अध्यात्म

नवरात्र में शक्ति पीठ दर्शन

हमारे हिन्दू धर्म में शक्तिपीठ अत्यन्त पावन स्थल करने जाते हैं। आजकल शारदीय नवरात्र चल रहे हैं। इन दिनों हिन्दू घर्म के अनुयायी घर-घर कलश स्थापना करके आदिशक्ति मां की आराधना करते हैं। कलश स्थापना के बाद घर में माँ को अकेला नहीं छोड़ा जाता है लेकिन बड़ी संख्या मंे श्रद्धालु नवरात्र में शक्ति पीठों मंे आराधना करने पहुंचते हैं शक्ति पीठ की स्थापना के पीछे एक कहानी है। मानते हैं कि जब जगत जननी माता सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ मंे पति भगवान शंकर का अपमान होते देखा तो उन्होंने योग अग्नि से अपने शरीर को जला दिया। भगवान शिव को जब इसका समाचार मिला तो उन्होंने वीरभद्र को भेजकर यज्ञ का विनाश कराया और दक्ष को भी सजा मिली। इसके बावजूद भगवन शंकर सती के लिए पागल जैसे हो गये और क्रोध मंे आकर सती के शव को लेकर तांडव करने लगे। तीनों लोक मे तहलका मच गया तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शव के कई टुकड़े कर दिये। माता सती के अंग जहां-जहां गिरे वहीं पर शक्ति पीठ बन गयीं। देवी पुराण के अनुसार 51 शक्ति पीठ हैं। हम यहां कुछ प्रमुख शक्ति पीठों के बारे मंे बताएंगे। कामगिरि कामाख्या की शक्ति पीठ आज भी तंत्र साधना में प्रथम स्थान रखती है। कुछ शक्ति पीठ भारत से सटे देशों मंे भी हैं। इससे पता चलता है कि ये आर्यावर्त बहुत बड़ा क्षेत्र हुआ करता था।
कालीपीठ (कालिका) कोलकाता के कालीघाट में माता के बाएँ पैर का अँगूठा गिरा था। यह पीठ हुगली नदी के पूर्वी किनारे पर स्थित है। निकटतम रेलवे स्टेशन हावड़ा है और निकटतम मेट्रो स्टेशन कालीघाट है। मंदिर में दर्शन करने का सबसे अच्छा समय सुबह या दोपहर है। इसी तरह कामगिरि- कामाख्या असम के गुवाहाटी जिले में स्थित है। नीलांचल पर्वत के कामाख्या स्थान पर माता का योनि भाग गिरा था। गुवाहाटी, असम की राजधानी है और सभी प्रकार की यात्रा सुविधाओं से लैस है। यदि हम ट्रेन से जाते हैं और सीधे मंदिर पहुंचना चाहते हैं तो हमें स्टेशन कामाख्या पर उतरना होगा। वहाँ से पहाड़ी पर चढ़ने के लिए दो मार्ग हैं एक पैदल मार्ग (लगभग 600 कदम) और एक बस मार्ग (कामाख्या द्वार से लगभग 3 किलोमीटर)।
उड़ीसा की तारा तेरणी मंदिर को सबसे अधिक सम्मानित शक्ति पीठ और हिंदू धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थान केंद्रों में से एक माना जाता है। यह माना जाता है कि देवी माता सती का स्तन कुमारी पहाड़ियों पर गिरा जहाँ तारा तेरणी पीठ स्थित है। ब्रह्मपुर मंदिर से 35 किमी, भुवनेश्वर से 165 किमी और पुरी से 220 किमी पर स्थित है। निकटतम रेलवे स्टेशन दक्षिण-पूर्व रेलवे पर बेरहमपुर है। 165 किमी दूर स्थित, भुवनेश्वर निकटतम हवाई अड्डा है, जहाँ से दिल्ली और कलकत्ता जैसे प्रमुख शहरों के लिए उड़ानें ली जा सकती हैं। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के किरीटकोण ग्राम के पास माता का मुकुट गिरा था। मुर्शिदाबाद कोलकाता से 239 किलोमीटर की दूरी पर है और वहाँ से यहाँ पहुंचने में लगभग 6 घंटे लगते हैं। उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के वृंदावन तहसील में माता के बाल के गुच्छे गिरे थे। वृंदावन, आगरा से 50 किलोमीटर और दिल्ली से 150 किलोमीटर दूर है। निकटतम रेलवे स्टेशन मथुरा है जो कि 12 किमी की दूरी पर है।
