लेखक की कलम

उत्तर-दक्षिण भारत में भेदभाव घातक

एक तरफ हम अखंड भारत की बात करते हैं तो दूसरी तरफ भेदभाव का कुत्सित प्रयास किया जाता है। भारत की विविधता ही उसकी गरिमामय संस्कृति है। विभिन्न जातियों, धर्मों, भाषा और बोली का संगम अगर कहीं है तो यह भारत में ही है। मिले सुर मेरा-तुम्हारा तो सुर बने हमारा गीत बहुत ही प्रेरणादायक था। हमारी संस्कृति में जब पूरी पृथ्वी को परिवार माना जाता है तब राजनीतिक संकीर्णता में उत्तर-दक्षिण में भेदभाव भी भाषा के नाम पर तो कभी महिलाओं के नाम पर क्यों किया जाने लगा है। तमिलनाडु में उद्योग मंत्री टीआरवी राजा ने उत्तर भारत की महिलाओं की सामाजिक स्थिति का उपहास उड़ाया है। दक्षिण भारत के राज्य तकनीकी विकास के मामले में आगे है लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि परिवार में कम धनार्जन करने वाले को अपमानित किया जाए। तमिलनाडु के उद्योग मंत्री की इस बात के लिए निंदा की जा रही है। भाजपा नेताओं ने इसे संकीर्ण मानसिकता बताया है। इसको राजनीतिक मुद्दा भी बताया जा रहा है क्योंकि अगले महीने संभवतः बिहार में विधानसभा चुनाव होंगे। इसलिए मामले को राजनीतिक रूप देकर इसे हल्का करने का प्रयास नहीं करना चाहिए। पूर्व में लम्बे अर्से तक देश पर शासन करने वाली कांग्रेस तमिलनाडु में द्रमुक के साथ मिलकर सरकार चला रही है इसलिए उत्तर भारत के अपमान पर उसके नेता मौन धारण कर लेते हैं जबकि उसे भी इसका विरोध करना चाहिए। परिवार में सभी लोग एक जैसे नहीं होते, सभी की क्षमता एक जैसी नहीं होती लेकिन वे परिवार के सदस्य हैं। उनसे मिलकर ही परिवार बना है। उत्तर भारत और दक्षिण भारत का भेद करना राष्ट्रहित में घातक होगा।
तमिलनाडु के उद्योग मंत्री टीआरबी राजा ने तमिलनाडु और उत्तर भारत में महिलाओं के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण की तुलना करके विवाद खड़ा कर दिया है। एथिराज महिला महाविद्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए टीआरबी राजा ने कहा, तमिलनाडु और भारत के किसी भी अन्य राज्य में महिला होने में अंतर है। उन्होंने कहा 100 साल पहले, भारतीय महिलाओं को इंसान भी नहीं माना जाता था। उत्तर भारत में स्थिति आज भी बदली नहीं है। डीएमके नेता टीआरबी राजा ने कहा, उत्तर भारत में जब हम किसी महिला से मिलते हैं, तो पहला सवाल यही होता है कि आपके पति कहां काम करते हैं? तमिलनाडु में महिलाओं से यही पूछा जाता है कि आप कहां काम करती हैं? यह बदलाव रातोंरात नहीं होता। कम से कम तमिलनाडु में इसके लिए एक सदी का समय लगा।
मंत्री के इस बयान से विवाद गर्मा गया है। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, एक बार फिर डीएमके ने हद पार कर दी है, यूपी, बिहार और उत्तर भारत का अपमान किया है। तेलंगाना की पूर्व राज्यपाल एवं बीजेपी नेता तमिलिसाई सुंदरराजन ने बयानों की कड़ी आलोचना करते हुए कहा, यह डीएमके की संकीर्ण मानसिकता को दर्शाता है। आप धर्म को प्रगति के साथ कैसे जोड़ सकते हैं? डीएमके महिलाओं के साथ भेदभाव करती है। तमिलनाडु की महिलाएं भी इसे स्वीकार नहीं करेंगी। यह दुर्भाग्यपूर्ण है। लोगों को डीएमके को दंडित करना चाहिए। यह घटिया राजनीति है। आप एक मां के साथ भेदभाव कैसे कर सकते हैं? वहीं, दूसरी ओर मंत्री टी.आर.बी. राजा ने दावा किया कि उत्तर प्रदेश तमिलनाडु द्वारा केंद्र को दी गई टैक्स की रकम से चलता है और यह सच्चाई है। राजा ने एक सवाल के जवाब में कहा, उत्तर प्रदेश को पैसा कहां से मिला? क्या यह आंतरिक विकास है? हमने सभी क्षेत्रों में प्रगति की है और देश के कुल कारखाना श्रमिकों में से 15 प्रतिशत तमिलनाडु में हैं। उन्होंने कहा, लगभग 11.32 लाख करोड़ रुपये का निवेश प्राप्त हुआ है। पिछले 3-4 सालों में ही लगभग 35 लाख रोजगार के अवसर सृजित हुए हैं और यह केंद्र सरकार के आंकड़ों तथा अर्थव्यवस्था में तेजी के अनुसार है। राजा ने कहा कि जब राष्ट्रीय विकास दर 6-7 प्रतिशत है, तब तमिलनाडु में 11.19 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
