अध्यात्म

इस बार विशेष फलदायी है अनंत चतुर्दशी

भारतीय अध्यात्म और दर्शन में यह परम्परा प्रचलित है कि भगवान ब्रह्मा सृष्टि को उत्पन्न करते हैं और भगवान विष्णु उसका पालन-पोषण करते हैं। इस बीच उनके सामने तमाम विघ्न-बाधाएं आती हैं तो उनको विविध रूपों से वह समाप्त करते हैं। भगवान विष्णु ने महा अभियानी राक्षस राज रावण को मुक्ति प्रदान करने के लिए मर्यादा पुरुषोत्म राम के रूप में मनुज अवतार लिया था। इससे पूर्व 6 अवतार हो चुके थे-
मीन, कमठ, शूकर नरहरी।
वामन, परशुराम बपु धरी।।
अर्थात सबसे पहले मत्स्यावतार हुआ। तदुपरांत कच्छप के रूप में भगवान ने अवतार लिया। इसी तरह वाराह और भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने नृसिंहावतार लिया था। देवलोक की रक्षा के लिए उन्हें वामन रूप में अवतार लेना पड़ा और रामावतार से पूर्व दुष्ट क्षत्रियों के विनाश के लिए परशुराम बनकर आये थे। भाद्र पद शुक्ल पक्ष की द्वादशी को भगवान विष्णु ने बावन ब्राह्मण बनकर महाराजा बलि से तीनों लोक लेकर उन्हें पाताल में राज करने भेजा था। राजा बलि को बाद में पता चला कि ये भगवान विष्णु हैं। इसलिए उन्होंने वरदान मांगा कि भगवान उनके साथ ही रहें। इसके बाद लक्ष्मी जी ने रक्षा सूत्र बांधकर राजा बलि ने अपने पति भगवान विष्णु को अपने साथ ले गयी थीं। भगवान विष्णु इसी अवतार स्वरूप भाद्र पद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी मनायी जाती है और भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। इस बार अनंत चतुर्दशी 6 सितम्बर दिन शनिवार को मनायी जाएगी। इस बार अनंत चतुर्दशी सिद्ध योग में है, इसलिए विशेष फलदायी होगी।
अनंत चतुर्दशी का त्योहार हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस शुभ अवसर पर मंदिरों में लक्ष्मी नारायण जी की विशेष पूजा की जाती है। भक्तजन अपने घरों पर भी पूजा का आयोजन करते हैं। इस व्रत की महिमा शास्त्रों में वर्णित है।
हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से लेकर चतुर्दशी तिथि तक गणेश महोत्स्व मनाया जाता है। इस दौरान गणपति बप्पा की भक्ति भाव से पूजा की जाती है। वहीं, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी के दिन गणपति बप्पा को विदा किया जाता है।
वैदिक पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि की शुरुआत 06 सितंबर को देर रात 03 बजकर 12 मिनट (अंग्रेजी कैलेंडर अनुसार) पर हो रही है। वहीं, 07 सितंबर को देर रात 01 बजकर 41 मिनट पर चतुर्दशी तिथि का समापन होगा। सनातन धर्म में सूर्योदय से तिथि की गणना की जाती है। इसके लिए 06 सितंबर को अनंत चतुर्दशी मनाई जाएगी। अनंत चतुर्दशी के दिन पूजा के लिए शुभ समय दिन भर है। साधक किसी समय स्नान-ध्यान कर लक्ष्मी नारायण जी की पूजा कर सकते हैं। वहीं, पूजा का शुभ समय सुबह 06 बजकर 02 मिनट से देर रात 01 बजकर 41 मिनट तक है।
आदिकाल से ही यह मान्यता प्रचलित है कि संसार को चलाने वाले प्रभु कण-कण में व्याप्त हैं। ईश्वर जगत में अनंत रूप में विद्यमान हैं। दुनिया के पालनहार प्रभु के अनंतता का बोध कराने वाला एक कल्याणकारी व्रत अनंत चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है। भाद्र शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी अनंत चतुर्दशी के नाम से संपूर्ण भारत में भक्तिभाव के साथ मनाया जाता है।इस बार अनंत चतुर्दशी सिद्ध योग में 6 सितंबर यानि शनिवार को है। स्कंद पुराण, ब्रह्म पुराण, भविष्यादि पुराणों के अनुसार यह व्रत भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजन एवं कथा होती है। इसमें उदयव्यापिनी तिथि ग्रहण की जाती है।इस व्रत को इसलिए विशेष रूप से जाना जाता है कि यह अंत ना होने वाली सृष्टि के कर्ता निर्गुण ब्रह्म की भक्ति का दिन है।
