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पूजा बेदी ने माँ की पुण्यतिथि पर कुछ अनकही बातें बतायीं

प्रोतिमा बेदी एक ऐसा नाम, जो आज भी भारतीय कला और आत्म-अभिव्यक्ति की दुनिया में गूंजता है। एक मॉडल से लेकर ओडिसी डांसर बनने तक, एक पत्नी, मां, विद्रोही और आत्मा की खोज में निकली एक यात्री, उनका जीवन किसी उपन्यास की तरह था, जिसमें रोमांच, प्रेम, पीड़ा और अद्भुत जुनून की कहानियां गुंथी हुई थीं। उनकी बेटी पूजा बेदी ने हाल ही में अपनी मां को याद किया और कुछ ऐसी बातें साझा कीं, जिससे दुनिया अनजान थी। पूजा बेदी ने अपनी मां की पुण्यतिथि के मौके पर उनके जीवन के कुछ अनकहे पलों को साझा किया। पूजा की आवाज में वो अपनापन और अधूरी कसक दोनों साफ झलकती है। उन्होंने कहा, जुहू बीच की रेत पर मां मुझे एबीसी सिखाया करती थीं। हम बहुत गले मिलते, बहुत चूमते, बहुत हंसते। वह हमेशा कहती थीं, ‘अगर मैं तुम्हें घर का काम स्कूल ले जाने के लिए नहीं देती तो स्कूल तुम्हें घर का होमवर्क कैसे दे सकता है? ये वक्त मेरा है, तुम्हारा होमवर्क नहीं।
साल 1998 में अपने आत्मिक सफर की तलाश में प्रोतिमा बेदी कैलाश मानसरोवर की तीर्थयात्रा पर निकलीं। यह वही यात्रा थी, जहां उन्होंने आखिरी बार अपनी बेटी से बात की। पूजा बताती हैं कि उनका शरीर कभी नहीं मिला। उनकी मां हमेशा कहा करती थीं कि मैं प्रकृति में मरना चाहती हूं, प्रकृति में एकाकार हो जाना चाहती हूं। पूजा की आंखों में आंसू छलकते हैं जब वह कहती हैं, उन्होंने अपनी जिंदगी अपनी मर्जी से जी और उसी तरह विदा ली, अपनी शर्तों पर। प्रोतिमा की मृत्यु से पहले उन्होंने अपनी बेटी को हर जिम्मेदारी सौंप दी थी। पूजा याद करती हैं कि एक दिन उनकी मां अचानक उनके पास आईं, अपना वसीयतनामा, गहने, दस्तावेज, संपत्ति के कागजात सब सौंप दिए। पूजा ने हैरानी से पूछा, इतना नाटक क्यों कर रही हो? और मां ने बस मुस्कुरा कर कहा, तुम्हें कभी पता नहीं चलता, डार्लिंग। उसके कुछ दिनों बाद, प्रोतिमा कुल्लू मनाली चली गईं। जाते-जाते उन्होंने पूजा को 12 पन्नों का एक लेटर लिखा जिसमें अपने पूरे जीवन का सारांश दिया। बचपन, जवानी, रिश्ते, शादी, बच्चे, नृत्य और अंत में अपनी यात्रा का आखिरी ठिकाना। उन्होंने लिखा, मैं कुल्लू में हूं और बहुत-बहुत खुश हूं। यह आखिरी संदेश था। पूजा कहती हैं, श्फिर वो चली गईं। (हिफी)

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