लेखक की कलम

टैरिफ वार से लड़ने की सही रणनीति

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अहंकार से भरे हैं। पुतिन का रूस यूक्रेन में उलझा है, इसलिए ट्रम्प अपनी मनमानी कर रहे हैं। भारत पर 50 फीसद टैरिफ लगाने का असर अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर भी दिखाई पड़ने लगा है। बैंक आफ अमेरिका के अर्थशास्त्रियों ने चेतावनी दी है कि टैरिफ का मुद्रा स्फीति के आंकड़ों मंे प्रभाव दिखाई पड़ने लगा है। बीते जून में आॅटो को छोड़कर मुख्य वस्तुओं की कीमतें दशमलव 53 फीसद बढ़ीं, जो 18 महीने में सबसे तेज है। मुख्य मुद्रा स्फीति 2 दशमलव 5 फीसद से काफी ऊपर बनी है। टैरिफ के असर के चलते ही मई और जून के दौरान अमेरिका मंे 2 लाख 58 हजार नौकरियों की शुद्ध गिरावट आयी है। अमेरिका के वित्त मंत्री स्काट बसेंट ने 27 अगस्त को उम्मीद जतायी थी कि भारत और अमेरिका जल्द ही व्यापार समझौता कर लेंगे लेकिन ट्रम्प ने मोदी को आंकने मंे गलती की है। मोदी ने अमेरिका को भी सबक सिखाने की ठान ली है। इसीलिए भारत ने 40 अन्य देशों के साथ व्यापार बढ़ाने का फैसला किया है। ये 40 देश 590 अरब डालर देश का वैश्विक वस्त्र एवं परिधान आयात करते हैं। अभी इनके आयात में भारत के निर्यात की हिस्सेदारी सिर्फ पांच-छह प्रतिशत है। इन देशों में निर्यात बढ़ाकर हम अमेरिका को जवाब दे सकते हैं। भारत यूके, जापान, दक्षिण कोरिया, जर्मनी, फ्रांस, इटली, स्पेन, नीदरलैण्ड, पोलैण्ड, कनाडा, मेक्सिको, रूस, बेल्जियम, संयुक्त अरब अमीरात और आस्ट्रेलिया के साथ वस्त्र निर्यात बढ़ाकर अमेरिका को करारा जवाब दे सकता है। बाबा रामदेव के सुझाव पर भी देशवासी ध्यान दें ताकि ट्रम्प का घमंड तोड़ा जा सके। बाबा रामदेव ने भारतीयों से अमेरिकी प्रोडक्ट्स के बहिष्कार की अपील की है। एक समय चीन की झालरों के साथ ऐसा ही किया गया था।
भारत अमेरिका पर टैरिफ में बढ़ोतरी के जवाब में और निर्यात में विविधता लाने के लिए 40 देशों पर विशेष
ध्यान केंद्रित करके निर्यात बढ़ाने की योजना बना रहा है, खासकर कपड़ा उद्योग के लिए। इस रणनीति में यूके, जापान, दक्षिण कोरिया, जर्मनी, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों को लक्षित किया जाएगा, जहां भारत अपनी बाजार हिस्सेदारी बढ़ाने का प्रयास करेगा। अमेरिका ने भारत पर 50 फीसदी का टैरिफ लगाया है। इस फैसले के बाद से देश की टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज पर काफी गहरा असर पड़ा है। अमेरिका भारत के प्रमुख निर्यातक देशों में से एक है, ऐसे में यह फैसला भारत के लिए चिंता का कारण बन चुका है। हालांकि, इस मुसीबत से निपटने के लिए सरकार ने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए ग्लोबल मार्केट में कपड़े के एक्सपोर्ट को बढ़ावा देने की योजना बनाई है।
इस योजना से जुड़े एक सीनियर अधिकारी के अनुसार भारत दुनिया के कुल 40 देशों में डेडिकेटेड आउटरीच प्रोग्राम चलाएगा। इन देशों में ब्रिटेन, जापान, दक्षिण कोरिया, जर्मनी, फ्रांस, इटली, स्पेन, नीदरलैंड, पोलैंड, बेल्जियम, कनाडा, मेक्सिको, जापान, दक्षिण कोरिया, रूस, तुर्किए, यूएई और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश शामिल हैं। इस पहल से भारत गुणवत्तापूर्ण टिकाऊ और इनोवेशन बेस्ड क्लोथ प्रोडक्ट का सप्लाई चेन स्थापित करने की कोशिश करेगा। अधिकारी ने बताया कि हर एक देश के लिए एक अलग प्लान तैयार किया जाएगा। भारतीय एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (ईपीसी) और विदेशों में भारतीय मिशन इस पहल में प्रमुख भूमिका निभाएंगे। स्थानीय खरीदारों, फैशन ब्रांड्स और रिटेल सेक्टर से सीधे जुड़कर भारत ट्रेड प्रमोशन को बढ़ाएगा। इस दौरान भारत का खास फोकस सस्टेनेबल टेक्सटाइल और हाई-टेक फैब्रिक पर होगा।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में सस्टेनेबल और ऑर्गेनिक फैब्रिक की मांग बढ़ रही है। भारत इसे एक अवसर मानकर अपने हैंडलूम, टेक्निकल टेक्सटाइल और इको-फ्रेंडली प्रोडक्ट को बढ़ावा देना चाहता है। अमेरिका में टैरिफ बढ़ने के बावजूद यूरोप और एशिया के कई देश फ्री ट्रेड एग्रीमेंट्स (एफटीए) के तहत भारत को बड़ा बाजार दे सकते हैं। भारत की यह पहल न सिर्फ निर्यात बढ़ाने, बल्कि नए बाजारों में लंबे समय तक साझेदारी बनाने का प्रयास माना जा रहा है।
