उप राष्ट्रपति के लिए दूरदर्शी राजनीति

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
अब राजनीति के गलियारे में उस कहानी के पन्ने बंद किये जा रहे हैं कि किन हालात में पूर्व राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अचानक इस्तीफा दिया था। इसके साथ ही एक नई कहानी के पन्ने खोले जा रहे हैं जिसके कथानक में महाराष्ट्र के मौजूदा राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन (सीपीआर) हैं जिन्हें केन्द्र में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने अपना उप राष्ट्रपति का प्रत्याशी घोषित किया है। संसद में संख्या बल का गणित ऐसा है कि एनडीए के प्रत्याशी को ही उप राष्ट्रपति की कुर्सी मिलेगी लेकिन राजनीति में कहीं पर निगाहें, कहीं पर निशाना ज्यादा देखा जाता है। सीपी राधाकृष्णन को उप राष्ट्रपति का प्रत्याशी बनाने के पीछे भी दूरदर्शी राजनीति है। भाजपा को दक्षिण भारत में मजबूती से पैर जमाने हैं। उसके लिए सबसे कठिन जमीन तमिलनाडु में है जहां क्षेत्रीय दलों ने अपना वर्चस्व कायम कर रखा है। सीपी राधाकृष्णन तमिलनाडु के निवासी हैं और ओबीसी समुदाय से आते हैं। पिछले दिनों अन्ना द्रमुक के साथ भाजपा ने गठबंधन किया है और इस मेल-मिलाप की कीमत ओबीसी नेता अन्ना मलाई को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर चुकानी पड़ी है। तमिलनाडु में अगले साल ही विधानसभा चुनाव होने हैं और अन्ना मलाई के हटाए जाने से पश्चिमी तमिलनाडु में कांेगु वेल्लाकर उपजाति के लोग नाराज हो गये हैं। मूलतः खेती-किसानी करने वाली यह उपजाति पश्चिमी तमिलनाडु में दबदबा रखती है। सीपी राधा कृष्णन भी इसी उपजाति के हैं। इसलिए उनको उप राष्ट्रपति बनवाकर भाजपा अन्ना मलाई के हटा जाने से उपजे आक्रोश को ठण्डा करना चाहती है। अब तो मानना ही पड़ेगा कि भाजपा बहुत दूरदर्शी राजनीति करती है।
सीपी राधाकृष्णन एनडीए के उप राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार होंगे। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने इस बात की जानकारी दी है। नड्डा ने बताया, पीएम मोदी की मौजूदगी में संसदीय बोर्ड की मीटिंग में सर्वसम्मति से ये फैसला लिया गया है। सीपी राधाकृष्णन किशोरावस्था से ही आरएसएस और जनसंघ से जुड़े रहे हैं। 16 साल की उम्र में आरएसएस के स्वयंसेवक के रूप में शुरुआत करते हुए वह 1974 में भारतीय जनसंघ की राज्य कार्यकारी समिति के सदस्य बने। 1996 में उनको तमिलनाडु भाजपा का सचिव नियुक्त किया गया। वह 1998 में कोयंबटूर से पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए। 1999 में वह फिर से लोकसभा के लिए चुने गए। उनके समर्थक उन्हें तमिलनाडु का मोदी कहते हैं। वर्ष 2004 से 2007 तक वह तमिलनाडु भाजपा के अध्यक्ष रहे। इस पद पर रहते हुए उन्होंने 19 हजार किलोमीटर की रथयात्रा की, जो 93 दिनों तक चली। इसका उद्देश्य भारतीय नदियों को जोड़ना, आतंकवाद का उन्मूलन, समान नागरिक संहिता लागू करना, अस्पृश्यता निवारण और मादक पदार्थों के खतरों से निपटना था। इसके अलावा भी अन्य दो पद यात्राएं उन्होंने कीं। बीबीए की पढ़ाई करने वाले सीपी राधाकृष्णन कोच्चि स्थित क्वायर बोर्ड के अध्यक्ष भी रहे हैं। वह चार वर्ष तक इस पद पर रहे और उनके नेतृत्व में भारत से क्वायर (नारियल की जूट) का निर्यात 2,532 करोड़ रुपये के सर्वकालिक उच्च स्तर तक पहुंच गया था। 2020 से 2022 तक वह केरल भाजपा के प्रभारी भी रहे। विभिन्न राज्यों में टीबी उन्मूलन में भी सीपी राधाकृष्णन का विशेष योगदान रहा। राधाकृष्णन टेबल टेनिस में कॉलेज चैंपियन और लंबी दूरी के धावक थे। उन्हें क्रिकेट और वॉलीबॉल का भी शौक है। कहा जाता है कि 2004 में द्रमुक द्वारा राजग से नाता तोड़ने के बाद तमिलनाडु में भाजपा के लिए नया गठबंधन बनाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी।