अनंत चतुर्दशी के महात्म्य पर प्रकाश डालते हुए विद्वान बताते हैं कि इस दिन भक्तगण अपने अलौकिक कार्यों से मन को हटा कर ईश्वर भक्ति में अनुरक्त हो जाते हैं। इस दिन वेद ग्रंथों का पाठ कर भक्ति की स्मृति का डोरा बांहों में बांधा जाता है। यह व्रत पुरुषों द्वारा किया जाता है।
इस दिन अष्टदल कमल के समान बने कलश में कुश से निर्मित अनंत की स्थापना करके इसके पास कुमकुम, केसर, हल्दी, रंगीन 14 गांठों वाला अनंत रखा जाता है। कुश के अनंतता की वंदना कर उसमें भगवान विष्णु का आह्वान तथा ध्यान कर गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप तथा नैवेद्य से पूजन करें। इसके बाद कथा श्रवण करें। तत्पश्चात अनंत देव का पुनः ध्यान मंत्र पढ़कर अपनी दाहिनी भुजा पर बांधे।
यह 14 गांठ वाला डोरा भगवान विष्णु को प्रसन्न करने वाला तथा अनंत लाभदायक माना गया है। यह अनंत व्रत धन, पुत्रादि प्राप्ति के
लिए भी किया जाता है। अनंत की 14 गांठें 14 लोकों का प्रतीक है। इसमें अनंत भगवान विद्यमान है। इस व्रत की कथा बंधु-बाधव सहित सुननी चाहिए।
विष्णु पुराण (भागवत पुराण भी) के अनुसार, वामन देव ने भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को अभिजीत मुहूर्त में श्रवण नक्षत्र में माता अदिती और ऋषि कश्यप के पुत्र के रूप में जन्म लिया था।
त्रेता युग में भगवान विष्णु ने स्वर्ग लोक पर इंद्र देव के अधिकार को पुनः स्थापित करवाने के लिए वामन अवतार लिया था। पौराणिक कथा के अनुसार, असुर राजा बलि ने अपनी तपस्या और शक्ति के बल पर तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था। उनकी शक्ति से देवता परेशान थे। देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी।भगवान विष्णु ने एक छोटे ब्राह्मण बालक (वामन) का रूप धारण किया और राजा बलि से भिक्षा में तीन पग भूमि मांगी। जब राजा बलि ने उन्हें यह दान दिया, तो वामन ने अपना आकार बढ़ाकर दो पगों में दो लोक (पृथ्वी और स्वर्ग) नाप लिए। तीसरे पग के लिए कोई जगह न होने पर, राजा बलि ने अहंकार छोड़कर अपना सिर झुकाया। वामन ने उनके सिर पर तीसरा पग रखकर उन्हें पाताल लोक भेज दिया। बलि की दानवीरता से प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें पाताल लोक का स्वामी बना दिया और सभी देवताओं को उनका स्वर्ग लौटा दिया।
इसी के साथ ही इस दिन कल्कि महोत्सव भी था, यह दिन भगवान विष्णु के दसवें और अंतिम अवतार, भगवान कल्कि के अवतरण को समर्पित है।
धार्मिक ग्रंथों में उल्लेखित है कि कलयुग के अंत में सावन माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को कल्कि अवतार में भगवान विष्णु का जन्म होगा। श्रीमद्भागवत पुराण के 12वें स्कंद के 24वें श्लोक के अनुसार जब गुरु, सूर्य और चंद्रमा एक साथ पुष्य नक्षत्र में प्रवेश करेंगे तब भगवान विष्णु, कल्कि अवतार में जन्म लेंगे।
कल्कि पुराण के अनुसार, भगवान कल्कि का जन्म उत्तरप्रदेश, मुरादाबाद के एक गांव में होगा। अग्नि पुराण में भगवान कल्कि अवतार के स्वरूप का चित्रण दिया गया है। इसमें भगवान को देवदत्त नामक घोड़े पर सवार और हाथ में तलवार लिए हुए दिखाया गया है, जो दुष्टों का संहार करके सतयुग की शुरुआत करेंगे। भगवान कल्कि कलयुग के अंत में तब अवतरित होंगे जब अधर्म, अन्याय और पाप अपने चरम पर होगा। उनका उद्देश्य पृथ्वी से पापियों का नाश
करना, धर्म की फिर से स्थापना करना और सतयुग का आरंभ करना होगा। भगवान विष्णु के कल्कि अवतार की पूजा उनके जन्म के पहले से ही की जा रही है।(मोहिता स्वामी-हिफी फीचर)

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