लेखक की कलम

असाधारण शौर्य से जीता था कारगिल

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
आज हमने आपरेशन सिंदूर से पाकिस्तान को घुटनों के बल बैठने पर मजबूर कर दिया लेकिन 26 साल पहले कारगिल की पहाड़ियों पर पाकिस्तान के सैनिकों को खदेड़ने में हमारी सेना ने असाधारण शौर्य का प्रदर्शन किया था। इस युद्ध मंे देश के 527 सैनिक शहीद हुए थे। कारगिल का युद्ध भी दो परमाणु सम्पन्न देशों के बीच ही लड़ा गया था।

पाकिस्तान की सेना ने 5 मई को भारत के 5 सैनिकों को मारा था। इसके जवाब में भारतीय सेना की ओर से 10 मई 1999 को आपरेशन विजय की शुरुआत की गयी। करीब 2 महीने चले युद्ध के दौरान भारतीय सेना ने 20 जून 1999 को टाइगर हिल पर लगातार 11 घंटे तक लड़ाई के बाद प्वाइंट 5060 और प्वाइंट 5100 पर अपना कब्जा कर लिया। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने पाकिस्तान के तत्कालीन पीएम नवाज शरीफ को तलब किया। नवाज शरीफ ने 5 जुलाई 1999 को अपने सैनिकों को वापस बुलाने का निर्देश दिया।

पाकिस्तानी सेना के पीछे हटने के बाद भारतीय सेना ने 11 जुलाई 1999 को बटालिक की चोटियों पर भी अपना अधिकार जमा लिया। अंत में 14 जुलाई को भारतीय सेना ने आपरेशन विजय की सफलता की घोषणा की और 26 जुलाई को कारगिल युद्ध पूरी तरह से समाप्त हो गया। इसलिए कारगिल विजय दिवस के रूप में 26 जुलाई को हम अपने वीर सैनिकों के शौर्य को सलामी देते हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत राजनेताओं, अधिकारियों और नागरिकों ने सैनिकों के साहस को सलाम किया।

कारगिल युद्ध, जिसे ऑपरेशन विजय के

नाम से भी जाना जाता है, 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर के कारगिल जिले में हुआ। एक सशस्त्र संघर्ष था। यह युद्ध लगभग 60 दिनों तक चला और 26 जुलाई को समाप्त हुआ, जिसे भारत में कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। कारगिल युद्ध तब शुरू हुआ जब पाकिस्तानी सैनिकों ने फरवरी 1999 में कश्मीर में नियंत्रण रेखा के भारत प्रशासित हिस्से में घुसपैठ की और रणनीतिक क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। मई के आरंभ में भारत को इन सैनिकों का पता चल गया, जिसके परिणामस्वरूप युद्ध शुरू हो गया। कारगिल युद्ध की सबसे बड़ी विशिष्टता इसका स्थल और ऊंचाई थी। यह युद्ध समुद्र तल से 16,000 से 18,000 फीट की ऊंचाई पर लड़ा गया था, जहां ऑक्सीजन की कमी, अत्यधिक ठंड, खड़ी चट्टानें और बर्फीली हवाओं जैसी कठिन परिस्थितियां युद्ध को और भी चुनौतीपूर्ण बना रही थीं।कारगिल युद्ध की जीत को आज 26 साल हो गए, लेकिन भारत के जांबाजों की दिलेरी, देश के लिए उनके समर्पण और सर्वोच्च बलिदान की गाथाएं आज भी दुनिया के सामरिक रणनीतिकारों को दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर करती हैं।

सन् 1999 का कारगिल युद्ध भारतीय गणराज्य के इतिहास में वह अध्याय है, जिसने न सिर्फ हमारी सैन्य सामर्थ्य और राष्ट्रभक्ति की पराकाष्ठा को दर्शाया, बल्कि रणनीतिक सोच, खुफिया तंत्र और कूटनीति के स्तर पर गहरे आत्ममंथन को प्रेरित किया।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 1999 के करगिल युद्ध में अपने प्राणों की आहुति देने वाले सैनिकों को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि विजय दिवस देश के जवानों की असाधारण वीरता और दृढ़ निश्चय का प्रतीक है। मुर्मू ने कहा कि राष्ट्र के प्रति जवानों का समर्पण और सर्वोच्च बलिदान देशवासियों को सदैव प्रेरित करता रहेगा।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी करगिल विजय दिवस की 26वीं वर्षगांठ की बधाई देते हुए कहा कि यह दिवस करगिल के पहाड़ों से पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ने में भारतीय सशस्त्र बलों की सफलता का प्रतीक है। मोदी ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर लिखा, यह अवसर हमें मां भारती के उन वीर सपूतों के अप्रतिम साहस और शौर्य का स्मरण कराता है जिन्होंने देश के आत्मसम्मान की रक्षा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।’’ वहीं, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस अवसर पर एक्स पर लिखा, भारतीय सशस्त्र बलों के अद्भुत शौर्य, अटूट संकल्प और अक्षुण्ण राष्ट्रभक्ति के प्रतीक कारगिल विजय दिवस पर प्रदेश वासियों को हार्दिक शुभकामनाएं! राष्ट्र प्रथम की भावना के साथ दुर्गम पर्वतों पर पराक्रम की अमर गाथा रचने वाले माँ भारती के अमर वीरों को कोटिशः नमन! जय हिंद!

