आजादी के दिन रिलीज फिल्म शहनाई के एक गाने ने मचाई धूम

15 अगस्त 1947 जब पूरा देश आजादी के जश्न में डूबा हुआ था। उसी दिन एक फिल्म रिलीज हुई जिसने हिंदी सिनेमा को एक नया मोड़ दिया। इसके गाने हो या फिल्म, सबकुछ छा गया। इस फिल्म के साथ लोगों ने आजादी के जश्न को मनाया। ये थी ‘शहनाई’, जो मनोरंजन की दुनिया में एक बड़ी हिट साबित हुई। यह फिल्म 133 मिनट लंबी थी और इसके संगीत निर्देशक सी। रामचंद्र थे, जिन्होंने अपने संगीत के अलग अंदाज से इस फिल्म को यादगार बना दिया।
इस फिल्म का सबसे चर्चित और हिट गाना था ‘आना मेरी जान संडे के संडे’। इस गाने को शमशाद बेगम और सी. रामचंद्र ने गाया था। इस गाने ने उस वक्त के युवाओं और आम लोगों को खूब लुभाया। यह गाना जल्द ही म्यूजिक चार्ट के टॉप पर पहुंच गया और साल 1947 के सबसे पसंदीदा गीतों में शामिल हो गया। उस समय जब देश विभाजन की त्रासदी और एक अनिश्चित भविष्य से गुजर रहा था, यह गीत एक हल्की-फुल्की राहत और खुशी का जरिया बना। इस गीत के बोल और संगीत में एक अलग ही ताजगी थी। निर्देशक पीएल संतोषी ने इस गाने को पर्दे पर फिल्माया था। इस गाने में अभिनेत्री दुलारी और अभिनेता मुमताज अली नजर आए। गाने में एक गांव की लड़की और एक विदेशी लड़के के बीच हल्का-फुल्का रोमांस दिखाया गया था, जो दर्शकों को काफी पसंद आया। सी. रामचंद्र ने इस गाने में वेस्टर्न म्यूजिक का इस्तेमाल कर हमेशा के लिए यादगार बना दिया, जो उस समय के लिए बिल्कुल नया था। इस गाने की लोकप्रियता को देख इसी शैली का इस्तेमाल करते हुए ‘गोरे गोरे ओ बांके छोरे’ और ‘शोला जो भड़के’ जैसे गानों को बनाया गया। लेकिन समय के साथ लोगों की सोच बदली। 1990 के दशक की शुरुआत में वही गाना जो एक समय विवादित था, अब टीवी विज्ञापनों की जान बन गया। नेशनल एग कोआर्डिनेशन कमेटी (एनईसीसी) ने देश में अंडों की खपत बढ़ाने के लिए इसी धुन पर आधारित एक विज्ञापन जिंगल बनाया, ”खाना मेरी जान, मेरी जान मुर्गी के अंडे।” यह जिंगल इतना लोकप्रिय हुआ कि हर उम्र के लोग इसे गुनगुनाने लगे और यह उस दौर के सबसे चर्चित विज्ञापनों में शामिल हो गया। (हिफी)