बिहार में दलित समीकरण बिगाड़ेगी भीम आर्मी

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
बिहार मंे विधानसभा की 241 सीटों मे 38 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए ने दलित वोटों को प्रभावित किया है जिसके चलते पिछली बार के चुनाव में आरक्षित सीटों मंे 21 पर एनडीए ने कब्जा किया था। हालांकि इस बीच सियासी परिस्थितियों ने कनवट ली है और 2025 के विधानसभा चुनाव मंे नये जातिगत समीकरण बनते हुए दिख रहे हैं।
एनडीए के साथ चिराग पासवान और जीतनराम मांझी जैसे नेता हैं जबकि विपक्ष के सामने मायावती और चन्द्रशेखर आजाद भी गंभीर चुनौती पेश कर सकते हैं। दलितों के बीच भीम आर्मी का प्रभाव बढ़ रहा है। इस पार्टी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद हैं जिन्होंने उत्तर प्रदेश मंे नगीना संसदीय सीट पर विजयश्री हासिल कर मायावती को चैकन्ना कर दिया।
बिहार मंे भीम आर्मी 100 उम्मीदवार उतार रही है। बसपा प्रमुख मायावती भी विपक्षी दलों के गठबंधन के साथ नहीं हैं। इस प्रकार जद(यू) और कांग्रेस के दलित समीकरण गड़बड़ा सकते हैं। एनडीए में भी चिराग पासवान और जीतनराम मांझी के विचार नहीं मिलते। आरक्षण मंे मलाईदार पर्त पर समीक्षा करने के सुप्रीम कोर्ट के सुझाव पर जीतनराम जहां खुश थे, वहीं चिराग पासवान ने उस सुझाव को सिरे से खारिज कर दिया था।
अब बिहार मंे चन्द्रशेखर क्या दलित रणनीति मंे नया चेहरा बन सकते हैं, इसके बारे मंे चर्चाएं हो रही हैं।
बिहार में दलित वोटों के लिए एनडीए और महागठबंधन के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा है। मांझी की हम पार्टी और चिराग की लोजपा के बीच मतभेद भी देखे जा रहे हैं। इस बीच भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने बिहार चुनाव में उतरने का ऐलान किया है, जो दलित राजनीति में नया नेतृत्व साबित होना चाहते हैं। बिहार में विधानसभा की 243 सीटें हें।
इनमें अनुसूचित जाति के लिए 38 सीट आरक्षित है, जिसमें एनडीए के पास 21 और महागठबंधन के पास 17 सीटें हैं। पिछले कुछ वर्षों में चंद्रशेखर एक प्रभावशाली दलित नेता के रूप में उभरे हैं, जिनकी छवि एक आक्रामक, मुखर और संघर्षशील युवा नेता की है। ऐसे में कहा जा रहा है कि उनका ये फैसला दलित राजनीति के भविष्य को प्रभावित कर सकता है।
बिहार में दलित राजनीति अब तक रामविलास पासवान और जीतन राम मांझी जैसे नेताओं के इर्द-गिर्द घूमती रही है लेकिन अब रामविलास पासवान नहीं रहे और लोजपा में टूट हो चुकी है। वहीं, मांझी की भूमिका सीमित होती जा रही है। इस परिस्थिति में चंद्रशेखर की एंट्री एक वैकल्पिक नेतृत्व का संकेत देती है।
बिहार में दलित वोटों की संख्या 20 फीसदी के आसपास है। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा रविदास और पासवान समाज का है। कुल दलित वोट में 31 फीसदी रविदास हैं तो 30 फीसदी पासवान या दुसाध हैं, जबकि मुसहर या मांझी करीब 14 फीसदी हैं। बिहार में अनुसूचित जाति के लिए 38 सीट आरक्षित है, जिसमें एनडीए के पास 21 और महागठबंधन के पास 17 सीटें हैं। बिहार में दलित वोटों के लिए जंग छिड़ी हुई है। एनडीए और महागठबंधन ने अपना जोर लगा रखा है।
हालांकि एनडीए में हम वाले जीतन राम मांझी की पार्टी और लोजपा (रामविलास) वाले चिराग पासवान के बीच टशन देखा जा रहा है। दूसरी ओर मायावती की बसपा जैसी पार्टियां भी हैं, जो दलितों के हितैषी होने का दावा करती है। इस बीच बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ तब आया है जब भीम आर्मी के प्रमुख और आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद ने विधानसभा चुनावों में उतरने का ऐलान किया।
बिहार में चिराग पासवान या जीतन राम मांझी जो कि मोटे तौर पर दलित राजनीति के सूत्रधार बने हुए हैं। इसके अलावा कुछ जिलों में मायावती की पार्टी (बसपा) का भी प्रभाव है। हालांकि जानकार बताते हैं कि चंद्रशेखर थोड़ी मेहनत करें तो मायावती का विकल्प बन सकते हैं, जैसा प्रयास उन्होंने उत्तर प्रदेश में जारी रखा है। यूपी से सटे जिलों में मायावती का प्रभाव है।
