अध्यात्म

जीवन का सुगम मार्ग है हिन्दू धर्म-2

बाबा नीम करोली भारत के महान आध्यात्मिक गुरुओं में शामिल हैं। उनके भक्त न केवल भारत बल्कि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से नैनीताल स्थित कैंची धाम आते हैं। उनके द्वारा दी गई शिक्षाओं को लोग आज भी आत्मसात करते हैं। नीम करोली बाबा ने कामयाब होने के लिए कुछ चीजों से दूरी बनाने की सीख दी है। नीम करोली बाबा के अनुसार जो व्यक्ति लालची होता है उसको जीवन में न ही बरकत मिलती है और न सफलता। लालच करने वाला व्यक्ति हमेशा अपने हित के बारे में सोचता है, जो समाज के बीच रहने वाले वाले व्यक्ति का अच्छा गुण नहीं है। इसलिए लालच करने से हमें बचना चाहिए, लालच हमारी सफलता के राह का कांटा है। इसी तरह जो व्यक्ति अहंकार में जीता है उसे कभी जीवन में सही राह नहीं मिलती। अहंकार के वशीभूत होकर व्यक्ति गलत संगति में भी पड़ जाता है। साथ ही ऐसे लोगों से अच्छे लोग हमेशा दूरी बनाते हैं। नीम करोली बाबा के अनुसार अहंकार रूपी कांटे को अगर आप अपने चरित्र से निकाल देते हैं तो सफलता जरूर आपके कदम चूमती है। क्रोध से भी नीम करोली बाबा बचने को कहते हैं। क्रोध में आकर व्यक्ति दूसरों का नहीं बल्कि अपना ही अहित कर देता है। क्रोध करने से मानसिक शांति भी भंग होती है और आप अपने उद्देश्य से भी भटक जाते हैं। इसलिए आपको क्रोध पर हमेशा नियंत्रण रखना चाहिए। नीम करोली बाबा के अनुसार हमें अपनी संगति का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए। ऐसे लोगों से हमेशा दूरी बनानी चाहिए जो नकारात्मक बातें करते हैं या गलत कार्यों में लिप्त रहते हैं। ऐसे लोगों से दोस्ती करने पर आप सफलता के पथ से भटक सकते हैं। वहीं अच्छी संगति में रहकर आप अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर सकते हैं।
ऐसा है हमारा हिन्दू धर्म का विकास वेद की वाचिक परंपरा का परिणाम है। ब्रह्मा और उनके पुत्रों, सप्तऋषियों, ऋषि बृहस्पति, ऋषि पराशर, वेदव्यास से लेकर आदि शंकराचार्य तक इस धर्म का निरंतर परिवर्तन और विकास होता रहा है। स्वायंभुव मनु के काल से इस धर्म का प्रारंभ होता है। फिर क्रमशः वैवस्वत सहित अब तक 7 मनुओं के काल में हिन्दु धर्म की पुनः स्थापना का कार्य चलता रहा। श्रीराम के काल में गुरु वशिष्ठ, विश्वामित्र, अत्रि जैसे ऋषियों ने इस धर्म को आगे बढ़ाया, फिर श्रीकृष्ण, वेदव्यास और ऋषि पराशर ने इस धर्म को पुनः स्थापित किया। इसके बाद पतंजलि, आदि शंकराचार्य, रामानंद, रामानुज, कबीर, रविदास, नानक, तुलसीदास गोस्वामी, माधवाचार्य, महर्षि अरविंद, स्वामी प्रभुपाद, राजा राम मोहन राय, दयानंद सरस्वती, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, स्वामी रामतीर्थ, राजगोपालाचारी, श्रीसर्वपल्ली राधाकृष्णन, श्रीराम शर्मा आचार्य आदि ने इस धर्म के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
हिन्दू धर्म वट वृक्ष के समान हैं जिसकी सैकड़ों शाखाएं हैं। जितनी शाखाएं हैं उतने ही देवी, देवता, भगवान और ऋषि हैं और उन सभी देवी-देवताओं को मानने वाले लोगों की संख्या बहुत बड़ी है। सभी में अंतरविरोध होने के बावजूद सभी कुछ सिद्धांतों पर एकमत हैं। वैसे हिन्दू धर्म में त्रिदेवों को खास महत्व दिया गया है। ये त्रिदेव है ब्रह्मा, विष्णु और महेश। ब्रह्मा को मानने वाले कम भी है परंतु वैदिक समाज के लोग उन्हें मानते हैं। विष्णु और महेश अर्थात शंकर को मानने वाले दो वर्गाें में