एनआईए को सुप्रीम फटकार

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
देश में बढ़ते आतंकवाद को खत्म करने के लिए और देश विरोधी ताकतों पर अंकुश लगाने के लिए नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) का गठन 31 दिसम्बर 2008 को किया गया था। भारत की संसद से पारित अधिनियम के तहत इसका गठन हुआ, इसलिए इसके पास कई विशेषाधिकार हैं। इनमंे आतंकवादी गतिविधियों, देश विरोधी कार्य करने वालों पर ठोस कार्रवाई करके उनकी सम्पत्ति सीज करना भी शामिल है। इस संस्था की धीमी चाल पर सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगायी है। कोर्ट ने कहा कि एनआईए की सुस्ती के चलते ही कोर्ट को आरोपियों को जमानत देनी पड़ती है क्योंकि किसी को कब तक हम जेल में बंद रख सकते हैं। एनआईए विशेष अदालतें गठित कर शीघ्र सुनवाई क्यों नहीं करती है। एनआईए के तहत मानव तस्करी से जुड़े अपराध, जाली मुद्रा और बैंक नोटों से जुड़े अपराध, साइवर आतंकवाद से जुड़े अपराध विस्फोटक पदार्थों से जुड़े अपराध और प्रतिबंधित हथियारों के निर्माण और बिक्री से जुड़े अपराध आते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने एनआईए को फटकार लगाई है। कोर्ट ने एनआईए से कहा है कि आप विशेष कानूनों के तहत भी मुकदमा चलाना चाहते हैं। फिर भी आरोपियों के लिए त्वरित सुनवाई नही। कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि 23 मई के आदेश के अनुपालन में, एनाआईए के अवर सचिव द्वारा एक हलफनामा दायर किया गया है। यह पता है कि एनआईए द्वारा जाँच किए जाने वाले मामलों में विशेष अदालतें स्थापित करके शीघ्र सुनवाई करने के लिए कोई प्रभावी या प्रत्यक्ष कदम नहीं उठाए गए हैं। इसके लिए उच्च न्यायिक सेवा कैडर में पदों के सृजन और आवश्यक मंत्रालयिक कर्मचारियों के पदों की भी आवश्यकता होगी। जमानत के लिए उपयुक्त न्यायालय कक्षों की आवश्यकता होगी। इनमें से कोई भी कदम नहीं उठाया गया।
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि यह धारणा बन रही है कि एनआईए अधिनियम 2008 की धारा 11 के तहत किसी मौजूदा अदालत को विशेष अदालत के रूप में नामित करना हमारे पिछले आदेश का पालन होगा। इसे अस्वीकार किया जाता है। यह जेलों में बंद सैकड़ों विचाराधीन कैदियों सहित अन्य अदालती मामलों की कीमत पर होगा। वरिष्ठ नागरिक, वंचित वर्ग, वैवाहिक विवाद आदि। कोर्ट ने आगे कहा कि यदि प्राधिकारी समयबद्ध सुनवाई के लिए आवश्यक बुनियादी ढाँचे वाली विशेष अदालतें स्थापित करने में विफल रहते हैं, तो अदालतों के पास विचाराधीन कैदियों को जमानत पर रिहा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा क्योंकि जब त्वरित सुनवाई और समयबद्ध तरीके से सुनवाई पूरी करने की कोई व्यवस्था नहीं है तो ऐसे संदिग्धों को कब तक सलाखों के पीछे रखा जा सकता है। हमने पहले कहा था कि यदि विशेष अदालतें स्थापित नहीं की जाती हैं, तो याचिकाकर्ता की जमानत पर रिहाई की प्रार्थना पर शीघ्र विचार किया जाएगा। इस मामले में अब चार सप्ताह बाद सुनवाई होगी।
देश में बढ़ते आतंकवाद को खत्म करने और देश विरोधी ताकतों पर लगाम लगाने के लिए एनआईए का गठन किया गया था। वर्ष 2008 में मुंबई पर हुआ आतंकवादी हमले के बाद ऐसे जांच एजेंसी की सख्त जरूरत महसूस हुई, जो केंद्र सरकार के अधीन रहकर आतंकवादी गतिविधियों पर नजर रख सके और ऐसी घटनाओं की जांच करने के साथ उनको समय रहते विफल कर सके। एनआईए का गठन आतंकवाद को धन उपलब्ध कराने पर लगाम लगाने और आतंकी हमलों की घटनाओं और उससे जुड़े लोगों की जांच करना है। एनआईए का पूरा नाम नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी है, जिसे राष्ट्रीय जांच एजेंसी के नाम से भी जाना जाता है। इस संस्था के पहले महानिदेशक राधा विनोद राजू थे जिनका कार्यकाल 