महागठबंधन के दो नये साथी

बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक समीकरण तेजी से बदल रहे हैं। मजेदार बात यह है कि सत्ता पाने और सत्ता बचाने की गणित में साथ आने वालों के बारे में भी सोचना पड़ता है क्योंकि सीटों का बंटवारा करना पड़ेगा। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के सामने यही संकट है। राज्य में विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। सभी पार्टियां जनता को अपनी ओर लुभाने के लिए मैदान में उतर चुकी हैं। शीट शेयरिंग को लेकर भी रस्साकशी तेज हो गई है।राजद के साथ कांग्रेस, विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी), भाकपा, माकपा और भाकपा-माले पहले से ही महागठबंधन में थे। अब दो दलों के जुड़ने से महागठबंधन में भी सीटों के बंटवारे को लेकर पेंच फंसना तय है। पहले से ही कांग्रेस और भाकपा-माले ज्यादा सीटों की मांग कर रहे हैं। झामुमो के साथ रालोजपा को राजद अपने हिस्से से सम्मानजनक सीटें देगा। तेजस्वी को राहुल को खुश करना भी बहुत बड़ी चुनौती होगी। झामुमो को चकाई, कटोरिया सहित चार से छह सीटें मिल सकती हैं। हालांकि, उसकी दावेदारी 12 सीटों की है। अलौली सहित रालोजपा को दो-तीन सीटें मिलेंगी। वह आधा दर्जन की अपेक्षा पाले हुए हैं।मुकेश सहनी ने कहा कि सीटों को लेकर कोई विवाद नहीं है और पार्टी तेजस्वी यादव के नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी। वहीं, वीआईपी के मुकेश सहनी यह भी कह रहे हैं कि पार्टी जल्द ही उपमुख्यमंत्री के नामों का भी एलान करेगा।जनसुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर किस ओर अपना पाला मोड़ते हैं, इस पर भी सबकी नजर है। वहीं, राजद से निष्कासित तेज प्रताप यादव भी मैदान में हुंकार भर रहे हैं। अगर आखिर तक उन्हें भी मनाया नहीं गया तो वह भी महागठबंधन को चोट पहुंचा सकते हैं।
एनडीए और महागठबंधन दोनों में सीटों के बंटवारे को लेकर बैठकें शुरू हो गई हैं। एनडीए गठबंधन में जहां चिराग पासवान, जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा की मांगों के कारण बातचीत चुनौतीपूर्ण बनी हुई है वहीं अब महागठबंधन में कुल आठ दल हो गए हैं। अब राज्य की 243 विधानसभा सीटों को लेकर 8 दलों में बंटवारा होगा, ऐसी स्थिति में अब सभी को खुश कर पाना मुश्किल है।चिराग की पार्टी इस बार चुनावों में 40 से अधिक सीटों पर दावेदारी को लेकर अड़ी हुई है, वहीं मांझी भी इस बार चुनाव में कम से कम 20 सीटों के लिए दावेदारी प्रस्तुत कर रहे हैं। विपक्षी खेमे में दो और दल शामिल हो गए हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस की राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (रालोजपा) और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) भी अब महागठबंधन के घटक बन गए हैं।पुराने सहयोगियों की बड़ी मांग से राजद पहले ही कशमकश में था, अब पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस की राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (रालोजपा) और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) भी हिस्सेदार बन गए हैं। वस्तुतः यह भारी मन वाली सहमति रही, स्वाभाविक नहीं। जीत-हार से बेपरवाह होकर रालोजपा, अपने राजनीतिक अस्तित्व के लिए, कुछ सीटों पर मैदान में आने का मन बना चुकी थी, जबकि झामुमो हर चुनाव में दांव आजमाता ही रहा है।