मायावती का प्रभाव सीमित तौर पर रहता है, खासकर उन इलाकों में जो उत्तर प्रदेश से सटे हुए हैं, जैसे बिहार के कैमूर, बक्सर और रोहतास। इन जिलों के इस विधानसभा क्षेत्रों जैसे चैनपुर, मोहनिया, रामपुर, भभुआ, बक्सर में बीएसपी का असर रहा है। भले ही बीएसपी ने बहुत सीटें न जीती हों, लेकिन कई जगहों पर हार-जीत में उसकी भूमिका निर्णायक रही है। लगभग हर चुनाव में मायावती की बहुजन समाज पार्टी अपने उम्मीदवार उतारती है और 4 से 5 उम्मीदवार जीत भी जाते हैं।
ये अलग बात है कि बाद में उन्हें बड़ी पार्टियां हाईजैक कर लेती हैं। अब चंद्रशेखर आजाद, इसी जगह पर कब्जा करने के लिए बिहार में उतर रहे हैं। बीएसपी ने साफ कहा है कि वह न एनडीए में जाएगी, न इंडिया गठबंधन में। वह अकेले चुनाव लड़ेगी। इस ऐलान से ऑल इंडिया मजलिस-ए- इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के थर्ड फ्रंट बनाने की पहल को बड़ा झटका लगा है। 2020 के विधानसभा चुनाव में मायावती की बीएसपी ने ओवैसी की एआईएमआईएम और अन्य छोटे दलों के साथ मिलकर ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट के बैनर तले चुनाव लड़ा था।
इस फ्रंट में उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी, ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा, संजय चैहान की जनवादी पार्टी और एसजेडीडी शामिल थीं, लेकिन नतीजे निराशाजनक रहे। आज एआईएमआईएम के पास सिर्फ एक विधायक अख्तरूल ईमान बचे हैं, जो पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं।
भीम पार्टी के चंद्रशेखर, परंपरागत दलों को भी चुनौती दे सकते हैं। जैसे जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस जो अब तक दलित वोट बैंक को अपने-अपने तरीके से साधती रही हैं। खासकर अगर वे दलित-मुस्लिम एकता के फाॅर्मूले पर काम करें तो सामाजिक समीकरणों में बदलाव संभव है। बिहार मंे दलित एक महत्वपूर्ण चुनावी फैक्टर है और ये 15 लोकसभा क्षेत्रों की कई विधानसभा सीटों को प्रभावित करते हैं। अगर चंद्रशेखर इन सीटों पर दलित वोटों को एकजुट नहीं कर पाए तो भी ये तो निश्चित है कि चुनाव में दलित वोटों का बिखराव होगा। इससे एक संभावना ये भी है कि भाजपा जैसे संगठित दलों को अप्रत्यक्ष लाभ भी हो सकता है।
बिहार चुनाव में अब तीन महीने से ज्यादा का समय बचा है, लेकिन दोनों प्रमुख गठबंधनों के भीतर ही खींचतान चल रही है। ताजा उदाहरण एनडीए के दो सहयोगी, चिराग पासवान और जीतन राम मांझी की पार्टी का है। दोनों पार्टियों के बीच पिछले कुछ समय से कई मुद्दों को लेकर जबरदस्त खींचतान चल रही है। दोनों पार्टियां दलितों का प्रतिनिधित्व करती हैं।
मामला चाहे सीटों के बंटवारे का हो, या बिहार में कानून व्यवस्था का, ये दोनों पार्टी एक दूसरे पर वार पलटवार का कोई मौका नहीं छोड़ रही हैं। शुरुआत तब हुई जब चिराग पासवान ने बिहार की कानून व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए 12 जुलाई को एक्स पर एक पोस्ट लिखा। उसके करीब दो घंटे बाद ही जीतन राम मांझी ने चिराग का बिना नाम लिये पलटवार किया और एक्स पर लिखा कि, गठबंधन धर्म का पालन करना चाहिए। बस फिर क्या था, दोनों पार्टियों के बाकी नेता भी मैदान में उतर आए। चिराग के बहनोई और जमुई सांसद अरुण भारती ने 13 जुलाई को एक पोस्ट किया, जिसमें पहली बार एक काल्पनिक पात्र चिंटू का जिक्र आया।
भारती ने लिखा कि हिंदी फिल्मों में हीरो या विलेन के साथ एक चिंटू होता था जो चाय से ज्यादा केतली गर्म वाली कहावत चरितार्थ करता था। बस, फिर क्या मांझी की पार्टी के एक प्रवक्ता ने पलटवार करते हुए एक बंदर की तस्वीर लगा दी और लिखा, हमारे एक सहयोगी ने चिंटू पाल रखा है। इसके बाद तो इस चिंटू को केंद्र में रखकर दोनों पार्टियों के नेता वार पलटवार करने लग गए। (हिफी)