स्मृति विशेष

आदिवासियों का मसीहा चला गया

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
आदिवासियों के लिए उनकी जमीन, जंगल और जल पारंपरिक अधिकार रहे हैं लेकिन विकासवाद के चलते उनके यही अधिकार छिनते चले गये। पूर्व में बिहार राज्य का खनिज सम्पदा से संपन्न हिस्सा जिसे आजकल झारखंड के नाम से जाना जाता है यहां के मूल निवासी भी यही दिक्कतें झेल रहे थे। आदिवासियों के हक की लड़ाई लड़ने के लिए शिबू सोरेन के नाम वाले एक आदिवासी ने झंडा उठाया था। शिबू सोरेन ने विनोद बिहारी महतो के साथ कुछ जुझारू लोगों को एकत्र किया और 4 फरवरी 1973 को झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) का गठन किया। इसका मकसद अलग राज्य बनाना था। लम्बे संघर्ष के बाद झारखण्ड अलग राज्य बन भी गया। शिबू सोरेन को इसीलिए लोग दिशोम गुरु या गुरुजी के नाम से बुलाते थे। दिशोभ का मतलब होता है अपना देश। आदिवासियों के लिए वह जमीन ही अपना देश है जहां आदिवासी समुदाय रहता है। इनमंे खासकर संथाल और अन्य जनजातियां शामिल हैं। आदिवासियों ने ब्रिटिश हुकूमत से भी टक्कर ली थी। दिशोम गुरु शिबू सोरेन 4 अगस्त को यह लोक छोड़कर चले गये। उनके पुत्र हेमंत सोरेन ने सबसे पहले यह सूचना दी थी। शिबू सोरेन का दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में लगभग एक महीने से इलाज चल रहा था। उनके निधन से आदिवासी समाज का बहुत बड़ा सहारा छिन गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत कई राजनेताओं ने दिशोम गुरु के निधन पर शोक जताया है। शिबू सोरेन ने जंगल बचाओ, जमीन बचाओ जैसे नारों के साथ लोगों को एकजुट किया था। उन्हांेने पहले और तीसरे मुख्यमंत्री का दायित्व भी संभाला था।
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का निधन हो गया है। 81 साल की उम्र में उन्होंने दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में आखिरी सांस ली। शिबू सोरेन आदिवासी समाज के बड़े नेता थे। पीएम मोदी ने अस्पताल पहुंच कर पूर्व सीएम के शव को श्रद्धांजलि दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वे उनके निधन पर शोक जाहिर किया है। उन्होंने शिबू सोरेन के बेटे सीएम हेमंत सोरेन से फोन पर बातचीत भी की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुख जताते हुए एक्स पर लिखा, शिबू सोरेन जी एक जमीनी नेता थे, जिन्होंने जनता के प्रति अटूट समर्पण के साथ सार्वजनिक जीवन में तरक्की की। वे आदिवासी समुदायों, गरीबों और वंचितों को सशक्त बनाने के लिए विशेष रूप से प्रतिबद्ध थे। उनके बेटे और झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने उनके निधन की जानकारी देते हुए अपना दुख जाहिर किया। उन्होंने कहा कि आज मैं शून्य हो गया हूं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ट्वीट किया, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और देश के वरिष्ठतम नेताओं में से एक, शिबू सोरेन जी, झारखंड के उन कद्दावर नेताओं में गिने जाते थे जिन्होंने जीवन भर समाज के कमजोर वर्गों, विशेषकर आदिवासी समुदाय के अधिकारों और सशक्तिकरण के लिए संघर्ष किया। वे हमेशा जमीन और जनता से जुड़े रहे। मेरा उनसे लंबा परिचय रहा।कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने कहा, मैंने कल्पना जी (कल्पना सोरेन) को मैसेज किया है। यह हम सभी के लिए बहुत दुखद समाचार है। हम उनके परिवार के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करते हैं, हमारी प्रार्थनाएं उनके साथ हैं। झारखंड के राज्यपाल संतोष गंगवार ने दिशोम गुरु शिबू सोरेन के निधन को अत्यंत दुखद व पीड़ादायक बताया। उन्होंने कहा कि शिबू सोरेन जनजातीय अस्मिता व अधिकार के सशक्त स्वर थे। राजनीतिक-सामाजिक जगत में उनका योगदान अविस्मरणीय रहेगा।