सीपी राधाकृष्णन मूल रूप से तमिलनाडु के रहने वाले हैं और बीजेपी, और जनसंघ के पुराने नेता रहे हैं। वह वर्तमान में महाराष्ट्र के राज्यपाल के रूप में सेवाएं दे रहे हैं। इससे पहले वह झारखंड के राज्यपाल थे और उनके पास तेलंगाना के भी राज्यपाल का अतिरिक्त प्रभार था। इसके अलावा वह पुडुचेरी के उपराज्यपाल भी रहे हैं।
सीपी राधाकृष्णन कोयंबटूर (तमिलनाडु) से लोकसभा सांसद रह चुके हैं और बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य भी रहे हैं। 16 वर्ष की आयु में वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और जनसंघ से जुड़ गए थे। दक्षिण भारत, विशेषकर तमिलनाडु और केरल में भाजपा को मजबूत करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। सीपी राधाकृष्णन ओबीसी हैं और गाउंडर जाति से हैं। गाउंडर में एक उपजाति है जिसका नाम कोंगु वेल्लालर है। राधाकृष्णन इस उपजाति से हैं। ये उपजाति मूलतः खेती किसानी से जुड़ी है। पश्चिमी तमिलनाडु जिसे कोंगु रीजन भी कहा जाता है वहां इस जाति का दबदबा है। अन्नामलाई और अद्रमुक नेता ई पलनीस्वामी भी इसी जाति से हैं। अन्नाद्रमुक के साथ गठबंधन के लिए ईपीएस के दबाव में आकर जब भाजपा ने, प्रदेश अध्यक्ष के रूप में अन्नामलई को बदल दिया तब से ये चर्चा थी कि इस उपजाति के वोट भाजपा से दूर जा सकते हैं। तमिलनाडु में अगले साल चुनाव हैं। ऐसे में सीपीआर को उपराष्ट्रपति बनाने का कदम एक डेमेज कंट्रोल है। जेपी नड्डा ने कहा, हम विपक्ष से भी बात करेंगे। हमें उनका समर्थन भी प्राप्त करना चाहिए ताकि हम मिलकर उपराष्ट्रपति पद के लिए निर्विरोध चुनाव सुनिश्चित कर सकें।
चुनाव आयोग ने घोषणा की है कि उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान 9 सितंबर को होगा और उसी दिन मतगणना भी होगी। नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि 21 अगस्त है, जबकि उम्मीदवार 25 अगस्त तक अपना नामांकन वापस ले सकते हैं। बता दें कि 21 जुलाई को संसद के मानसून सत्र के पहले दिन स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद उपराष्ट्रपति पद रिक्त हो गया था। धनखड़ के त्यागपत्र में लिखा था, स्वास्थ्य सेवा को प्राथमिकता देने और चिकित्सीय सलाह का पालन करने के लिए, मैं संविधान के अनुच्छेद 67(ए) के अनुसार, तत्काल प्रभाव से भारत के उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देता हूं। अभी (इन पंक्तियों के लिखे जाने तक) विपक्ष की तरफ से किसी उम्मीदवार का नाम सामने नहीं आया है। इस बीच रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सभी विपक्षी नेताओं को फोन कर उपराष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए सीपी राधाकृष्णन का नाम बताकर समर्थन मांगा है। उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से बात की और राधाकृष्णन के लिए समर्थन मांगा। एनडीए के आंकड़े को देखते हुए राधाकृष्णन का अगला उपराष्ट्रपति बनना तय लग रहा है। साथ ही पीएम मोदी ने राधाकृष्णन पर दांव लगाकर विपक्ष में भी सेंध लगाने की कोशिश की है। राधाकृष्णन तमिलनाडु से हैं ऐसे में अब ये देखना दिलचस्प होगा कि डीएमके उनका विरोध करती है या राधाकृष्णन के समर्थन में वोट डालेगी। इस बार कुल 782 सांसद मतदान के पात्र हैं जिनमें 542 लोकसभा और 240 राज्यसभा से हैं। बहुमत के लिए 392 सांसदों की जरूरत होगी। सरकार के पक्ष में 427 सांसद बताए जा रहे हैं जबकि विपक्ष के पास 355 सांसद हैं। इसमें दिलचस्प पहलू यह है कि इनमें से 133 सांसद अभी अनिर्णीत माने जा रहे हैं जो पूरे चुनाव की दिशा बदल सकते हैं। तमिलनाडु में अगले कुछ महीनों बाद चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में तमिलनाडु के एक नेता को एनडीए द्वारा उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाना ये दर्शाता है कि बीजेपी तमिलनाडु में आगामी चुनावों को लेकर अभी से रणनीति बनाने में जुट गई है। (हिफी)