उत्तर-दक्षिण भेदभाव का तात्पर्य उत्तर और दक्षिण भारत के बीच सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक असमानताओं के कारण होने वाले भेदभाव और तनाव से है, जिसमें क्षेत्रों के विकास स्तर, सांस्कृतिक भिन्नताओं, राजनीतिक प्रतिनिधित्व और आर्थिक असमानताओं जैसे कई आयाम शामिल हैं। यह एक जटिल मुद्दा है जिसके कई पहलू हैं, जैसे कि आर्थिक संसाधनों का असमान वितरण, सांस्कृतिक अंतर और राजनीतिक शक्ति संतुलन में भिन्नता दक्षिण भारत के राज्य, खासकर केरल और कर्नाटक, सामाजिक समानता और विकास के मामले में बेहतर प्रदर्शन करते हैं, जबकि उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे उत्तरी राज्यों में जातिगत असमानता अधिक है। आर्थिक रूप से, उत्तरी राज्यों से जमा की गई पूंजी का बड़ा हिस्सा दक्षिण और पश्चिम में निवेश किया जाता है।
भारत में सीटों का परिसीमन जनसंख्या के आधार पर होता है, जिससे अधिक आबादी वाले उत्तरी राज्यों को अधिक राजनीतिक शक्ति मिलती है और दक्षिण के राज्यों का प्रतिनिधित्व कम हो सकता है। उत्तर भारतीय लोगों में गोरी त्वचा के प्रति एक श्रेष्ठता की भावना हो सकती है और हिंदी भाषा को दक्षिण के उन लोगों पर थोपा भी जाता है जो हिंदी नहीं जानते। इसके विपरीत, दक्षिण के लोग आमतौर पर अधिक शांत माने जाते हैं। उत्तर भारत के कई राज्यों में जातिगत असमानता बहुत अधिक है, जबकि दक्षिण के राज्य सामाजिक संबंधों के मामले में अधिक समान हैं। भारत संयुक्त इकाई के रूप में बेहतर काम करता है। उत्तर और दक्षिण को एक-दूसरे की जरूरत है। युवा आबादी वाले उत्तरी राज्य, औद्योगिक और सामाजिक रूप से विकसित दक्षिणी राज्यों को कामगार दे सकते हैं, जिससे सभी को फायदा होगा।
आम चुनाव 2024 से पहले एक बार फिर देश में उत्तर बनाम दक्षिण का सियासी दंगल शुरू हो गया था। दक्षिण के राज्य बीजेपी की अगुआई वाली केंद्र सरकार पर उनकी उपेक्षा और संसाधनों को छीनने का आरोप लगाकर आंदोलन कर रहे थे। कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु जैसे राज्यों की सत्तारूढ़ सरकार पिछले कुछ दिनों से संसद से सड़क तक इस मुद्दे पर उतरीं। उनके आरोपों पर केंद्र सरकार और बीजेपी ने भी पलटवार किया।दक्षिण भारत के अधिकतर राज्य एकजुट होते दिख रहे हैं। इन राज्यों ने जहां एक ओर केंद्र के सामने अपनी मांगें रखने का फैसला किया, वहीं दूसरी ओर ये सोशल मीडिया पर भी कैंपेन चला रहे हैं। सोशल मीडिया पर माई टैक्स, माई राइट नाम से एक कैंपेन भी चल रहा है। इन तमाम राज्यों का आरोप है कि केंद्र सरकार उनके राज्य के साथ वित्तीय अन्याय कर रही है।
कर्नाटक की सरकार तो इस मसले पर विरोध करने के लिए दिल्ली के जंतर-मंतर तक गई और दूसरे राज्य भी आंदोलन तेज करने की कोशिश करते हैं। वित्तीय आयोग की अनुशंसा में कहा गया था कि केंद्र और राज्य के बीच टैक्स और कमाई के बीच की हिस्सेदारी का आधार 2011 की जनगणना होगी। इस बंटवारे के लिए कई मानक होते हैं जिनमें सबसे अहम फैक्टर राज्य की आबादी होती है। अब तक 1971 की आबादी का आधार इसके लिए बनाया जाता रहा है लेकिन आयोग की अनुशंसा के बाद विवाद शुरू हो गया। तब भी दक्षिण के राज्यों का तर्क था कि 2011 की जनगणना का आधार बनाने पर उनका हिस्सा कम हो जाएगा और जनसंख्या वृद्धि को रोकने की दिशा में उठाए प्रभावी कदम की सजा उन्हें मिलेगी। इस प्रकार के भाव भी समाप्त होने चाहिए। (अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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