लेखक की कलम

ओडीओपी से यूपी को वैश्विक पहचान

(अनुष्का-हिफी फीचर)
उत्तर प्रदेश में हर जिले की परम्परागत कारीगरी को मिली वैश्विक पहचान।
निर्यात दोगुना हुआ, महिलाओं को मिला रोजगार और सम्मान।
 सरकार नवाचार व डिजाइन से चुनौतियों को बना रही है अवसर।

उत्तर प्रदेश, जो भारत के हृदयस्थल में स्थित है, केवल जनसंख्या और भूगोल में ही नहीं, बल्कि अपनी सांस्कृतिक, शिल्पकला और उत्पादों की विविधता में भी एक महाशक्ति है। यहाँ की गली, मोहल्ला, गाँव, कस्बा और किसी न किसी अद्वितीय कला, हस्तशिल्प या सुरुचि उत्पाद के लिए जाना जाता है। इसी विशेषता को पहचानने और वैश्विक पहचान बनाने के लिए योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 2018 में एक जिला, एक उत्पाद (ओडीओपी) योजना की शुरुआत की थी।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वोकल फॉर लोकल एवं आत्मनिर्भर भारत के विजन के अंतर्गत, ओडीओपी योजना को राज्य के एमएसएमई विभाग द्वारा संचालित किया गया, जिसमें भारत सरकार के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय, खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग, जेम पोर्टल, और कई निजी तकनीकी व डिजाइन संगठनों ने भागीदारी की। इसका उद्देश्य साफ था, स्थानीय विशिष्ट उत्पादों को वैश्विक मानचित्र पर लाना, पारंपरिक कारीगरों को आर्थिक आत्मनिर्भरता देना और स्थानीय अर्थव्यवस्था को नई ऊर्जा से भरना। इसीलिए जनता ने इसे अपनाया।

उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में से हर जिले के परंपरागत और विशिष्ट उत्पाद को सरकारी सहायता, डिजाइन, प्रशिक्षण, विपणन और निर्यात की दिशा में प्रोत्साहन दिया गया। जैसे कि भदोही की कालीनें जिनका निर्यात अमेरिका और यूरोप में हो रहा है। कन्नौज का इत्र जो प्राकृतिक फूलों से बना, विश्व स्तर पर प्राकृतिक परफ्यूम का पर्याय बन चुका है। मुरादाबाद का पीतल शिल्प अंतरराष्ट्रीय होम डेकोर बाजारों में एक बेंचमार्क है। इसी प्रकार फिरोजाबाद की कांच की चूड़ियाँ पारंपरिक सौंदर्य का आधुनिक बाजार में अद्भुत रूपांतरण हैं। आजमगढ़ की ब्लैक पॉटरी, बिजनौर का गुड़, मेरठ का स्पोर्ट्स सामान, सहारनपुर की लकड़ी की नक्काशी, सभी अब राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में ब्रांडेड उत्पादों के रूप में स्थापित हो रहे हैं।

ओडीओपी के चलते यूपी ने देश के निर्यात में गुणात्मक वृद्धि की है। निर्यात में उत्तर प्रदेश ने 2018 के बाद से उल्लेखनीय प्रगति की है। 2017-18 में प्रदेश का कुल निर्यात लगभग 88,000 करोड़ रूपये था, जो 2023-24 में बढ़कर 1.75 लाख करोड़ रूपये के पार पहुंच गया। इसमें लगभग 100 प्रतिशत वृद्धि हुई है। अकेले ओडीओपी उत्पादों का योगदान इसमें 45,000 करोड़ रूपये से अधिक हो चुका है। ओडीओपी उत्पाद अब 70 से अधिक देशों में निर्यात हो रहे हैं, जिनमें अमेरिका, जर्मनी, यूएई, जापान और यूके प्रमुख हैं। यह वृद्धि केवल उत्पादों की गुणवत्ता और विशिष्टता के कारण नहीं, बल्कि उनके पीछे मानवीय कहानियां और कारीगरों की मेहनत भी शामिल है।
यही कारण है कि हमारे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जब कभी विदेश दौरे पर जाते हैं तो ओडीओपी के उत्पाद भेंट करते हैं। लखनऊ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी मेहमानों का स्वागत ओडीओपी उत्पाद से करते हैं।

