आस्था की केन्द्र शक्तिपीठ कन्याकुमारी

एक बार श्रीश्री रविशंकर से किसी ने पूछा कि यदि शिव एक व्यक्ति नहीं हैं और केवल एक तत्त्व हैं तो माता सती के शरीर के हिस्सों से इतने शक्ति पीठ (ऊर्जा के स्थान) क्यों बने हैं? शक्ति पीठ वह जगह है जहाँ लोगों ने लंबे समय तक ध्यान किया है और वहाँ ऊर्जा पाई है। जब आप ध्यान करते और गाते हैं तो उस स्थान पर ऊर्जा इकट्ठा हो जाती है। जब आप सकारात्मक स्थिति में होते हैं, न केवल आप, यहाँ तक कि खंभे, पेड़ और पत्थर सकारात्मक कंपनों को अवशोषित करते हैं। इसी प्रकार शक्ति पीठ का निर्माण हुआ। शक्तिपीठ केवल कोई एक स्थान नहीं है, गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी के अनुसार, यह दैवीय शक्ति से ओत-प्रोत एक जगह है जहाँ पर ध्यान किया जा सकता है। देवी पुराण के अनुसार 51 शक्तिपीठों की स्थापना की गई है और यह सभी शक्तिपीठ बहुत पावन तीर्थ माने जाते हैं। वर्तमान में यह 51 शक्तिपीठ पाकिस्तान, भारत, श्रीलंका,और बांग्लादेश, के कई हिस्सों में स्थित हैं। इन्हीं में एक कन्या कुमारी शक्तिपीठ है। यह तमिलनाडु के कन्याकुमारी कैंप पर है।
शक्तिपीठों में कश्मीर के पहलगांव जिले के पास माता का कंठ गिरा था। इस शक्तिपीठ को महामाया के नाम से जाना जाता है। पंजाब के जलंधर छावनी के पास देवी तालाब है जहाँ माता का बायां वक्ष (स्तन) गिरा था।यहां त्रिपुरमालिनी शक्तिपीठ है। झारखंड के बैद्यनाथ (देवघर) में जयदुर्गा मंदिर एक ऐसी जगह है जहाँ माता सती का हृदय गिरा था। मंदिर को स्थानीय रूप से बाबा मंदिर बाबा धाम कहा जाता है। परिसर के भीतर, जयदुर्गा शक्तिपीठ बैद्यनाथ के मुख्य मंदिर के ठीक सामने मौजूद है। निकटतम रेलवे स्टेशन हावड़ा-पटना-दिल्ली लाइन से जसीडिह (10 किमी) है।
नेपाल में गंडकी नदी के तट पर पोखरा नामक स्थान पर स्थित मुक्तिनाथ शक्तिपीठ है जहाँ माता का मस्तक या गंडस्थल गिरा था। बंगाल के वर्धमान जिले से 8 किमी दूर अजेय नदी के तट पर बाहुल शक्तिपीठ स्थापित है जहाँ माता सती का बायां हाथ गिरा था। बंगाल में ही वर्धमान जिले के उज्जयिनी नामक स्थान पर माता की दायीं कलाई गिरी थी। शक्ति पीठ मांगल्य चंडिका कही जाती हैं। त्रिपुरा के उदरपुर के निकट राधा किशोरपुर गांव पर माता का दायां पैर गिरा था। बांग्लादेश में चिट्टागौंग (चटगांव) जिले के निकट चंद्रनाथ पर्वत शिखर पर छत्राल (चट्टल या चहल) में माता की दायीं भुजा गिरी थी। बंगाल के सालबाढ़ी ग्राम स्थित त्रिस्रोत स्थान पर माता का बायां पैर गिरा था।
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के संगम तट पर माता की हाथ की उंगली गिरी थी। इस शक्तिपीठ को ललिता के नाम से भी जाना जाता हैं। प्रयागराज और ललिता देवी मंदिर (शक्तिपीठ) के बीच की दूरी लगभग 3 किलोमीटर है। जयंती शक्तिपीठ आसाम की जयंतिया पहाड़ी पर स्थित है जहाँ देवी माता सती की बाईं जंघा गिरी थी। यहाँ देवी माता सती की जयंती और भगवान शिव की कृमाशिश्वर के रूप में पूजा की जाती है। पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले पर माता के दाएँ पैर का अँगूठा गिरा था। यह शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के वर्धमान से लगभग 32 किलोमीटर दूर स्थित है। हमें निगम स्टेशन से बर्दवान-कटोआ रेलवे लेनी चाहिए।
हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले में माता के टखने गिरे थे। इस शक्तिपीठ को सावित्री के नाम से जाना जाता है। थानेसर यानी पुराना कुरुक्षेत्र, अब कुरुक्षेत्र जिले में ही है एवं दिल्ली से 160 किलोमीटर और चंडीगढ़ से 90 किलोमीटर दूर है। मनीबंध, अजमेर से 11 किमी उत्तर-पश्चिम में पुष्कर के पास गायत्री पहाड़ के निकट स्थित है जहाँ माता की कलाई गिरी थी। बांग्लादेश के सिल्हैट जिले के पास शैल नामक स्थान पर माता का गला (ग्रीवा) गिरा था। पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में बोलीपुर स्टेशन के 10 किमी उत्तर-पूर्व में कोप्पई नदी के तट पर, देवी स्थानीय रूप से कंकालेश्वरी के रूप में जानी जाती है, जहाँ माता का श्रोणि (पेट का निचला हिस्सा) गिरा था। पंचासागर शक्तिपीठ, उत्तर प्रदेश के वाराणसी के पास स्थित है जहाँ माता सती के निचले दांत गिरे थे। अपर्णा शक्तिपीठ एक ऐसी जगह है जहाँ देवी माता सती की बाईं पायल गिरी थी। यहाँ देवी की अपर्णा या अर्पान के रूप में पूजा की जाती है जो कि कुछ भी नहीं खातीं और भगवान शिव को बैराभा का रूप मिला। पश्चिम बंगाल के जिला पूर्वी मेदिनीपुर स्थान पर माता के बाएं टखने गिरे थे। यह शक्तिपीठ रून्नारयन नदी के तट पर स्थित है।
मध्यप्रदेश के अमरकंटक के कालमाधव स्थित शोन नदी के पास माता का बायां नितंब गिरा था। इसी प्रकार अमरकंटक जिले में स्थित नर्मदा के उद्ग्म पर माता का दायां नितंब गिरा था। उत्तरप्रदेश के चित्रकूट के पास रामगिरी स्थान पर माता का दायां स्तन गिरा था। मन्दाकिनी नदी के तट पर चित्रकूट के 2 किमी दक्षिण में स्थित जानकी सरोवर नाम का एक पवित्र तालाब, शक्तिपीठ के रूप में माना जाता है। कुछ लोग इसे राजगिरी (आधुनिक राजगीर) कहते हैं। यह एक प्रसिद्ध बौद्ध तीर्थस्थान है। गुजरात के जूनागढ़ जिले में स्थित सोमनाथ मंदिर के प्रभास क्षेत्र में माता का उदर गिरा था। मध्यप्रदेश के उज्जैन नगर में शिप्रा नदी के तट के पास भैरव पर्वत पर माता के ऊपरी ओष्ठ गिरे थे। बंगाल के हुगली जिले के खानाकुल-कृष्णानगर मार्ग पर माता का दायां कंधा गिरा था। भारत-नेपाल की सीमा पर जनकपुर रेलवे स्टेशन के निकट मिथिला में माता का बायां कंधा गिरा था। यहां की शक्तिपीठ भी आस्था का केन्द्र है।
पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में माता की स्वर रज्जु गिरी थी। कर्णाट शक्तिपीठ हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में स्थित है जहाँ माता सती के दोनों कान गिरे थे। यहाँ देवी की जयदुर्गा या जयदुर्ग और भगवान शिव की अबिरू के रूप में पूजा की जाती है। यशोर स्थान पर माता की हथेली गिरी थी। यह ईश्वरपुर, सातखिरा जिला, बांग्लादेश में स्थित है। पश्चिम बंगाल के अट्टहास स्थान पर माता का निचला ओष्ठ गिरा था। यह कोलकाता से 115 किमी दूर है। पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में माता का गले का हार गिरा था। यह शक्तिपीठ स्थानीय रेलवे स्टेशन से केवल 10 मिनट की दूरी पर है। विराट अंबिका शक्तिपीठ राजस्थान में भरतपुर के विराट नगर में स्थित है जहाँ माता के बाएं पैर कि उंगलियां गिरी थीं। निकटतम हवाई अड्डा जयपुर है और राष्ट्रीय उड़ानों के साथ-साथ यहाँ से अंतरराष्ट्रीय उड़ानें भी उपलब्ध हैं। बिहार के पटना में माता सती की दायीं जांघ गिरी थी। इस शक्तिपीठ को सर्वानंदकरी के नाम से जाना जाता है।
(मोहिता-हिफी फीचर)