लेखक की कलम

शिक्षा क्षेत्र में सुधार का सार्थक प्रयास

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
हमारे देश की प्राचीन संस्कृति और सभ्यता से सीखने की जगह उसका उपहास ज्यादा उड़ाया जाता है। विद्यार्थी जीवन त्याग और तपस्या का होता है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में व्यावहारिक कदम उठाया। बहुत कम छात्र संख्या वाले स्कूलों का विलय कर दिया गया है। इससे संसाधनों का सदुपयोग हो सकेगा। बच्चों को थोड़ी परेशानी हो सकती है क्योंकि कुछ बच्चों की स्कूल की घर से दूरी बढ सकती है। निजी स्कूलों में 45-50 छात्र संख्या वाले क्लासों की तारीफ करने वाले भी योगी सरकार के फैसले का विरोध करने लगे। मामला अदालत तक पहुंच गया। योगी सरकार को शिक्षा क्षेत्र में सुधार की दिशा में एक बड़ी कानूनी जीत मिली है। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने राज्य सरकार द्वारा 5000 से अधिक प्राथमिक स्कूलों के मर्जर के फैसले को वैध ठहराते हुए इससे जुड़ी सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है। यह फैसला न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने सुनाया, जिन्होंने 4 जुलाई को इस मामले में फैसला सुरक्षित रखा था। यूपी सरकार के इस निर्णय और हाई कोर्ट की मुहर से यह स्पष्ट हो गया है कि प्राथमिक शिक्षा में सुधार अब सिर्फ कागजों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि जमीनी स्तर पर बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे। कम छात्र संख्या वाले स्कूलों का मर्जर संसाधनों के सही उपयोग, बेहतर शिक्षण व्यवस्था और उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा की दिशा में एक मजबूत कदम है।
यह फैसला अन्य राज्यों के लिए भी एक उदाहरण बन सकता है, जहां शिक्षा में संसाधनों का अपव्यवस्थित उपयोग हो रहा है। उत्तर प्रदेश ने जो पहल की है, वह आने वाले समय में पूरे देश के शिक्षा ढांचे को नया आकार दे सकती है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सरकार का यह नीतिगत निर्णय पूरी तरह वैध है और इसका उद्देश्य शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारना है। कोर्ट ने कहा कि जब तक किसी नीतिगत निर्णय में कोई असंवैधानिकता या दुर्भावना साबित न हो, तब तक न्यायालय को उसमें हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। जस्टिस भाटिया ने कहा कि सरकार का स्कूलों के मर्जर का फैसला बच्चों के व्यापक हित में लिया गया है और इसका उद्देश्य संसाधनों का समुचित उपयोग सुनिश्चित करना है।
राज्य सरकार के बेसिक शिक्षा विभाग ने 16 जून 2025 को एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया था, जिसके तहत प्रदेश के हजारों ऐसे प्राथमिक स्कूल, जहां छात्रों की संख्या बेहद कम है, उन्हें नजदीकी उच्च प्राथमिक या कंपोजिट स्कूलों में मर्ज करने का निर्देश दिया गया था। इस मर्जर से 5000 से अधिक स्कूल प्रभावित हो रहे थे। सरकार का तर्क था कि कम छात्र संख्या वाले स्कूलों में संसाधनों का अपव्यय हो रहा है। इनमें न तो शिक्षक पूरी तरह उपयोग हो पा रहे हैं और न ही बुनियादी ढांचे का लाभ मिल रहा है। मर्जर के बाद इन संसाधनों का बेहतर उपयोग होगा और बच्चों को बेहतर शिक्षा उपलब्ध कराई जा सकेगी। हाई कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले से अब यूपी सरकार को 5000 स्कूलों के मर्जर को लेकर बड़ी कानूनी राहत मिल गई है। इससे सरकार को बेसिक शिक्षा में संसाधनों के कुशल उपयोग की दिशा में आगे बढ़ने का रास्ता साफ हो गया है। आने वाले समय में यह निर्णय प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाने और बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने में मील का पत्थर साबित हो सकता है। कम छात्र संख्या वाले स्कूलों का मर्जर संसाधनों के सही उपयोग, बेहतर शिक्षण व्यवस्था और उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा की दिशा में एक मजबूत कदम है। यह फैसला अन्य राज्यों के लिए भी एक उदाहरण बन सकता है, जहां शिक्षा में संसाधनों का अपव्यवस्थित उपयोग हो रहा है। उत्तर प्रदेश ने जो पहल की है, वह आने वाले समय में पूरे देश के शिक्षा ढांचे को नया आकार दे सकती है।
प्रदेश में कम नामांकन वाले परिषदीय विद्यालयों के विलय (पेयरिंग) को लेकर शिक्षक संगठनों का विरोध जारी है। उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के आह्वान पर प्रदेश भर में बीएसए कार्यालयों पर शिक्षकों ने प्रदर्शन किया। आम आदमी पार्टी (आप) का स्कूल बचाओ अभियान भी नौ जुलाई को जौनपुर से शुरू हुआ। पार्टी के प्रदेश प्रभारी व सांसद संजय सिंह कहते हैं कि स्कूलों के विलय पर पार्टी चुप नहीं बैठेगी। प्रदेश में जहां-जहां भी स्कूल बंद होगा, पार्टी गांव से लेकर जिले तक संघर्ष करेगी। संजय सिंह ने कहा कि हम इस लड़ाई को सुप्रीम कोर्ट ले जाएंगे। उन्होंने कहा कि स्कूलों की खराब व्यवस्था, खराब मिड-डे-मील की वजह से बच्चे स्कूलों से दूर हो रहे हैं।
इस प्रकार उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 50 से कम छात्र संख्या वाले प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों के विलय के फैसले का विरोध हो रहा है। शासनादेश संख्या 68-5099/328/2025 के तहत प्रदेश के 27,764 विद्यालयों का विलय किया जाना है। विरोध करने वालों का कहना है कि यह निर्णय शिक्षा और संविधान विरोधी है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब, किसान, मजदूर और दलित वर्ग के बच्चे शिक्षा से वंचित होंगे। यह भी कहा जा रहा है कि विलय के बाद स्कूलों की दूरी 3 से 5 किलोमीटर तक बढ़ सकती है। इससे छात्रों की ड्रॉपआउट दर बढ़ेगी। विशेषकर बालिकाओं की शिक्षा प्रभावित होगी। प्रदेश में शिक्षकों की स्थिति पहले से गंभीर है और 9 लाख शिक्षकों की जरूरत के मुकाबले केवल 4.5 लाख शिक्षक कार्यरत हैं। हालांकि विलय से शिक्षकों की कमी की समस्या का समाधान हो सकेगा। (हिफी)

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