अध्यात्म

पौराणिक पर्व है रक्षाबंधन

रक्षा बंधन का शाब्दिक अर्थ है

  • रक्षा बंधन का शाब्दिक अर्थ है
  • रक्षा बंधन का क्या इतिहास है।
  • रक्षा मंत्र क्या हैं 
  • रक्षा बंधन का विशेष मिष्ठान
  • सबसे पहले राखी किसने किसको भेजी?

रक्षा बंधन का शाब्दिक अर्थ है
भाई-बहन से जुड़ा पावन पर्व रक्षा बंधन का इतिहास बहुत प्राचीन है। हमारे पौराणिक ग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है। रक्षा बंधन का शाब्दिक अर्थ है रक्षा करने वाला तथा बंधन का मतलब है धागा अर्थात रेशम के धागे से बहन द्वारा भाई के कलाई में बंधन बांधे जाने की रीत को रक्षा बन्धन कहते हैं। बदले में भाई जीवन भर उनकी रक्षा करने का वचन देते हैं।

सावन के महीने में यह त्योहार पड़ता है। इसे रिश्तों में मिठास और प्रेम बढ़ाने वाला त्योहार माना गया है। इस दौरान भाई भी अपनी बहन को रक्षा का कवच देता है और उसे उपहार भेंट करता है। पहले के समय में रक्षा के वचन का यह पव्र विभिन्न रिश्तों के अंतर्गत निभाया जाता था पर समय बीतने के साथ यह भाई-बहन के बीच का प्यार बन गया है।

रक्षा बंधन का क्या इतिहास है।

इसलिए अब जानते हैं कि रक्षा बंधन का क्या इतिहास है। एक बार की बात है देवताओं और असुरों में युद्ध आरंभ हुआ। युद्ध में हार के परिणाम स्वरूप देवताओं ने अपना राज-पाट गंवा दिया। अपना राज पाट फिर से लाने के लिये देवराज इंद्र देवगुरू बृहस्पति से मदद की गुहार करने लगे। देव गुरु बृहस्पति ने श्रावण मास के पूर्णिमा के प्रातःकाल में निम्न मंत्र से रक्षा विधान संपन्न किया। इस श्लोक के बोल कुछ ऐसे थे।

रक्षा मंत्र क्या हैं 

येन बद्धो बलि राजा दानवेन्द्रों महाबलः।
तेन त्वां अनुबन्ध्नामि रक्षे मा चल मा चलः।।

इस पूजा के सूत्र को इंद्राणी ने इंद्र के हाथ पर बांध दिया। इससे इंद्र को युद्ध में विजय प्राप्त हुयी। उन्हें अपना राज पाट दुबारा मिल गया। तब से रक्षा बंधन का त्योहार मनाया जाता है। संयोग से वह श्रावण (सावन) पूर्णिमा का दिन था। लोगों का विश्वास है कि इन्द्र इस लड़ाई में इसी धागे की शक्ति पर जीते थे। रक्षा बंधन का यह धागा धन, शांति, हर्ष और विजय देने का प्रतीक माना जाता है। इस दिन भाई-बहन एक-दूसरे को राखी बांधते हैं एवं मिठाई खिलाते हैं।

रक्षा बंधन का विशेष मिष्ठान

इस दिन कुछ विशेष पकवान बनते हैं जैसे घेवर, शकरपारे, नमक पारे और घुंघनी। घेवर सावन का विशेष मिष्ठान है।
इस पर्व पर बहने और सभी घर के लोग स्नान करके पूजा की थाली सजाते हैं पूजा की थाल में कुमकुम, राखी, रोली, दीपक तथा मिठाई रखी जाती है। सिर पर अक्षत डाला जाता है और माथे पर कुमकुम का तिलक किया जाता है। यह पर्व भाई बहन को और भी समीप ले आता है और जिनसे हमारा रक्त संबंध नहीं है उन्हें भी इस पर्व के माध्यम से भाई-बहन बना सकते हैं।

सबसे पहले राखी किसने किसको भेजी?