31 जनवरी 2010 को समाप्त हुआ था। एनआईए का काम देश में आतंकवादी गतिविधियों को रोकना और भारत में आतंकवाद को समाप्त करना है। भारत सरकार से इस संस्था को कई विशेष अधिकार मिले हुए हैं। इसमें, आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त पाए जाने वाले लोगों पर ठोस कार्रवाई करके उनकी सम्पत्ति तक सीज करना और उस व्यक्ति या संगठन को आतंकवादी घोषित करना है। इस संस्था के अंदर राज्य सरकार को हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। इस राष्ट्रीय जांच एजेंसी का मुख्यालय नई दिल्ली में है और हैदराबाद, गुवाहाटी, कोच्चि, लखनऊ, मुंबई, कोलकाता, जयपुर, जम्मू में इसकी क्षेत्रीय शाखाएं हैं।
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले में 26 पर्यटकों की मौत हुई। इस आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ सरकार ने कई बड़े एक्शन लिए हैं।इस आंतकी हमले की जांच सरकार ने एनआईए को सौंपी थी।
आज से तीन साल पहले दिल्ली उच्च न्यायालय को सूचित किया गया था कि राष्ट्रीय राजधानी में विशेष अदालत में राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) द्वारा 44 मामले लंबित हैं। उच्च न्यायालय के प्रशासन ने न्यायमूर्ति जसमीत सिंह के समक्ष स्थिति रिपोर्ट दाखिल करते हुए कहा था कि यहां पटियाला हाउस अदालत में एनआईए के मामलों की सुनवाई दो न्यायाधीश प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश और अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एएसजे) कर रहे हैं। दरअसल, उच्च न्यायालय ने एनआईए मामलों के अटके होने तथा उनके मौजूदा स्थिति के संबंध में प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश से रिपोर्ट मांगी थी।
वकील गौरव अग्रवाल के जरिए दाखिल स्थिति रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘31 जुलाई 2022 तक पटियाला हाउस के प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश के समक्ष एनआईए के चार मामले लंबित हैं तथा एएसजे-03 के समक्ष एनआईए के 39 मामले लंबित हैं। एएसजे-03 के समक्ष एक अपील लंबित है।’’ गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून (यूएपीए) के तहत दर्ज एक मामले में एक आरोपी द्वारा दायर याचिका के संदर्भ में यह रिपोर्ट दाखिल की गयी। याचिका में उसने यहां एक विशेष एनआईए अदालत में लंबित अपने मामले पर दैनिक आधार पर सुनवाई किए जाने का अनुरोध किया।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की दो विशेष अदालतों द्वारा सुने जा रहे सभी अन्य मामलों को वापस लेने और उनके लंबित होने के कारण उन्हें नव गठित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एएसजे) की तीन अदालतों को सौंपने का फैसला लिया था।
यूएपीए के एक आरोपी द्वारा एक याचिका पर दाखिल हलफनामे में उच्च न्यायालय प्रशासन ने कहा कि उसकी प्रशासनिक और सामान्य पर्यवेक्षक समिति ने ‘‘एएसजे-02’’ और ‘‘एएसजे-03’’ से मामले वापस लेने का फैसला किया है। ये नयी दिल्ली जिला में विशेष अदालतें थीं। गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के आरोपी ने याचिका में एक विशेष एनआईए अदालत में लंबित अपने मामले पर हर रोज सुनवाई करने का अनुरोध किया था। उसने कहा, ‘‘इसी तरह एएसजे-03 की अदालत एनआईए की जांच वाले अधिसूचित अपराधों के मुकदमों के साथ ही महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, 1999 के तहत आने वाले मामलों के लिए विशेष अदालत होने के नाते ताजा/लंबित मामलों की सुनवाई जारी रखेगी।’’ हलफनामे में कहा गया है कि नयी एएसजे अदालतों में से एक को एससीध्एसटी कानून और सेबी कानून के तहत विशेष अदालत के तौर पर अतिरिक्त रूप से नामित किया जाएगा। उस समय से अब तक एनआईए के रवैये में सुधार नहीं हुआ हो पाया। (हिफी)