पीआईबी की रिपोर्ट के मुताबिक भारत की टेक्सटाइल इंडस्ट्री का मूल्य 350 अरब डॉलर (लगभग 29 लाख करोड़ रुपये) से अधिक है और यह 2030 तक 350 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देता है, जिससे रोजगार के अवसर पैदा होते हैं और निर्यात आय में बढ़ोतरी होती है। साथ ही इसे कृषि के बाद दूसरा सबसे बड़ा रोजगार का क्षेत्र माना जाता है। इस क्षेत्र में अनुमानित 4।5 करोड़ से अधिक लोग काम करते हैं। भारत ने वित्त वर्ष 2023-24 में 34.4 अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य की टेक्सटाइल प्रोडक्ट का निर्यात किया है। इस निर्यात में परिधान,कच्चा माल और गैर-परिधान सामान की हिस्सेदारी क्रमशः 42,34 और 30 फीसदी है। यह आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत न केवल तैयार कपड़े, बल्कि कच्चे माल और वैल्यू-एडेड उत्पादों के माध्यम से भी वैश्विक टेक्सटाइल बाजार में मजबूत स्थिति रखता है। अमेरिका में लोग भारत के किफायती और बेहतर क्वॉलिटी के कपड़ों को खरीदना पसंद करते हैं। यही वजह है कि अमेरिका के गारमेंट इम्पोर्ट मार्केट में भारत की हिस्सेदारी बढ़ी है। अब टैरिफ के चलते यही प्रोडक्ट महंगे हो जाएंगे, जो इसे दूसरे एशियाई देशों जैसे कि बांग्लादेश, वियतनाम, चीन के मुकाबले अमेरिकी बाजारों में कम प्रतिस्पर्धी बना देंगे।
परेशानी है, तो सूझबूझ से उसका हल भी निकाला जा सकता है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका के लगाए गए भारी-भरकम टैरिफ के बीच भारत अपने टेक्सटाइल एक्सपोर्ट को बढ़ावा देने के लिए ब्रिटेन, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे 40 देशों में अपना दायरा बढ़ाने पर फोकस कर रहा है। अन्य देशों में जर्मनी, फ्रांस, इटली, स्पेन, नीदरलैंड, पोलैंड, कनाडा, मैक्सिको, रूस, बेल्जियम, तुर्की, संयुक्त अरब अमीरात और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं। भारत इन देशों में खुद को बेहतर क्वॉलिटी और डिजाइन के टेक्सटाइल प्रोडक्ट सप्लायर के रूप में स्थापित करना चाहता है। वैसे तो भारत 220 देशों को निर्यात करता है, लेकिन इन 40 देशों में आयात बड़े पैमाने पर किया जा सकता है। बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका के हाई टैरिफ पर बात करते हुए अपेरल एक्सपोर्ट प्रोमोशन काउंसिल (एईपीसी) के सेकेट्री जनरल मिथिलेश्वर ठाकुर ने कहा कि 10.3 अरब अमेरिकी डॉलर के निर्यात के साथ टेक्सटाइल सेक्टर सबसे बुरी तरह से प्रभावित हुआ है।
देश का यह सेक्टर अमेरिका के पहले लगाए गए 25 परसेंट के बेसलाइन टैरिफ से समझौता कर चुका था, इस बढ़े हुए खर्च को उठाने के लिए भी तैयार था लेकिन 50 परसेंट टैरिफ ने भारतीय परिधान उद्योग को अमेरिकी बाजारों से प्रभावी रूप से बाहर कर दिया है क्योंकि बांग्लादेश, वियतनाम, श्रीलंका, कंबोडिया और इंडोनेशिया जैसे प्रमुख प्रतिस्पर्धी देशों पर लगाए गए टैरिफ और भारत पर लगाए गए टैरिफ के बीच 30-31 परसेंट का अंतर बैठता है। उन्होंने कहा कि देश की टेक्सटाइल इंडस्ट्री को उम्मीद है कि अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते के जरिए व्यापार की अनुकूल शर्तें बहाल होने तक अमेरिकी बाजार में टिके रहने के लिए सरकार की तरफ से कुछ तत्काल राहत मिलेगी।
स्वाभाविक है कि एक बार खरीदार को अगर कम रेट वाला दूसरा ऑप्शन मिल जाता है, तो खोई हुई जमीन वापस पाना और बाजार में हिस्सेदारी हासिल करना आसान नहीं होता। इस बीच, हम बाजार विविधीकरण की दिशा में अपने प्रयासों को तेज कर रहे हैं और नुकसान को काबू में रखने के लिए यूके और ईएफटीए देशों के साथ व्यापार समझौते का लाभ उठाने की हर संभावना पर विचार कर रहे हैं। (अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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