हर साल 26 जुलाई को करगिल विजय दिवस मनाया जाता है। साल 1999 में इसी दिन भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन विजय’ की सफलता की घोषणा की थी। उस समय लद्दाख के करगिल में पाकिस्तानी घुसपैठियों से तीन महीने तक चले संघर्ष के बाद भारत को जीत हासिल हुई थी। यह युद्ध पाकिस्तान ने छिपकर और धोखा देकर लड़ा जबकि भारत ने खुल कर उसका मुकाबला किया और युद्ध जीतकर नामुमकिन को मुमकिन बना कर दिखाया। यह युद्ध एक सीमित लेकिन अत्यंत जटिल और संवेदनशील संघर्ष था, जिसने भारतीय लोकतंत्र की स्थिरता और सैनिकों की बलिदान भावना को इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज कर दिया।

टाइगर हिल, तोलोलिंग, प्वाइंट 4875 और प्वाइंट 5140 जैसी चोटियों को जीतना असंभव माना जाता था, लेकिन भारत के सैनिकों ने अद्वितीय साहस और शौर्य का प्रदर्शन करते हुए दुश्मन के कब्जे से महत्वपूर्ण पहाड़ी चोटियों को पुनः प्राप्त किया। सबसे कठिन चुनौती यह थी कि पाकिस्तानी घुसपैठिए ऊपर चोटियों पर बैठे थे और भारतीय सेना ऊपर से बरस रहे पत्थरों और गोलियों की बौछारों के बीच ऊपर चढ़ रही थी।पाकिस्तानी सेना और उसके विशेष सेवा समूह ( एसएसजी) ने गुप्त रूप से नियंत्रण रेखा (एलओसी) पार करके भारतीय चैकियों पर कब्जा कर लिया।

शुरू में इसे स्थानीय आतंकवाद समझा गया, लेकिन जल्दी ही यह स्पष्ट हो गया कि यह एक सुनियोजित सैन्य ऑपरेशन था। इसके जवाब में भारतीय सेना ने अपनी पूरी ताकत झोंकी और पाकिस्तानी सैनिकों को भारी नुकसान पहुंचाते हुए नियंत्रण रेखा के पास स्थित अपनी चैकियों को वापस प्राप्त किया। इस युद्ध में देश भर के 527 सैनिक शहीद हुए और 1,300 से अधिक घायल हुए। उत्तराखंड ने इस संघर्ष में अत्यधिक बलिदान दिया, यहां के सैनिकों ने अपना सर्वस्व देश की सुरक्षा में समर्पित किया। उत्तराखंड राज्य के 75 से अधिक वीर सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति दी।

कारगिल युद्ध में उत्तराखंड के सैनिकों को कई सम्मान मिले, जिनमें मेजर विवेक गुप्ता और मेजर राजेश अधिकारी को महावीर चक्र, कश्मीर सिंह, बृजमोहन सिंह, अनुसूया प्रसाद, कुलदीप सिंह, एके सिन्हा, खुशीमन गुरुंग, शशि भूषण घिल्डियाल, रुपेश प्रधान और राजेश शाह को वीर चक्र और मोहन सिंह, टीबी क्षेत्री, हरि बहादुर, नरपाल सिंह, देवेंद्र प्रसाद, जगत सिंह, सुरमान सिंह, डबल सिंह, चंदन सिंह, किशन सिंह, शिव सिंह, सुरेंद्र सिंह और संजय को सेना मेडल प्राप्त हुआ। मेन्शन इन डिस्पैच में राम सिंह, हरि सिंह थापा, देवेंद्र सिंह, विक्रम सिंह, मान सिंह, मंगत सिंह, बलवंत सिंह, अमित डबराल, प्रवीण कश्यप, अर्जुन सेन और अनिल कुमार शामिल हैं। (हिफी)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button