राखी के पर्व का महत्व इतिहास भी पता चलता है। एक बार रानी कर्णावती जो चित्तौडगढ़ की रानी थीं उन्होंने जब देखा कि उनके सैनिक बहादुर शाह के सेन बल के आगे नहीं टिक पाएंगे तब उन्होंने मेवाड़ की रक्षा के लिये हुमायूं को राखी भेजी और उसे अपना धर्म का भाई बनाया। सम्राट हुमायूं अन्य धर्म से संबंध रखने के बावजूद राखी के महत्व के वजह से बहादुर शाह से युद्ध कर रानी कर्णवती को युद्ध में विजय दिलवायी।

महाभारत में भी रक्षा बंधन से संबंधित कृष्ण और द्रोपदी का एक वृतान्त भी मिलता है। कृष्ण ने जब सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तब उनकी तर्जनी में चोट आ गयी थी। द्रोपदी ने उस समय साड़ी में से एक टुकड़ा फाड़कर उनकी उंगली में बांध दिया था। यह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। कृष्ण ने इस उपकार का बदला बाद में चीरहरण के समय उनकी साड़ी को बढ़ाकर किया। कहते हैं कि रक्षा बंधन का पर्व यही से शुरू हुआ।

महाभारत के अलावा स्कन्ध पुराण, पद्म पुराण और श्रीमद् भागवत से वामनावतार कथा में रक्षाबंधन का प्रसंग मिलता है।
रक्षा बंधन कई देशों में मनाया जाता है जैसे नेपाल, मारिशस आदि। महाराष्ट्र में यह त्योहार नारियल पूर्णिमा या श्रावणी के नाम से विख्यात है। इस दिन समुद्र या नदी के तट पर जाकर अपने जनेऊ बदलते हैं और समुद्र की पूजा करते हैं। तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र और दक्षिण भारतीय ब्राह्मण इस वर्ष को अवनि अवित्तम कहते हैं। राजस्थान में लुम्बा राखी बांधी जाती है। यह एक पारंपरिक राीति-रिवाजों और उल्लास पारिवारिक समारोहों के अनूठे मिश्रण के साथ मनाई जाती है। यह त्योहार ननद-भाभी के बीच के बंधन का सम्मान करता है।
बहनें लुम्बा राखी, मिठाई और दीये से एक थाली तैयार करती हैं। वे आरती उतारती हंै। अपनी भाभी के माथे पर तिलक लगाती हैं और उनकी चूड़ी पर लुम्बा राखी बांधकर उनकी सलामती की कामना करती हैं। बदले में भाभियाँ अपने प्यार के प्रतीक स्वरूप उपहार देती हैं। इस त्योहार में लुम्बा राखी के दौरान बनाये जाने वाले कुछ लोकप्रिय व्यंजन भी बनाये जाते हैं जैसे गट्टे की सब्जी, दाल बाटी चूरमा, घेवर, माल पुआ।

रक्षा बंधन से जुड़ी एक और पौराणिक कथा गंगा माता की कथा है। इस कथा के अनुसार गंगा माता हिमालय और मेनका (एक दिव्य अप्सरा) की बेटी थी। उनका जन्म स्वर्ग में हुआ था लेकिन वे लोगों की आत्मा को शुद्ध करने के लिए पृथ्वी पर अवतरित होना चाहते थे। वे इतनी शक्तिशाली थीं कि उनका वेग कोई सहन ना कर सका। उन्होंने भगवान शिव से पृथ्वी पर आने में मदद मांगी। शिव ने अपने जटाओं से गंगा की धारा को रोका और अपनी जटाओं में प्रवाहित करने की अनुमति दे दी। उन्होंने उसे सात धाराओं में भी विभाजित कर दिया ताकि पृथ्वी को कोई नुकसान न हो। इनमें से एक धारा का नाम भागीरथी था। यह उत्तराखण्ड से निकला समुद्र में समा गया। श्रावण के दिन, गंगा माता ने शिव की कलाइयों पर राखियाँ बांधी और सहायता के लिये अनुरोध किया। उन्होंने अपनी सुख-समृद्धि और कल्याण की भी प्रार्थना की। शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया कि जो कोई भी इस दिन गंगाजल से स्नान करेगा वह सभी पापों से मुक्त हो जायेगा। उत्तराखण्ड में इस पर्व को गंगावतरण के रूप में मनाया जाता है जिसका अर्थ है गंगा का अवतरण इस दिन लोग गंगा नदी या उसकी सहायक नदियां अलकनंदा या भागीरथी में स्नान करते हैं। वे गंगा माता की पूजा करते हैं और पुष्प अर्पित कर पवित्रता और शांति का आशीर्वाद मांगते हैं।

ये कुछ कहानियां तो उत्तराखण्ड में स्थित हैं। ये कहानियां इस क्षेत्र के लोगों की संस्कृति और आस्था को जोड़ती हैं जो प्रकृति और उसके स्वरूपों को दिव्य मानती हैं। ये भाई के उस बंधन का भी जश्न मनाते हैं जो हर सुख-दुख में एक दूसरे का साथ देते हैं। (हिफी)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button