सा कागज खोजती है? वह कहती हैं, अभी पानी आ गया है और हम जान-माल, बाल-बच्चा छोड़कर कागज का इंतजाम करें? खोखनाहा से तकरीबन 250 किलोमीटर पटना के दानापुर स्टेशन से सटी लखनी बिगहा मुसहरी है। यहां मुसहर समुदाय के लोग रहते हैं। लाल जी कुमार इनके विकास मित्र है। उन पर सरकारी योजनाएं, मुसहरी में पहुंचाने की जिम्मेदारी है। लाल जी कहते हैं, मांझी (मुसहर) लोग अशिक्षित हैं। उनके पास कोई डॉक्यूमेंट नहीं हैं। आधार कार्ड तक नहीं है। वो लोग वोट क्या करेंगे? इस प्रकार कई प्रियंका और लालजी मतदाता सूची के पुनर्मुल्यांकन का विरोध कर रहे हैं।
बिहार साल दर साल बाढ़ झेलने और काम की तलाश में पलायन करती आबादी जैसी चुनौतियों से जूझ रहा है। विकास के कई मापदंड़ों में काफी निचले स्तर पर आने वाले इस राज्य के लोग अब इस नए फैसले के बाद परेशानी का सामना कर रहे हैं। आजकल बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी के कार्यालय में लगातार चल रही मीटिंग्स और मतदाताओं के अपने डॉक्यूमेंट्स तलाशने की कवायद, इसकी गवाही देते हैं। बिहार की विपक्षी पार्टियों ने इस कदम की तीखी आलोचना की है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने इसे श्लोकतंत्र को कमजोर करने की कोशिश बताया है। उन्होंने एक्स पर लिखा है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने निर्वाचन आयोग को
बिहार की समस्त मतदाता सूची को निरस्त कर केवल 25 दिन में 1987 से पूर्व के कागजी सबूतों के साथ नई मतदाता सूची बनाने का निर्देश दिया है। चुनावी हार की बौखलाहट में ये लोग अब बिहार और बिहारियों से मतदान का अधिकार छीनने का षड्यंत्र कर
रहे हैं।
वहीं बीजेपी नेता जनक राम का कहना है, विपक्ष बांग्लादेश और रोहिंग्या की राजनीति करना चाहता है। बिहार की जनता अब उनके झांसे में नहीं आएगी। सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच इस आरोप-प्रत्यारोप से इतर समाजविज्ञानी भी बिहार जैसे चुनौतीपूर्ण राज्य के लिए इस एक्सरसाइज की टाइमिंग को गलत मानते हैं। वह कहते हैं, ये बिहार की एक बड़ी आबादी की पॉलिटिकल सिटिजनशिप पर आफत है। सरकार एक तरह से एनआरसी को बैकडोर से लागू करने की कोशिश कर रही है। सरकार के इस कदम से लोग खासतौर पर हाशिए की आबादी वोटिंग के अधिकार से वंचित होगी। उनका कहना है, यहां पलायन है, बाढ़ प्रभावित इलाके में लोगों के कागज हर साल बाढ़ में बहते हैं, लोग शिक्षित नहीं हैं। ये केरल जैसे राज्य में होता तो भी समझ में आता, लेकिन बिहार इसके लिए तैयार नहीं है।
बहरहाल, बिहार विधानसभा चुनावों को लेकर एनडीए और महागठबंधन के बीच राजनीतिक लड़ाई अब और तेज हो रही है। खासकर, मतदाता सूची में बदलाव जैसे मुद्दों ने इस चुनावी माहौल को और भी गर्म कर दिया है। बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर ‘इंडिया’ गठबंधन के घटक दलों के नेताओं ने निर्वाचन आयोग से मुलाकात कर इस कवायद को कराने के समय से जुड़ी अपनी चिंताओं से अवगत कराया। उन्होंने आरोप लगाया कि विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कराई जा रही इस कवायद के कारण राज्य के दो करोड़ लोग वोट डालने का अधिकार खो सकते हैं। इंडिया’ गठबंधन के कई घटक दलों के नेताओं ने बिहार में जारी मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर 2 जुलाई को निर्वाचन आयोग का रुख किया और अपनी चिंताओं से अवगत कराया। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) लिबरेशन समेत 11 दलों के नेताओं ने मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार और अन्य चुनाव आयुक्तों से मुलाकात की और राज्य में विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले किए जा रहे विशेष पुनरीक्षण को लेकर आपत्ति जताई।
उधर, बिहार विधानसभा चुनाव के लिए मतदाता सूची का पुनरीक्षण कार्य तेजी से चल रहा है। जिलाधिकारी ने बताया कि इसका उद्देश्य सभी पात्र नागरिकों को मतदाता सूची में शामिल करना है और अपात्रों को हटाना है। 1 जुलाई 2025 को अर्हता तिथि मानकर 25 जून से 26 जुलाई तक घर-घर सर्वेक्षण किया जाएगा और 30 सितंबर को अंतिम सूची प्रकाशित की जाएगी। मतदाता ऑनलाइन प्रपत्र प्राप्त कर सकते हैं। (हिफी)

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