करवीरपुर या शिवहरकर महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित शक्तिपीठ है, जहाँ माता की आँखें गिरी थीं। यहाँ की शक्ति महिषासुरमर्दिनी तथा भैरव हैं। उल्लेख है कि वर्तमान कोल्हापुर ही पुराणों में प्रसिद्ध करवीर क्षेत्र है। ऐसा उल्लेख देवीगीता में मिलता है। कोल्हापुर सड़क, रेलवे और वायु मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ी हुई है। निकटतम बस स्टैंड कोल्हापुर में है। हैदराबाद, मुम्बई आदि जैसे विभिन्न शहरों से कई सीधी बसें हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन कोल्हापुर में है।जहाँ
श्रीपर्वत में श्रीसुंदरी शक्तिपीठ है। कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र के पर्वत पर माता के दाएँ पैर की पायल गिरी थी। जुलाई से सितंबर तक सड़क से जाने के लिए सबसे अच्छा समय माना जाता है। नजदीकी रेलवे स्टेशन जम्मूतवी है जो लद्दाख से 700 किमी दूर है। निकटतम हवाई अड्डा लेह में है।
वाराणसी की विशालाक्षी शक्तिपीठ है। उत्तर प्रदेश के काशी में मणिकर्णिक घाट पर माता के कान की बाली गिरी थी। वाराणसी के दो प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं शहर के केंद्र में वाराणसी जंक्शन, और मुगल सराय जंक्शन।
आंध्रप्रदेश के राजामुंद्री क्षेत्र स्थित गोदावरी नदी के तट पर कोटिलिंगेश्वर पर माता का बायां गाल गिरा था। निकटतम रेलवे स्टेशन भी बहुत कम दूरी पर है। लोग रेलवे स्टेशन से स्थानीय बस सेवा का प्रयोग कर सकते हैं। राजमुंदरी रेलवे स्टेशन, आंध्र प्रदेश के सबसे बड़े रेलवे स्टेशनों में से एक है। इस मंदिर के निकट प्रमुख शहरों में हवाई अड्डे की सेवाएं उपलब्ध हैं। राजमुंदरी हवाई अड्डा मधुरपाड़ी के पास स्थित है।
विरजा क्षेत्र शक्ति पीठ उड़ीसा के उत्कल में स्थित है। यहाँ पर माता सती की नाभि गिरी थी। कटक, भुवनेश्वर, कोलकाता और ओड़िशा के अन्य छोटे शहरों से बस का लाभ लेने से पर्यटक स्थल पर पहुंच सकते हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन जाजपुर केंझार रोड, रेलवे स्टेशन है।
मानसा में दाक्षायणी शक्तिपीठ भी है। तिब्बत में स्थित मानसरोवर के पास माता का यह शक्तिपीठ स्थापित है। इसी जगह पर माता सती का दायां हाथ गिरा था। भारतीय श्रद्धालुओं की एक सीमित संख्या को कैलाश मानसरोवर हर साल यात्रा करने की अनुमति है।
नेपाल में महामाया शक्तिपीठ नेपाल के पशुपतिनाथ में स्थित इस शक्तिपीठ में माँ सती के दोनों घुटने गिरे थे। यहां पहुंचने के कई साधन हैं। श्रद्धालु बस, ट्रेन और हवाई रास्ते द्वारा काठमांडू पहुंच सकते हैं।
हिंगलाज शक्तिपीठ पकिस्तान, कराची से 125 किमी उत्तर पूर्व में है। हिंगला या हिंगलाज शक्तिपीठ में माता सती का सर गिरा था। कराची से वार्षिक तीर्थ यात्रा अप्रैल के महीने में शुरू होती है। यहाँ वाहन द्वारा पहुंचने में लगभग 4 से 5 घंटे लगते हैं।
इसी प्रकार बांग्लादेश के शिकारपुर से 20 किमी दूर सोंध नदी के किनारे स्थित है माँ सुगंधा का शक्तिपीठ
है जहाँ माता सती की नासिका
गिरी थी। (मोहिता-हिफी फीचर)

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