पितृ पक्ष में पूर्वजों का लें आशीर्वाद

पूर्वजों से ही हमारा आज का परिवार और अस्तित्व है। इन पूर्वजों मंे जो स्वर्ग सिधार गये, उनका आशीर्वाद पाने के लिए आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष मंे 15 दिन पितृपक्ष अर्थात् श्राद्ध पर्व मनाया जाता है। इन दिनों भगवान स्वर्ग के द्वार खोल देते हैं और हमारे पूर्वज पृथ्वी पर अपने परिजनों से मिलने आते हैं, ऐसी मान्यता है। इसलिए स्वर्गीय आत्माओं का स्वागत तर्पण और पिण्डदान से किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यदि पूर्वजों का तर्पण और पिण्डदान नहीं किया गया तो सात पीढ़ियों तक पितृदोष का दंश सहन करना पड़ता है। इस बार 7 सितम्बर रविवार से ही पितृपक्ष प्रारम्भ हो गये क्योंकि मृत्यु की तिथि को ही तर्पण की तिथि मानते हैं और पूर्णिमा से पितृपक्ष का प्रारम्भ करके अमावस्या को पूर्वजों को विदा किया जाता है। इस श्राद्ध पर्व मंे हम यथासंभव रीति नीति का पालन करते हुए अपने पितृ गणों का आशीर्वाद लें तो घर और परिवार में सुख-समृद्धि रहेगी।
सनातन धर्म में श्राद्ध पक्ष का विशेष धार्मिक महत्व माना जाता है। श्राद्ध शब्द श्रद्धा से बना है, जिसका मतलब है पितरों के प्रति हमारा श्रद्धा भाव। हमारे अंदर प्रवाहित रक्त में हमारे पितरों के अंश हैं, जिसके कारण हम उनके ऋणी होते हैं और यही ऋण उतारने के लिए श्राद्ध कर्म किये जाने का विधान बताया गया है। कहते हैं पितृपक्ष में किये गए श्राद्ध-तर्पण, पिंडदान इत्यादि कार्यों से पूर्वजों की आत्मा को तो शांति प्राप्त होती ही है, साथ ही कर्ता को भी पितृ ऋण से मुक्ति मिल जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार श्राद्ध या तर्पण दोपहर 12 बजे के बाद करने से अनुरूप फल प्राप्त होते हैं। इसके अलावा दिन में कुतुप और रोहिणी मुहूर्त श्राद्ध कर्म के लिए सबसे शुभ माने जाते हैं। श्राद्ध करने के लिए किसी योग्य ब्राह्मण को घर पर बुलाकर मंत्रों का उच्चारण करें और पूजा के बाद जल से तर्पण करें। इसके बाद गाय, कुत्ते और कौवे के लिए भोजन निकालें। इन जीवों को भोजन देते समय अपने पितरों का स्मरण जरूर करें।
पितरों को पानी पिलाने की प्रक्रिया को ही तर्पण कहा जाता है। तर्पण करने के लिए एक पीतल या फिर स्टील की परात लें। उसमें शुद्ध जल डालें और फिर थोड़े काले तिल और दूध डालें। इस परात को अपने सामने रखें और एक अन्य खाली पात्र भी पास में रखें। फिर अपने दोनों हाथों के अंगूठे और तर्जनी ऊंगली के मध्य में दूर्वा अथवा कुशा लेकर अंजलि बना लें। यानी दोनों हाथों को मिलाकर उसमें जल भर लें। इसके बाद अंजलि में भरा हुआ जल दूसरे खाली पात्र में डालें। जल डालते समय अपने प्रत्येक पितृ के लिए कम से कम तीन बार अंजलि से तर्पण करें।
श्राद्ध वाले दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें। इसके बाद घर की साफ-सफाई करें और पूरे घर में गंगाजल छिड़कें। इसके बाद दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके बाएं पैर को मोड़कर बाएं घुटने को जमीन पर टिका कर बैठ जाएं। फिर एक तांबे का चैड़ा बर्तन लें जिसमें काले तिल, गाय का कच्चा दूध और गंगाजल मिला पानी डालें। फिर जल को दोनों हाथों में भरकर सीधे हाथ के अंगूठे से उसी बर्तन में गिराएं और इस दौरान अपने पितकों का स्मरण करें। पितरों के लिए भोजन तैयार करें। श्राद्ध के लिए ब्राह्मण को घर पर बुलाएं और सच्चे मन से उन्हें भोजन कराएं और ब्राह्मण के पैर धोएं। श्राद्ध पक्ष में पितरों के निमित्त अग्नि में गाय के दूध से बनी खीर अवश्य अर्पित करें। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि ब्राह्मण को भोजन कराने से पहले पंचबली यानी गाय, कुत्ते, कौवे, देवता और चींटी के लिए भोजन अवश्य निकालें। ये एक महत्वपूर्ण परंपरा है। भोजन के बाद ब्राह्मणों को दान भी करें और उनका आशीर्वाद लें। इस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप से पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितृपक्ष के दौरान मंदिरों में जाने की कोई मनाही नहीं है। इस दौरान आप मंदिर जा सकते हैं और कुछ विशेष मंदिरों में जाकर श्राद्ध कर्म भी कर सकते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार किसी व्यक्ति की मृत्यु के 1 साल बाद वार्षिक श्राद्ध किया जाता है। इसके बाद हर वर्ष पितृपक्ष के दौरान पितरों का श्राद्ध करना चाहिए। गंगा नदी के तट पर श्राद्ध करने का बहुत महत्व है। अगर ऐसा संभव नहीं है, तो घर पर भी श्राद्ध कर्म किया जा सकता है। श्राद्ध के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए और उन्हें अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा देनी चाहिए। पितृपक्ष के दौरान उड़द की दाल दान करना बेहद शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ऐसा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और आप पर कृपा बरसाते हैं। पितृपक्ष में पितरों की पूजा के दौरान आपको सफेद फूल अर्पित करने चाहिए। पितरों को चंपा, जूही, कमल के फूल चढ़ाने से शुभ फलों की आपको प्राप्ति होती है।
पितृ दोष के लक्षण हैं घर में कभी भी सुख-शांति का न रहना। परिवार के लोगों के बीच वाद-विवाद होना। संतान प्राप्ति में बाधाएं आना, संतान हो तो उसकी तबीयत बारबार खराब होना। करियर के क्षेत्र में सफलता न मिल पाना। सपने में बार-बार पितरों का दिखना। घर में पीपल के पेड़ का उग आना। मेहनत का उचित फल न मिलना।
इसके लिए पितृपक्ष में पितरों का श्राद्ध और तर्पण अवश्य करना चाहिए। ऐसा करने से पितृदोष दूर होता है। पितृपक्ष के दौरान भगवद्गीता का पाठ करना बेहद शुभ माना जाता है। गीता का पाठ करने से आपको आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त होता है और आपके पितरों को भी इससे प्रसन्नता होती है।
नवमी के श्राद्ध को मातृ नवमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन उन माताओं और बहनों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृ्त्यु तिथि ज्ञात न हो, इसलिए इसे मातृ नवमी कहा जाता है।
पितृपक्ष के दौरान सपने में पितरों का दिखना शुभ माना जाता है। सपने में पितरों का आने का अर्थ है उनका आशीर्वाद आपके जीवन में बना हुआ है।
तर्पण के बाद पितरों को भोजन कैसे मिलता है-ऐसी पौराणिक मान्यता है कि हमारे पितर गंध और स्वाद के तत्वों से प्रसन्न होते हैं। जब व्यक्ति अपने घर में सुख-शांति के लिए गाय के गोबर से बने जलते हुए उपले पर गुड़, घी और अन्न अर्पित करता है, तो इससे पैदा हुई गंध से पितरों को भोजन प्राप्त होता है। पितृ पक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है। सबसे पहले, पितर की देहांत तिथि के अनुसार पितृ पक्ष की तिथि चुनें। फिर श्राद्ध करने वाली तिथि पर सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें। जहां श्राद्ध करना है वहां तिल, जौ, कुशा, गंगाजल, खीर, पूड़ी, दाल, चावल, मिठाई, फल और धूप-दीप लेकर बैठें। दोपहर में दक्षिण दिशा की ओर मुख करके श्राद्ध शुरू करें। एक तांबे के पात्र में गंगाजल, तिल और जौ मिलाकर पितरों का नाम और गोत्र लेते हुए तर्पण करें। एक थाली में भोजन परोसकर पितरों को भोग लगाएं और गाय, कौए और कुत्ते को भोजन खिलाएं। ऊँ पितृभ्यः नमः मंत्र का जाप करें। अंत में ब्राह्मण या जरूरतमंद को भोजन कराकर उन्हें दान की चीजें दें।
ऊँ पितृ देवतायै नमः
ऊँ पितृ गणाय विद्महे जगतधारिणे धीमहि तन्नो पित्रो प्रचोदयात्।
ऊँ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च
नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः
ऊँ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च।
नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः (पं. आरएस द्विवेदी-हिफी फीचर)