उमर अब्दुल्ला की उम्मीदें

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
आशाओं और उम्मीदों पर ही दुनिया टिकी है। इसलिए जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने पिछले दिनों जब यह कहा कि वह अभी संसद के इस मानसून सत्र में राज्य के लिए कुछ सकारात्मक होने को लेकर आशावादी हैं। उनका आशय जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के संदर्भ में है। हालांकि उमर अब्दुल्ला ने यह भी कहा कि उनकी उम्मीदें 5 अगस्त को लेकर नहीं हैं। यह वही तारीख है जब जम्मू-कश्मीर को केन्द्र शासित प्रदेश बनाकर अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी कर दिया गया था। इसको लेकर राजनीति भी हो रही है। कांग्रेस ने 5 अगस्त को काला दिवस मनाने की घोषणा पहले ही कर दी थी लेकिन उमर अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेंस बहुत ही संयम से काम ले रही है। कश्मीर में पहलगाम हमले के बाद अभी पूरी तरह सुरक्षा का माहौल नहीं बन पाया है। हालांकि भारत ने पहलगाम हमले का करारा जवाब पाकिस्तान को दिया है। उमर अब्दुल्ला ने उस समय भी कहा था कि ऐसे समय पूर्ण राज्य का दर्जा देने का सवाल उठाना भी अमानवीय होगा। जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट मंे याचिका दायर की गयी थी। इस याचिका पर भी 8 अगस्त को सुनवाई होनी है। इसलिए 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने को लेकर जब चर्चाएं तेज हुईं तो उमर अब्दुल्ला ने किसी प्रकार की प्रतिक्रिया देना उचित नहीं समझा।
पांच अगस्त, 2019 को केंद्र ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त कर दिया था और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया था। रिपोर्ट के अनुसार, 8 अगस्त को सुनवाई वाली याचिका निपटाए गए मामले संविधान के अनुच्छेद 370 के संबंध में एक विविध आवेदन के रूप में थी, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को निरस्त करने के फैसले को बरकरार रखा था। हालांकि, दिसंबर 2023 में दिए गए उस ऐतिहासिक फैसले में, संविधान पीठ ने सॉलिसिटर जनरल के इस आश्वासन के आलोक में कि राज्य का दर्जा “जल्द से जल्द” बहाल किया जाएगा, जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की संवैधानिकता पर फैसला देने से परहेज किया था, जिसने राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया था। अदालत ने तब टिप्पणी की थी कि राज्य का दर्जा जल्द से जल्द और यथाशीघ्र बहाल किया जाना चाहिए, लेकिन कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं की थी।
सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार, 8 अगस्त को केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग वाली एक याचिका पर सुनवाई करेगा। वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई के समक्ष इस मामले का उल्लेख किया और कहा कि इसे 8 अगस्त के लिए सूचीबद्ध दिखाया गया है। गोपाल शंकरनारायणन ने अनुरोध किया कि इस मामले को उस दिन की सूची से न हटाया जाए। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि न्यायमूर्ति गवई ने अनुरोध स्वीकार कर लिया।हाल ही में यह याचिका कॉलेज शिक्षक जहूर अहमद भट और सामाजिक कार्यकर्ता खुर्शीद अहमद मलिक ने दायर की थी। एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड एजाज
मकबूल द्वारा प्रस्तुत, आवेदकों का तर्क है कि क्षेत्र में विधानसभा चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न होने के बावजूद, केंद्र सरकार फैसले के बाद से ग्यारह महीनों में राज्य का दर्जा बहाल करने की दिशा में कोई कदम उठाने में विफल रही है।
गत 4 अगस्त को उच्च स्तरीय बैठकों के बाद अटकलें लगाई जाने लगीं कि केंद्र इस क्षेत्र का राज्य का दर्जा बहाल करने की प्रक्रिया शुरू कर सकता है। एनडीए सांसदों की बैठक और उससे पहले राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बीच अलग-अलग हुई बैठकों ने इस अटकल को और हवा दे दी। जम्मू-कश्मीर को 5 अगस्त 2019 को आर्टिकल 370 से आजादी मिली थी। गत 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने को लेकर चर्चाएं काफी तेज हुईं। इस पर राज्य के सीएम उमर अब्दुल्ला का बयान भी सामने आया। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, मैंने जम्मू-कश्मीर में क्या होने वाला है। इस बारे में हर संभव संभावना और संयोजन सुन लिया है, इसलिए मैं पूरी ईमानदारी से कहूंगा कि अभी कुछ नहीं होगा। इसके साथ ही सीएम ने कहा, सौभाग्य से कुछ बुरा नहीं होगा, लेकिन दुर्भाग्य से कुछ सकारात्मक भी नहीं होगा। मैं अभी भी संसद के इस मानसून सत्र में जम्मू-कश्मीर के लिए कुछ सकारात्मक होने को लेकर आशावादी हूं, लेकिन 5 अगस्त को नहीं। सीएम अब्दुल्ला ने कहा, और नहीं, मैंने दिल्ली में लोगों से कोई मुलाकात या बातचीत नहीं की है। यह बस एक आंतरिक भावना है। देखते हैं क्या होता है?
जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन की छठी वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर उच्च स्तरीय बैठकों से अटकलें शुरू हो गईं कि केंद्र इस क्षेत्र का राज्य का दर्जा बहाल करने की प्रक्रिया शुरू कर सकता है। एनडीए सांसदों की बैठक और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बीच अलग-अलग हुई बैठकों के बाद श्रीनगर, पटना और कोलकाता से लेकर इस्लामाबाद और रावलपिंडी तक चर्चा गरम रही, प्रधानमंत्री मोदी ने एनडीए की बैठक में अमित शाह की खूब प्रशंसा की, पीएम ने कहा कि वह अब सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले केंद्रीय गृह मंत्री हैं। पीएम मोदी ने ऑपरेशन सिंदूर के बारे में डिटेल जानकारी दी। विपक्ष ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा मांग कर पछता रहा होगा। पांच अगस्त को ही राम जन्मभूमि का भूमि पूजन हुआ था और ये बहुत महत्वपूर्ण दिन है। साथ ही कांग्रेस जम्मू कश्मीर में संविधान को लागू करना ही नहीं चाहती थी, हमने धारा 370 को हटाकर संविधान लागू किया। प्रधानमंत्री ने सभी सांसदों को अपने-अपने क्षेत्रों में घर-घर तिरंगा अभियान मनाने के लिए कहा।
एनडीए संसदीय दल की मीटिंग में पहलगाम टेरर अटैक में मारे गये लोगों को श्रद्धांजलि दी गई। इसके साथ ही भारतीय सेना के शौर्य और पाकिस्तान को बेनकाब करने के लिए भेजे गये डेलीगेशन पर प्रस्ताव भी आया। एनडीए की यह बैठक संसद के मानसून सत्र में गतिरोध के बीच हुई थी, जो पहलगाम आतंकी हमले और ऑपरेशन सिंदूर पर दो दिवसीय बहस को छोड़कर, काफी हद तक बाधित रहा है। इसी बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से अचानक मुलाकात की थी और उस मुलाकात के बाद जम्मू और कश्मीर को राज्य का दर्जा दिए जाने की कयासबाजी जारी है। ये चर्चा सोशल मीडिया पर भी खूब हो रही है कि जम्मू कश्मीर को राज्य का दर्जा देने का ऐलान हो सकता है। हालांकि सीएम उमर अब्दुल्ला ने ऐसी किसी भी संभावना को दरकिनार करते हुए ट्वीट किया है। (हिफी)