इस बार झारखंड में राजद को मुंहमांगी सीटें देकर वह पहले से ही तैयार बैठा था। रांची में उसके प्रत्याशी भी तय होने लगे थे। अंततः राजद के लिए समझौता बेहतर लगा, अन्यथा उन सीटों पर वोटों के तितर-बितर होने की आंशका थी, जिन पर झामुमो की नजर है।बिहार में दावेदारी के संदर्भ में पिछले दिनों झामुमो द्वारा सार्वजनिक रूप से बयान दिए गए। अलबत्ता उन बयानों में इतनी एहतियात जरूर बरती गई कि संदेश महागठबंधन के विरुद्ध न जाए।झारखंड में साझेदारी के लिहाज से यह जरूरी भी था। उन बयानों ने राजद को सजग किया, क्योंकि विधानसभा के पिछले चुनाव में खटपट से दोनों की संभावना प्रभावित हुई थी। तब कटुता इस स्तर तक बढ़ी कि झामुमो ने राजनीतिक मक्कारी का आरोप लगाते हुए राजद से राजनीतिक रिश्ते की समीक्षा तक की चेतावनी दी थी। उसका कहना था कि झारखंड सरकार में राजद के एकमात्र विधायक सत्यानंद भोक्ता को श्रम मंत्री बनाया गया, लेकिन राजद राजनीतिक शिष्टाचार भूल गया है। इस क्षोभ के साथ झामुमो ने सात सीटों (झाझा, चकाई, कटोरिया, धमदाहा, मनिहारी, पीरपैंती, नाथनगर) पर प्रत्याशी उतार दिए। कोई सफलता तो नहीं मिली, लेकिन चकाई और कटोरिया में उसने राजद का खेल बिगाड़ दिया।
महागठबंधन पिछली बार मात्र 15 सीट और 11150 मतों के अंतर से सत्ता से चूक गया था। इस बार वह पुरानी कोई गलती दोहराना नहीं चाहता। इसके लिए सहयोगियों के साथ समीकरण का भी गुणा-गणित लगाया जा रहा।अब तक के हिसाब-किताब में झारखंड के सीमावर्ती तीन-चार सीटों पर झामुमो का थोड़ा-बहुत प्रभाव दिख रहा। उन्हीं में से तीन-चार सीटें देकर झारखंड का प्रतिदान पूरा करने पर विचार चल रहा है।
पारस की पसंद में अलौली के साथ कांग्रेस की सिटिंग सीट राजापाकर है। इसके अलावा वे तरारी की आस लगाए हैं, जो भाकपा-माले की परंपरागत सीट है। 2019 में राजद को झारखंड में सात सीटें मिली थीं। एकमात्र चतरा में सत्यानंद भोक्ता सफल रहे थे। 2024 में भी सात सीटें मिलीं। वोट प्रतिशत में वृद्धि के साथ चार पर सफलता मिली। झारखंड में संजय यादव राजद कोटे से मंत्री हैं। अब झामुमो प्रतिदान लेगा। आज के बिहार में उसे एक बार चकाई में सफलता तो मिली, जिसे वह दोहरा नहीं पाया। 2010 में वह सफलता सुमित कुमार सिंह के सहारे मिली थी, जो 2020 में वहां निर्दलीय विजयी रहे। हालांकि, उनकी जीत में झामुमो को मिले 16985 मतों की बड़ी भूमिका रही है। राजद की सावित्री देवी वहां मात्र 581 मतों से मात खाई थीं।
झामुमो की पसंद में चकाई, झाझा, कटोरिया, ठाकुरगंज, कोचाधामन, रानीगंज, बनमनखी, धमदाहा, रूपौली, प्राणपुर, छातापुर, सोनवर्षा, रामनगर, जमालपुर, तारापुर, मनिहारी शाहमल हैं।
पारस की पसंद में अलौली, राजापाकर, तरारी शामिल है। तेजस्वी यादव अपने वायएम अर्थात् यादव-मुस्लिम के साथ चिराग पासवान के चाचा पशुपति पारस की मदद से दलितों के वोट भी हासिल कर लेते हैं तो उनकी जीत का रास्ता आसान हो सकता है। इसमें झामुमो भी मदद करेगा। (अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)