कुछ ही दिन पहले राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में शिबू सोरेन के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी लेने गए थे। शिबू सोरेन का जून 2025 से दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में इलाज चल रहा था जहां उन्हें ब्रेन स्ट्रोक और किडनी से संबंधित समस्याओं के लिए वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया था। शिबू सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के संस्थापक और प्रमुख नेता थे। जिन्हें दिशोम गुरु के नाम से भी जाना जाता था। शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को झारखंड के रामगढ़ जिले (तत्कालीन बिहार के हजारीबाग जिले) के नेमरा गांव में हुआ था। वे झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके थे। ये तीन बार (2005, 2008, और 2009) सीएम के पद पर कार्यरत थे। हालांकि, वे कभी भी अपना सीएम कार्यकाल पूरा नहीं कर सके थे।
शिबू सोरेन ने झारखंड आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने आदिवासियों के अधिकारों के लिए धनकटनी आंदोलन शुरू किया था। इसके तहत उन्होंने महाजनों और साहूकारों के खिलाफ आदिवासियों को एकजुट किया था। वे 1980 से 2019 तक दुमका से लोकसभा सांसद रहे और वर्तमान में राज्यसभा सांसद थे। उनकी अगुवाई में जेएमएम ने झारखंड को अलग राज्य बनाने में निर्णायक योगदान दिया।
4 फरवरी 1973 को शिबू सोरेन, बिनोद बिहारी महतो, और अन्य नेताओं ने मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) दल की स्थापना की थी, जिसका उद्देश्य झारखंड को बिहार से अलग कर एक स्वतंत्र राज्य बनाना था। साथ ही आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा, विशेष रूप से जमीन, जंगल, और जल पर उनके पारंपरिक हकों की रक्षा करना था। जेएमएम ने 1970 और 1980 के दशक में रैलियों, प्रदर्शनों, और बंद जैसे आंदोलनों के माध्यम से आदिवासी समुदायों को संगठित किया। शिबू सोरेन ने ‘जंगल बचाओ, जमीन बचाओ’ जैसे नारों के साथ लोगों को एकजुट किया।शिबू सोरेन और उनकी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा झारखंड के आदिवासी समुदायों के अधिकारों और क्षेत्रीय स्वायत्तता के लिए एक प्रमुख शक्ति रही है।
शिबू सोरेन को लोग दिशोम गुरु या गुरुजी के नाम से भी जानते थे, शिबू सोरेन को ‘गुरु’ या दिशोम गुरु इसलिए कहा जाता था क्योंकि उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा के माध्यम से आदिवासी समुदायों, खासकर संथाल और अन्य जनजातियों, के अधिकारों और स्वायत्तता के लिए लंबा संघर्ष किया। वे झारखंड आंदोलन के प्रमुख नेता थे, जिसका लक्ष्य झारखंड को एक अलग राज्य बनाना और आदिवासियों के हितों की रक्षा करना था। उनके नेतृत्व, सामाजिक कार्यों और आदिवासी संस्कृति व हितों के प्रति समर्पण ने उन्हें जनजातीय समुदायों में एक मार्गदर्शक और शिक्षक (गुरु) की तरह सम्मान दिलाया। दिशोम गुरु का अर्थ संथाली में देश का गुरु होता है, जो उनके नेतृत्व और प्रभाव को दर्शाता है।
11 जनवरी 1944 को संयुक्त बिहार के नेमरा गांव में जन्मे शिबू सोरेन वह व्यक्ति थे जिन्होंने साहूकारी प्रणाली के खिलाफ आवाज उठाई थी, जो इस हद तक चरम पर थी कि लोगों को उनकी उपज का केवल एक तिहाई हिस्सा ही मिलता था और साहूकार बाकी हिस्सा हड़प लेते थे। आदिवासी नेता ने साहूकारी प्रथा का विरोध किया और तत्कालीन सामाजिक ढांचे को चुनौती दी। (हिफी)

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