बंटे हैं- पहला वैष्णव और दूसरा वर्ग शैव है। दोनों ही संप्रदाय के देवी और देवता भिन्न हैं और इनकी पूजा पद्धति भी भिन्न है। देवियों को पूजने वाले को शाक्त संप्रदाय का माना जाता है। पंच देवों अर्थात सूर्य, विष्णु, दुर्गा, गणेश और शिव की पूजा करने वालों को स्मार्त संप्रदाय का माना जाता है। उक्त संप्रदायों के कई उपसंप्रदाय भी हैं। वैष्णव संप्रदाय के अंतर्गत ही विष्णु के अवतारों की पूजा होती है जैसे श्रीराम और श्रीकृष्ण सहित सभी 24 अवतारों की पूजा। इसी तरह शिव, दुर्गा आदि देवी और देवताओं के भी अवतार हैं।
हिन्दू धर्म वास्तव में दुनिया का एक महत्वपूर्ण धर्म है जो जीवन जीने की स्वतंत्रता, व्यक्तिगत स्वतंत्रता,
आध्यात्मिक उन्नति और आत्मिक विकास पर जोर देता है। यह एक बहुसंप्रदाय, बहुजाति, अनेक प्रार्थना, साधना और पूजा पद्धति, अनेक देवी-देवताओं, अनेक आध्यात्मिक मार्गों और अनेक दर्शनों से सजा धर्म है जो अपने मूल में आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से एक ही है। यह धर्म हजारों वर्ष से अस्तित्व में है जबकि बीच में कई धर्म अपना अस्तित्व खो बैठे और नए धर्मों की उत्पत्ति होती रही परंतु हिन्दू धर्म निरंतर है। पहले इसे सनातन धर्म ही कहा जाता था जो वैदिक धर्म पर ही आधारित है। वैदिक धर्म ही सनातन धर्म है जिसकी उत्पत्ति ऋग्वेद से हुई है। ऋग्वेद संसार की प्रथम पुस्तक है जिसमें हिन्दू धर्म का दर्शन, सिद्धांत और प्राचीन इतिहास मौजूद है। इस धर्म का धर्मग्रंथ चार वेद है- ऋग, यजु, साम और अथर्व। उपनिषद और गीता वेदों का सार है। स्मृति और पुराणों को इतिहास ग्रंथ माना गया है।
वेद और उपनिषद को पढ़कर ही 6 ऋषियों ने अपना दर्शन गढ़ा है। इसे भारत का षड्दर्शन कहते हैं। ये 6 षड्दर्शन हैं- 1. न्याय, 2. वैशेषिक, 3. मीमांसा, 4. सांख्य 5. वेदांत और 6. योग। 10 सिद्धांत प्रमुख है- 1. षष्ट कर्म का सिद्धांत, 2. पंच ऋण का सिद्धांत, 3. चार पुरुषार्थ का सिद्धांत, 4. आध्यात्मवाद का सिद्धांत, 5. आत्मा की अमरता का सिद्धांत,
6. ब्रह्मवाद का सिद्धांत, 7. चार
आश्रम का सिद्धांत, 8. मोक्ष मार्ग का सिद्धांत, 9. व्रत और संध्यावंदन का सिद्धांत और 10. अवतारवाद का सिद्धांत।
हिन्दू धर्म वसुधैव कुटुंबकम में विश्वास रखता है। अर्थात संपूर्ण मानव जाति एक ही कुटुंब की है। कोई छोटा-बड़ा, ऊंचा-नीचा नहीं है। हिन्दू धर्म में साकार और निराकार दोनों ही तरह की पूजा पद्धति है। अर्थात मूर्ति पूजा भी है और निराकार ब्रह्म की प्रार्थना भी है। हिन्दू उपासना पद्धति में प्रकृति और पुरुष की समान रूप से भागीदारी है। हिन्दू धर्म में देवियों का स्थान देवताओं से पहले रखा गया है। जैसे सरस्वती-ब्रह्मा, लक्ष्मी-विष्णु, उमा-शंकर, सीता-राम, राधे-कृष्ण।हिन्दू धर्म प्रकृति और ब्रह्म, स्त्री या पुरुष को भिन्न नहीं मानता है। सभी आत्मरूप है। प्रकृति को आठ तत्वों और तीन गुणों वाली कहा गया है जिससे सृष्टि की रचना, उद्भव, विकास और संहार होता है। हिन्दू धर्म में ब्रह्मा को जन्मदाता, विष्णु को पालनहार और शिव को संहारक माना गया है। हिन्दू धर्म में शिव को सर्वोच्च देव माना गया है। इसीलिए उन्हें महादेव भी कहा जाता है। हिन्दू धर्म वेद पर आधारित धर्म है जो आत्मा की अमरता में विश्वास रखता है और यह कर्म सिद्धांत को मानता है जो समाज में सद्भाव पैदा करते हैं। -समाप्त (मोहिता स्वामी-हिफी फीचर)

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