इस योजना का एक सबसे गहरा और सकारात्मक प्रभाव महिलाओं के स्वाभिमान और सशक्तिकरण पर पड़ा है। लखनऊ की चिकनकारी, वाराणसी की जरदोजी, गोंडा की मूँज क्राफ्ट, और चित्रकूट की लकड़ी की खिलौना कारीगरी में लाखों महिलाएँ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कार्यरत हैं। ओडीओपी ने महिलाओं को घरेलू दायरे से निकालकर आर्थिक रूप से सक्षम और आत्मनिर्भर बनने का मंच दिया है। स्वयं सहायता समूहों के जरिए महिलाएं डिजाइन, पैकेजिंग, मार्केटिंग और ई-कॉमर्स तक पहुँच पा रही हैं। 2023-24 में ही लगभग 42 फीसदी ओडीओपी उत्पाद महिला कारीगरों द्वारा तैयार किए गए, जो ओडीओपी नीति के सामाजिक न्याय पक्ष को भी दर्शाता है।

बात करें लखनऊ की चिकनकारी की, तो यह सिर्फ एक कढ़ाई कला नहीं, बल्कि एक जीवनशैली है। इसमें मुख्य रूप से महिलाएँ हैं, जिनमें से अनेक ग्रामीण क्षेत्रों की हैं। सरकार द्वारा मशीन कढ़ाई के नकली सस्ते उत्पादों के खिलाफ जीआई टैग, प्रमाणीकरण और कस्टमर अवेयरनेस अभियान चलाए गए हैं, जिससे असली चिकनकारी की बिक्री में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई। वर्ष 2023-24 में चिकनकारी से 190 करोड़ रूपये का कारोबार हुआ और इस वर्ष जून के अंतिम सप्ताह तक ही ये आंकड़ा 120 करोड़ रूपये पार हो चुका है।

इसी तरह मलिहाबाद के दशहरी आम हैं, जिनकी बागवानी अब ड्रिप इरिगेशन, जैविक विधियों और सरकारी प्रशिक्षण से और परिष्कृत हो रही है। वर्ष 2023-24 में मलिहाबाद के किसानों ने 105 करोड़ रुपय की आमदनी की, जो पिछली तुलना में 20 फीसदी अधिक रही। नए निर्यात बाजारों में मलिहाबाद का आम पहली बार कतर, सऊदी अरब और कनाडा जैसे देशों में पहुंचा है।
हालांकि चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। मशीन उत्पादों से प्रतिस्पर्धा, कच्चे माल की लागत, ई-कॉमर्स तक सीमित डिजिटल पहुँच, और युवा पीढ़ी की हस्तशिल्प में घटती रुचि कुछ बड़ी चुनौतियां हैं। इसके समाधान के लिए राज्य सरकार ने डिजाइन ट्रेनिंग, जीआई-ज्योग्राफिकल इंडिकेशन प्रमाणीकरण, ऑनलाइन बिक्री पोर्टल पर समर्थन, अंतरराष्ट्रीय एक्सपो में भागीदारी, और ओडीओपी टूलकिट जैसी योजनाएँ चलाई हैं।

यह योजना आज केवल एक सरकारी कार्यक्रम नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश के आत्मसम्मान, हुनर और पहचान का प्रतीक बन चुकी है। युवाओं को नवाचार, डिजाइन और उद्यमिता के माध्यम से इस योजना से जोड़ा जा रहा है। स्टार्टअप्स अब ओडीओपी उत्पादों की ब्रांडिंग और निर्यात स्ट्रैटेजी पर रणनीतिक काम कर रहे हैं।

एक जिला, एक उत्पाद न केवल आर्थिक पुनरुत्थान की कहानी है, बल्कि सामाजिक परिवर्तन और सांस्कृतिक गौरव की भी एक अद्भुत यात्रा है। यह एक ऐसा नवाचार है जो परंपरा को मिटाता नहीं, उसे नवजीवन देता है। जब उत्तर प्रदेश की मिट्टी से उगा हर उत्पाद विश्व बाजार तक पहुँचता है, तब यह सिर्फ व्यापार नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक क्रांति बन जाती है। (हिफी)

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